क्या आप भी तरसे हैं प्याली चाय को
पिछले दिनों एक लम्बी यात्रा के बाद इंदौर फिर वापिस आया, लेकिन इस तीन हजार किलोमीटर लम्बी रेलयात्रा में एक स्वादृष्टि चाय की प्याली को मेरे होंठ तरस गए। अगर आप चाय पीने के शौकीन हैं तो रेल सफर आपके लिए खुशनुमा नहीं हो सकता, हर रेलवे स्टेशन के आने से पहले मन खुश होता था, शायद इस रेलवे स्टेशन पर देसी चाय मिल जाएगी, जो स्टॉव या गैस पर चायपत्ती, असली दूध और चीनी डालकर बनाई गई होगी। मगर इस सफर दौरान सैंकड़ों स्टेशन इस उम्मीद के साथ गुजर गए, लेकिन एक स्वादृष्टि चाय की प्याली नहीं मिली। ये वाक्य उन राज्यों में घटित हुआ, जो दूध के पक्ष से तो बहुत मजबूत है, पहला गुजरात, दूसरा राजस्थान, तीसरा हरियाणा और चौथा पंजाब। लेकिन इन राज्यों के रेलवे स्टेशनों पर केतलियों में भरी मसाला चाय ही मिली, जिसको पीना मैंने एक साल पहले ही छोड़ा है, जिस मसाला चाय को छोड़ा वो तो कंपनी की मशीन से कर्मचारियों के लिए मुफ्त में मिलती है, अगर वो मुफ्त की अच्छी नहीं लगती तो पांच रुपए खर्च वो घटिया चाय पीने को कैसे मन करेगा। भगवान की दुआ से, इस तीन हजार किलोमीटर की लम्बी यात्रा में दो जगह रुकना हुआ, एक तो ससुराल गुजरात में और दूसरा पंजाब अपने घर में। दोनों जगह मन भरकर चाय पी ली, ताकि वापसी के वक्त इस चाय के सहारे फिर इंदौर तक पहुंच जाऊं। रेलवे स्टेशनों पर मसाला चाय का मिलना मतलब दूध की कमी है, अगर आज ये हाल है तो आने वाले दिनों में क्या होगा। इन राज्यों की सरकारों को चाहिए कि वो किसानों को कृषि के साथ साथ पशूओं को रखने की हिदायतें जारी करे, ताकि सफेद क्रांति बरकरार रहे, नहीं तो काली चाय पर जीवन बसर करना पड़ेगा। मुझे याद है कि जब सुबह सुबह मेरे पिता बिस्तर पर से उठा करते थे, तो उनकी चारपाई के तले एक लोटा चाय पड़ी होती थी, ये दृश्य मेरे घर में ही नहीं बल्कि गांव के हर घर में देखा जा सकता था, था इसलिए शायद अब तो वो रीति भी खत्म हो गई होगी। उनको कांच के गिलासों में या चीनी मिट्टी के कपों में चाय मिलने लगी होगी, जो कभी स्टील के गिलासों में चाय पीते थे।
बेटा ये तो होना ही था।जब पास से हो कर चले गये। मेरे शहर के रेलवे स्टेशन की चाय पी कर देखना सिर्फ चाय पीने ही यहाँ आया करोगे। खुशखबरी कब सुना रहे हो? बहुत बहुत आशीर्वाद्
जवाब देंहटाएंमैं भी रेल के पनैली चाय को नापसंद करता हूँ।
जवाब देंहटाएंकभी वाराणसी के करीब भदोही के पास की चाय पीजियेगा, बहुत मस्त होती है इलायची वाली भदोही चाय। मजे की बात है कि यह चाय वैध वेंडर के जरिये नहीं बल्कि अवैध रूप से आस पास के गाँव वालों द्वारा रोज ही ट्रेनों में जा जाकर बेची जाती है। वैध चाय का स्वाद तो आपने बता ही दिया है :)
भदोही के चाय वाले ट्रेन में ही दावा कर देते हैं कि एईसन चाय आगे कत्तो ना मिली और वह अपने दावे पर खरे भी उतरते हैं।
nice blog!! nice post!! keep blogging.
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बहुत खूब .जाने क्या क्या कह डाला इन चंद पंक्तियों में
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