जनता भैंस, अन्ना के हाथ में सिंघ, तो बाबा के हाथ में पूंछ
अन्ना हजारे का अनशन एवं बाबा रामदेव का प्रदर्शन खत्म हो गया। अन्ना हजारे ने देश की बिगड़ी हालत सुधारने के लिए राजनीति में उतरने के विकल्प को चुन लिया, मगर अभी तक बाबा रामदेव ने किसी दूसरे विकल्प की तरफ कोई कदम नहीं बढ़ाया, हालांकि सूत्रों के अनुसार उनका भी अगला विकल्प राजनीति है।
अपना अनशन खत्म करते हुए अन्ना टीम ने राजनीति को अपना अगला विकल्प बताया था और अब अन्ना टीम ने घोषणा भी कर दी है कि वो गांधी जयंती पर अपनी राजनीतिक पार्टी का नाम भी घोषित कर देंगे। मुझे लगता है कि पार्टी का गठन करना बड़ी बात नहीं, बड़ी बात तो उस पार्टी का अस्ितत्व में रहना है।
क्यूंकि देश सुधारने के नाम पर हिन्दुस्तान के हर राज्य में कई पार्टियां बनी और विलय के साथ खत्म हो गई। इसलिए पार्टियों का गठन करना एवं उनको खत्म करना, भारत में कोई नई बात नहीं। कुछ माह पहले पंजाब में विधान सभा चुनाव हुए, इन चुनावों के दौरान कई छोटी पार्टियां बड़ी पार्टियों में मिल गई, जैसे नालियां नदियों में। मगर कुछ नई पार्टियों का गठन भी हुआ। पंजाब के पूर्व वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल ने राज्य के हालतों को सुधारने का बीड़ा उठाते हुए नई पार्टी का गठन किया, जब पार्टी का गठन हुआ तो हर तरफ से इस तरह के कयास थे कि मनप्रीत सिंह बादल कुछ न कुछ सीटें लेकर जाएगा। मगर अफसोस जब चुनावों के नतीजे सामने आए तो पार्टी अपना खाता भी नहीं खोल पाई।
अब जब गुजरात में विधान सभा के चुनाव होने में कुछ महीने बाकी बचे हैं, तो गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल ने नई राजनीतिक पार्टी का गठन करते हुए चुनाव लड़ने का एलान कर दिया। इस पार्टी में एक पुरानी पार्टी का विलय किया जाएगा। जब कोई नई पार्टी का गठन होता है तो राजनेता एक दूसरे पर आरो प्रति आरोप लगाने लगते हैं, मगर गुजरात में इसके उल्ट होने जा रहा है, क्यूंकि नरेंद्र मोदी ने केशुभाई पटेल के विरोध में एक भी शब्द कहने से अपनी पार्टी कार्यकर्ताओं को मना कर दिया। केशुभाई पटेल की नई पार्टी इन चुनाव में कुछ नया करिश्मा कर पाती है, या फिर मनप्रीत सिंह बादल की पार्टी की तरह खाता खोले बिना, अगले चुनावों का इंतजार करेगी।
अब बाबा रामदेव और अन्ना हजारे पर लौटते हैं, जो कभी एक होने का दावा करते हैं, तो कभी अलग अलग खड़े नजर आते हैं। बाबा रामदेव कालेधन को वापिस लाने की लिए संघर्ष कर रहे हैं तो अन्ना हजारे भ्रष्टाचार के खिलाफ। मगर सवाल तो यह है कि काला धन कहां से आता है? भ्रष्ट तरीकों से। तो दोनों की लड़ाई अलग कैसे हो सकती है? जनता अलग अलग कैसे समर्थन दे सकती है। मेरे हिसाब से पकड़ दोनों भैंस को रहे हैं, मगर एक पूंछ से तो दूसरा सिंघों से। अन्ना हजारे कहते हैं कि जनता का समर्थन हमारे साथ है, वहीं बाबा रामदेव कहते हैं रामलीला मैदान में गूंज रही आवाज एक सौ तीस करोड़ भारतीयों की है। जबकि दोनों अलग अलग खड़े नजर आते हैं, तो भारत के नागरिक आखिर किस के साथ जाएं।
मुझे ऐसा लगता है कि बाबा रामदेव पूंछ से पूरी भैंस को देख रहे हैं, और अन्ना हजारे सिंघों से पूरी भैंस को देख रहे हैं। अगर दोनों एक ही भैंस को देख रहे हैं तो स्वप्न दुनिया से निकलकर एक मंच पर आना होगा। एक साथ आना होगा। वरना भैंस बाबा रामदेव को टांग और अन्ना हजारे को सिंघ मार कर भाजपा या कांग्रेस के घर में फिर से घुस जाएगी।
अपना अनशन खत्म करते हुए अन्ना टीम ने राजनीति को अपना अगला विकल्प बताया था और अब अन्ना टीम ने घोषणा भी कर दी है कि वो गांधी जयंती पर अपनी राजनीतिक पार्टी का नाम भी घोषित कर देंगे। मुझे लगता है कि पार्टी का गठन करना बड़ी बात नहीं, बड़ी बात तो उस पार्टी का अस्ितत्व में रहना है।
क्यूंकि देश सुधारने के नाम पर हिन्दुस्तान के हर राज्य में कई पार्टियां बनी और विलय के साथ खत्म हो गई। इसलिए पार्टियों का गठन करना एवं उनको खत्म करना, भारत में कोई नई बात नहीं। कुछ माह पहले पंजाब में विधान सभा चुनाव हुए, इन चुनावों के दौरान कई छोटी पार्टियां बड़ी पार्टियों में मिल गई, जैसे नालियां नदियों में। मगर कुछ नई पार्टियों का गठन भी हुआ। पंजाब के पूर्व वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल ने राज्य के हालतों को सुधारने का बीड़ा उठाते हुए नई पार्टी का गठन किया, जब पार्टी का गठन हुआ तो हर तरफ से इस तरह के कयास थे कि मनप्रीत सिंह बादल कुछ न कुछ सीटें लेकर जाएगा। मगर अफसोस जब चुनावों के नतीजे सामने आए तो पार्टी अपना खाता भी नहीं खोल पाई।
अब जब गुजरात में विधान सभा के चुनाव होने में कुछ महीने बाकी बचे हैं, तो गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल ने नई राजनीतिक पार्टी का गठन करते हुए चुनाव लड़ने का एलान कर दिया। इस पार्टी में एक पुरानी पार्टी का विलय किया जाएगा। जब कोई नई पार्टी का गठन होता है तो राजनेता एक दूसरे पर आरो प्रति आरोप लगाने लगते हैं, मगर गुजरात में इसके उल्ट होने जा रहा है, क्यूंकि नरेंद्र मोदी ने केशुभाई पटेल के विरोध में एक भी शब्द कहने से अपनी पार्टी कार्यकर्ताओं को मना कर दिया। केशुभाई पटेल की नई पार्टी इन चुनाव में कुछ नया करिश्मा कर पाती है, या फिर मनप्रीत सिंह बादल की पार्टी की तरह खाता खोले बिना, अगले चुनावों का इंतजार करेगी।
अब बाबा रामदेव और अन्ना हजारे पर लौटते हैं, जो कभी एक होने का दावा करते हैं, तो कभी अलग अलग खड़े नजर आते हैं। बाबा रामदेव कालेधन को वापिस लाने की लिए संघर्ष कर रहे हैं तो अन्ना हजारे भ्रष्टाचार के खिलाफ। मगर सवाल तो यह है कि काला धन कहां से आता है? भ्रष्ट तरीकों से। तो दोनों की लड़ाई अलग कैसे हो सकती है? जनता अलग अलग कैसे समर्थन दे सकती है। मेरे हिसाब से पकड़ दोनों भैंस को रहे हैं, मगर एक पूंछ से तो दूसरा सिंघों से। अन्ना हजारे कहते हैं कि जनता का समर्थन हमारे साथ है, वहीं बाबा रामदेव कहते हैं रामलीला मैदान में गूंज रही आवाज एक सौ तीस करोड़ भारतीयों की है। जबकि दोनों अलग अलग खड़े नजर आते हैं, तो भारत के नागरिक आखिर किस के साथ जाएं।
मुझे ऐसा लगता है कि बाबा रामदेव पूंछ से पूरी भैंस को देख रहे हैं, और अन्ना हजारे सिंघों से पूरी भैंस को देख रहे हैं। अगर दोनों एक ही भैंस को देख रहे हैं तो स्वप्न दुनिया से निकलकर एक मंच पर आना होगा। एक साथ आना होगा। वरना भैंस बाबा रामदेव को टांग और अन्ना हजारे को सिंघ मार कर भाजपा या कांग्रेस के घर में फिर से घुस जाएगी।
सब अपनी रोटियाँ सेंकने की फिराक मे हैं आब तो बाबा रामदेव की असली मंशा भी सामने आ गयी है। हमारा विपक्ष भी कितना कमजोर है जो सत्ता मे आने के लिये बाबाओं का सहारा लेता है किसी को शायद भ्रश्टा\चार की इतनी चिन्ता नही जितनी कि अपना नाम आन्दोलन के नाम पर चमकाने की है ताकि जब वो चुनाव लडें तो जनता उन्हें जानती ह। देश का क्या होगा जो बाबाओं के भरोसे पर हो गया है।
जवाब देंहटाएंजंगल में जनतंत्र हो, जमा जानवर ढेर |
जवाब देंहटाएंकरे खिलाफत कोसते, हाय हाय रे शेर |
हाय हाय रे शेर, कान पर जूं न रेंगा |
हरदिन शाम सवेर, लगे आजादी देगा |
छोडो भाषण मीठ, करो मिल दंगा - दंगल |
शासक लुच्चा ढीठ, बचाओ रविकर जंगल ||