माँ दिवस पर "युवा सोच युवा खयालात" का विशेषांक
अगर आसमाँ कागद बन जाए, और समुद्र का पानी स्याही, तो भी माँ की ममता का वर्णन पूरा न लिख होगा, लेकिन फिर शायरों एवं कवियों ने समय समय पर माँ की शान में जितना हो सका, उतना लिखा। शायरों और कवियों ने ही नहीं महात्माओं, ऋषियों व अवतारों ने भी माँ को भगवान से ऊंचा दर्जा दिया है। आज माँ दिवस है, ऐसे शुभ अवसर पर विश्व की हर माँ को तहेदिल से इस दिवस की शुभकामनाएं देते एवं उनके चरण स्पर्श करते हुए उनकी शान में कवियों शायरों द्वारा लिखी रचनाओं से भरा एक पन्ना उनको समर्पित करता हूँ, एक छोटे से तोहफे के तौर पर।
कैसे कहूँ कि माँ तेरी याद नहीं आती
हे माँ तेरी शान में
माँ : दीपक मशाल
लिखने कुछ और बैठा था...लिख बैठा माँ के बारे में।
गाँव के कच्चे रास्तों से निकलकर शहर की चमचमाती सड़कों पर आ पहुंचा हूँ। इस दौरान काफी कुछ छूटा है, लेकिन एक लत नहीं छूटी, फकीरों की तरह अपनी ही मस्ती में गाने की, हाँ स्टेज से मुझे डर लगता है। गाँवों की गलियाँ, खेतों की मिट्टी, खेतों को गाँवों से जोड़ते कच्चे रास्ते आज भी मुझे मेरी इस आदत से पहचान लेंगे, भले ही यहाँ तक आते आते मेरे रूप रंग, नैन नक्श में काफी बदलाव आ गए हैं।आगे पढ़ें
खट्टी चटनी जैसी माँ।-निदा फाज़ली
बेसन की सौंधी रोटी पर,
खट्टी चटनी जैसी माँ।
याद आती है चौका बासन,
चिमटा फूँकनी जैसी माँ।
बाँस की खुर्री खाट के ऊपर,
हर आहट पर कान धरे। आगे पढ़ें
चार दीवार-इक देहरी माँ - सुधीर आज़ाद
चार दीवार-इक देहरी माँ
इक उलझी हुई पहेली माँ।
सारे रिश्ते उस पर रक्खे,
क्या क्या ढोए अकेली माँ।
सर्द रातों का ठंडा पानी,
जून की दोपहरी माँ। आगे पढ़ें
आलोक श्रीवास्तव की रचना-अम्मा
धूप हुई तो आंचल बन कर कोने-कोने छाई अम्मा,
सारे घर का शोर-शराबा, सूनापन तनहाई अम्मा।
सारे रिश्ते- जेठ दोपहरी, गर्म-हवा, आतिश, अंगारे,
झरना, दरिया, झील, समंदर, भीनी-सी पुरवाई अम्मा।
सोनू उपाध्याय की रचना - माँ
तुम्हारी पहनी हुई इच्छाओं को माँ अक्सर तकता हूं
कांच में और नापता रहता हूं समय,
कि कितना शेष है मुझमें तेरे साथ।
वैसे समय के जिस्म में काफी बदलाव आएं हैं माँ
अक्सर छोटा और तंग पड़ जाता है माँ
अभी परसों ही तो दोपहर बनकर रिस गया था आंखों से.आगे पढ़ें
माँ याद आई व बरसात : समीर लाल "समीर"
आज फिर रोज की तरह
माँ याद आई!!
माँ
सिर्फ मेरी माँ नहीं थी
माँ
मेरे भाई की भी
मॉ थी
और भाई की बिटिया की
बूढ़ी दादी..
और
चोट मुझे लगती, रक्त तेरी की आँख से बहता था
मेरे घर आने तक, साँस गले में अटका रहता था
कैसे कहूँ कि माँ तेरी याद नहीं आती
कैसे कहूँ कि माँ तेरी याद नहीं रुलाती
माँ, एक पवित्र नाम है : विनोद कुमार पाण्डेय
माँ, ममता का असीम स्रोत है
माँ, नश्वर जीवन की, अखंड ज्योत है
माँ, एक पवित्र नाम है,
माँ, के बिना जिन्दगी गुमनाम है।
स्कूल से आते जब देरी हो जाती थी।
चिंता में आंखें नम तेरी हो जाती थी।
मेरी देरी पर घर में सबसे अधिक
माँ तू ही तो कुरलाती थी।
गलती पर जब भी डाँटते पिताश्री
तुम ही तो माँ बचाती थी।
पिता जी की ''अंतिम नसीहत ''
आपस में तुम अपने प्यार ,एकता ,हार हाल रखना '
बस तुम सब मिलकर 'अपनी माँ का ख्याल रखना '
तब, माँ, तेरी याद आती है : इंद्रानील भट्टाचार्यजी
जब संकट सामने होता है
जब झंझाबात घिर आता है
जब चारों ओर अंधेरा हो
तब, माँ, तेरी याद आती है
आज भी तेरी बेबसी
मेरी आँखों में घूमती है
तेरे अपने अरमानों की ख़ुदकुशी
मेरी आँखों में घूमती है..
तूने भेदे सारे चक्रव्यूह
कौन्तेयपुत्र से अधिक
जबकि नहीं जानती थी
निकलना बाहर
या शायद जानती थी
पर नहीं निकली हमारी खातिर
अपनी नहीं अपनों की खातिर
लिखने कुछ और बैठा था...लिख बैठा माँ के बारे में।
गाँव के कच्चे रास्तों से निकलकर शहर की चमचमाती सड़कों पर आ पहुंचा हूँ। इस दौरान काफी कुछ छूटा है, लेकिन एक लत नहीं छूटी, फकीरों की तरह अपनी ही मस्ती में गाने की, हाँ स्टेज से मुझे डर लगता है। गाँवों की गलियाँ, खेतों की मिट्टी, खेतों को गाँवों से जोड़ते कच्चे रास्ते आज भी मुझे मेरी इस आदत से पहचान लेंगे, भले ही यहाँ तक आते आते मेरे रूप रंग, नैन नक्श में काफी बदलाव आ गए हैं।
Kulwant bhai, jis Tarah Om me sampoorna srishti samahit hai vaise hi Maa wo shabd hai jisme har karunamay bhav samavisht hai.
जवाब देंहटाएंHar bachche ke mukh se nikalne wala pratham shabd maa hi hai.. kudrat ne ye mamatva sirf insaanon ko hi nahin balki pranimaatra ko tohfe swaroop diya hai.
aise mahan rishte par sara jahan kurbaan hai. maa ke bare me itni sari kavitaayen khoj kar laane ke liye aabhari hoon aur mujhko is layak samajhne ke liye bhi.
बहुत ही सुन्दर कविताओ का सकलन किया है, शुभकामना!
जवाब देंहटाएंवन्दे मातरम !!
जवाब देंहटाएंमाँ निश्चित रूप से माँ को बयाँ करना की महिमा शब्दों के बस की भी बात नही फिर भी भावनाओं की प्रस्तुति बेहतरीन है...कुलवंत जी यह एक बहुत अच्छा प्रयास किया आपने सभी रचनाओं को एक जगह...माँ को प्रणाम...प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसॅंजो कर रखने वाला संस्करण है ये ... बहुत बहुत शुक्रिया मां की यादों को संकलित करने के लिए ...
जवाब देंहटाएंSpecial thanks to you
जवाब देंहटाएंKulwant Ji.
Maa Vishesh ki prastuti adbhut.
मन में अब अभिलाषा एक ,
जवाब देंहटाएंचाहे मिले जन्म अनेक |
गोंद तुम्हारी , प्यार तुम्हारा ,
आँचल का हो सार तुम्हारा |