महिलाओं की ही क्यों सुनी जाती है तब....

आज से कुछ साल पहले जब पत्रकार के तौर पर जब फील्ड में काम करता था तो बलात्कार के बहुत से केस देखने को मिलते। जब पुलिस वालों से विस्तारपूर्वक जानकारी हासिल करते तो 99.9 फीसदी केस तो ऐसे लगते थे कि जबरी बनवाए गए हैं। ज्यादातर होता भी ऐसा ही है, मेरा मानना है कि महिला के साथ सामूहिक बलात्कार होता है तो समझ आता है, या फिर एक व्यक्ति द्वारा उसको नशीले पदार्थ खिलाकर उसके साथ बलात्कार करना।

मगर जब दोनों होश में हैं लड़का और लड़की तो बलात्कार की बात समझ में नहीं आती, तब तो खासकर जब दोनों को खरोंच तक न आए। ये तो आम बात है कि जब कोई जोर जबरदस्ती करता है तो सामने वाला बचाओ करता है, उसके लिए जो बन पड़े करता है। इस लिए मेरा मानना है कि उनमें हाथपाई हो सकती है, खींचतान हो सकती है, लेकिन बड़ी आसानी से रेप तो नहीं हो सकता।

उन दिनों जब पुलिस वालों को लड़की के परिवार वालों द्वारा लिखाई रिपोर्ट पढ़ता तो पता चलता है कि असल में वो बलात्कार न थे, लड़के लड़की के अचानक पकड़े जाने पर जबरदस्ती बलात्कार केस बनवाए गए। ज्यादातर केस ऐसे ही होते थे, सामूहिक बलात्कार मामलों को छोड़कर क्योंकि वहां पर अकेली औरत का कोई बस नहीं चलता, लेकिन मेरा मानता है कि एक लड़की एक लड़के को तो आसानी से तो रेप नहीं करने दे सकती।

अगर दोनों में झड़प होती है तो दोनों का घायल होना भी लाजमी है, कपड़ों का फट जाना आदि आदि, लेकिन ज्यादातर केसों में ऐसा नहीं होता। मगर देश मे इस मामले मे विशेष महिला की सुनी गई है, बेशक वो महिला किसी के दबाव में ही क्यों न बयान दे रही हो। दूसरे पहलू को तो देखना ही नहीं, क्या पता सामने वाले का दोष हो ही न। जैसे आस्था, सत्य को न जानने की इच्छा है, वैसे ही बलात्कार मामले में महिला की सुनकर कान बंद कर लिए जाते हैं।

मुझे लगा कुछ तो लिखना चाहिए इस पर जब विदेश मंत्री कृष्णा का बयान पढ़ा, जिसमें लिखा है कि विदेशियों को सतर्क रहना चाहिए। इस बयान का मतलब है कि विदेशी हमको ऐसी नजर से देखें, जिससे हमें घृणा होने लगे। जैसे आज कुछ देशों में मुस्लमानों को देखा जाता है, जबकि सारे मुस्लमान आतंकवादी तो नहीं होते।

उनका उक्त बयान कांग्रेस सांसद शांताराम नाइक की विवादास्पद टिप्पणी "यदि एक महिला देर रात किसी अजनबी के साथ आती जाती है, तो ऐसे में बलात्कार मामलों को दूसरे तरीके से देखा जाना चाहिए" के बाद आया।


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