हैप्पी अभिनंदन में दीपक "मशाल"
कुलवंत हैप्पी : आप कहां से ताल्लुक रखते हैं एवं साहित्य की तरफ झुकाव कब और कैसे हुआ?
दीपक 'मशाल': कुलवंत भाई, सबसे पहले आपको और अन्य ब्लॉगर साथियों को मेरा सादर प्रणाम, और इस बड़े लिखाड़ी (बड़े इसलिए कि लोग खुद को अदना बोलकर लोगों की नज़र में बड़े हो जाते हैं पर मैं खुद को बड़ा बोलकर अभी सबके लिए छोटा ही बना रहना चाहता हूँ) को अपने सम्मानित अभिनन्दन मंच पर चढ़ाने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।
कागजी रूप में मैं भारत के ही उत्तर प्रदेश प्रांत के एक कस्बे, जिसका कि नाम 'कोंच' है और ये कानपुर-झाँसी राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित उरई(जालौन) जनपद में है, से ताल्लुक रखता हूँ. लेकिन ऊपर वाले की मदद से हर ब्लॉगर साथी के दिल में एक आशियाँ बनाने की जुगत में लगा हुआ हूँ।
जैसा कि अमूमन होता है कि आपके अधिकाँश रुचियाँ और सद्गुण वंशानुगत होते हैं तो मुझे भी पेंटिंग, फोटोग्राफी, अभिनय, पाकशास्त्र और साहित्य से लगाव जैसे शौक मेरे बाबा जी से मिले। वैसे ७वीं कक्षा(१९९३) से पहले तक मुझे ज़रा भी अहसास नहीं था कि मैं कविता-कहानियां और फोटोग्राफी कर सकता हूँ(बताते हुए गर्व महसूस होता है कि मेरे बाबा जी ने जनसेवा को ध्यान में रखते हुए १९६० में जनपद का पहला फोटो स्टूडियो खोला था जो आज भी मेरे पापा द्वारा संचालित है) बल्कि सिर्फ एक अच्छे चित्रकार के रूप में जाने जाना ही मेरा मकसद था। ८वीं कक्षा में जब एक निबंध लेखन प्रतियोगिता में जनपद के ३००० से ज्यादा छात्रों में मुझे पहला स्थान मिला तो मुझे हल्का सा अहसास हुआ कि मैं इस दिशा में कुछ कर सकता हूँ। घर पर कल्याण और कुछ साहित्यिक पत्रिकाओं के अंक बराबर आते थे, चारों वेद, १८ पुराण, गीता और अन्य धर्मग्रन्थ भरे पड़े थे, गर्मी की छुट्टियों भर उन्हें पढ़ता रहता। धीरे-धीरे कहानी, व्यंग्य और लघुकथा लेखन करने लगा। १९९५ में मुझे एक ऐसी साथी मिली जिससे मैंने कई सबक लिए, उसके साथ मेरी स्वस्थ प्रतिस्पर्धा रहती। जब पता चला कि वो कविता बहुत अच्छी लिखती है तो बस इसमें भी होड़ चालू हो गई, फिर भी अभी तक एक अपूर्णता नज़र आती है, लगता है कि मैं उसके जैसा आज तक नहीं लिख पाता। उसी दौरान मैंने परमाणु परीक्षण के सन्दर्भ में 'बुद्धा इस्माइल' कविता लिखी जिसे कि राष्ट्रीय स्तर की एक सम्मानित साहित्यिक पत्रिका में स्थान मिला तो हौसला बढ़ा, अमर उजाला एवं दैनिक जागरण जैसे समाचारपत्रों में दर्ज़नों बार ख़ास ख़त या विशेष ख़त के रूप में जगह मिली और इस तरह अब तक ये सफ़र जारी है।
हाँ ये बात बताना जरूरी समझता हूँ कि मेरे मन पर सबसे ज्यादा प्रभाव अगर किसी पत्रिका का पड़ा तो वो है भोपाल से श्रीमती मेहरुन्निसा परवेज़ जी के संपादन में निकलने वाली साहित्यिक पत्रिका 'समरलोक' जो शायद अब बंद हो चुकी है। फिर भी मोटे तौर पर यही कह सकते हैं कि साहित्य के प्रति लगाव तो बचपन से ही था बस उस बीज को अनुकूल परिस्थितियाँ १९९५ के आस-पास मिलीं और बस तब से निरंतर प्रयासरत हूँ.
कुलवंत हैप्पी : ब्लॉग जगत में आपका कब और कैसे आगमन हुआ?
दीपक 'मशाल': २००८ में जब मैं उच्च शिक्षा के लिए यहाँ बेलफास्ट, उत्तरी आयरलैंड(यू.के.) आया तब मेरे एक पुराने दोस्त मोहम्मद शाहिद मंसूरी 'अजनबी' ने इस विधा से मेरा परिचय कराया और हमारे साझा ब्लॉग 'नई कलम: उभरते हस्ताक्षर' के बारे में बताया। अपनी बातों और रचनाओं को दुनिया से साझा करने का एक मंच मिला और नए लोगों को हिंदी साहित्य से किसी न किसी रूप में जोड़ने के हमारे उद्देश्य को पूरा करने का मार्ग भी। बाद में 'मसि-कागद' के नाम से अपना एक निजी ब्लॉग भी निर्मित किया, बाकी पूरी कहानी जानने के लिए 'नई कलम: उभरते हस्ताक्षर' पर जाकर आप देख सकते हैं।
कुलवंत हैप्पी : ब्लॉग जगत का भविष्य आपकी नजर में कैसा होगा?
दीपक 'मशाल': मुझसे पहले भी कई वरिष्ठ ब्लॉगर इस विषय में अपनी राय दे चुके हैं और बहुत हद तक मेरा मत भी उनसे अलग नहीं है। प्रगति की दिशा में निरंतर तेजी से दौड़ते इस ग्राफ को देखकर तो इस बात पर विश्वास बढ़ता जा रहा है कि ब्लॉगजगत का भविष्य बहुत उज्जवल है। हालांकि अभी यहाँ पाठकों की कमी है लेकिन यदि हम निरंतर सार्थक लेखन करते रहे तो निश्चित ही निकट भविष्य में, हिन्दी भाषी क्षेत्रों में कम्प्यूटरके उपयोग बढ़ने के साथ-साथ ये कमी भी पूरी हो जायेगी। बस हमें इस सूत्र को ध्यान में रखना होगा कि 'करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान'. कई सारी बाधाएं आ सकती हैं और आजकल दिख भी रही हैं आती हुईं, पर हमें विचलित हुए बिना अपने लक्ष्य (हिन्दी ब्लोगिंग को सशक्त बनाने) की तरफ बढ़ते जाना है. असलियत में ब्लोगिंग सम्प्रेषण का एक सशक्त माध्यम बनता जा रहा है और मेरा मानना है कि आने वाले सालों में यह भारत में भी लोकतंत्र के एक और स्तम्भ के रूप में उभर कर सामने आ सकता है और जनसाधारण की आवाज़ बन सकता है जैसे कि हाल में पड़ोसी देश चीन में एक ब्लॉगर सत्तारूढ़ सरकार की कुछ गलत नीतियों के कारण सरकार के सर का दर्द बन गया था.
कुलवंत हैप्पी : एक शानदार कवि ब्लॉगर होने के अलावा असल जिन्दगी में क्या करते हैं आप?
दीपक 'मशाल': अब्बल तो भाई मैं शानदार की श्रेणी में नहीं हूँ और ना ही पूर्ण रूप से एक कवि हूँ, क्योंकि मेरी नज़र में एक पूर्ण कवि वो है जो वही लिखे जो निजी जीवन में स्वयं कर सकता हो.. वर्ना यहाँ' पर उपदेश कुशल बहुतेरे वाले तो बहुत मिल जाते हैं'। हाँ मैं ज्यादातर ऐसा करता जरूर हूँ और इसीलिये कहूँगा कि एक कवि बनने की प्रक्रिया में हूँ और दिन प्रति दिन इस दिशा में कदम बढ़ाता जा रहा हूँ। अब बात आती है ब्लॉग लेखन के अलावा और क्या करने की तो मूल रूप से मैं एक कैंसर शोधार्थी हूँ और अभी तक क्वीन्स विश्वविद्यालय, बेलफास्ट के फार्मेसी स्कूल में शोध कार्य में लगा हुआ हूँ।
कुलवंत हैप्पी : कोई ऐसी घटना, जिसने जिन्दगी में कुछ अलग करने के लिए प्रेरित किया हो?
दीपक 'मशाल': अभी तक की छोटी सी ज़िंदगी में कोई बहुत ज्यादा उल्लेखनीय घटना तो याद नहीं पड़ती जिसने एकदम से चौंकाया हो या जीवन का रुख मोड़ दिया हो, पर ये कह सकता हूँ कि मैं रोज़ कई सारी घटनाओं से प्रेरणा लेने की कोशिश करता हूँ। अपने समाज में कई सारी ऐसी खामियां हैं, जो मुझे कई बार उनके खिलाफ लिखने को मजबूर करती हैं और यह सिर्फ लेखन नहीं बल्कि एक तरह से मेरी डायरी का हिस्सा है। शायद इसलिए लिख रहा हूँ कि कल को जब इस लायक हो जाऊं कि लोग मेरी बात ध्यान से सुनें तो उनसे इन बुराइयों को जड़ से खोद फेंकने की अपील कर सकूं। कुछ लोग इसे अलग कहते हों तो नहीं पता लेकिन यदि देखा जाये तो सभी में ह्रदय है और उसमे संवेदनाएं भी तो इस तरह से मैं किसी से अलग तो कुछ नहीं कर रहा बस जो एक इंसान को करना चाहिए वही कर जाऊं तो जीवन सफल मानूंगा। उत्तर प्रदेश के भूतपूर्व राज्यपाल स्वर्गीय श्री पं. विष्णुकांत शास्त्री जी द्वारा व्यक्ति को अतिशयता से बचने के लिए सन्देश के रूप में कहे गए एक शेर को जरूर यहाँ कहना चाहूँगा-
'कोहनी पर टिके हुए लोग
कन्धों से झुके हुए लोग
करते हैं बात बरगद की
गमलों में उगे हुए लोग'
कुलवंत हैप्पी : आपने एक सप्ताहिक पत्रिका 'नई कलम: उभरते हस्ताक्षर' नाम से शुरू की थी, जो किसी कारणवश बंद हो गई थी, क्या फिर से शुरू करना चाहेंगे?
दीपक 'मशाल': कुलवंत जी, मैं हर उस कार्य में सहयोग करना चाहता हूँ जो हिन्दी को या हिन्दी साहित्य को किसी भी तरह से लाभ पहुँचाता हो और ज़ाहिर है कि इस साप्ताहिक पत्रिका के पुनः प्रारंभ होने से कई नए कवि, शायरों, लेखकों को प्रिंट रूप में एक नया मंच मिलेगा, इसलिए निकट भविष्य में जैसे ही खुद को सक्षम महसूस किया, तो आप सबके के सहयोग, स्नेह और आशीर्वाद से ये अभियान पुनः आरम्भ करूंगा.
कुलवंत हैप्पी : ब्लॉगर साथियों एवं युवाटाइम्स के पाठकों के लिए कोई संदेश?
दीपक 'मशाल': सन्देश देने लायक तो नहीं हूँ, पर हाँ एक निवेदन अवश्य करूंगा कि हम ब्लॉगर आपसी मनमुटाव को दरकिनार कर, हिंदी ब्लॉगिंग के हित में कार्य करें। अनावश्यक मुद्दों को बेवजह तूल ना दें। अभी हाल के कुछ समय में जो कुछ भी हुआ उससे नए ब्लॉगर और मीडिया में हमारे ब्लॉगजगत की छवि बहुत ख़राब हुई है जिसका उदाहरण है कि दैनिक जागरण के iNext में इस विवाद का जिक्र किया जाना। हमें 'यत्र नार्यस्तु पूज्यते, रमन्ते तत्र देवतः' का मूलमंत्र नहीं भूलना चाहिए, कुछ समय से महिलाओं के बारे में काफी ऊलजलूल बातें पढ़ने को मिल रही हैं, हमें इस तरह की पोस्ट और टिप्पणियों पर अंकुश लगाना होगा क्योंकि अगर यही सब चलता रहा तो अच्छे घर की लड़कियां ब्लोगिंग से परहेज़ करने लगेंगीं और उस दशा में पाठक वर्ग तो छोड़िये यहाँ ब्लॉगर साथियों का अकाल पड़ जायेगा। साथ ही महिला ब्लॉगरों से अनुरोध है कि ब्लॉग को महिला और पुरुष वर्ग में न बाँट कर दुनिया की तरह शोषित और शोषक के रूप में देखें तो बेहतर होगा. अब शोषित कोई भी हो सकता है, गरीब भी, मजदूर भी, बच्चा भी और महिला भी. संभव है कि कुछ महिला साथियों के पुरुषवादी इस दुनिया में काफी बुरे अनुभव देखने को मिले हों पर उसका ये मतलब कतई नहीं लेना चाहिए कि सारे पुरुष ही बुरे होते हैं. दृष्टिकोण को आशावादी और सार्थक बनायें उसी में सबकी भलाई है और दुआ करें कि 'सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयः'।
युवा टाइम्स के पाठकों से कहना चाहूँगा कि वैसे ये बात सच है कि 'अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता' लेकिन इस सत्य को भी नहीं झुठलाया जा सकता कि एक चिंगारी पूरे खलिहान या गाँव भर को राख के ढेर में बदल सकती है। आप सबसे यही गुज़ारिश है कि पहले स्वयं की खामियों को दूर करें और फिर हमारे देश में जो अशिक्षा, भ्रष्टाचार, गरीबी, शोषण, दहेजप्रथा और भी इस तरह की जो कमियाँ हैं उन्हें दूर करने की अपने स्तर पर कोशिश जरूर करें. मेरा यकीं है कि जिस दिन ये सब कमियाँ दूर हो गयीं ये देश पुनः विश्व का सिरमौर राष्ट्र होगा. मगर इसके लिए सच्चे, ईमानदार और बुद्धिमान युवाओं को राजनीति में आने की आवश्यकता है क्योंकि छोटी कैंची बनकर हम इतनी सारी खर-पतवार नहीं काट सकते और इसे काटने के लिए हमें जरूरत है घास काटने वाली मशीन बनने की।
जय हिंद।
कुलवंत हैप्पी : आपके नाम दीपक चौरासिया के साथ मशाल कैसे जुड़ा?
दीपक "मशाल" : दोस्त, जब मैंने लिखना शुरू किया ही था तब 'किरेक' तखल्लुस इस्तेमाल करता था, जो कि सिर्फ इसलिए रखा था कि मेरा कोई बहुत अज़ीज़ मुझे मजाक में ये बोला करता था, पर १९९९ में एक कवि सम्मेलन में कविता पाठ के बाद नगर के एक सुप्रसिद्ध एवं वरिष्ठ कवि श्री भवानी शंकर लोहिया 'बन्धु' ने मुझे अपने पास बुला कर कहा कि ''तुम्हारी रचनाएं जिस तरह की हैं उनके अनुसार मैं तुम्हें 'मशाल' नाम देता हूँ'' और बस तभी से इस नाम को जोड़ लिया अपने साथ, पर जातिवाद मुझे फूटी आँख नहीं सुहाता इसलिए दीपक चौरसिया 'मशाल' के बजाय सिर्फ दीपक 'मशाल' कहलाना पसंद करता हूँ।
एक अच्छी परिचय श्रंखला की नियमित प्रस्तुति। वास्तव में तो यह ब्लॉगर चर्चा है। मशाल वास्तव में विचारों की मशाल हैं। दीपक का काम वैसे रोशनी करना ही है परंतु मशाल जोड़कर सोने में सुहागा ही कहा जाएगा इसे। अच्छा लिखो, अच्छा पढ़ो और आगे बढ़ो।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा लगा दीपक को इस साक्षात्कार के माध्यम से और जानना!!
जवाब देंहटाएंमशाल जी की रचनाओं से बहुत पहले से रूबरू हूँ..जो भाव और सच्चाई का समावेश इनकी कविताओं और लघुकथा में होता है अद्भुत होता है....दिल को छू जाती है इनकी कविताएँ...ऐसे शक्स के बारे में थोड़ा और जानकार बहुत बढ़िया लगा....दीपक जी के लिए ढेरों सारी शुभकामनाएँ..और कुलवंत जी आपको इस सुंदर प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंIt was really nice to know Mr. Deepak.My best wishes to him.
जवाब देंहटाएंNice post Kulwant ji.
दीपक जी को इस साक्षात्कार के माध्यम से और जानना बहुत अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंआपका आभार
अच्छा लगा दीपक जी से मिलकर
जवाब देंहटाएंमसि कागद काफी समय से पढ़ रही हूँ, आज इस साक्षात्कार के माध्यम से और भी जानकारी मिली
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा दीपक जी से मिलकर...
जवाब देंहटाएंमशाल जी की रचनाओं से बहुत पहले से रूबरू हूँ
जवाब देंहटाएंDipak ji ek mahaan soch ke kirdaar hai...jo duniya ke rangmanch par apna paatr umda tareeke se nibhaane ka jee ttod prayaas kar rahe hain...desh se door hone par bhi desh ke prati unka lagaav dekhte hi banta hai...Hindi ke liye unke man me vishesh sammaan hai...ye to unse baat karke hi pata chal jaata hai...aur jaisa wo likhte hain...wo yahi batata hai ki wo kitne samvedansheel vyaktitv hai....unhe aur unki kalam ko mera salaam...
जवाब देंहटाएंदीपक जी को नियमित रूप से पढ़ती हूँ ,उनके बारे में और जानकारी पाकर अच्छा लगा
जवाब देंहटाएंएक सार्थक श्रंखला के लिए कुलवंत जी को धन्यवाद
जितनी संवेदनशील दीपक मशाल की कवितायेँ और लघु कथा होती हैं. उनके विचार पढ़कर लगता है कि ,उतने ही संवेदनशील और सुन्दर व्यक्तित्व के वह मालिक हैं..उनसे साक्षात्कार कराने का बहुत शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा दीपक जी से मिलकर...उनसे साक्षात्कार कराने का बहुत शुक्रिया |
जवाब देंहटाएंऐसा लगता था,दीपक को बहुत अच्छी तरह जानती हूँ..पर इस साक्षात्कार ने उनके व्यक्तित्व के कई नए पहलू से परिचित करवाया ...बहुत बहुत शुक्रिया...ढेरों शुभकामनाएं उनकी नई नई सफलताओं के लिए.
जवाब देंहटाएंमशाल जी की हिन्दी ब्लॉगिंग संबंधी चिंताएँ जायज हैं, मगर मेरा यह भी मानना है कि ब्लॉग तो एक ऐसा हथियार है जिसे हर कोई प्रयोग कर सकता है, और आगे कभी न कभी करेगा ही. और, अभी तो मानें कि हिन्दी में शुरूआत हुई है - हर किस्म के उच्च-निम्न स्तरीय विचारधारा के लोग जब आएंगे तो समस्या और विकराल होगी. परंतु तब अच्छे सार्थक ब्लॉगों के बीच निरर्थक ब्लॉगों को कोई भी नहीं पूछेगा - यह भी तय है.
जवाब देंहटाएंdipakji ke baare main achchhi jankaari mili, aur inke lekhan ki taarif main humesha se shabd kam pad jaate hain,
जवाब देंहटाएंmujhe lekhan ki prerna dipakkji se hi mili hai, jinka main humesha tahe dil se samman evam dhnyvad karta hoon.....
sada roshan rahehi yah mashal...
दीपक....मेरे दिल के बहुत ही करीब है.....
जवाब देंहटाएंयोग्य का चयन किया है आपने। दीपक भाई को इस साक्षात्कार के जरिए नए सिरे से जानने-समझने का अवसर मिला। वैसे वह है भी बड़ा ही संजीदगी से भरा हुआ।
जवाब देंहटाएंबहुत सही व्यक्ति का चुनाव किया है आपने.........आपको बधाई और दीपक को आशीर्वाद
जवाब देंहटाएंजय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
दीपक लाखों करोड़ों में एक है....
जवाब देंहटाएंयहाँ जो नज़र आता है ...वो तो कुछ भी नहीं है...मुझे पता हैं न....हर दिन जब उससे बात करती हूँ तो...एक नयी खासियत सामने आती है....
मेरे लिए मयंक, मृगांक और प्रज्ञा के समक्ष है दीपक....
इस लिए मुझे तो वो दुलारा है ही...
हैप्पी, बहुत अच्छी पोस्ट....
सवाल... लाजवाब और जवाब... बेमिसाल....
कुलवंत भाई, आपका और सारे ब्लॉगजगत का मुझे अपने दिल में पनाह देने के लिए आभारी हूँ..
जवाब देंहटाएंदीपक " मशाल " के लिये सर्वेश्वर दयाल जी की यह पंक्तियाँ ...
जवाब देंहटाएंभेड़िया गुर्राता है
तुम मशाल जलाओ
भेड़िये और आदमी मे
फरक यही है कि
भेड़िया मशाल नहीं जला सकता
मेरी अनंत शुभकामनायें - शरद
Deepak ji kaa blog,niymit padhti hun..unki har rachna ki izzat karti hun..unka yah saakshatkaar padh ke bahut khushi hui..dua karungi,Ishwar unhen hamesha kamyaab banaye rakhe!
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