"हैप्पी अभिनंदन" में राजीव तनेजा
'हंसते रहो' ब्लॉग के जरिए आप इस ब्लॉगर हस्ती से कई दफा मिले होंगे। इनकी लिखी कहानियां, किस्से और व्यंग पढ़कर आपको अच्छा लगा होगा। और आपके मन में कई दफा इनके बारे में जानने की इच्छा उठी हो गई, जैसे सागर में लहरें। मगर जब आप इस हस्ती की प्रोफाईल पर गए होंगे तो वहां पर आपको सिर्फ और सिर्फ ब्लॉग पते मिले होंगे या फिर उनके रहने का स्थल जहां वो रहते हैं दिल्ली। उनकी पसंदीदा फिल्में शोले एवं शक्ति, उनका पसंदीदा संगीतकार आरडी बर्मन। इसके अतिरिक्त एक बहुत शानदार पिक्चर मिली होगी, जिसमें एक शख्स चश्मा लगाए, नीचे निगाहें कर बैठा हुआ है। और उसके गोल चेहरे पर कुछ सोच रहे होने की स्थिति का वर्णन साफ नजर आ रहा होगा। आज मैं जिस ब्लॉगर हस्ती से आपको मिलवाने जा रहा हूं, वो कोई और नहीं बल्कि हम सब उनको राजीव तनेजा के नाम से जानते हैं, और उनके ब्लॉगों के जरिए उनको पहचानते हैं। पिछले दिनों उन्होंने अमिताभ बच्चन को खुल्ला पत्र लिखने का साहस किया था। बच्चन जी..आप पहले सही थे या अब गलत हैँ?
कुलवंत हैप्पी : आपको ब्लॉगिंग के बारे में कब और कैसे पता चला?
राजीव तनेजा : ब्लॉगिंग करते हुए लगभग तीन साल हो गए हैं। पहले मैं रोमन में लिखा करता था और याहू के ग्रुपस में भेजा करता था। एक दिन एक गूगल ग्रुप 'हिन्दी कविता' जॉयन कर लिया। वहाँ पर दूसरों को हिन्दी(देवनागरी) में पोस्ट करते देख हैरानी हुई। गूगल टॉक के जरिए एक मित्र बना। उसने में मेरी एक कहानी को रोमन से कनवर्ट कर देवनागरी में लिखा तो मैंने पाया कि उस कहानी का असर काफी ज़्यादा बढ़ गया है। बस फिर क्या था? उसी मित्र के ब्लॉग पर एक दिन हिन्दी टूलकिट नाम का औजार मिल गया। उसी के सहारे हिन्दी लिखना सीखा और फिर एक के बाद एक अपनी सभी पुरानी रचनाओं को थोड़े फेरबदल के बाद ठेलता गया और शुरू हो गया ब्लॉगिंग ब्लॉगिंग।
कुलवंत हैप्पी : आपकी कहानियां रोचक होती हैं, आप उनको पार्टस में क्यों नहीं देते?
राजीव तनेजा : अभी मुझे उसे किश्तों में बाँटना नहीं आया है, क्योंकि कभी कोशिश ही नहीं की, लेकिन अब करूँगा।
कुलवंत हैप्पी : आप एक अच्छे व्यंगकार भी हैं, आप सामाजिक बुराईयों पर व्यंग क्यों नहीं लिखते?
राजीव तनेजा : मेरी ज्यादातर कहानियाँ किसी ना किसी बुराई को लेकर ही लिखी हुई हैं। हां...कुछ एक अपवाद स्वरूप ज़रूर हो सकती हैं।
कुलवंत हैप्पी : एक बार आपने बताया था आप दुकानदार हैं।
राजीव तनेजा : जी हां। लकड़ी का बिज़नस है...लेकिन दातुन का नहीं।
कुलवंत हैप्पी : पेशे में कभी शौक आड़े तो नहीं आता?
राजीव तनेजा : कई बार, काम पर जल्दी पहुँचना होता है और रात को तीन-चार बजे तक लिखता रहता हूँ। लेकिन फिर भी मैं मैनेज कर लेता हूँ।
कुलवंत हैप्पी : तो ऐसे में परिवार को कब समय देते हैं?
राजीव तनेजा : श्रीमति जी मेरे आस-पास ही घूमती रहती हैं? जब मेरे काम की प्रशंसा होती है तो सबसे ज़्यादा उन्हें ही खुशी होती है। अब तो मेरी देखा-देखी बच्चे भी देवनागरी में लिखना सीख गए हैं।
कुलवंत हैप्पी : ब्लॉगर जगत अब विशाल हो रहा है और नए नए दोस्त पाकर कैसा महसूस करते हैं आप?
राजीव तनेजा : बहुत बढ़िया! रोज समान रुचियों वाले नए साथी मिल रहे हैं। उनका स्नेह पाकर लिखने और पढ़ने की और हिम्मत बढ़ जाती है।
कुलवंत हैप्पी : आप एक नया ब्लॉग शुरू करने वाले थे ना "तनेजा जी से पूछिए" क्या हुआ?
राजीव तनेजा : बिल्कुल सही, लेकिन उसका नाम रखा था"तनेजा ही से पूछो", लेकिन फिलहाल उसे शुरू करने की अपने अन्दर हिम्मत नहीं जुटा पा रहा हूँ। उसमें मैं चाहता हूँ कि पाठक मुझसे सवाल पूछें और मैं उनके अजब-गजब जवाब दूँ। शायद अभी मैं खुद को इस लायक नहीं समझता कि सबकी कसौटी पर खरा उतर पाऊं।
जिन्दगी का एक हसीं पर जो आप हम सबके साथ बांटना चाहते हैं।
क्यों नहीं, बिल्कुल। मुझे जब भी वो चटनी से सरोबर गोलगप्पे वाला याद आता है तो अनायस ही चेहरे पे हँसी आ जाती है। हुआ कुछ इस तरह था कि होली से करीबन दो दिन पहले, उस समय मेरी उम्र यही कोई 12-13 बरस की रही होगी, जब मैं और मेरे बड़े भाई साहब जो मुझसे पाँच साल बड़े हैँ, अपने मकान की तीसरी मंजिल से नीचे सामने की बिल्डिंग वालों को पानी भरे गुब्बारे खींच-खींच कर मार रहे थे और वो हम पर। काफी देर से ये खेल अविराम चल रहा था। इसलिए हम दोनों भाई थक चुके थे। एक तरह से हमारा मुकाबला खत्म ही हो चुका था कि अचानक मैंने देखा कि सामने वालों के घर से एक लड़का अपने मकान के बाहर खड़ा गोलगप्पे वाले से गोलगप्पे खरीद रहा है। बस ये देखते ही मैंने झट से एक गुब्बारा खींच के उसकी तरफ मार दिया लेकिन उसकी अच्छी किस्मत और मेरी फूटी किस्मत कि वो गुब्बारा उसको लगने के बजाए सीधा जाकर गोलगप्पे वाले के सोंठ (चटनी) भरे बर्तन में धड़ाम से जा गिरा। उसके बाद तो उस बेचारे गोलगप्पे वाले का वो बुरा हाल हुआ कि बस पूछो मत। वो सर से लेकर पाँव तक चटनी से सरोबर हो गालियों पे गालियां बके जा रहा था और मैँ काटो तो खून नहीं। हाथ-पाँव फूल गए थे मेरे और भाई साहब भी घबरा कर परेशान हो उठे कि अब क्या होगा?। उन्होंने जल्दी से मुझे स्टोर रूम में छुपा दिया जहाँ पर मैं कई घंटे तक इस आस में छुपा रहा कि मामला ठन्डा हो तो मैं बाहर निकलूं। खैर! भाई साहब ने किसी तरह मामले को रफा-दफा किया। आज भी जब उस घटना के बारे में सोचता हूँ तो अनायस ही चेहरे पर हँसी आ जाती है। इसी घटना को मैँने अपनी एक कहानी"आसमान से गिरा" में भी लिखा था जो अभिव्यक्ति द्वारा प्रकाशित की गई थी और मुझे जिसके लिए पहला मानदेय भी मिला था।
चलते चलते : कल रात मेरे घर चोर आए। उन्होंने खगोल डाला घर का चप्पा चप्पा, और जाते जाते छोड़ गए एक चिट, जिस पर लिखा था "Join us"|
हम आते मंगलवार फिर मिलेंगे किसी नई ब्लॉगर हस्ती के साथ, शायद आप भी हो सकते हैं वो ब्लॉगर हस्ती। जिन्दाबाद ब्लॉगर बस्ती। यहाँ मस्ती ही मस्ती।
कुलवंत हैप्पी : आपको ब्लॉगिंग के बारे में कब और कैसे पता चला?
राजीव तनेजा : ब्लॉगिंग करते हुए लगभग तीन साल हो गए हैं। पहले मैं रोमन में लिखा करता था और याहू के ग्रुपस में भेजा करता था। एक दिन एक गूगल ग्रुप 'हिन्दी कविता' जॉयन कर लिया। वहाँ पर दूसरों को हिन्दी(देवनागरी) में पोस्ट करते देख हैरानी हुई। गूगल टॉक के जरिए एक मित्र बना। उसने में मेरी एक कहानी को रोमन से कनवर्ट कर देवनागरी में लिखा तो मैंने पाया कि उस कहानी का असर काफी ज़्यादा बढ़ गया है। बस फिर क्या था? उसी मित्र के ब्लॉग पर एक दिन हिन्दी टूलकिट नाम का औजार मिल गया। उसी के सहारे हिन्दी लिखना सीखा और फिर एक के बाद एक अपनी सभी पुरानी रचनाओं को थोड़े फेरबदल के बाद ठेलता गया और शुरू हो गया ब्लॉगिंग ब्लॉगिंग।
कुलवंत हैप्पी : आपकी कहानियां रोचक होती हैं, आप उनको पार्टस में क्यों नहीं देते?
राजीव तनेजा : अभी मुझे उसे किश्तों में बाँटना नहीं आया है, क्योंकि कभी कोशिश ही नहीं की, लेकिन अब करूँगा।
कुलवंत हैप्पी : आप एक अच्छे व्यंगकार भी हैं, आप सामाजिक बुराईयों पर व्यंग क्यों नहीं लिखते?
राजीव तनेजा : मेरी ज्यादातर कहानियाँ किसी ना किसी बुराई को लेकर ही लिखी हुई हैं। हां...कुछ एक अपवाद स्वरूप ज़रूर हो सकती हैं।
कुलवंत हैप्पी : एक बार आपने बताया था आप दुकानदार हैं।
राजीव तनेजा : जी हां। लकड़ी का बिज़नस है...लेकिन दातुन का नहीं।
कुलवंत हैप्पी : पेशे में कभी शौक आड़े तो नहीं आता?
राजीव तनेजा : कई बार, काम पर जल्दी पहुँचना होता है और रात को तीन-चार बजे तक लिखता रहता हूँ। लेकिन फिर भी मैं मैनेज कर लेता हूँ।
कुलवंत हैप्पी : तो ऐसे में परिवार को कब समय देते हैं?
राजीव तनेजा : श्रीमति जी मेरे आस-पास ही घूमती रहती हैं? जब मेरे काम की प्रशंसा होती है तो सबसे ज़्यादा उन्हें ही खुशी होती है। अब तो मेरी देखा-देखी बच्चे भी देवनागरी में लिखना सीख गए हैं।
कुलवंत हैप्पी : ब्लॉगर जगत अब विशाल हो रहा है और नए नए दोस्त पाकर कैसा महसूस करते हैं आप?
राजीव तनेजा : बहुत बढ़िया! रोज समान रुचियों वाले नए साथी मिल रहे हैं। उनका स्नेह पाकर लिखने और पढ़ने की और हिम्मत बढ़ जाती है।
कुलवंत हैप्पी : आप एक नया ब्लॉग शुरू करने वाले थे ना "तनेजा जी से पूछिए" क्या हुआ?
राजीव तनेजा : बिल्कुल सही, लेकिन उसका नाम रखा था"तनेजा ही से पूछो", लेकिन फिलहाल उसे शुरू करने की अपने अन्दर हिम्मत नहीं जुटा पा रहा हूँ। उसमें मैं चाहता हूँ कि पाठक मुझसे सवाल पूछें और मैं उनके अजब-गजब जवाब दूँ। शायद अभी मैं खुद को इस लायक नहीं समझता कि सबकी कसौटी पर खरा उतर पाऊं।
जिन्दगी का एक हसीं पर जो आप हम सबके साथ बांटना चाहते हैं।
क्यों नहीं, बिल्कुल। मुझे जब भी वो चटनी से सरोबर गोलगप्पे वाला याद आता है तो अनायस ही चेहरे पे हँसी आ जाती है। हुआ कुछ इस तरह था कि होली से करीबन दो दिन पहले, उस समय मेरी उम्र यही कोई 12-13 बरस की रही होगी, जब मैं और मेरे बड़े भाई साहब जो मुझसे पाँच साल बड़े हैँ, अपने मकान की तीसरी मंजिल से नीचे सामने की बिल्डिंग वालों को पानी भरे गुब्बारे खींच-खींच कर मार रहे थे और वो हम पर। काफी देर से ये खेल अविराम चल रहा था। इसलिए हम दोनों भाई थक चुके थे। एक तरह से हमारा मुकाबला खत्म ही हो चुका था कि अचानक मैंने देखा कि सामने वालों के घर से एक लड़का अपने मकान के बाहर खड़ा गोलगप्पे वाले से गोलगप्पे खरीद रहा है। बस ये देखते ही मैंने झट से एक गुब्बारा खींच के उसकी तरफ मार दिया लेकिन उसकी अच्छी किस्मत और मेरी फूटी किस्मत कि वो गुब्बारा उसको लगने के बजाए सीधा जाकर गोलगप्पे वाले के सोंठ (चटनी) भरे बर्तन में धड़ाम से जा गिरा। उसके बाद तो उस बेचारे गोलगप्पे वाले का वो बुरा हाल हुआ कि बस पूछो मत। वो सर से लेकर पाँव तक चटनी से सरोबर हो गालियों पे गालियां बके जा रहा था और मैँ काटो तो खून नहीं। हाथ-पाँव फूल गए थे मेरे और भाई साहब भी घबरा कर परेशान हो उठे कि अब क्या होगा?। उन्होंने जल्दी से मुझे स्टोर रूम में छुपा दिया जहाँ पर मैं कई घंटे तक इस आस में छुपा रहा कि मामला ठन्डा हो तो मैं बाहर निकलूं। खैर! भाई साहब ने किसी तरह मामले को रफा-दफा किया। आज भी जब उस घटना के बारे में सोचता हूँ तो अनायस ही चेहरे पर हँसी आ जाती है। इसी घटना को मैँने अपनी एक कहानी"आसमान से गिरा" में भी लिखा था जो अभिव्यक्ति द्वारा प्रकाशित की गई थी और मुझे जिसके लिए पहला मानदेय भी मिला था।
चलते चलते : कल रात मेरे घर चोर आए। उन्होंने खगोल डाला घर का चप्पा चप्पा, और जाते जाते छोड़ गए एक चिट, जिस पर लिखा था "Join us"|
हम आते मंगलवार फिर मिलेंगे किसी नई ब्लॉगर हस्ती के साथ, शायद आप भी हो सकते हैं वो ब्लॉगर हस्ती। जिन्दाबाद ब्लॉगर बस्ती। यहाँ मस्ती ही मस्ती।
बहुत अच्छा प्रयास , लगे रहें , शुभकामनायें ।
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा आपका यह प्रयास भी .. शुभकामनाएं !!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी लगी राजीव जी से आपकी मुलाकात्। बधाई और धन्यवाद्
जवाब देंहटाएंराजीव तनेजा दा जवाब नहीं...
जवाब देंहटाएंकुलवंत जी आपका आभार...
जय हिंद...
अच्छी लगी राजीव जी से आपकी मुलाकात|
जवाब देंहटाएंबाकी सब तो ठीक है लेकिन join us मज़ेदार रहा :-)
जवाब देंहटाएंबी एस पाबला
Rajiv ji ke bare me detail me jaanna bahut achcha laga...badhiya prstuti..bahdai
जवाब देंहटाएंदोनो भाईयो(राजीव जी और कुंलवंत जी) को शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंराजीव जी अबकि बार एक
गुब्बारा व्यंग भरा होली मे
हमारी तरफ़ भी घुमाएं
हम भी होगें आपके स्नेह की
चटनी से सराबोर
वादा रहा नही मचाएंगे शोर
वाह कुलवंत ! जी यह मुलाक़ात रोचक है.
जवाब देंहटाएं