हैप्पी अभिनंदन में कार्टूनिस्ट कीर्तिश भट्ट
हैप्पी अभिनंदन में आज ब्लॉगवुड की जिस हस्ती से आप रूबरू होने जा रहे हैं, वो कम शब्दों में बहुत बड़ी बात कहने में यकीन रखते हैं। कहूँ तो गागर में सागर भरने की कोशिश करते हैं और सफल भी होते हैं, सच में कोई अतिशोक्ति नहीं। हररोज आप उनके इस हुनर और कला से रूबरू होते हैं। जी हाँ, मैं आज आपकी मुलाकात बामुलाहिजा के संचालक और शानदार कार्टूनिस्ट कीर्तिश भट्ट से करवाने जा रहा हूँ। वो क्या सोचते हैं ब्लॉगवुड के बारे में और कैसे पहुंचे जहाँ तक उनकी कहानी उनकी जुबानी खुद ही पढ़िएगा।
कुलवंत हैप्पी : आपने अपने ब्लॉग पर भारतीय कार्टून और भारतीय कार्टूनिस्ट से सम्बद्ध लेख का लिंक तो दिया है, लेकिन खुद के बारे में कुछ नहीं लिखा, विशेष कारण?
कीर्तिश भट्ट : जहाँ तक 'भारतीय कार्टून और भारतीय कार्टूनिस्ट से सम्बद्ध लेख का ' सवाल है तो वो लिंक मैंने इसलिए लगाया है क्योंकि हिंदी विकिपीडिया पर इस विषय से सम्बद्ध लेख मैं लिख रहा हूँ, लिंक पर दिए गए लेख मेरे लिखे हुए हैं. कई पूर्ण है कई आधे अधूरे हैं जिन्हें जानकारी के आभाव मैं पूरा नहीं कर पाया हूँ. लिंक देने कई कारण है जैसे कि अन्य कार्टूनिस्ट भी अपने बारे मैं जानकारी दें. पाठक कार्टूनिस्टों के बारे मैं जानें, और यदि किसी के पास इनसे सबंधित और जानकारी हो तो वाह भी सामने आ जाये.
रही बात अपने बारे मैं लिखने कि तो ईमानदारी से कहूं तो लिखने को कुछ विशेष था ही नहीं सो नहीं लिखा. पढाई से लेकर कार्टूनिंग तक ऐसा कोई तीर नहीं मारा जिसका यहाँ उल्लेख किया जा सके. शकल भी ऐसी नहीं है फोटो दिखाने के बहाने अपने बारे मैं कुछ लिखा जाये. ऐसे मैं अपने ब्लॉग पर एक अनुपयोगी विजेट की बजाय अन्य रोचक सामग्री प्रस्तुत करना ज्यादा उचित समझा जो पाठको को पसंद भी आए और मेरी साईट की रोचकता और पठनीयता भी बढाए.आप यदि गूगल अनालीटिक्स जैसी सुविधाओं का उपयोग करते हो तो आपको पता चलता रहता है कि आपकी साईट पर क्या पसंद किया जा रहा है तथा कब /कहाँ /कैसे और क्या पढ़ने के लिए आपकी साईट पर ट्राफिक आ रहा है. मैंने उसी प्राथमिकता से अपने ब्लॉग के विजेट सेट किये हुए हैं. इसमें अपने बारे में लिखना मुझे अनावश्यक लगा. वैसे जो लोग जानना ही चाहते हैं उनके लिए मैं यहाँ बता देता हूँ कि मैं मध्यप्रदेश के झाबुआ मैं पैदा हुआ. शिक्षा के नाम पर समाजशास्त्र मैं एमए किया है. कला और कार्टून से सम्बद्ध कोई डिग्री या शिक्षा मैंने नहीं ली. वर्तमान में इंदौर मैं 'नईदुनिया' मैं कार्यरत हूँ.
कुलवंत हैप्पी : आप ने अपने ब्लॉग से टिप्पणी बॉक्स हटा दिया, उसके पीछे कोई विशेष कारण?
कीर्तिश भट्ट : फिर वही वजह 'give and take' कम से कम मेरे ब्लॉग पर तो यह गैरजरूरी विजेट था. वैसे भी उसका उपयोग कम और दुरुपयोग ज्यादा हो रहा था. या तो उस पर कोई बेनामी टिपण्णी कर अपनी कुंठा शांत कर रहा था या नए (कुछ पुराने ब्लॉगर भी) अपने ब्लॉग का विज्ञापन कर रहे थे. मेरा समय प्रबंधन जरा ख़राब है ऐसे मैं जितना समय बचा पता हूँ उसमें ज्यादा से ज्यादा पोस्ट पढ़ने का प्रयास करता हूँ. लेकिन टिप्पणियाँ कम ही कर पाता हूँ. अब जैसी कि प्रथा चल पड़ी है अगर मैं टिप्पणियां कर नहीं कर रहा हूँ तो आयेंगी भी नहीं. अतः बंद करना बेहतर समझा. इससे कम से कम उन ब्लॉगर बंधुओं क समय बचेगा जो इस आशा मैं टिपण्णी करने यदा कदा आ जाते थे कि बदले में मैं भी टिपण्णी करूँगा.ब्लॉग्गिंग की इस टिपण्णी प्रथा से व्यथित हो कर मैंने अपने गुरुनुमा बड़े भाई (ब्लॉगर मित्र) से चर्चा की और उनसे मार्गदर्शन भी माँगा. टिप्पणियों को लेकर मेरे कदम का उन्होंने समर्थन किया और जो वचन उन्होंने कहे उसे यहाँ पेस्ट किये दे रहा हूँ छोटे से लेकर बड़े ब्लॉगर और बुद्धिजीवी से लेकर टिपण्णीजीवी ब्लॉगर सभी ध्यान से पढ़ें. टिपण्णी के बारे मैं वे कहते हैं "यही तो मानवीय मूल्यों का सर्वोपरि अवलोकन है जो मानव को मानव से दानव बनाने के लिए स्वतः प्रेरित करता है. यही तो वह शाश्वत प्रलोभन है जिसका संशोधन करना है. जैसे पुष्प ही पुष्प की अन्तःतवचा में उद्वेलित होता है. शाश्वत प्रलोभन ही भ्रष्टाचार जनता है और उससे वह प्रभावित होता है जो सानिवि का अधिशासी अभियंता है." ... आशा है समझाने वाले समझ गए होंगे.
कुलवंत हैप्पी : आप ने अपने हुनर को खुद पहचाना या किसी और ने कहा, आप अच्छे कार्टूनिस्ट बन सकते हो?
कीर्तिश भट्ट : अच्छा या बुरा यह तय होने में अभी बहुत ज्यादा समय बाकी है. रही बात सिर्फ कार्टूनिस्ट बनने की तो उसके लिए तीन लोगों को श्रेय देना चाहूँगा जिन्होंने प्रत्यक्ष तो नहीं लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से मुझे मदद की. पहले मेरे प्राइमरी स्कूल (सरकारी) के हेडमास्टर. स्कूल में उनकी सख्ती और अनुशासन इतना भय रहता था कि मेरे जैसे लडके उनके जोर से डांटने पर ही अपनी निक्कर गीली कर दे. एक दिन क्लास मैं कॉपी पर चित्र बनाते हुए नज़र ऊपर कि तो सामने वही खड़े थे. उस वक्त कुछ सेकेंड्स में मेरा छोटा दिमाग जितने भी बुरे परिणाम सोच सकता था सोच रहा था ..और इससे पहले कि निक्कर गीली होती उस कड़क आवाज़ ने हँसते हुए बोला "अरे वाह !! आज तो चित्रकारी हो रही है !!??" ..बस तब से वो चित्रकारी (दरअसल कार्टूनिंग ) चल ही रही है. अगर उस दिन उनकी प्रशंसा की बजाय एक आध थप्पड़ पढ़ जाता तो शायद कार्टूनिंग भूल जाता मैं. दूसरे और तीसरे नम्बर पर मेरे दोनों बढे भाई जिन्होंने पिताजी की सोच के विपरीत मुझे पढाई से ज्यादा कार्टून पर ध्यान देने कि सलाह दी. इसके अतिरिक्त बाकी सफ़र "एकला चालो रे " की नीति पर जारी है.
कुलवंत हैप्पी : आपकी वेकसाईट पर कॉमिक स्ट्रिप हैं, लेकिन आप उन्हें ब्लॉग पर क्यों नहीं डालते ?
कीर्तिश भट्ट : शुरू से ही मैं बामुलाहिजा को ब्लॉग के बजाय वेबसाइट के रूप मैं स्थापित करना चाहता हूँ इसके मद्देनज़र उस पर राजनितिक और सामाजिक हास्य-व्यंग आधारित अन्य कई सामग्री भी उपलब्ध रहती है. कॉमीक्स ही नहीं उस पर और भी कई रोचक सामग्री है मैं लगभग हर रोज जोड़ रहा हूँ. यदि में अपनी साईट का हर आइटम ब्लॉग पर पोस्ट बनाकर डालूँ तो शायद एग्रीगेटर के पेज पर हर आधे घंटे में एक पोस्ट मेरी होगी. चूँकि एग्रीगेटर्स पर लगातार पोस्ट प्रकाशित होती रहती है ऐसे मैं मेरे पोस्ट बार बार पेज पर आने से दूसरी महत्वपूर्ण पोस्ट बिनावाजह बगैर पढ़े ही नीचे खिसक जाएँगी. ब्लोग्गेर्स अभी ९० प्रतिशत ट्राफिक एग्रीगेटर्स के माध्यम से ले रहे है. ऐसे मैं कई अच्छी या बेहतरीन पोस्ट सिर्फ इसलिए पाठको से वंचित रह जाती है क्योंकि ढेर सारी पोस्ट उस पोस्ट के बाद आ जाती है और वह पोस्ट पीछे के पेज पर चली जाती है. अतः मैं सिर्फ अपना बनाया कार्टून पोस्ट करता हूँ जो सामयिक होता है. अन्य सामग्री को में इस प्रकार से नियोजित करने का प्रयास करता हूँ कि वे पोस्ट के रूप में एग्रीगेटर्स पर इकट्ठा न हों. जो लोग कार्टून पढ़ने के लिए ब्लॉग पर आते हैं वे वहां उपलब्ध लिंक को क्लिक करके भी उन्हें पढ़ सकते हैं. हर छोटी छोटी सामग्री के लिए एग्रीगेटर पर ट्राफिक जाम लगाना अजीब लगता है.
कुलवंत हैप्पी : आप असल जिन्दगी में क्या करते हैं, और ब्लॉग दुनिया के अलावा कहाँ (निवास) रहते हैं?
कीर्तिश भट्ट : यानी आपको भी पता है कि मेरे जैसे 'कार्टूनिस्ट' का गुजारा सिर्फ कार्टून से तो नहीं चल सकता. सिर्फ कार्टूनिंग पर सरवाईव करने के लिए अभी काफी लम्बा सफ़र तय करना है. मैं एक ग्राफिक डिज़ाईनर हूँ. कुछ वर्षों तक विज्ञापन एजेंसियों के लिए कार्य किया लेकिन अखबारों के लिए ग्राफिक और इन्फोग्रफिक बनाना ज्यादा रुचिकर लगा तो विज्ञापन कि दुनिया छोड़ अख़बार सम्हाल लिए. हाई फाई कोडिंग तो नहीं लेकिन थोडा बहुत वेब डिज़ाईनिंग और फ्लेश अनिमेशन मेरा शौक है. जिसका भरपूर उपयोग मैं बामुलाहिजा पर करता हूँ.
कुलवंत हैप्पी : एक दैनिक समाचार पत्र में आपके कार्टून "चुटकी" सिरलेख के नीचे प्रकाशित होते हैं, ऑनलाइन मीडिया के लिए बामुलाहिजा चुनने की विशेष वजह ?
कीर्तिश भट्ट : 'चुटकी' नाम से पॉकेट कार्टून कालम पहले से समाचार पत्र नई दुनिया में छप रहा था और जब मैंने यहाँ ज्वाइन किया तो वही नाम मेरे कार्टूनों के साथ जुड़ गया. जबकि 'बामुलाहिजा' इस समाचारपत्र में आने से पहले बन चुका था. 'बामुलाहिजा' नाम मुझे एक समाचारपत्र के संपादक ने दिया था जहां पहली बार मेरा नियमित कार्टून स्तम्भ छपना शुरू हुआ था. तभी से मुझे इस नाम से लगाव सा है ये मेरे लिए मेरी पहचान है. बतौर कार्टूनिस्ट मैं अपने नाम से ज्यादा 'बामुलाहिजा' का नाम अपने कार्टूनों के साथ जोड़ता हूँ.
कुलवंत हैप्पी : कोई रोचक लम्हा, जिसको याद करते ही दिल फूलों की तरह खिल उठता हो?
कीर्तिश भट्ट : निजी तो काफी है ...बतौर कार्टूनिस्ट पूछें तो एक घटना अभी कुछ समय पहले घटी जो मेरे लिए बड़ी अहम् और रोचक भी थी. हुआ यूं कि विष्णु नागर जी का एक दिन प्रेस मैं आगमन हुआ. उनका और कादम्बिनी का मैं बड़ा प्रसंशक था सो खबर मिलते ही मेरी इच्छा हुई कि यदि वे आज आखबार के कार्यालय में है तो उनसे एक बार मिलना हो जाये. मैं इसी जुगाड़ मैं बैठा सोच ही रहा था कि उनसे कैसे मिलूँ ....कि वे हमारे संपादक जी के साथ डिज़ाईनिंग रूम मैं मेरे सामने खड़े थे... हमारे संपादक अन्य साथियों का परिचय कराते उससे पहले ही विष्णु नागर जी पूछ बैठे आपके यहाँ कीर्तिश नाम का कार्टूनिस्ट है वो कहाँ बैठता है? मैं उनके ठीक पीछे खड़ा था तो संपादक ने इशारा करते हुए मेरा परिचय करवाया. उन्होंने आगे बढाकर मुझसे हाथ मिलाया और मुझसे जो भी उन्होंने कहा वो आशीर्वाद स्वरोपस्वरुप मेरे साथ हमेशा रहेगा. उस दिन मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा, मैं जिनसे मिलने के लिए रास्ते तलाश रहा था वे अगले ही पल खुद मुझे ढूँढते हुए मेरे सामने खड़े थे.
कुलवंत हैप्पी : क्या एक कार्टूनिस्ट को अच्छा व्यंगकार भी होना लाजमी?
कीर्तिश भट्ट : बिलकुल! मेरे ख्याल से तो व्यंगकार होना ज्यादा जरूरी है. किसी अख़बार के लिए बनने वाले सम्पादकीय कार्टून में ८० प्रतिशत व्यंग होता है और २० प्रतिशत चित्रांकन. इस लिहाज से व्यंगकार होना ज्यादा जरूरी है.
कुलवंत हैप्पी : पाठकों और ब्लॉगवुड वासियों के लिए कोई संदेश?
कीर्तिश भट्ट : हिंदी ब्लॉगस पर पाठक नहीं के बराबर है जो भी आ रहे हैं वे एग्रीगेटर्स के द्वारा आ रहे हैं जो कि खुद ब्लॉगर हैं जो एक दुसरे की पोस्ट पर मात्र टिप्पणियां कर रहे हैं. नए ब्लॉगर बनाने और उन्हें प्रोत्साहित करने के काफी प्रयास ब्लॉग जगत में होते आये हैं और हो रहे हैं लेकिन नए पाठक बनने का कोई प्रयास मैंने आज तक ब्लॉग की दुनिया मैं नहीं देखा. जबकि अब जरूरत उसी की है मेरा निवेदन है कि ब्लॉगर थोड़ी सी तकनीकी सुझबुझ या किसी तकनिकी ब्लॉगर बंधू के सहयोग से अपने ब्लॉग के नाम, टाइटल मेटाटेग, कीवर्ड आदि का समायोजन इस प्रकार से करें कि उनके ब्लॉग पर सर्च इंजिन से और डाइरेक्ट ट्राफिक भी आए. सर्च इंजिन और सीधे आने वाला ट्राफिक ही हमारे असली पाठक है और सभी ब्लॉगर्स को अपने ब्लॉग और उसके कंटेंट को सर्च इंजिन से जुड़ने लायक बनाना होगा.
चक्क दे फट्टे : भूरा मिस्त्री शिवरात्रि के दिन भंग पीने के लिए मंदिर में गया, लेकिन भंग तो मिली नहीं। मंदिर से बाहर निकलते उसकी पत्नि ने देख लिया। बोली क्या बात आज मंदिर में। हाजिरजवाबी भूरा मिस्त्री बोला "तेरे लिए कुछ माँगने गया था"। खुशी से फूल की तरह खिल उठी पत्नि बोली तो क्या माँगा। भूरा मिस्त्री ने कहा कि मैंने शिव जी से कहा मेरी पत्नि को सदैव सुहागन रखना।
कुलवंत हैप्पी : आपने अपने ब्लॉग पर भारतीय कार्टून और भारतीय कार्टूनिस्ट से सम्बद्ध लेख का लिंक तो दिया है, लेकिन खुद के बारे में कुछ नहीं लिखा, विशेष कारण?
कीर्तिश भट्ट : जहाँ तक 'भारतीय कार्टून और भारतीय कार्टूनिस्ट से सम्बद्ध लेख का ' सवाल है तो वो लिंक मैंने इसलिए लगाया है क्योंकि हिंदी विकिपीडिया पर इस विषय से सम्बद्ध लेख मैं लिख रहा हूँ, लिंक पर दिए गए लेख मेरे लिखे हुए हैं. कई पूर्ण है कई आधे अधूरे हैं जिन्हें जानकारी के आभाव मैं पूरा नहीं कर पाया हूँ. लिंक देने कई कारण है जैसे कि अन्य कार्टूनिस्ट भी अपने बारे मैं जानकारी दें. पाठक कार्टूनिस्टों के बारे मैं जानें, और यदि किसी के पास इनसे सबंधित और जानकारी हो तो वाह भी सामने आ जाये.
रही बात अपने बारे मैं लिखने कि तो ईमानदारी से कहूं तो लिखने को कुछ विशेष था ही नहीं सो नहीं लिखा. पढाई से लेकर कार्टूनिंग तक ऐसा कोई तीर नहीं मारा जिसका यहाँ उल्लेख किया जा सके. शकल भी ऐसी नहीं है फोटो दिखाने के बहाने अपने बारे मैं कुछ लिखा जाये. ऐसे मैं अपने ब्लॉग पर एक अनुपयोगी विजेट की बजाय अन्य रोचक सामग्री प्रस्तुत करना ज्यादा उचित समझा जो पाठको को पसंद भी आए और मेरी साईट की रोचकता और पठनीयता भी बढाए.आप यदि गूगल अनालीटिक्स जैसी सुविधाओं का उपयोग करते हो तो आपको पता चलता रहता है कि आपकी साईट पर क्या पसंद किया जा रहा है तथा कब /कहाँ /कैसे और क्या पढ़ने के लिए आपकी साईट पर ट्राफिक आ रहा है. मैंने उसी प्राथमिकता से अपने ब्लॉग के विजेट सेट किये हुए हैं. इसमें अपने बारे में लिखना मुझे अनावश्यक लगा. वैसे जो लोग जानना ही चाहते हैं उनके लिए मैं यहाँ बता देता हूँ कि मैं मध्यप्रदेश के झाबुआ मैं पैदा हुआ. शिक्षा के नाम पर समाजशास्त्र मैं एमए किया है. कला और कार्टून से सम्बद्ध कोई डिग्री या शिक्षा मैंने नहीं ली. वर्तमान में इंदौर मैं 'नईदुनिया' मैं कार्यरत हूँ.
कुलवंत हैप्पी : आप ने अपने ब्लॉग से टिप्पणी बॉक्स हटा दिया, उसके पीछे कोई विशेष कारण?
कीर्तिश भट्ट : फिर वही वजह 'give and take' कम से कम मेरे ब्लॉग पर तो यह गैरजरूरी विजेट था. वैसे भी उसका उपयोग कम और दुरुपयोग ज्यादा हो रहा था. या तो उस पर कोई बेनामी टिपण्णी कर अपनी कुंठा शांत कर रहा था या नए (कुछ पुराने ब्लॉगर भी) अपने ब्लॉग का विज्ञापन कर रहे थे. मेरा समय प्रबंधन जरा ख़राब है ऐसे मैं जितना समय बचा पता हूँ उसमें ज्यादा से ज्यादा पोस्ट पढ़ने का प्रयास करता हूँ. लेकिन टिप्पणियाँ कम ही कर पाता हूँ. अब जैसी कि प्रथा चल पड़ी है अगर मैं टिप्पणियां कर नहीं कर रहा हूँ तो आयेंगी भी नहीं. अतः बंद करना बेहतर समझा. इससे कम से कम उन ब्लॉगर बंधुओं क समय बचेगा जो इस आशा मैं टिपण्णी करने यदा कदा आ जाते थे कि बदले में मैं भी टिपण्णी करूँगा.ब्लॉग्गिंग की इस टिपण्णी प्रथा से व्यथित हो कर मैंने अपने गुरुनुमा बड़े भाई (ब्लॉगर मित्र) से चर्चा की और उनसे मार्गदर्शन भी माँगा. टिप्पणियों को लेकर मेरे कदम का उन्होंने समर्थन किया और जो वचन उन्होंने कहे उसे यहाँ पेस्ट किये दे रहा हूँ छोटे से लेकर बड़े ब्लॉगर और बुद्धिजीवी से लेकर टिपण्णीजीवी ब्लॉगर सभी ध्यान से पढ़ें. टिपण्णी के बारे मैं वे कहते हैं "यही तो मानवीय मूल्यों का सर्वोपरि अवलोकन है जो मानव को मानव से दानव बनाने के लिए स्वतः प्रेरित करता है. यही तो वह शाश्वत प्रलोभन है जिसका संशोधन करना है. जैसे पुष्प ही पुष्प की अन्तःतवचा में उद्वेलित होता है. शाश्वत प्रलोभन ही भ्रष्टाचार जनता है और उससे वह प्रभावित होता है जो सानिवि का अधिशासी अभियंता है." ... आशा है समझाने वाले समझ गए होंगे.
कुलवंत हैप्पी : आप ने अपने हुनर को खुद पहचाना या किसी और ने कहा, आप अच्छे कार्टूनिस्ट बन सकते हो?
कीर्तिश भट्ट : अच्छा या बुरा यह तय होने में अभी बहुत ज्यादा समय बाकी है. रही बात सिर्फ कार्टूनिस्ट बनने की तो उसके लिए तीन लोगों को श्रेय देना चाहूँगा जिन्होंने प्रत्यक्ष तो नहीं लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से मुझे मदद की. पहले मेरे प्राइमरी स्कूल (सरकारी) के हेडमास्टर. स्कूल में उनकी सख्ती और अनुशासन इतना भय रहता था कि मेरे जैसे लडके उनके जोर से डांटने पर ही अपनी निक्कर गीली कर दे. एक दिन क्लास मैं कॉपी पर चित्र बनाते हुए नज़र ऊपर कि तो सामने वही खड़े थे. उस वक्त कुछ सेकेंड्स में मेरा छोटा दिमाग जितने भी बुरे परिणाम सोच सकता था सोच रहा था ..और इससे पहले कि निक्कर गीली होती उस कड़क आवाज़ ने हँसते हुए बोला "अरे वाह !! आज तो चित्रकारी हो रही है !!??" ..बस तब से वो चित्रकारी (दरअसल कार्टूनिंग ) चल ही रही है. अगर उस दिन उनकी प्रशंसा की बजाय एक आध थप्पड़ पढ़ जाता तो शायद कार्टूनिंग भूल जाता मैं. दूसरे और तीसरे नम्बर पर मेरे दोनों बढे भाई जिन्होंने पिताजी की सोच के विपरीत मुझे पढाई से ज्यादा कार्टून पर ध्यान देने कि सलाह दी. इसके अतिरिक्त बाकी सफ़र "एकला चालो रे " की नीति पर जारी है.
कुलवंत हैप्पी : आपकी वेकसाईट पर कॉमिक स्ट्रिप हैं, लेकिन आप उन्हें ब्लॉग पर क्यों नहीं डालते ?
कीर्तिश भट्ट : शुरू से ही मैं बामुलाहिजा को ब्लॉग के बजाय वेबसाइट के रूप मैं स्थापित करना चाहता हूँ इसके मद्देनज़र उस पर राजनितिक और सामाजिक हास्य-व्यंग आधारित अन्य कई सामग्री भी उपलब्ध रहती है. कॉमीक्स ही नहीं उस पर और भी कई रोचक सामग्री है मैं लगभग हर रोज जोड़ रहा हूँ. यदि में अपनी साईट का हर आइटम ब्लॉग पर पोस्ट बनाकर डालूँ तो शायद एग्रीगेटर के पेज पर हर आधे घंटे में एक पोस्ट मेरी होगी. चूँकि एग्रीगेटर्स पर लगातार पोस्ट प्रकाशित होती रहती है ऐसे मैं मेरे पोस्ट बार बार पेज पर आने से दूसरी महत्वपूर्ण पोस्ट बिनावाजह बगैर पढ़े ही नीचे खिसक जाएँगी. ब्लोग्गेर्स अभी ९० प्रतिशत ट्राफिक एग्रीगेटर्स के माध्यम से ले रहे है. ऐसे मैं कई अच्छी या बेहतरीन पोस्ट सिर्फ इसलिए पाठको से वंचित रह जाती है क्योंकि ढेर सारी पोस्ट उस पोस्ट के बाद आ जाती है और वह पोस्ट पीछे के पेज पर चली जाती है. अतः मैं सिर्फ अपना बनाया कार्टून पोस्ट करता हूँ जो सामयिक होता है. अन्य सामग्री को में इस प्रकार से नियोजित करने का प्रयास करता हूँ कि वे पोस्ट के रूप में एग्रीगेटर्स पर इकट्ठा न हों. जो लोग कार्टून पढ़ने के लिए ब्लॉग पर आते हैं वे वहां उपलब्ध लिंक को क्लिक करके भी उन्हें पढ़ सकते हैं. हर छोटी छोटी सामग्री के लिए एग्रीगेटर पर ट्राफिक जाम लगाना अजीब लगता है.
कुलवंत हैप्पी : आप असल जिन्दगी में क्या करते हैं, और ब्लॉग दुनिया के अलावा कहाँ (निवास) रहते हैं?
कीर्तिश भट्ट : यानी आपको भी पता है कि मेरे जैसे 'कार्टूनिस्ट' का गुजारा सिर्फ कार्टून से तो नहीं चल सकता. सिर्फ कार्टूनिंग पर सरवाईव करने के लिए अभी काफी लम्बा सफ़र तय करना है. मैं एक ग्राफिक डिज़ाईनर हूँ. कुछ वर्षों तक विज्ञापन एजेंसियों के लिए कार्य किया लेकिन अखबारों के लिए ग्राफिक और इन्फोग्रफिक बनाना ज्यादा रुचिकर लगा तो विज्ञापन कि दुनिया छोड़ अख़बार सम्हाल लिए. हाई फाई कोडिंग तो नहीं लेकिन थोडा बहुत वेब डिज़ाईनिंग और फ्लेश अनिमेशन मेरा शौक है. जिसका भरपूर उपयोग मैं बामुलाहिजा पर करता हूँ.
कुलवंत हैप्पी : एक दैनिक समाचार पत्र में आपके कार्टून "चुटकी" सिरलेख के नीचे प्रकाशित होते हैं, ऑनलाइन मीडिया के लिए बामुलाहिजा चुनने की विशेष वजह ?
कीर्तिश भट्ट : 'चुटकी' नाम से पॉकेट कार्टून कालम पहले से समाचार पत्र नई दुनिया में छप रहा था और जब मैंने यहाँ ज्वाइन किया तो वही नाम मेरे कार्टूनों के साथ जुड़ गया. जबकि 'बामुलाहिजा' इस समाचारपत्र में आने से पहले बन चुका था. 'बामुलाहिजा' नाम मुझे एक समाचारपत्र के संपादक ने दिया था जहां पहली बार मेरा नियमित कार्टून स्तम्भ छपना शुरू हुआ था. तभी से मुझे इस नाम से लगाव सा है ये मेरे लिए मेरी पहचान है. बतौर कार्टूनिस्ट मैं अपने नाम से ज्यादा 'बामुलाहिजा' का नाम अपने कार्टूनों के साथ जोड़ता हूँ.
कुलवंत हैप्पी : कोई रोचक लम्हा, जिसको याद करते ही दिल फूलों की तरह खिल उठता हो?
कीर्तिश भट्ट : निजी तो काफी है ...बतौर कार्टूनिस्ट पूछें तो एक घटना अभी कुछ समय पहले घटी जो मेरे लिए बड़ी अहम् और रोचक भी थी. हुआ यूं कि विष्णु नागर जी का एक दिन प्रेस मैं आगमन हुआ. उनका और कादम्बिनी का मैं बड़ा प्रसंशक था सो खबर मिलते ही मेरी इच्छा हुई कि यदि वे आज आखबार के कार्यालय में है तो उनसे एक बार मिलना हो जाये. मैं इसी जुगाड़ मैं बैठा सोच ही रहा था कि उनसे कैसे मिलूँ ....कि वे हमारे संपादक जी के साथ डिज़ाईनिंग रूम मैं मेरे सामने खड़े थे... हमारे संपादक अन्य साथियों का परिचय कराते उससे पहले ही विष्णु नागर जी पूछ बैठे आपके यहाँ कीर्तिश नाम का कार्टूनिस्ट है वो कहाँ बैठता है? मैं उनके ठीक पीछे खड़ा था तो संपादक ने इशारा करते हुए मेरा परिचय करवाया. उन्होंने आगे बढाकर मुझसे हाथ मिलाया और मुझसे जो भी उन्होंने कहा वो आशीर्वाद स्वरोपस्वरुप मेरे साथ हमेशा रहेगा. उस दिन मेरी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा, मैं जिनसे मिलने के लिए रास्ते तलाश रहा था वे अगले ही पल खुद मुझे ढूँढते हुए मेरे सामने खड़े थे.
कुलवंत हैप्पी : क्या एक कार्टूनिस्ट को अच्छा व्यंगकार भी होना लाजमी?
कीर्तिश भट्ट : बिलकुल! मेरे ख्याल से तो व्यंगकार होना ज्यादा जरूरी है. किसी अख़बार के लिए बनने वाले सम्पादकीय कार्टून में ८० प्रतिशत व्यंग होता है और २० प्रतिशत चित्रांकन. इस लिहाज से व्यंगकार होना ज्यादा जरूरी है.
कुलवंत हैप्पी : पाठकों और ब्लॉगवुड वासियों के लिए कोई संदेश?
कीर्तिश भट्ट : हिंदी ब्लॉगस पर पाठक नहीं के बराबर है जो भी आ रहे हैं वे एग्रीगेटर्स के द्वारा आ रहे हैं जो कि खुद ब्लॉगर हैं जो एक दुसरे की पोस्ट पर मात्र टिप्पणियां कर रहे हैं. नए ब्लॉगर बनाने और उन्हें प्रोत्साहित करने के काफी प्रयास ब्लॉग जगत में होते आये हैं और हो रहे हैं लेकिन नए पाठक बनने का कोई प्रयास मैंने आज तक ब्लॉग की दुनिया मैं नहीं देखा. जबकि अब जरूरत उसी की है मेरा निवेदन है कि ब्लॉगर थोड़ी सी तकनीकी सुझबुझ या किसी तकनिकी ब्लॉगर बंधू के सहयोग से अपने ब्लॉग के नाम, टाइटल मेटाटेग, कीवर्ड आदि का समायोजन इस प्रकार से करें कि उनके ब्लॉग पर सर्च इंजिन से और डाइरेक्ट ट्राफिक भी आए. सर्च इंजिन और सीधे आने वाला ट्राफिक ही हमारे असली पाठक है और सभी ब्लॉगर्स को अपने ब्लॉग और उसके कंटेंट को सर्च इंजिन से जुड़ने लायक बनाना होगा.
चक्क दे फट्टे : भूरा मिस्त्री शिवरात्रि के दिन भंग पीने के लिए मंदिर में गया, लेकिन भंग तो मिली नहीं। मंदिर से बाहर निकलते उसकी पत्नि ने देख लिया। बोली क्या बात आज मंदिर में। हाजिरजवाबी भूरा मिस्त्री बोला "तेरे लिए कुछ माँगने गया था"। खुशी से फूल की तरह खिल उठी पत्नि बोली तो क्या माँगा। भूरा मिस्त्री ने कहा कि मैंने शिव जी से कहा मेरी पत्नि को सदैव सुहागन रखना।
आभार
कुलवंत हैप्पी
वाह जी, हमारे प्रिय कार्टूनिस्ट से मिलवाने, उन्हें जानने का मौका देने का आभार!!
जवाब देंहटाएंकीर्तिश भट्ट से मिलना बहुत अच्छा लगा. इनके कार्टून नेट पर जितने सर्कुलेट हुये हैं उतने किसी के नहीं हुये.. मैंने इनके कार्टून अनेकों भाषाओं में परिवर्तित हुये देखे हैं. लोगों को इनके काम का पता है, इनके नाम का नहीं
जवाब देंहटाएंऔर जब आपका काम आपके नाम से आगे निकल जाये ये बड़ी उपलब्धि है..
बेहद सजग दृष्टि वाले व्यक्तित्व से मिलवाया आपने । मैथिली जी ने सही कहा, जब आपका कृतित्व आपके व्यक्तित्व से आगे निकल जाय, यही सफलता है ।
जवाब देंहटाएंआभार इस मुलाकात के लिये ! हैप्पी अभिनन्दन !
nice
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रहा कीर्तिश जी से मिलना. मेरे लिए वे वर्तमान भारत के सबसे अच्छे कार्टूनिस्ट हैं. मेरे लिए सबसे बड़े सेलेब्रिटी हैं.
जवाब देंहटाएंमैथिली जी की बात से सौ प्रतिशत सहमत कि; "जब आपका काम आपके नाम से आगे निकल जाये ये बड़ी उपलब्धि है.."
कीर्तिश जी के लिए हमारी शुभकामनाएं.
बहुत खुशी हुयी भट्ट जी से मिल कर और मैथिली जी का इतनी बडी बात कहना अपने आप मे इनके लिये बहुत बडी उपलब्धि है । भट जी को बहुत बहुत शुभकामनायें तुम्हारा ये प्रयास बहुत अच्छा लगा । आशीर्वाद्
जवाब देंहटाएंहमारे प्रिय कार्टूनिस्ट से मिलवाने के लिए आभार. टिप्पणी क्या बन्द हुई संवाद का एक रास्ता ही बन्द हो गया.
जवाब देंहटाएंकीर्तिश भट्ट से मिलना बहुत अच्छा लगा.. उन्हें हमारी शुभकामनाएं !!
जवाब देंहटाएंभट्ट जी से मिलना बहुत अच्छा लगा ..
जवाब देंहटाएंkulwant jee interview ke aakhiri main gudgudate joke apakee achchhee ada hai. Kirtish ji kee baton se hee laga achchhe cartoonist hone ke sath achchhe insan bhee hain. unhen bhishubhkamana bhej den.
जवाब देंहटाएंMaza aa gaya padhke!
जवाब देंहटाएंinko pahli baar jana...rahi baat meri to aapka swagat hai!
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