संदेश

संपादकीय लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

गुजरात विस चुनाव 2012 बनाम नरेंद्र मोदी

चित्र
गुजरात विधान सभा चुनाव 2012 पर भारत की ही नहीं, बल्‍कि विश्‍व की निगाह टिकी हुई है, क्‍यूंकि नरेंद्र मोदी हैट्रिक बनाने की तरफ अग्रसर हैं, और उनका प्रचार प्रसार राष्‍ट्रपति बराक ओबामा का प्रचार कर चुकी पीआर एजेंसी के पास है, जो प्रचार पसार के लिए नए नए हथकंडे अपनाने के लिए बेहद तेज है। इतना प्रचार तो आदित्‍य चोपड़ा और आमिर ख़ान भी नहीं कर पाते, जितना प्रचार नरेंद्र मोदी का हो रहा है। अक्षय कुमार की तरह मीडिया की नजरंदाजी के बावजूद अपनी उपस्‍थिति दर्ज करवाने में कामयाब रहे नरेंद्र मोदी, आज सबसे ज्‍यादा चर्चित नेता हैं। आख़िर कैसे देते हैं हर बात का जवाब नरेंद्र मोदी एक दिन में सबसे ज्‍यादा प्रचार रैलियां करने वाले शायद भारत के पहले नेता होंगे, फिर भी वो हर भाषण का पलटकर जवाब दे रहे हैं। इसके पीछे एक ही कारण है कि मोदी ने अपने आस पास ऐसे लोगों का घेरा बनाया हुआ है जो मीडिया के संपर्क में हैं, कुछ मीडिया संस्‍थान तो विरोधी नेताओं द्वारा अलग अलग स्‍थानों पर दिए गए, बयानों की कॉपियां पल पल नरेंद्र मोदी तक पहुंचाते हैं, और मोदी कभी भी पटकथा तैयार कर रैली को संबोधित नहीं करते, वो कांग्रे

अरविंद केजरीवाल के बहाने स्‍विस यात्रा

चित्र
आम आदमी पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल ने अंबानी भाइयों के स्विस बैंक में खाते होने का दावा करते हुए दो बैंक ख़ातों को उजागर किया है, जिनको केजरीवाल अम्‍बानी बंधूओं का बता रहे हैं। अरविंद केजरीवाल के खुलासों की चर्चा से बॉलीवुड भी अछूत नहीं, हालिया रिलीज हुई फिल्‍म 'खिलाड़ी 786' में पुलिस कर्मचारी का किरदार निभा रहे जोनी लीवर मिथुन चक्रवर्ती को धमकी देते हैं कि वो 'केजरीवाल' को बता देगा। केजरीवाल खुलासे पर खुलासा किए जा रहे हैं, लेकिन सरकार इस मामले में कोई सख्‍़त कदम उठाती नजर नहीं आ रही, जो बेहद हैरानीजनक बात है, उक्‍त खाते अम्‍बानी बंधुओं कि हैं या नहीं, इस बात की पुष्‍टि तो स्‍विस बैंक कर सकती है, मगर निजता नियमों की पक्‍की स्‍विस बैंक ऐसा कभी नहीं करेगी, क्‍यूंकि उसने खाताधारक को एक गुप्‍त कोड दिया होता है, जिसका पता खाताधारक के अलावा किसी को नहीं होता, और तो और स्‍विस बैंक, हर दो साल बाद खाता धारकों के खाते बदल देती है, आप एक ख़ाते को आजीवन नहीं रख सकते। स्‍विस को हम कितना जानते हैं, बस इतना कि वहां पर हमारा काला धन पड़ हुआ है। मगर स्‍विस एक ऐसा देश है, जहा

सुन सनकर तंग आए ''देश का अगला...........?"

चित्र
कांग्रेस, हम ने कल लोक सभा में एफडीआई बिल पारित करवा दिया। अब हम गुजरात में भी अपनी जीत का परचम लहराएंगे। मीडिया कर्मी ने बीच में बात काटते हुए पूछा, अगला प्रधानमंत्री कौन होगा, अगर मध्‍याविधि चुनाव हों तो।  अगर देश का प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तरह जनता से बातचीत नहीं करेगा तो, मीडिया तो ऐसे सवाल पूछता ही रहेगा।                                           नोट  पेंट की एड का पॉलिटिकल वर्जन देश के लोकतंत्र में शायद पहली बार हो रहा है कि बात बात पर एक सवाल उभरकर सामने आ जाता है ''देश का अगला प्रधान मंत्री कौन होगा ?'' यह बात तब हैरानीजनक और कांग्रेस के लिए शर्मजनक लगती है जब चुनावों में एक लम्‍बा समय पड़ा हो, और बार बार वो ही सवाल पूछा जाए कि ''देश का अगला प्रधान मंत्री कौन होगा ?'' जब इस मामले से जोर पकड़ा था तो देश के प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था, ''कांग्रेस जब भी कहे, मैं राहुल गांधी के लिए खुशी खुशी कुर्सी छोड़ने को तैयार हूं, मैं जब तक इस पद पर हूं, अपना दायित्‍व निभाता रहूंगा''। देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भले द

राजनीति में ''एफडीआई''

चित्र
भारतीय राजनीति किस तरह गंदगी हो चुकी है। इसका तारोताजा उदाहरण कल उस समय देखने को मिला, जब एफडीआई का विरोध कर रही बसपा एवं सपा, ने अचानक वोटिंग के वक्‍त बॉयकॉट कर दिया, और सरकार को एफडीआई पारित करने का मौका दे दिया, जिसे सत्‍ता अपनी जीत और विपक्ष अपनी नैतिक जीत मानता है, हैरानी की बात है कि यह पहला फिक्‍सिंग मैच है, जहां कोई खुद को पराजित नहीं मान रहा। राजनीतिज्ञों का मानना है कि एफडीआई के आने से गुणवत्‍ता वाले उत्‍पाद मिलने की ज्‍यादा संभावना है। अगर विदेशी कंपनियों की कार्यप्रणाली पर हमें इतना भरोसा है तो क्‍यूं न हम राजनीति में भी एफडीआई व्‍यवस्‍था लाएं। वैसे भी सोनिया गांधी देश में इसका आगाज तो कर चुकी हैं, भले ही वो शादी कर इस देश में प्रवेश कर पाई। मगर हैं तो विदेशी। अगर राजनीति में एफडीआई की व्‍यवस्‍था हो जाए, तो शायद हमारे देश के पास मनमोहन सिंह से भी बढ़िया प्रधान मंत्री आ जाए, राजनीति दलों को चलाने वाला उत्‍तम उत्‍पाद मतलब कोई पुरुष या महिला आ जाए। अगर राजनीति में एफडीआई का बंदोबस्‍त हो जाता है तो ऐसे में पूर्ण संभावना है कि पाकिस्‍तान के आसिफ जरदारी भी भारत में अपना व

हिन्‍दु मंदिर मामला - बिल्‍डर जीत गया, मैं हार गई

चित्र
-: वाईआरएन सर्विस :- बिल्‍डर जीत गया, मैं हार गई। ऐसा टि्वट एक ब्रेव लेडी व ब्रेव न्‍यूज एंकर जसमीन मंजूर का, जो पाकिस्‍तान में हिन्‍दु मंदिर गिराए जाने के विरोध में आवाज बुलंद कर रही थी, और अंत उसके शो को बिल्‍डर ने बंद करवा दिया। इस बात से नाराज जसमीन मंजूर ने अपने पद से अस्‍तीफा दे दिया। जसमीन का यह कदम उसके भीतर के इंसान को ख़लकत से रूबरू करवाता है, जो शो पर ही नहीं, अपनी असली जिन्‍दगी में भी धौंस से जीती है। जसमीन मंजूर को मैंने लाइव डॉट सामा डॉट टीवी पर कई दफा सुना। उसका शो बेहद धमाकेदार होता था। अच्‍छे अच्‍छे नेताओं के हाथ खड़े करवा देने वाली जसमीन मंजूर को एक बिल्‍डर के खिलाफ आवाज उठाना भारी पड़ गया, क्‍यूंकि उसने उसकी आवाज उसके शो को बंद करवा दिया। जसमीन मंजूर ने अपने टि्वटर खाते पर अफसोस जाहिर किया कि किसी भी ने उसके द्वारा उठाए गए, मुद्दे को गम्‍भीरता से नहीं लिया। इंडियन एंकर में वो आग मैंने कभी नहीं देखी, जो आग जसमीन के अंदर है। असल में वो सामाजिक मुद्दों को व्‍यक्‍तिगत रूप में लेती हैं, वो सिर्फ जॉब नहीं करती, वो अपने मंच का पूरा इस्‍तेमाल करती हैं। सलाम

गुजरात विस चुनाव - कांग्रेस को ''झटके पे झटका''

चित्र
गुजरात विधान सभा चुनावों सत्‍ता पर काबिज होने के स्‍वप्‍न देख रही कांग्रेस अभी ''पोस्‍टर वार'' से उभरी नहीं थी कि भीतर चल रहा शीतयुद्ध उभरकर सामने आने लगा। कांग्रेस के पास को ठोस चेहरा नहीं, जिसको मुख्‍यमंत्री की दौड़ में खड़ा किया जाए। ऐसे स्‍थिति कांग्रेस की गुजरात के अंदर ही नहीं, बल्‍कि केंद्र में भी ऐसी स्‍थिति है, भाजपा के कई नेताओं ने भले ही देर से मोदी के लिए पीएम का रास्‍ता साफ कर दिया, मगर कांग्रेस ने राहुल गांधी या किसी और पर ठप्‍पा लगाने की बात से पल्‍लू झाड़ते हुए कहा, पीएम पद के लिए उम्‍मीदवार घोषित करना कांग्रेस की नीति नहीं। मान सकते हैं कि अभी लोक सभा के चुनावों में वक्‍त है, मगर गुजरात विधान सभा के चुनावों तो सिर पर हैं, ऐसे में जनता जानना चाहेगी कि अगर कांग्रेस सत्‍ता में आएगी तो राज्‍य की बागडोर किसके हाथ में होगी। इस बात से जनता ही नहीं, वरिष्‍ठ कांग्रेसी नेता भी खासे नाराज हैं। कांग्रेसी नेता एवं पूर्व उप मुख्‍यमंत्री नरहरि अमीन ने कांग्रेस से गत मंगलवार को रिश्‍ता तोड़ लिया, जबकि उन्‍होंने कांग्रेस के आला अधिकारियों को जगाने के लिए कुछ दिन प

मच्‍छर की मौत लाइव रिपोर्टिंग

चित्र
होटल का दरवाजा पूरी तरह सुरक्षित हैं, क्‍यूंकि होटल प्रबंधन को पहले ही सीआईडी टीम के आने की सूचना मिल गई थी, और बताया जा रहा है कि पिछले 15 सालों में बेगिनत दरवाजे तोड़ चुके दया से होटल प्रबंधन पूरी तरह से अवगत है, क्‍यूंकि होटल में इस शो देखने वालों की संख्‍या बहुत है। मच्‍छर की बॉडी को अभी अभी पोस्‍टमार्टम के लिए लैब में भेज दिया गया है। सी आई डी अपने काम में जुट चुकी हैं, उम्‍मीद है कि बहुत जल्‍द मच्‍छर की मौत के पीछे का रहस्‍य खुलकर हमारे सामने आएगा। पुलिस अधिकारियों को एक वंछित मच्‍छर की तलाश थी, लेकिन वो यह मच्‍छर है या कोई दूसरा। इस मामले में भी तहकीकात चल रही है। ऐसे में कुछ भी कहना मुश्‍किल है। आसपास के क्षेत्र में काफी तनाव महसूस किया जा रहा है। यहां यह होटल है, ये एक पॉश इलाका है। इस जगह पर मच्‍छर की उपस्‍थिति सुरक्षा व्‍यवस्‍था पर काफी सारे सवाल खड़े रही है। अभी अभी जुड़े हमारे दर्शकों को बता देना चाहते हैं कि आज सुबह एक होटल में मच्‍छर के मृत पाए जाने की ख़बर मिली थी। ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि इस मच्‍छर को पाकिस्‍तान स्‍थित आतंकवादी संगठनों द्वारा प्रशिक्षित कर

बस! मुझे ट्रैफिक चाहिए

आज की ब्रेकिंग न्‍यूज क्‍या है ? सर अभी तक तो कोई नहीं, लेकिन उम्‍मीद है कि कोई दिल्‍ली से धमाका होगा। अगर न हुआ तो। फिर तो मुश्‍िकल है सर। बस! मुझे ट्रैफिक चाहिए। कुछ ऐसे ही संवाद होते हैं आज के बाजारू मीडिया संपादक के। मजबूरी का नाम महात्‍मा गांधी हो या मनमोहन सिंह, कोई फर्क नहीं पड़ता। मजबूरी तो मजबूरी है। उसके सामानर्थी शब्‍द ढूंढ़ने से कुछ नहीं होने वाला। पापी पेट के लिए कुछ तो पाप करने पड़ते हैं। आज मीडिया हाऊसों की वेबसाइटों को अश्‍लील वेबसाइटों में तब्‍दील किया जा रहा है। अगर कोई ब्रेकिंग न्‍यूज नहीं तो क्‍या हुआ, तुम कुछ बनाकर डालो, अश्‍लील फोटो डालो, लिप लॉक की फोटो डालो। मुझे तो बस! मुझे ट्रैफिक चाहिए। इतना ही नहीं, मासिक पत्रिकाएं भी कहती हैं अब कुछ करो, बुक स्‍टॉलों पर ट्रैफिक चाहिए, वरना घर जाइए। हर किसी को ट्रैफिक चाहिए। हर कोई ट्रैफिक के पीछे दौड़ रहा है। सड़कें ट्रैफिक से निजात पाना चाहती हैं, मगर ऐसा हो नहीं पा रहा। पैट्रोल के रेट बढ़ रहे हैं तो कंपनियां वाहनों के रेट गिराकर डीजल मॉडल उतार रही हैं। ट्रैफिक कम होने का नाम नहीं ले रहा, वहीं दूसरी तरफ नेता अभिनेता भी ट

'आम आदमी' की दस्‍तक, मीडिया को दस्‍त

चित्र
अन्‍ना हजारे के साथ लोकपाल बिल पारित करवाने के लिए संघर्षरत रहे अरविंद केजरीवाल ने जैसे 'आम आदमी' से राजनीति में दस्‍तक दी, तो मीडिया को दस्‍त लग गए। कल तक अरविंद केजरीवाल को जननेता बताने वाला मीडिया नकारात्‍मक उल्‍टियां करने लगा। उसको अरविंद केजरीवाल से दुर्गंध आने लगी। अब उसके लिए अरविंद केजरीवाल नकारात्‍मक ख़बर बन चुका है। कल जब अरविंद केजरीवाल ने औपचारिक रूप में आम आदमी को जनता में उतारा तो, मीडिया का रवैया, अरविंद केजरीवाल के प्रति पहले सा न था, जो आज से साल पूर्व था। राजनीति में आने की घोषणा करने के बाद अरविंद ने कांग्रेस एवं भाजपा पर खुलकर हमला बोला। मीडिया ने उनके खुलासों को एटम बम्‍ब की तरह फोड़ा। मगर बाद में अटम बम्‍बों का असर उतना नहीं हुआ, जितना होना चाहिए था, और अरविंद केजरीवाल को मीडिया ने हिट एंड रन जैसी नीति के जन्मदाता बना दिया, जो धमाके करने के बाद भाग जाता है। मुझे पिछले दिनों रिलीज हुई ओह माय गॉड तो शायद मीडिया के ज्‍यादातर लोगों ने देखी होगी, जिन्‍होंने नहीं देखी, वो फिर कभी जरूर देखें, उस में एक संवाद है, जो अक्षय कुमार बोलते हैं, जो इस फिल्‍म

पहले मां बनो, फिर बनो पत्‍नी

चित्र
टोटोपाडा के जंगल से बॉलीवुड तक | हम नया कुछ नहीं करते, हम पुराने को तरीकों फिर से दोहराते हैं, लेकिन ख़बरों में आने के बाद वो नया सा लगने लगता है चाहे वो योग या फिर लिव इन रिलेशन का कनेक्‍शन। भारत भूटान सीमा पर एक टोटोपाडा नामक ऐसी जगह है, जहां आज भी शादी से पहले लड़की को गर्भवती होना पड़ता है। कहते हैं कि टोटो जनजाति समुदाय के लड़के को जो लड़की पसंद आती है, वो उसके साथ फरार होता है एवं लड़का लड़की एक साथ रहते हैं, कुछ महीनों बाद जब लड़की गर्भधारण कर लेती है तो लड़की को शादी के काबिल माना जाता है। भले ही हम हिन्‍दी फिल्‍मों में कुछ महिलाओं को त्रासदी झेलते देखते हैं, जब वो अपने प्रेमी से कहती हैं, जोकि फिल्‍म में विलेन है, लेकिन लड़की के लिए प्रेमी, मैं तुम्‍हारे बच्‍चे की मां बनने वाली हूं। मगर बॉलीवुड की कहानी भी रुपहले पर्दे से बेहद अलग है, जहां बहुत सी अभिनेत्री हैं, जो टोटोपाडा की प्रथा को बॉलीवुड में स्‍थापित कर चुकी हैं। ख़बरों की मानें तो बॉलीवुड की सदाबाहर अभिनेत्री श्रीदेवी ने बोनी कपूर से उस समय शादी की थी, जब वह करीबन सात माह की गर्भवती थी। परदेस से बॉलीवुड में प

थप्‍पड़ अच्‍छे हैं

चित्र
जोर से थप्‍पड़ मारने के बाद धमकी देते हुए मां कहती है, आवाज नहीं, आवाज नहीं, तो एक और पड़ेगा। जी हां, मां कुछ इस तरह धमकाती है। फिर देर बाद बच्‍चा पुराने हादसे पर मिट्टी डालते हुए मां के पास जाता है तो मां कहती है कि तुम ऐसा क्‍यूं करते हो कि मुझे मारना पड़े। अब मां को कौन समझाए कि मां मैं अभी तो बहुत छोटा हूं या छोटी हूं, तुम कई बसंत देख चुकी हो। तुम भी इन थप्‍पड़ों को महसूस कर चुकी हो। मेरे पर तो तुम इतिहास दोहरा रही हो या कहूं कि एक विरासत को आगे बढ़ा रही हो। यह थप्‍पड़ मुझे जो आपने दिए हैं, वो कल मैं भी अपनी संतान को रसीद करूंगा या करूंगी, और मुझे पता भी न होगा, कब मेरा हाथ आपकी नकल करते हुए उसकी गाल पर छप जाएगा। जब मम्‍मी मारती है तो पड़ोस में खड़े पापा या कोई अन्‍य व्‍यक्‍ति कहता है, क्‍यूं मारती हो बच्‍चे को, बच्‍चे तो जिद्द करते ही हैं, तुम्‍हें समझने की जरूरत है, मगर मां को नसीहत देने वाला, कुछ समय बाद इस नसीहत की धज्‍जियां उड़ा रहा होता है। मां बाप के थप्‍पड़ का दर्द नहीं होता, क्‍यूंकि उनके पास प्‍यार की महरम है। हम बच्‍चे भी तो कितनी जिद्द करते हैं, ऐसे में क्षु

आम आदमी का तोड़

चित्र
यह तो बहुत ही न इंसाफी है। ब्रांड हम ने बनाया, और कब्‍जा केजरीवाल एंड पार्टी करके बैठ गई। आम आदमी की बात कर रहा हूं, जिस पर केजरीवाल एंड पार्टी अपना कब्‍जा करने जा रहे हैं। गुजरात में चुनाव सिर पर हैं, कांग्रेस अपने चुनाव प्रचार में चीख चीख कर कह रही थी, कांग्रेस का हाथ, आम आदमी के साथ। मगर आम आदमी तो केजरीवाल एंड पार्टी निकली, जिसकी कांग्रेस के साथ कहां बनती है, सार्वजनिक रूप में, अंदर की बात नहीं कह रहा। अटकलें हैं कि कांग्रेस बहुत शीघ्र अपने प्रचार स्‍लोगन को बदलेगी। मगर आम आदमी का तोड़ क्‍या है? वैसे क्रिएटिव लोगों के पास दिमाग बहुत होता है, और नेताओं के पास पैसा। यह दोनों मिलकर कोई तोड़ निकालेंगे, कि आखिर आम आदमी को दूसरे किस नाम से पुकार जाए। वैसे आज से कुछ साल पूर्व रिलीज हुई लव आजकल में एक नाम सुनने को मिला था, मैंगो पीप्‍पल। अगर आम आदमी मैंगो पीप्‍पल बन भी जाता है तो क्‍या फर्क पड़ता है। पिछले दिनों एक टीवी चैनल का नाम बदल गया था। हुआ क्‍या, हर जगह एक ही बात लिखी मिली, सिर्फ नाम बदला है। वैसा ही सरकार का रवैया रहने वाला है आम आदमी के प्रति। आम आदमी की बात सब करते हैं

मैं हूं खादी वाला गुंडा

चित्र
मैं हूं खादी वाला गुंडा।  यह किसी फिल्‍म का नाम नहीं बल्‍कि भाजपा नेता का बयान है। जी हां, भाजपा नेता एवं मध्‍य प्रदेश के चिकित्सा शिक्षा व जिले के प्रभारी मंत्री अनूप मिश्रा ने ऐसा बयान देकर मध्‍यप्रदेश की राजनीति में खलबली पैदा कर दी है। वो खुद को खादी वाला गुंडा कह रहे हैं। उनका मानना है कि भिंड जिले के कुछ गुंडों को सुधारने के लिए खादी वाला गुंडा बनना बेहद जरूरी है। शायद वैसे ही जैसे आज से कुछ साल पहले एक फिल्‍म में धर्मेंद्र बना था पुलिस वाला गुंडा। सवाल यह उठता है कि रावण को मारने के लिए रावण बनना जरूरी है। आज के युग में श्रीराम बनकर श्री हनुमान के द्वारा रावण की लंका को राख नहीं किया जा सकता। जब अन्‍ना हजारे की भ्रष्‍टाचार के खिलाफ मुहिम जोरों पर थी तो तब ज्‍यादातर युवाओं ने एक टोपी पहनी थी मैं हूं अन्‍ना, भले ही बाद में कुछ युवाओं ने उससे उतारते हुए एक नई टोपी पहन ली, जिस पर लिखा था मैं हूं आम आदमी। जिस तरह का तर्क देते हुए अनूप मिश्रा कहते हैं कि मैं हूं खादी वाला गुंडा। कहीं अब युवा बुराई को खत्‍म करने के लिए इस तरह के फिकरे वाली टोपी पहनाना न शुरू कर दें। भले ही हम गा

बाबा साहेब या बाला साहेब की स्‍मारक

चित्र
बाला साहेब को अभी रुखस्‍त हुए कुछ दिन भी नहीं हुए कि उनकी स्‍मारक को लेकर विवाद शुरू हो गया। शिव सेना चाहती है कि बाला साहेब का स्‍मारक शिवाजी पार्क में बने, जबकि मनसे चाहती है कि शिवाजी पार्क को छोड़ कर बाला साहेब की स्‍मारक इंदू मिल की जगह पर बने। मगर दिलचस्‍प बात यह है कि मनसे ने जिस जगह बाला साहेब की स्‍मारक बनाने की बात कही है, उस जगह पर बाबा साहेब की स्‍मारक बनाने के लिए दलित संगठन संघर्ष कर रहे हैं। इतना ही नहीं, आरपीआई अध्यक्ष रामदास आठवले ने राज्य सरकार को चेतावनी दी है कि यदि 5 दिसंबर तक इंदू मिल की 12.5 एकड़ जमीन बाबासाहब आंबेडकर के स्मारक के लिए उपलब्ध नहीं कराई गई तो पार्टी 6 दिसंबर को मिल जमीन पर कब्जा कर लेगी। सूत्रों की माने तो लगभग 3500 करोड़ की कीमत वाली इस जगह को लेकर राज्‍य सरकार पहले ही मुश्‍किल में है, ऐसे में अगर राज ठाकरे शिवाजी पार्क में बाला साहेब की स्‍मारक बनने के रास्‍ते में रोड़ा बने तो राज्‍य सरकार के लिए और मुश्‍किल हो सकती है। गौरतलब है कि महाराष्ट्र में दलित-आदिवासी कुल जनसंख्या का लगभग 20 प्रतिशत है। ऐसे में राज्‍य सरकार कोई भी कदम एक दम से नह

खुद क्‍यूं नहीं काटकर लाते जेठमलानी की जुबान

भाजपा नेता राम जेठमलानी के श्रीराम भगवान पर दिए बयान को लेकर हिन्‍दु समुदाय बेहद क्रोधित है, भले ही आम आदमी श्रीराम भगवान के घर वापसी उत्‍सव को समर्पित दीवाली त्‍योहार की तैयारियों में मस्‍त है। शायद आम आदमी ही नहीं, बल्‍कि श्री हिंदू न्यायपीठ विधान परिषद के सदस्‍य भी, तभी तो उन्‍होंने श्रीराम भगवान के चरित्र पर बुरे पति का ठप्‍पा लगाने वाले नेता की जुबान काटकर लाने वाले को 11 लाख रुपए देना का एलान किया है यह कार्य तो केवल वो व्‍यक्ति कर सकता है, जिसके मुंह में राम और बगल में छुरी अब ऐसा व्‍यक्‍ति की तलाश करनी होगी। भारत में ऐसा वयक्‍ति ढूंढ़ना बेहद मुश्किल है। आप पूछोगे क्‍यूं, यहां तो हर दूसरा व्‍यक्ति ऐसा है, लेकिन यह बात मानने को कौन तैयार है, कि मैं मुंह में राम और बगल में छूरी रखता हूं, सब कहेंगे हमारे मुंह में राम है, बगल में खड़े व्‍यक्‍ति के पास जरूर छूरी होगी, जब आप दूसरे से पूछोगे तो वो भी यही कहेगा। आप सोच रहे होंगे मुद्दा तो राम भगवान का चल रहा था, छूरी कहां से आ गई। छूरी का जिक्र इस लिए करना पड़ रहा है, क्‍यूंकि जुबान काटने के लिए कोई तो औजार चाहिए। तो वो छूरी क्‍यू

भारत को ब्रिटेन से मिला विकासशील देश का प्रमाण पत्र

अब भारत गरीब देश नहीं रहा। अब भारत एक अमीर देश बन चुका है। भारत दिन प्रति दिन विश्‍व के नक्‍शे पर अपनी उपस्‍थिति दर्ज करवा रहा है। ऐसा मैं नहीं कह रहा , बल्‍कि यह बात तो ब्रिटेन कह रहा है , और इस की आढ़ लेकर वो हम को अब आर्थिक सहायता देने से मना कर रहा है। यह सब भारत के कुछ नीच अमीर लोगों के कारण हुआ , जो घोटाले कर कर मीडिया के दुबारा दुनिया को बता रहे हैं कि हमारे यहां पैसे की कोई कमी नहीं , बल्‍कि कमी है तो मिल बांटकर खाने की, एक बेहतर प्रबंधन की। हमें चीजों का सही इस्‍तेमाल नहीं करना आता। इसकी सबसे बड़ी उदाहरण है हमारे देश का प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह, जो विश्व के सबसे महान अर्थ शास्‍त्रियों में शामिल हैं, लेकिन देश को आर्थिक रूप से सशक्‍त कर पाने में असशक्‍त हैं, उनके पीछे उनका हाथ नहीं, बल्‍कि कुछ हमारे समाज के भ्रष्‍ट लोगों का दोष है। ब्रिटेन का उक्‍त बयान मनमोहन सिंह को सही साबित कर रहा है, लेकिन देश की जमीनी हालत तो पूरी दुनिया जानती है। इस देश की एक और बड़ी समस्‍या है, जो प्रबंधन से ही जुड़ी हुई है, कुछ नेता पैसा कमाते हैं, और सीधा स्‍विस बैंक में भेज देते हैं, ऐसे करी

जनता की पसंद, एक बुद्धू तो दूसरा बांदर

देश में दो नाम पिछले लम्‍बे समय से चर्चाओं का केंद्र बने हुए हैं। दोनों को देश का भावी प्रधान मंत्री बनाने का सपना भारतीय जनता संजो रही है। मगर हैरानी की बात है कि जनता की पसंद एक बुद्धू तो दूसरा बांदर है। यकीन नहीं आता तो आप सुब्रमण्यम स्वामी का बयान सुनिए और दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्षा बरखा सिंह का बयान सुनिए। गौर तलब है कि :- जनता पार्टी प्रमुख सुब्रमण्यम स्वामी ने गुरूवार को एक प्रेस कांफ्रेंस आयोजित कर सोनिया गांधी एवं राहुल गांधी पर एक समाचार पत्र को 90 करोड़ का कर्ज देने की बात कहते हुए 1600 करोड़ की संपत्ति हड़पने का आरोप लगाया था। इस बयान के बाद राहुल गांधी ने कहा कि वो स्‍वामी पर मानहानि का दावा करेंगे। राहुल का बयान आते ही कानून की मदद से सोनिया गांधी के रास्‍ते में मुश्‍िकलें खड़ी करने वाले स्‍वामी ने राहुल गांधी को 'बुद्धू' कहा है। स्वामी ने ट्विटर पर राहुल को बुद्धू लिखते हुए कहा, 'इस (बुद्धू को) मानहानि के कानून पर जानकारी लेने की जरूरत है। पब्लिक सर्वेंट एवं सांसद होने के नाते उन्हें यह साबित करना होगा कि जो कुछ मैंने कहा है, वह झूठ है, न कि मुझे यह साबि

आरटीआई का उपयोग और आपकी छवि

सूचना का अधिकार कानून का यदि आप उपयोग नहीं करते हैं तो समझ लीजिये कि आप इस संसार के सबसे अच्छे लोगों में हैं और इसका उपयोग करते हैं तो आप उन लोगों के बीच खलनायक के तौर पर माने जाएंगे जिनका आपके हस्तक्षेप से कुछ नुकसान होने की आशंका है। पहले तो आपको समझाया जाएगा कि आप भले आदमी हैं। आपकी ऐसी छवि नहीं है और जब आप इन बातों में नहीं आएंगे तो वे कहेंगे आखिर आप भी वैसे ही निकले। लब्बोलुआब यह है सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगने वाले किसी भी उस व्यक्ति की जो आमतौर पर किसी विवादों में नहीं पड़ता है। मुझे पता नहीं कि आपने आरटीआई अर्थात सूचना के अधिकार के तहत कोई जानकारी मांगने का कभी कोई प्रयास किया या नहीं और यदि इस कानून का उपयोग आप कर रहे हैं तो आपके अनुभव की भी मुझे कोई जानकारी नहीं। इस मामले में मैं अपना अनुभव जरूर आज आपसे बांटना चाहूंगा। आरटीआई है क्या, यह तो अब लोगों, खासतौर पर इलिट क्लास को बताने की जरूरत नहीं है। इसका उपयोग कहां और कैसे करना, यह भी उन्हें मालूम है और यह भी कि इसके उपयोग से उनके हितों पर क्या असर पड़ सकता है। कभी इस कानून का सच जानना है तो आप सीधे न सही, उस व्यक्

अमेरिका ने क्‍यूं कहा, ''आओ नरेंद्र मोदी''

नरेंद्र मोदी के लिए बेहद गर्व की बात है कि अमेरिका ने उनको वीजा आवेदन पत्र दाखिल करने की अनुमति दे दी है, जो कि 2002 गुजरात दंगों के बाद से प्रतिबंधित थी। अमेरिका का नरेंद्र मोदी के प्रति नरम होना, नरेंद्र मोदी एवं भाजपा के लिए सुखद है, वहीं कांग्रेस के लिए बेहद दुखद। इसको भाजपा सत्‍य की जीत कहेगी। अमेरिका ने ऐसे ही नरेंद्र मोदी के लिए अमेरिका के प्रवेश द्वार नहीं खोले, अमेरिका में चुनावी माहौल है, वहां पर बहुत सारे हिन्‍दुस्‍तानी बसते हैं, जो सोशल मीडिया पर नरेंद्र मोदी की वाह वाही से प्रभावित हैं, और उसके दीवाने हैं। क्‍यूं का दूसरा अहम कारण, नरेंद्र मोदी का निरंतर बढ़ता राजनैतिक कद। अमेरिका को आज से दस साल पूर्व यह आभास न था कि नरेंद्र मोदी एक दिन इतना बड़ा ब्रांड बन जाएगा, जो उसके फैसलों को बदलने की क्षमता रखता हो। आज नरेंद्र मोदी भारत में सबसे ज्‍यादा चर्चा का विषय। देश में इस बात की चर्चा नहीं कि भाजपा केंद्र में आए, चर्चा तो इस बात की चल रही है कि नरेंद्र मोदी होंगे अगले प्रधान मंत्री। एक नेता जब पार्टी से ऊपर अपनी पहचान बना ले, तो किसी को भी रुक का सोचना पड़ सकता है, अमेरिका

प्‍यार की कोई उम्र नहीं होती 'शिरीं फरहाद'

चित्र
बड़ी स्‍क्रीन पर अब तक हम युवा दिलों का मिलन देखते आए हैं, मगर पहली बार निर्देशिका बेला सहगल ने शिरीं फरहाद की तो निकली पड़ी के जरिए चालीस के प्‍यार की लव स्‍टोरी को बिग स्‍क्रीन पर उतारा है। इस फिल्‍म को लेकर फिल्‍म समीक्षकों में विरोधाभास नजर आता है, आप खुद नीचे देख सकते हैं, फिल्‍म एक मगर प्रतिक्रियाओं अनेक, और प्रतिक्रियाओं में जमीं आसमान का फर्क। इस फिल्‍म के बारे में समीक्षा करते हुए मेरी ख़बर डॉट कॉम पर अमित सेन भोपाल से लिखते हैं कि एक अरसे बाद बॉलीवुड में चल रही द्विअर्थी संवाद के दौर में बेहतर कॉमेडी वाली फिल्म आई है, अगर आप अच्छी हल्की-फुल्की हेल्दी कॉमेडी फिल्म देखना चाह रहे हों तो यह फिल्म आपके लिए है। वहीं दूसरी तरफ समय ताम्रकर इंदौर से हिन्‍दी वेबदुनिया डॉट कॉम फिल्‍म की समीक्षा करते हुए लिखते हैं कि निर्देशक के रूप में बेला सहगल का पहला प्रयास अच्छा है, लेकिन कमजोर स्क्रिप्ट के चलते वे चाहकर भी ज्यादा कुछ नहीं कर पाईं। कई जगह हंसाने की असफल कोशिश साफ नजर आती है। बोमन ईरानी ने फरहाद के किरदार को विश्वसनीय तरीके से पेश किया है। फराह खान कुछ दृश्यों में असहज लग