मंदिर हों तो अक्षरधाम जैसे


रविवार का दिन, सबसे मुश्‍िकल दिन मेरे लिए, पूरा दिन आखिर करूं तो क्‍या करूं, कोई दोस्‍त आस पास रहता नहीं, अगर रहता भी होगा तो उसके घर भी एक पत्‍नी होगी, जो उससे समय मांगेगी, ऐसे में मेरा उसके पास जाना भी कोई उचित नहीं था, मेरी पत्‍िन तो मायके गई हुई थी, बच्‍ची से मिलने, मैं रोज रोज सुसराल नहीं जा सकता। ऐसे में सुबह जल्‍दी जल्‍दी तैयार हुआ, और दुकान के लिए चल दिया, सोचा ब्‍लॉग जगत के लिए कुछ लिखूंगा, मगर दुकान पहुंचा तो पता चला इंटरनेट समयावधि पूरी होने के चक्‍कर में बंद पड़ा, दुकान का शटर नीचे किया, और खाने निकल गया, खाने के बाद सोचा घर जाऊं, सारा दिन टीवी देखूं, एंकर के चेहरों के बदलते हावभाव देखूं, या ऐसी टीवी चर्चा का हिस्‍सा बनूं, जिसमें मैं अपने विचार नहीं प्रकट कर सकता, ऐसे में सोचा क्‍यूं न अक्षरधाम घूम आउं, एक साल हो गया गांधीनगर में रहते हुए, लेकिन अक्षरधाम के मुख्‍य द्वार के सिवाय मैंने अक्षरधाम का कुछ नहीं देखा।

आज मन हुआ, निकल दिया, तो सोचा आज सही वक्‍त है, वरना फिर कभी जाना नहीं होगा, जैसे अक्षरधाम के मुख्‍य द्वार पर पहुंचा तो पता चला कि अंदरमोबाइल लेकर जाना सख्‍त मना है। ऐसे में मोबाइल तो जमा करवाना ही पड़ेगा, सो मैंने करवाया। मुख्‍य द्वार से जैसे ही अंदर की तरफ बढ़ा तो सबसे पहले मार्ग के इधर उधर बैठने के लिए बने शानदार गार्डन पर मेरी निगाहें गई, असल में ही बेहतरीन हैं यहां के गार्डन। जमीं पर हरी हरी घास, पेड़ पौधों की चारों तरफ बाड़ देखने लायक है।

अक्षरधाम के अंदर स्‍थित श्री स्‍वामीनारायण भगवान के मंदिर की पूरी परिक्रमा की, उनके कहे हर शब्‍द को पढ़ा, जो वहां पर लिखा हुआ था, उनसे जुड़ी हुई काफी चीजों को देखा, जो वहां पर रखी हुई थी। आज वह पहला दिन था जब में भारत के एक और महान युग पुरुष से रूबरू हो रहा था, जो ग्‍यारह साल की उम्र में ग्रहत्‍याग कर वन में विचरण करने चले गए थे। उन्‍होंने अपनी सात साल की लम्‍बी यात्रा जोकि 12000 किलोमीटर थी, को गुजरात के लोज गांव में पहुंच कर उस समय समाप्‍त किया, जब उनकी भेंट स्‍वामी रामानंदजी से हुई एवं उनको उन्‍होंने अपना गुरूधारण किया।

कहते हैं कि स्‍वामी नारायण का जन्‍म छपिया बिहार में हुआ, और उनका बचपन का नाम घनश्‍याम था, जो अगले चलकर स्‍वामी नारायण भगवान में बदल गया, आज स्‍वामी नारायण एक बहुत बड़ा समुदाय है, जी हां, दिल्‍ली स्‍िथत अक्षरधाम मंदिर विश्‍व में सबसे बड़ा हिन्‍दु मंदिर है और अटलांटा स्‍थित श्री स्‍वामीनारायण भगवान का मंदिर पश्‍चिम में सबसे बड़ा हिन्‍दु मंदिर है। अक्षरधाम देखने के बाद लगा कि भले मंदिरों की संख्‍या कम हो तो चलेगी, मगर मंदिर हों तो ऐसे, जहां घुसने के बाद निकलने को मन न करे।

मंदिर परिक्रमा खत्‍म करने के बाद पचास रुपए की टिकट खरीद प्रदर्शनी देखने को मन ललचा उठा, मंदिर की परिक्रमा ने आगे बढ़ने के लिए मजबूर जो कर दिया था। जैसे ही पहले कक्ष में पहुंचे तो वहां कुछ अनगढ़ पत्‍थर पड़े हुए थे और दूसरी तरफ एक अधगढ़ मूर्ति थी, जिसके हाथ में हथौड़ी और शैणी। यह अद्भुत दृश्‍य था, जो अपने आप में बहुत कुछ कह रहा था, सच में सब कुछ मानव के हाथ में है चाहे तो वह पत्‍थर से मूर्त बना ले, चाहे तो मूर्त को खंडित कर दे। इसके बाद एक लम्‍बी सी सुरंग पार करते हुए हम एक जंगल में पहुंचे, जहां शेर दहाड़ रहे थे, उल्‍लू शाख पर बैठा हुआ इधर उधर झांक रहा था, अजगर पेड़ की डालों से लिपटा हरकत कर रहा था, ठंडी ठंडी हवाएं शरीर को शीत कर रही थी। एक पल के लिए तो लगा शायद सचमुच के जंगल से गुजर रहे हैं। इसके बाद स्‍वामी नारायाण जी के जीवन आधारित एक फिल्‍म दिखाई गई, जिसको देखकर कहीं से नहीं लगता कि भारत गरीब देश है, एक तरफ समुद्र, एक तरफ हिमालय से शीत पर्वत, एक तरफ तपते हुए रेगिस्‍तान, जहां इस फिल्‍म ने स्‍वामी नारायण भगवान के जीवन पर प्रकाश डाला, वहीं भारत उनके हिस्‍सों की भी झलक दिखलाई, जो भारत को अमीर होने का अहसास दिलाते हैं। मार्क टिवन कहते हैं कि सौ राष्‍ट्रों के मिलन से एक राष्‍ट्र भारत बनता है, और उस भारत को देखने के लिए ही तो हर साल लाखों विदेशी आते हैं, फिर भी हम हिन्‍दुस्‍तानी बाहर जाकर नौकरी करने के लिए मरे जा रहे हैं।

इस यात्रा के दौरान भगवान राम व भगवान कृष्‍ण से जुडी़ हुई झांकियां भी देखने को मिली, और अंत में एक भजन से हमारी यात्रा संपन्‍न होगी। इसके बाद बस एक ही ख्‍याल आया, क्‍यूं भारत के मंदिरों को ऐसे ज्ञानपूर्ण अर्थपूर्ण बना दिया जाए, जैसे ही हमारी नसल वहां घुसे तो उसको भगवान के बारे में पूर्ण जानकारियों बड़े रोचक तरीके मिलें। अक्षरधाम में मैंने जो जो पढ़ा या देखा, असल में वह जीवन को उच्‍चस्‍तर की तरफ लेकर जाता है।

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