'जिस्म की नुमाइश' से शोहरत के दरवाजे तक
यह कहानी एक ऐसी युवती की, जो दौलत को मानती है सब से बड़ी ताकत और शोहरत पाने के लिए जिस्म को बनाया औजार। ट्विटर पर लगाकर नग्न तस्वीरें युवाओं के दिलों में हलचल पैदा करने वाली युवती आखिर पहुंच गई लॉस एंजलिस में प्लेबॉय के आलीशान गलियारों तक।
यह युवती कोई और नहीं, बल्िक शेर्लिन चोपड़ा है। जो कुछ साल पहले बड़े स्वप्न लेकर मायानगरी में घुसी थी। निशाना अपने बल पर दौलत कमाना। दौलत के साथ लोकप्रियता। वो यह बताते हुए हिचकचाती नहीं कि शुरूआत के दिनों में जब वो संघर्ष के दौर से गुजर रही थी तो उसके कुछ संबंध बने, तो कहीं शोषण का भी शिकार होना पड़ा।
पैसा कमाने की दुस्साहसी महत्वाकांक्षा उसको ऐसे मोड़ पर ले आई। जहां उसने शर्म हया का वो पर्दा हटा दिया, जो शरीफ लोग अक्सर पर्दे के पीछे उतारते हैं। जब ट्विटर पर होने वाली भद्दी टिप्पणियों के बारे में हिंदुस्तान टाइम्स सवाल पूछता है तो शर्लिन कहती है ''अगर आपको वेश्या समझे जाने से ही पूरी तरह आजादी का अहसास होता है, तो यही सही''।
एक अन्य सवाल के जवाब में जब शर्लिन कहती हैं, ''मैं पहले हैदराबाद में अपने परिवार से डरती थी, सोचती थी कि लोग क्या कहेंगे. फिर 'बिग बॉस' (2009 में उन्होंने इस टीवी रियल्टी शो में हिस्सा लिया था) के बाद चीजें बदल गईं. मैंने लोगों की परवाह करनी छोड़ दी। मैं सोचने लगी कि मैं सिर्फ खुद के प्रति जवाबदेह हूँ। यहां एक सवाल पैदा होता है कि क्या बिग बॉस हमारी युवतियों की सोच इस कदर बदलेगा कि वो इस तरह शरीर की नुमाइश लगाकर शोहरत की बुलंदियों को छूएं। अभी कुछ दिन पहले आई फिल्म कोकटेल का गीत याद आ रहा है, मैं नहीं हूं इस दुनिया की। मगर गीत को गुनगुनाने वाली नायिका भी फिल्म में एक बार पूरी तरह टूटकर बिखर जाती है।
शर्लिन, उन लड़कियों की श्रेणी में नहीं आती, जो शोहरत व दौलत के लिए शॉर्टकट चुनती हैं, मगर एक मोड़ पर आकर लाचार एवं असहाय महसूस करती हुई और जिन्दगी से हाथ धो बैठती हैं। और शर्लिन चोपड़ा उन युवतियों के लिए प्रेरणास्रोत भी नहीं, जो अपने स्वप्नों को पूरा करने के लिए शर्म हया के गहने नहीं उतारना चाहती। शर्लिन चोपड़ा, भले ही जिस्म की नुमाइश से एक सेलिब्रिटी बन चुकी है, मगर जिन्दगी की रिंग में वो मैरीकॉम से कई गुना पीछे खड़ी नजर आती है, जिस ने परिवारिक जिम्मेदारियों को अपने कंधों पर लादकर अपने सपनों की शिखर को चूमा है।
यह युवती कोई और नहीं, बल्िक शेर्लिन चोपड़ा है। जो कुछ साल पहले बड़े स्वप्न लेकर मायानगरी में घुसी थी। निशाना अपने बल पर दौलत कमाना। दौलत के साथ लोकप्रियता। वो यह बताते हुए हिचकचाती नहीं कि शुरूआत के दिनों में जब वो संघर्ष के दौर से गुजर रही थी तो उसके कुछ संबंध बने, तो कहीं शोषण का भी शिकार होना पड़ा।
पैसा कमाने की दुस्साहसी महत्वाकांक्षा उसको ऐसे मोड़ पर ले आई। जहां उसने शर्म हया का वो पर्दा हटा दिया, जो शरीफ लोग अक्सर पर्दे के पीछे उतारते हैं। जब ट्विटर पर होने वाली भद्दी टिप्पणियों के बारे में हिंदुस्तान टाइम्स सवाल पूछता है तो शर्लिन कहती है ''अगर आपको वेश्या समझे जाने से ही पूरी तरह आजादी का अहसास होता है, तो यही सही''।
एक अन्य सवाल के जवाब में जब शर्लिन कहती हैं, ''मैं पहले हैदराबाद में अपने परिवार से डरती थी, सोचती थी कि लोग क्या कहेंगे. फिर 'बिग बॉस' (2009 में उन्होंने इस टीवी रियल्टी शो में हिस्सा लिया था) के बाद चीजें बदल गईं. मैंने लोगों की परवाह करनी छोड़ दी। मैं सोचने लगी कि मैं सिर्फ खुद के प्रति जवाबदेह हूँ। यहां एक सवाल पैदा होता है कि क्या बिग बॉस हमारी युवतियों की सोच इस कदर बदलेगा कि वो इस तरह शरीर की नुमाइश लगाकर शोहरत की बुलंदियों को छूएं। अभी कुछ दिन पहले आई फिल्म कोकटेल का गीत याद आ रहा है, मैं नहीं हूं इस दुनिया की। मगर गीत को गुनगुनाने वाली नायिका भी फिल्म में एक बार पूरी तरह टूटकर बिखर जाती है।
शर्लिन, उन लड़कियों की श्रेणी में नहीं आती, जो शोहरत व दौलत के लिए शॉर्टकट चुनती हैं, मगर एक मोड़ पर आकर लाचार एवं असहाय महसूस करती हुई और जिन्दगी से हाथ धो बैठती हैं। और शर्लिन चोपड़ा उन युवतियों के लिए प्रेरणास्रोत भी नहीं, जो अपने स्वप्नों को पूरा करने के लिए शर्म हया के गहने नहीं उतारना चाहती। शर्लिन चोपड़ा, भले ही जिस्म की नुमाइश से एक सेलिब्रिटी बन चुकी है, मगर जिन्दगी की रिंग में वो मैरीकॉम से कई गुना पीछे खड़ी नजर आती है, जिस ने परिवारिक जिम्मेदारियों को अपने कंधों पर लादकर अपने सपनों की शिखर को चूमा है।
नोट : यह लेख हिन्दुस्तान टाइम्स के संपादक की बातचीत आधारित है, जो उन्होंने शर्लिन चोपड़ा से की एवं बीबीसी हिन्दी डॉट कॉम पर प्रकाशित हुई, पूरी बातचीत के लिए आप बीबीसी हिन्दी देख सकते हैं। यहां मैंने बातचीत को आधार बनाकर अपने विचार पेश किए हैं।
ब्लॉगिंग ने पूरे किए 13 साल - ब्लॉग बुलेटिन – यही जानकारी देते हुये आज की ब्लॉग बुलेटिन तैयार की है जिस मे शामिल है आपकी यह पोस्ट भी ... पाठक आपकी पोस्टों तक पहुंचें और आप उनकी पोस्टों तक, यही उद्देश्य है हमारा, उम्मीद है आपको निराशा नहीं होगी, टिप्पणी पर क्लिक करें और देखें … धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंआपके लेख से मैं पूरी तरह से सहमत नहीं हूँ, इस फूहड़ता के लिए सिर्फ शर्लिन चोपड़ा को दोष देना ठीक नहीं होगा, आज साधारण तरीके से जीवन जीने वाले को कोई नहीं पूछता है। मसलन, अगर आप किसी अपने पुराने सहपाठी से मिलते है तो वो आप से आपका हाल चाल पूछने के बाद आप का सलरी पकेज कितना है ये ही पूछेगा।
जवाब देंहटाएंहमरा समाज भोतिकता वाद की तरफ बाद रहा है । ऐसे मैं बिना गाड़ी के समाज मैं रहने वाले की तो शायद कोई इज्ज़त ही नहीं करता है। इस लिए अगर कोई शर्लिन चोपड़ा बनता है तो इस मैं इस समाज का भी उतना ही दोष है जो की शायद कुछ और देखने मैं, पड़ने मैं इतना मशगुल न हो जितना की शर्लिन के बारे मैं... डाकू और देवता हमरे समाज मैं ही बनते है सबसे पहले समाज का चरित्र निर्माण करे, फिर शायद कोई शर्लिन चोपड़ा पैदा न हो
कुलवंत हैप्पी जी आपके इस लेख के सम्मान में अपना एक शेर प्रस्तुत कर रहा हूँ. ध्यान दीजियेगा-
जवाब देंहटाएंनग्नता घूमती है प्रसन्न हो इन दिनों
आधुनिकता की कैद में सभ्यता निरोध है
अच्छी पोस्ट
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