शादी मुहब्बत की नहीं, ख्वाहिश की पूर्ति है

अहा! जिन्दगी के फरवरी 2010 अंक में प्रकाशित एवं सुरजीत द्वारा अनुवादित मुमताज मुफ्ती की "वह बच्चा" कहानी के अंत में नायिका नायक से मिलने आती है। नायक नायिका से बहुत नाराज है, लेकिन नायिका नायक को बताती है कि वो घर नहीं गई, सिर्फ उसको मनाने के लिए लाहौर से उसके पास आई है। इस तरह प्रेम भाव से उसने नायक से पहले कभी बात नहीं की थी, नायक को नायिका का प्रेम देखकर गुस्सा आ जाता है, लेकिन नायिका नजाकत को समझते हुए कहती है मुझे पता है तुम मुझसे बेहद मुहब्बत करते हो। नायिका अपनी बात जारी रखते हुए कहती है “मैं जानती हूं कि तुम में एक बच्चा है। मासूम बच्चा, जो बेलाग, बेगर्ज, बेमकसद मुझे चाहता है। अरशी, तुम्हारी मुहब्बत मेरी जिन्दगी का एकमात्र सरमाया है, जिसके सहारे मैं सारी जिन्दगी गुजार सकती हूं। नायक चिल्लाते हुए कहता है “ फिर तुमने उसको ठुकरा क्यों दिया, तुमने उसको रद्द क्यों कर दिया। नायिका कहती है कि मैं उसको नहीं ठुकराया, उस पर तो मुझे गर्व है, मैंने तो केवल तुम्हारी शादी का प्रस्ताव ठुकराया है। गुस्से के कारण आपा खो चुका नायक चिल्लाते हुए पूछता है आखिर क्यों? नायिका बोलती है “अरशी, तुम समझते हो शादी मुहब्बत की पूर्ति है। बिल्कुल गलत है। शादी मुहब्बत की नहीं, ख्वाहिश की पूर्ति है और ख्वाहिश की पूर्ति मुहब्बत की अस्वीकृति है। मैरिज इज नॉट लव रिलेशनशिप। लोग समझते हैं कि यह मुहब्बत का ताल्लुक है। यह खुशफहमी है। अरशी लव इज ए डिप्लोमैटिक रिलेशनशिप। बीवी बनकर मैं तुम्हारी मुहब्बत का गला नहीं घोंट सकती। तुम्हारी मुहब्बत तो मेरी जिन्दगी की पूंजी है। वह तो मेरे लिए राह की मशाल है। इतना कहते हुए नायिका वहाँ से रुकस्त हो जाती है और नायक बैठा सोचता रहता है। मुमताज मुफ्ती की कहानी सच्चे प्रेम का संदेश देती है।

लेकिन आज प्रेम को उजागर करना पड़ता महंगे महंगे गिफ्टों से। गुलाबी फूलों से। नए नए तोहफों से। अगर देखा जाए तो प्रेम रूहों का रिश्ता है, जिस्मों और दिखावे का नहीं। सूफियों ने मुहब्बत को इबादत कहा है, पाक पवित्र कहा है। प्रेम के असली अर्थ गुम होते जा रहे हैं। इसलिए प्रेमी पाकर भी कुछ लोग प्रेम नहीं हासिल कर पाते। ख्वाहिशें प्रेम को जलाकर राख कर देती हैं। अमृत को जहर बना देती हैं। लेकिन मुहब्बत जहर को भी अमृत कर देती है। मुहब्बत फूलों की सेज नहीं माँगती, वो काँटों पर भी सुकून की नींद सो लेती है। जब प्रेम की लगन लगती है..तो जरे जरे से प्रेम के झरने बहने लगते हैं। रूह फूलों सी खिलती उठती है। बेरंग दुनिया में भी रंग ही रंग नजर आते हैं। पतझड़ की ऋतु में भी पेड़ हरे भरे नजर आते हैं। लेकिन जैसे भी इस प्रेम में ख्वाहिशों का आगमन होता है। सब कुछ खत्म सा होने लगता है। फिर बहारें भी पतझड़ जैसी लगती हैं। रंग भी बेरंग हो जाते हैं। फूल सी खिलती रूह भी मुरझाने लगती है।

प्रेम करने के लिए कोई दिन, कोई पल और लम्हा तय करने की जरूरत नहीं। प्रेम का झरना तो निरंतर बहता ही रहता है। प्रेम की नदिया में कभी सूखा नहीं आता। प्रेम की नदिया तो अविराम बहती ही रहती है। कभी कभी सोचता हूँ, जो लोग खुदा का नाम लेते हुए भी हिसाब रखते हैं..वो इंसान से असीम प्रेम मुहब्बत इश्क कैसे कर सकते हैं।
भार
कुलवंत हैप्पी

टिप्पणियाँ

  1. आहा जिंदगी में ये कहानी मैंने भी पढ़ी ...
    कहानी का सन्दर्भ देते हुए तुमने प्रेम का जो उदात्त अर्थ प्रस्तुत किया ...बहुत प्रभावी है ...!!

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  2. प्रेम करने के लिए कोई दिन, कोई पल और लम्हा तय करने की जरूरत नहीं। प्रेम का झरना तो निरंतर बहता ही रहता है। प्रेम की नदिया में कभी सूखा नहीं आता। प्रेम की नदिया तो अविराम बहती ही रहती है।

    bahut sahee vyakhya kee hai aapne.............
    Post hamesha kee tarah acchee lagee .

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  3. बहुत असरकारक पोस्ट, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  4. शादी मुहब्बत की नहीं, ख्वाहिश की पूर्ति है और ख्वाहिश की पूर्ति मुहब्बत की अस्वीकृति है।
    बिलकुल सही बात है कहानी के माधय्म से प्रेम के सच को बताया गया है सही बात है प्रेम के दिन पल लम्हे रिश्ते किसी की जरूरत नही होती रिश्ते मे आपेक्षायें होती हैं जहाँ आपेक्षायें होती हैं वहां प्यार नही रहता। प्रेम तो एक एहसास है जिसे बस महसूस किया जा सकता है समर्पण भाव से त्याग से। बहुत अच्छा आलेख है। कुलवन्त कल तुम्हारा फोन आया मुझे इतनी खुशी हुयी कि बता नही सकती। बेटा , बस हमेशा ये प्यार बनाये रखना बहुत बहुत आशीर्वाद

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  5. प्रेम करने के लिए कोई दिन, कोई पल और लम्हा तय करने की जरूरत नहीं। प्रेम का झरना तो निरंतर बहता ही रहता है। प्रेम की नदिया में कभी सूखा नहीं आता। बिलकुल सही कहा..... बहुत ही भावनात्मक कहानी .....

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  6. pyar koi bol nhi
    pyar aawaz nhi
    ek khamoshi hai
    sunti hai kaha
    karti hai
    na ye rukti hai
    na bujhti hai
    na thahri hai kahin
    noor ki boond hai
    sadiyon se baha karti hai

    bas pyar aur kya hai .........ye hi insaan samajh nhi pata aur khwahish aur pyar ko ek kar baithta hai aur phir shikayat karta hai ki use mujhse prem nhi.........pahle prem ko jano to sahi , usmein dubo to sahi........guarantee hai zindagi bhar bahar nhi nikal paoge agar prem ke sagar mein ek baar doobe to...........itni si baat insaan nhi samajh pata hai.........bahut hi sundar post likhi hai.
    aaj ke tathakathit premiyon ke liye maine bhi apne blog pa rkuch lagaya hai ..........link de rahi hun dekhiyega aur apne vichar bataiyega.
    http://redrose-vandana.blogspot.com

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  7. एक सच्चे प्रेम को पर्भासित करती हुई ये ....कहानी .....बहुत सुंदर .....जहाँ तक मैं सोचता हूँ ..प्यार का कभी रूप नहीं बदलेगे ......वो जैसा है वैसा रहेगा सदियों -सदियों तक .

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  8. topic hi intresting tha phir kehani to honi hi thi :)

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  9. हैपी जी आपने सही कहा..
    पर जिनसे ये विवाद चल रहा है.. वे इसे भी मान्यता मानते हैं... आप हमारे विवाद में अपनी राय रख रहे हैं.. इसके लिए बहुत धन्यवाद

    aamin.

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  10. प्रेम के उदात्त स्वरूप को स्पष्ट करती रचना । बेहतरीन प्रविष्टि । आभार ।

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  11. निर्मला दीदी से सहमत।
    गुलज़ार जी की पंक्तियां समर्पित
    प्यार अहसास है
    प्यार कोई बोल नहीं,
    प्यार आवाज़ नहीं
    एक ख़ामोशी है,
    सुनती है,
    कहा करती है।
    न यह बुझती है,
    न रुकती है,
    न ठहरी है कहीं
    नूर की बूंद है,
    सदियों से बहा करती है।

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  12. आप मेरे ब्लाग पर एक सवाल छोड़कर आए थे, उसी का पीछा करते में यहां पहुंचा तो युवा सोच की एक अच्छी दुनिया से मेरा परिचय हुआ। मुझे यहां काफी कुछ पढ़ने को मिला। आपके और आमीन जी के सवाल से प्रेरित होकर मैंने अपनी अगल पोस्ट लिखी है। हो सकता है इससे आपके सवाल का जवाब मिल जाए।
    मान्यतावाद का भ्रम व्याख्यावाद को नहीं समझने देता

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