अभिव्यक्ित की तालाबंदी
अब वक्त बदलने का है, बंदिशें व प्रतिबंध लगाने का नहीं। एक बात और अब कहां कहां प्रतिबंध लगाएंगे, क्यूंकि रूम डिसक्शन, अब ग्लोबल डिसक्शन में बदल चुकी है, इंटरनेट लगा डाला, तो लाइफ जिंगालाला। हर व्यक्ित सरकार के व्यवहार से तंग है, जैसे ईमानदार संवाददाता बेईमान संपादक से। मंगो मैन सरकार के खिलाफ कुछ न कुछ कह रहा है, जो उसका संवैधानिक अधिकार है।
ए सरकार, तुम को वोट देकर वो एक बार नहीं, पिछले कई सालों से अपने अधिकार के साथ खिलवाड़ कर रहा है, लेकिन अब वो अभिव्यक्ित के अधिकार से ही सही, लेकिन तेरे खिलाफ कुछ तो बोल रहा है, जो तुझको पसंद रही आ रहा है। इस मैंगोमैन को रुपहले पर्दे पर विजय दीननाथ चौहान से लेकर बाजीराव सिंघम तक सब किरदार अच्छे लगते हैं, मगर अफसोस इसको विजय दीनानाथ चौहान मिलता है तो मीडिया मार देता है, जो तेरी चौखट पर बंधी हुई कुत्तिया से ज्यादा नहीं भौंक सकता। काटने पर भी अब जहर नहीं फैलती, क्यूंकि इंजेक्शन जो पहले से दे रखा है। सरकार के खिलाफ अंदोलन हो तो इनका अंदोलन अंदोलन करने वाले के खिलाफ होता है। उसकी मंशा पर शक करते हैं, मुद्दे तो कैटरीना की मांग में भरे सिंदूर में या ऐश्वर्या राय बच्चन के बढ़े हुए वजन में कहीं खो जाते हैं।
टि्वटर, फेसबुक और गूगल अब सरकार की निगाह में खटक रहे हैं। यह तब नहीं, खटकते जब चुनावों में प्रचार के लिए बराक ओबामा की तरह जम कर इनका इस्तेमाल किया जाता है। यह कमबख्त तब ही आंख में किरकिरी बनते हैं, जब यह सरकार के खिलाफ बोलते हैं। सरकार को बोलने का हक है, मगर जनता को सरकार के खिलाफ बोलने का हक नहीं। असम दंगों की बात निकली तो ठीकरा सोशल मीडिया के सिर फोड़ा गया, सोशल मीडिया के सुर ऊंचे हुए तो रडार का रुख पाकिस्तान की तरफ मोड़ दिया गया। पाकिस्तान ने साबूत मांगे तो टि्वटर, गूगल एवं फेसबुक को कुछ कंटेंट और खाते ब्लॉक करने के लिए बोल दिया गया। वाह सरकार वाह। इस दौरान इलैक्ट्रोनिक मीडिया ने भी सरकार के सुर में सुर मिलाया, और गाया मिले सुर मेरा तुम्हारा। इतना ही नहीं, मीडिया बेचारा तो पिछले दस बारह दिन से यशराज बैनर्स के लगे हुए पैसे को बचाने में जुटा हुआ था, अगर इस बार भी बॉक्स पर एक था टाइगर पिट जाती तो यशराज बैनर्स को बहुत बड़ा लॉस होता, और सलमान की लोकप्रियता में गिरावट आ जाती। खुद की लोकप्रियता कितनी भी गिर जाए कोई फर्क नहीं पड़ता, मगर टीवी की टीआरपी नहीं गिरनी चाहिए, सरकार की तरह।
बर्मा ने तो 48 साल पुरानी सेंसरशिप को खत्म कर दिया, मगर भारत सरकार ने अभिव्यक्ित की तालाबंदी करने की कदम बढ़ाने शुरू कर दिए।
टि्वटर, फेसबुक और गूगल अब सरकार की निगाह में खटक रहे हैं। यह तब नहीं, खटकते जब चुनावों में प्रचार के लिए बराक ओबामा की तरह जम कर इनका इस्तेमाल किया जाता है। यह कमबख्त तब ही आंख में किरकिरी बनते हैं, जब यह सरकार के खिलाफ बोलते हैं। सरकार को बोलने का हक है, मगर जनता को सरकार के खिलाफ बोलने का हक नहीं। असम दंगों की बात निकली तो ठीकरा सोशल मीडिया के सिर फोड़ा गया, सोशल मीडिया के सुर ऊंचे हुए तो रडार का रुख पाकिस्तान की तरफ मोड़ दिया गया। पाकिस्तान ने साबूत मांगे तो टि्वटर, गूगल एवं फेसबुक को कुछ कंटेंट और खाते ब्लॉक करने के लिए बोल दिया गया। वाह सरकार वाह। इस दौरान इलैक्ट्रोनिक मीडिया ने भी सरकार के सुर में सुर मिलाया, और गाया मिले सुर मेरा तुम्हारा। इतना ही नहीं, मीडिया बेचारा तो पिछले दस बारह दिन से यशराज बैनर्स के लगे हुए पैसे को बचाने में जुटा हुआ था, अगर इस बार भी बॉक्स पर एक था टाइगर पिट जाती तो यशराज बैनर्स को बहुत बड़ा लॉस होता, और सलमान की लोकप्रियता में गिरावट आ जाती। खुद की लोकप्रियता कितनी भी गिर जाए कोई फर्क नहीं पड़ता, मगर टीवी की टीआरपी नहीं गिरनी चाहिए, सरकार की तरह।
बर्मा ने तो 48 साल पुरानी सेंसरशिप को खत्म कर दिया, मगर भारत सरकार ने अभिव्यक्ित की तालाबंदी करने की कदम बढ़ाने शुरू कर दिए।
इन के मंसूबे पूरे नहीं होंगे ... देख लीजिएगा !
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