कितने और हैं पैसे और शहीदी ताज?

कुलवंत हैप्पी
कितने शहीदी ताज और मुआवजा देने के लिए पैसे हैं, शायद सरकार के लेखाकार और नीतिकार सोच रहे होंगे? साथ में यह भी सोच रहे होंगे कि बड़ी मुश्किल से हवाई हादसे की ख़बर के कारण जनता का ध्यान बस्तर से हटा था, नक्सलवाद से हटा था। चलो अफजल गुरू को फाँसी भले ही अब तक नहीं दे सके, लेकिन कसाब को फाँसी की सजा सुनाकर जनता की आँख में धूल तो झोंक ही दी, जो आँखें बंद कर जीवन जीने में व्यस्त है। आजकल तो हमारे पास कोई नेता भी नहीं बचा, जो मीडिया में गलत सलत बयानबाजी कर निरंतर हो रहे नक्सली हमलों से मीडिया का और जनता का ध्यान दूर खींच सके। देखो न कितना कुछ है सोचने के लिए सरकार के सलाहकारों के पास। आप सोच रहे होंगे क्या सलाहकार सलाहकार लगा रखी है, बार बार क्यों लिख रहा हूँ सलाहकार। लेकिन क्या करूं, देश के उच्च पदों पर बैठे हुए नेतागण भी फैसला लेने से पहले अपने सलाहकारों
से बात करते हैं, सलाहकार भी नेताओं से चालू हैं, वो भी वहाँ बैठे बैठे ही टेबल स्टोरी जर्नलिस्ट की तरह बैठे बैठे लम्बी चौड़ी स्टोरियों सी सलाहें नेताओं के दे डालते हैं, जो वास्तविकता से कोसों दूर होती हैं।

जनता की आँख में धूल झोंकने के लिए मुआवजा एवं शहीद जैसे सबसे बढ़िया हथियार सरकार के हाथ में हैं। शहीदों की संख्या दिन प्रति दिन बढ़ती जा रही है। कहीं सरकार गिनीज बुक में रिकार्ड तो दर्ज नहीं करवाना चाहती कि भारत में सबसे ज्यादा शहीद हैं, अपनी मिट्टी को प्यार करने वाले, देश पर मिटने वाले। आख़र कब तक नेताओं की लापरवाहियों के कारण नवविवाहितें जिन्दा लाश बनती रहेंगी? कब तक माँओं की कोखें उजड़ती रहेंगी? कब तक बूढ़े बाप के सहारे गँवाते रहेंगे? हम सुरक्षा की उम्मीद आख़र किस से कर रहे हैं, जो हमारे बीच आते हुए भी अपने साथ बंदूकधारी लेकर आते हैं। जो आलीशान घरों में उच्चस्तीय सुरक्षा घेरे के बीच सुख की नींद सोते हैं। किसी ने कहा है, सरकारें तब तक ताकतवर हैं, जब तक जनता सोई हुई है।

कारगिल फतेह करने वाला भारत आज अपनी माटी पर क्यों बार बार मुँह की खा रहा है? क्यों नैतिकता के नाम पर अस्तीफे देकर नेता लोग सिस्टम में रहकर सिस्टम को सुधारने जैसे जिम्मेवार काम से भागते हैं? आख़र अब कोई मोमबत्तियाँ जलाकर संसद तक क्यों नहीं आ रहा? मुम्बई हमले की गूँज अगर विदेशों तक पहुंच सकती है, तो क्या नक्सली हमले की गूंज बहरे हो चुके हिन्दुस्तानी आवाम के कानों तक नहीं पहुंच सकती?

कब बोलेंगे सरकार के खिलाफ हल्ला? कब जागेगी भारतीय जनता? कब गली गली से आवाज आएगी हमें इंसाफ चाहिए? आख़र कब समझेगी सरकार जनता की ताकत को? कब करेगी अपनी जिम्मेदारियों का अहसास? तमाम सवालात दिमाग में आ खड़े हो जाते हैं, जब देश में मौत का तांड़व देखता हूँ।

टिप्पणियाँ

  1. गुलज़ार साहब ने लिखा था फिल्म हू तू तू के लिए," बंदोबस्त है ज़बरदस्त है ..............हमारा हुक्मरान अरे कम्बक्त है..............खून की खुशबू बड़ी बदमस्त है !!"
    आजकल हमारी सरकार खून की खुशबू पसंद करने लगी है !! जैसे भी बहे खून बहना चाहिए ................... लाचार जनता का !! और जब खून का खेल होगा तो कीमत की परवाह किसे होगी ??!!

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  2. दुखद है ये स्थति

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  3. बहुत अफसोसजनक परिस्थितियाँ हो चली हैं. जल्द कोई ठोस कदम उठाना होगा.

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  4. Jo boya gaya,wahi ug raha hai!Gehun ke saath ghun bhi pis raha hai...nirdosh bhee bhugat rahe hain..

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  5. सो नहीं रहे भाई जी जानबूझ कर आँख बंद किये हैं..

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