औरत का दर्द-ए-बयां


शायद आज की मेरी अभिव्यक्ति से कुछ लोग असहमत होंगे। मेरी उनसे गुजारिश है कि वो अपना असहमत पक्ष रखकर जाएं। मैं उन सबका शुक्रिया अदा करूंगा। मुझे आपकी नकारात्मक टिप्पणी भी अमृत सी लगती है। और उम्मीद करता हूं, आप जो लिखेंगे बिल्कुल ईमानदारी के साथ लिखेंगे। ऐसा नहीं कि आप अपक्ष में होते हुए भी मेरे पक्ष में कुछ कह जाएं ताकि मैं आपके ब्लॉग पर आऊं। बेनती है, जो लिखें ईमानदारी से लिखें।


(1)
दुख होता है सबको
अब जब मर्द के नक्शे कदम*1 चली है औरत
क्यों भूलते हो
सदियों तक आग-ए-बंदिश में जली है औरत

*1 मर्दों की तरह मेहनत मजदूरी, आजादपन, आत्मनिर्भर

(2)
आज अगर पेट के लिए बनी वेश्या,
तुमसे देखी न जाए
जबरी बनाते आए सदियों से उसका क्या।
बनाने वाले ने की जब न-इंसाफी *1
तो तुमसे उम्मीद कैसी
तुम तो सीता होने पर भी देते हो सजा।

1* शील, अनच्छित गर्भ ठहरना

(3)
निकाल दी ताउम्र हमने गुलाम बशिंदों की तरह
चाहती हैं हम भी उड़ना शालीन परिंदों की तरह
लेकिन तुम छोड़ दो हमें दबोचना दरिंदों की तरह

(4)
घर की मुर्गी दाल बराबर तुम्हें तो लगी अक्सर
फिर भी तेरे इंतजार में रात भर हूं जगी अक्सर
न बाप ने सुनी, न पति ने और न बेटों ने
तो क्या सुननी थी मेरी चारदीवारी और गेटों ने

(5)
मैं करूं तो शील भंग होता है,
परम्पराएं टूटती हैं इस तहखाने की
काम से देर रात लौटूं,
तो निगाहें बदल जाती हैं जमाने की

(6)
तुम इंद्र बन नचाओ ठीक,
हम शौक से कदम थपथपाए
वो भी गुनाह हो गया
तुमने रखे रिश्ते हजारों से
हमने एक से बना
तो सब कुछ फनां हो गया
इस पंक्ति में मैंने हीर को देखा है, जो रांझा से बेहद प्यार करती है, लेकिन जब वो घरवालों बताती है तो उनका जवाब होता है कि हम बर्बाद हो गए। प्रेम कोई गुनाह नहीं, फिर भी अगर लड़की कहे तो गुनाह है, अगर वहां बेटा हो तो कोई बात नहीं, सोचेंगे।

ज्यादातर औरतें हमेशा एक में ही विश्वास करती हैं। उनको किसी दूसरे का प्रेम नहीं छलता। दूसरे का प्रेम उनको छलता है, जो अनदेखी का शिकार होती हैं, जिनको उनका पति केवल सेक्सपूर्ति की मशीन बनाकर रखता है।

टिप्पणियाँ

  1. कुलवंत जी
    आपकी अभिव्यक्ति सच्चाई को समेटे हुए है और सच्चाई का पक्ष-विपक्ष नही होता, सच्चाई तो महज़ सच्चाई है.
    'सदियों तक आग-ए-बंदिश में जली है औरत'
    यहाँ थोडा मतभेद है मुझे आपसे
    आग-ए-बन्दिश में तो वह आज भी है फिर 'जली है' - 'जलती है' में तब्दील होना चाहिये. (क्षमा याचना सहित)
    औरत का अगर कही विकृत रूप दिखाई देता है तो कमोबेश हमी तो उसके जिम्मेदार हैं.

    यथार्थ बयान करती रचनाएँ

    जवाब देंहटाएं
  2. स्त्री के विभिन्न मनोभावों पर व्यापक दृष्टि डाली है आपने इस कविता के माध्यम से ....

    जवाब देंहटाएं
  3. यथार्थ से जुड़ी रचनाएँ .
    बहुत अच्छा लिखते हैं आप.
    सभी क्षणिका ये एक से बढ़ कर एक हैं.
    सभी स्त्री के दर्द को अभिव्यक्त कर पाने में सफल हैं.
    अगर ऐसी संवेदनशीलता हर पुरुष में हो तो यक़ीनन नारी का शोषण कभी नहीं होगा

    जवाब देंहटाएं
  4. नीलाम होते कूचे
    चूड़ियों की खनखन
    ये पायल की रुनझुन
    जिन्हें नाज़ है हिंद पर,
    कहां हैं, कहां हैं, कहां हैं...

    जय हिंद...

    जवाब देंहटाएं
  5. कोई असहमत नही है भाई इतनी बढ़िया अभिव्यक्ति है की असहमत होने का सवाल ही नही पैदा होता ..सच में युवा सोच की एक बेहतरीन ख़यालात...

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सही और सार्थक स्वाल के साथ सुन्दर कवितायेंतो

    'सदियों तक आग-ए-बंदिश में जली है औरत'

    तुमसे उम्मीद कैसी
    तुम तो सीता होने पर भी देते हो सजा।


    तुम इंद्र बन नचाओ ठीक,
    हम शौक से कदम थपथपाए
    वो भी गुनाह हो गया
    तुमने रखे रिश्ते हजारों से
    हमने एक से बना
    तो सब कुछ फनां हो गया
    हर एक शब्द बहुत गहरे अर्थ लिये है । इस लाजवाब रचना के लिये तुम्हें बहुत बहुत बधाई और आशीर्वाद्

    जवाब देंहटाएं
  7. kulvant ji

    itni maheen drishti se nari ke dard ko ubhara hai ki shayad khud nari bhi wo na kah pati jo aapne kah diya.........behad samvedansheel abhivyakti.

    जवाब देंहटाएं

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