वो चाहती हैं होना टॉपलेस

पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान में आतंकवाद खत्म और स्थापित करने की बातें करने वाले अमेरिका में एक ऐसी चिंगारी सुलग रही है, जो आग का रूप धारण करते ही कई देशों के लिए खतरा बन जाएगी। जी हां, मैं तो उसको आग ही कहूंगा, क्योंकि जब मैं दूर तक देखता हूं तो मुझे उसके कारण तबाही के सिवाए और कुछ नहीं दिखाई देता, बेशक में बहुत ही खुले दिमाग का व्यक्ति हूं, शायद ओशो से भी ज्यादा फ्री माईंड का। मगर वहीं, दूसरी तरफ में उस समाज को देखता हूं जो चुनरी और बुर्का उतराने पर भी लाशों के ढेर लगा देता है। ऐसी स्थिति में उसको 'आग' ही कहूंगा। वैसे आग के बहुत अर्थ हैं। हर जगह पर उसका अलग अलग अर्थ होता है। गरीब के चूल्हे में आग जले, मतलब उसको दो वक्त की रोटी मिले। तुमको बहुत आग लगी है मतलब बहुत जल्दी है। उसमें बहुत आग है, ज्यादातर बिगड़ैल लड़की के बारे में इस्तेमाल होता है,  कहने भाव जो सेक्स के लिए मरे जा रही हों। आग को जोश भी कहते हैं, और कभी कभी कुछ लोग जोश में होश खो बैठते हैं, जैसे ज्यादा आग तबाही का कारण भी बन जाती है, वैसे ही ज्यादा जोश भी किसी आग से कम नहीं होता। मैं इसकी आग की बात कर रहा हूं। अमेरिका की कुछ महिलाओं के सीने में ऐसी चिंगारी धधक रही है, जो भयानक आग का रूप कभी भी धारण कर सकती है। इन महिलाओं की तमन्ना है कि वो सलमान खान की तरह शर्ट उतारकर घूमे। उनका मानना है कि अगर मर्द बिना शर्ट के घूम सकता है तो वो क्यों नहीं? अमेरिका जैसे शहर तो शायद इस बात को हजम कर लें, लेकिन इस्लामिक विचारधारा वाले देश और भारत जैसे देश तो ऐसी प्रथा को कभी स्वीकार नहीं करेंगे, और जहां तो खून खराबे होंगे। जिसकी मैं ऊपर बात कर रहा था। इस अधिकार की मांग करने वाला संगठन ने आने वाली 26 अगस्त 2010 को बराक ओबामा को मांग पत्र देने की ठान भी ली है, उस दिन महिलाओं को बराबरी का अधिकार मिले नौ दशक हो जाएंगे। इतना ही नहीं, इस संगठन ने 23 अगस्त के दिन को टॉपलेस डे घोषित भी कर दिया है, जिसके चलते 2009 में अमेरिका के अलावा कई अन्य देशों में उक्त तारीख को इन्होंने अपने इस अधिकार के लिए टॉपलेस होकर प्रदर्शन भी किए थे, जिनको कुछ प्रमुख अखबारों ने खूब करवेज दी थी। इतना ही नहीं, इस संगठन ने अपनी एक विशेष वेबसाईट गोटॉपलेस शुरू की हुई है, जिस पर वो इस अधिकार के पक्ष में लोगों को अपनी आवाज बुलंद करने की अपील करते हैं। जलवायु परिवर्तन से भी खतरनाक है, शायद ये सामाजिक परिवर्तण। ऐसा लग रहा है कि समाज उसी तरफ जा रहा है, जहां से वो शुरू हुआ था, बस फर्क है कि उसके छुपे के लिए जंगल न बचे, जिनमें आदि मानव जिन्दगी गुजरा करता था।

टिप्पणियाँ

  1. अब तो समानता आ के रहेगी कुलवंत जी ....आखिर इतना महत्वपूर्ण जनांदोलन जो छिडने वाला है ...वैसे भी उन्हें कौन सा अशिक्षा, गरीबी, भूत चुडैल बना कर महिलाओं पर होने वाले अत्याचार, घरेलू हिंसा ...आदि से लडना है ...तो फ़िर तो ऐसे में ....यही सब सही

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  2. बेनामी12/16/2009 11:46 am

    जानने कि बड़ी इच्छा हैं कि कितनी प्रतिशत महिला ये चाहती हैं अगर पूरी जनसँख्या कि ५ % भी नहीं हैं तो क्या उन पर इतना समय अपनी सोच का व्यर्थ करना ठीक हैं ??

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  3. समय के साथ साथ सब कुछ बदलता जाता है....लेकिन इस बदलाव को कुछ लोग आसानी से हजम नही कर पाते तभी यह सब होता है.....वैसे समझ नही आता कि टापलैस होने से कौन सी क्रांती घट जाएगी...;)

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  4. यह पोस्ट ना ,आप अंग्रेजी में लिखें और अमेरिकी पाठकों के लिए लिखें तो बेहतर...क्यूंकि हिंदी में और भारतीय पाठकों के लिए लिखने का कोई औचित्य नहीं...हाँ आप जानकारी देना चाहते हैं कि ऐसा अमेरिका में हुआ है...तो अलग बात है....पर आप तो चिंता कर रहें हैं.. जो निर्मूल है...निश्चिन्त रहें..यहाँ ऐसा कुछ नहीं होनेवाला...हाँ ऐसे चौंका देनेवाले शीर्षक देखकर ट्रैफिक जरूर बढ़ जाएगी आपके ब्लॉग पर...मैन अमूमन ऐसी पोस्ट नहीं पढ़ती ...पर एक मित्र के अनुरोध पर इधर आना पड़ा....आप कुछ सार्थक लिखें गे तो पढ़ कर जरूर ख़ुशी होगी

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  5. कुलवंत जी आप की ही पंच लाइन उध्रत करना चाहूँगा मैं छुपाना जानता तो जग मुझे साधु समझता, शत्रु मेरा बन गया है, छल रहित व्यवहार मेरा। ", सच कुलवंत जी आप अपने आप को छुपाना नहीं जानते ये आप की पोस्ट से ही दिख रहा है जिस तरह से आप ने अविषय को विषय बना कर पोस्ट लिखी है आश्चर्य होता है आप अपने को ओशो से भी जयादा खुले दिमाग बाला मानते है और दूसरी तरफ आस्तित्व हीन संगठन की आस्तित्व हीन माग को लेकर कुछ जयादा व्यथित भी है यह आप के दोहरे पन को दिखता है पोस्ट का उदेश्य क्या है ये समझने के लिए मुझे आप के प्रोफाइल को पढना पड़ा और मै एकी नतीजे पर पहुंचा की ये सिवा टी आर पी उद्देश्य के और कुछ नहीं है ,,, कुछ सार्थक
    लिखिए आगे भी आने का मन रहे गा

    सादर
    प्रवीण पथिक
    ९९७१९६९०८४

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  6. अब तक जो टिप्पणी आई वो बहुत शानदार थी, उन सबका धन्यवाद करता हूं, जिन्होंने अपने विचार बहुत शानदार ढंग से रखे।

    एक बात जो मैं आप सब से कहना चाहता हूं, अगर मुझे टीआरपी की भूख होती तो मैं हर रोज पांच पांच लेख डाल सकता हूं। मुझे टीआरपी और शोहरत की भूख नहीं, बस मुद्दे हैं जो लिखने पर मजबूर करते हैं। लेकिन मुझे पता है कि हम लोग आग लगने पर कुआं खोदते हैं।

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