एक खत कुमार जलजला व ब्लॉगरों को
कुमार जलजला को वापिस आना चाहिए, जो विवादों में घिरने के बाद लापता हो गए, सुना है वो दिल्ली भी गए थे, ब्लॉग सम्मेलन में शिरकत करने, लेकिन किसी ढाबे पर दाल रोटी खाकर अपनी काली कार में लेपटॉप समेत वापिस चले गए, वो ब्लॉगर सम्मेलन में भले ही वापिस न जाए, लेकिन ब्लॉगवुड में वापसी करें।
ब्लॉग जगत में उनको लेकर उठ रहा विवाद फजूल है, किसी घटिया सोच का फातूर है, उन्होंने सिर्फ एक सर्वोत्तम महिला ब्लॉगर चुनने को कहा था, एक पोस्ट लिखने को कहा। इसमें कौन सी बुरी बात है। सब को अधिकार है, अपनी अपनी पसंदीदा महिला ब्लॉगर चुनने का, वो भी रचनाओं के आधार पर। एक एक पोस्ट अगर सब लिखते शायद हम सब एक से एक बेहतर महिला ब्लॉगर को जान पाते, क्योंकि वो भी एक समीक्षा थी, जिसको पढ़ने के बाद एक महिला ब्लॉगर का क्रेज तो बढ़ता। प्रतियोगिताएं तो निरंतर चलती रहती हैं, अगली बार कोई और होती, सब को अधिकार था, वोट करने का।
लेकिन कुमार जलजला को दोषी बनाकर रख दिया, शायद इसलिए कि वो किसी खेमे के नहीं थे, हूँ तो मैं भी नहीं, जिसका असर में अपने ब्लॉग पर देखता हूँ, लेकिन मुझे कोई फर्क नहीं पढ़ता, मैं ब्लॉग जगत की रग रग से अवगत हूँ। मैं वो पढ़ता हूँ, जो मुझे पढ़ना चाहिए, जिसको पढ़कर मेरे मन को संतुष्टि होती है, मैं टिप्पणी सिर्फ इसलिए नहीं करता कि सामने वाला मेरे ब्लॉग पर आए, मैं तो उसके अच्छे लेखन को सलाम लिखता हूँ, वो मेरे ब्लॉग पर आए न आए उसकी मर्जी।
मुझे वहाँ अच्छा पढ़ने को मिला, मैं टिप्पणी कर आया, शुक्रिए के रूप में। मैं ब्लॉगस्पॉट को ही नहीं बल्कि अन्य स्थानों पर लिखने वाले ब्लॉगरों लेखकों को भी निरंतर पढ़ता हूँ, वहाँ भी टिप्पणी करता हूँ।
एक विवाद रुकता है, दूसरा शुरू कर दिया जाता है, सिर्फ फालतू की पब्लसिटी के लिए, इससे चर्चा तो होती है, लेकिन कुछ दिन, ज्यादा दिन नहीं टिकती, बुर्जुगों ने कहा है, जो जितनी तेजी से उभरते हैं, वो उतनी तेजी से गिरते हैं, क्योंकि रफतार में संभालना मुश्किल है, पिछले दिनों हुआ मंगलूर हवाई हादसा तेज रफतार का ही नतीजा है।
भाई कुलवंत.. तुम्हारी सोच अपनी जगह सही है पर जलजला एंड कंपनी से कहना चाहता हूँ कि-
जवाब देंहटाएंश्रीमान दुनिया में नकाब लगा कर जो मानव लोगों को दुष्टों और खतरों से बचाते हैं उन्हें स्पाइडरमैन, बैट-मैन या फैंटम कहते हैं पर जो सिर्फ लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए, टाइम पास कराने या हंसाने के लिए चेहरे पर रंग पोत कर आते हैं और अपनी असलियत छिपाए रहते हैं उन्हें क्या कहते हैं??
खैर छोड़िये जी.. मैं तो यही गाता हूँ आपके लिए कि- 'तुम्हारी भी जय-जय, हमारी भी जय-जय.... ना तुम हारे ना हम हारे.....'
शुक्रिया दीपक जी, अपनी बात रखने के लिए।
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंअपने 'लेखों' को लेकर
जवाब देंहटाएंजब आम पब्लिक में जायेंगे
कितने आयेंगे शायद
गिन भी ना पाएंगे
बहुत शुक्रिया प्रिय दीपक गर्ग जी, एक तो आप भी दे जाते, मजा आ जाता, गोलमाल सी बातें मुझे समझ नहीं आती, मैं तो आज भी लोगों के बीच हूँ, शायद आपको छोड़कर, हो सकता है आप खुद को भगवान मानते हों।
जवाब देंहटाएंकुलवंत जी,
जवाब देंहटाएंमैं आपके लेखन के बारे में ऐसा लिखने की सोच ही नहीं सकता.मैंने तो अपने लेखों के लिए ऐसा लिखा है.भगवान तो दूर कि बात है,अभी तो इंसान बनना है.
मेरा दूर तक भी ऐसा कोई अभिप्राय नहीं था.
मेरी भूल को भुला दिया
जवाब देंहटाएंतहे-दिल से शुक्रिया