मैं था अज्ञानी

1-
मेरे काफिले में बहुत समझदार थे,
बहुत विद्वान थे,
सब चल दिए भगवान की तलाश में
जंगल की ओर,
और मैं था अज्ञानी
बस माँ को ही ताँकता रहा।

2-
कहूँ तो क्या कहूँ,
चुप रहूँ तो कैसे रहूँ,
शब्द आते होठों पर
नि:शब्द हो जाते हैं।
ढूँढने निकल पड़ता हूँ
जो खो जाते हैं।
फिर मिलता है एक शब्द
अद्बुत
वो कमतर सा लगता है
तुम ही बतला देना
सूर्य को क्या दिखाऊं।

1. समीर लाल समीर के काव्य संग्रह बिखरे मोती से कुछ पंक्तियाँ पढ़ने के बाद जो दिल में आया लिख डाला, 2. खुशदीप सहगल की एक पोस्ट पढ़ने के बाद लिखा था।
भार
कुलवंत हैप्पी

टिप्पणियाँ

  1. वैसे तो सबसे ज्ञानी आप ही नजर आये..माँ का दर्जा ईश्वर से कहीं उपर है.

    जवाब देंहटाएं
  2. जवाब नहीं ......इन पंक्तियों का ...........बहुत खूब

    जवाब देंहटाएं
  3. आपका ब्‍लाग देखकर मन कर रहा है कि हम भी कोई स्‍लोगन अपने ब्‍लाग के लिए रच डालें। आपने लिखा- युवा सोच युवा खयालात। अब हम सोच रहे हैं कि बूढ़ी सोच बूढे खयालात लिख दें क्‍या? आपकी कविता पसन्‍द आयी बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  4. मेरे काफिले में बहुत समझदार थे,
    बहुत विद्वान थे,
    सब चल दिए भगवान की तलाश में
    जंगल की ओर,
    और मैं था अज्ञानी
    बस माँ को ही ताँकता रहा।

    is se bada gyan aur kya hoga..

    जवाब देंहटाएं
  5. कहूँ तो क्या कहूँ,
    चुप रहूँ तो कैसे रहूँ,
    शब्द आते होठों पर
    नि:शब्द हो जाते हैं।
    ढूँढने निकल पड़ता हूँ
    जो खो जाते हैं।


    इन पंक्तियों ने दिल को छूलिया....सुंदर कविता....

    होली की शुभकामनाओं सहित....

    जवाब देंहटाएं
  6. समीर जी का ये काव्य संग्रह मेरे पास है बहुत ही अच्छा लिखते हैं बस अध्भुत से उपर मेरे पास भी कोई शब्द नही है। । शुभकामनायें

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत सुंदर लिखा आपने ....

    नाराज़ तो नहीं .....??

    मन कुछ अव्यवस्थित था कुछ दिनों ....!!

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत कमाल का लिखा है ... सच भाई माँ के सामने कोई कुछ भी नही ....

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत बढ़िया!! समीर जी ने सही कहा....

    जवाब देंहटाएं
  10. हर रंग को आपने बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों में पिरोया है, बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  11. AGAR SABHI KO YE ZYAN PRAPT HO JAAYE TO AZYANTA NAHI RAH JAYEGI JIVAN ME.MAA KA SNEH KAUN BHULA SAKTA HAI

    VIKAS PANDEY

    www.vicharokadarpan.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  12. बहुत ही सुन्दर कविता है....माँ की ममता को कौन नाप सका है..और उसकी महत्ता के गुणगान के लिए शब्द भी कम पड़ते

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

हार्दिक निवेदन। अगर आपको लगता है कि इस पोस्‍ट को किसी और के साथ सांझा किया जा सकता है, तो आप यह कदम अवश्‍य उठाएं। मैं आपका सदैव ऋणि रहूंगा। बहुत बहुत आभार।

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

महात्मा गांधी के एक श्लोक ''अहिंसा परमो धर्म'' ने देश नपुंसक बना दिया!

सदन में जो हुआ, उसे रमेश बिधूड़ी के बिगड़े बोल तक सीमित न करें

हैप्पी अभिनंदन में महफूज अली

..जब भागा दौड़ी में की शादी

सवारी अपने सामान की खुद जिम्मेदार

भारत की सबसे बड़ी दुश्मन

हैप्पी अभिनंदन में संजय भास्कर