भारत की सबसे बड़ी दुश्मन

कुछ दिन पहले गुजरात प्रवास के दौरान हिम्मतनगर से 29 किलोमीटर दूर स्थित ईडर गया दोस्त से मिलने। ईडर शहर को पत्थर के बीचोबीच बसा देखकर घूमने का मन हुआ। वहाँ एक बहुत ऊंची पत्थरों से बनी हुई पहाड़ी है..जिस पर एक राजा का महल है, जो आजकल खण्डहर हो चुका है। उसके बीच लगा सारा कीमत सामान निकाल लिया गया है। बस वहाँ अगर कुछ बचा है तो केवल और केवल प्रेमी युगलों के नाम, जिनके बारे में कुछ पता नहीं कि वो इन नामों की तरह आज भी साथ साथ हैं या फिर नहीं। सारी दीवारें काली मिली..जैसे दीवारें न हो कोई रफ कापी के पन्ने हों। कुछ कुछ तो ऐसे जिद्दी आशिक भी यहाँ आए, जिन्होंने दीवारों को कुरेद कुरेद नाम लिखे।। तल से काफी किलोमीटर ऊंची इस पहाड़ी पर खण्डहर राजमहल के अलावा दो जैन मंदिर, हिन्दु देवी देवताओं के मंदिर और मुस्लिम पीर बाबा का पीरखाना भी। राजमहल जहाँ आज अंतिम साँसें ले रहा है, वहीं श्वेताम्बर जैन मंदिर का करोड़ों रुपए खर्च कर पुन:निर्माण किया जा रहा है। वहाँ मुझे महावीर की याद आती, जो निर्वस्त्र रूप में मुझे कहीं जगह मिल चुके हैं प्रतिमा के रूप में। महावीर की निर्वस्त्र मूर्ति देखकर मैं आज तक हँसा नहीं, हाँ, लेकिन उक्त मंदिर निर्माण को देखकर महावीर की मूर्ति को याद करते हुए सोच रहा था कि महावीर की मूर्ति से जैन धर्म के लोग शिक्षा क्यों नहीं लेते कि निर्वस्त्र आए थे और निर्वस्त्र जाना है। जिसके लिए लोग दिन रात मरते फिरते हैं, उन सुविधाओं को महावीर ने त्याग दिया था, लेकिन आज उस बुद्ध पुरुष के लिए इतने महंगे आलीशान मंदिर बनाने की क्या जरूरत आन पड़ी है। मंदिरों पर पानी की तरह पैसे बहाना केवल जैन धर्म में ही नहीं, हर धर्म में है। हर धर्म लगा हुआ है अपने धर्म को ऊंचा करने में। जीरा मंडी के रूप में विश्व प्रसिद्ध गुजरात का ऊंझा शहर श्री उमिया माता मंदिर के कारण भी बहुत प्रसिद्ध है। पिछले साल नबम्वर दिसम्बर में वहाँ धार्मिक कार्यक्रम हुआ था। सुना है कि उसमें शामिल होने वालों ने करोड़ों रुपए सिर्फ पूजन के वक्त पहली दूसरी कतार में बैठने के लिए खर्च किए। उस अनुमान से इस मंदिर में चढ़वा अरबों में पहुंचा होगा। भारत में और भी ऐसे सैंकड़ों मंदिर हैं जिनका रोज का चढ़वा लाखों तक तो पहुंच ही जाता होगा। अगर सब धर्मों के मंदिरों में आने वाले पैसे को समाज कल्याण के काम में लगा दिया जाए तो हिन्दुस्तान की शकल रातों रात बदल सकती है। मगर ऐसा होता नहीं। ऐसा तब जाकर होगा। जब हम बाहरी रूप की बजाय भीतरी रूप से धार्मिक हो जाएंगे। जब हम धर्म को व्यवसाय से अहलदा कर लेंगे। धर्म के सही अर्थों की पहचान कर लेंगे। जब एक दूसरे के धर्म को नीचा दिखाना बंद कर देंगे। सभी धर्म उठाकर देख लो। एक ही बात कहते हैं मोह, अंहकार, लोभ, क्रोध और माया त्याग करो। तुम सुखी हो जाओगे। लेकिन धर्म को मानने वालों ने उसकी पालना करने की बजाय उसके विपरीत जाकर काम शुरू कर दिया। भगवान को भी माया जाल में फँस लिया। उसको भी मोह दे दिया। तुम लाखों दो भगवान और हम तुम्हें हजारों देंगे। ऐसी धार्मिकता से बाहर आने की जरूरत है। महावीर की प्रतिमा को जिसने गौर से देखा होगा। उसको जिन्दगी का असली सच समझ में आ गया होगा। अंत कुछ भी साथ नहीं जाता, जब दुनिया से सिकंदर गया उसके हाथ भी खाली थे, हजारों बार सुनना होगा और ताली बजाई होगीं। वाह वाह करते घर चलेंगे होंगे। लेकिन गौर नहीं किया, बात को सुना तो सही, लेकिन अमल नहीं किया। भारत की सबसे बड़ी दुश्मन है हमारी भीतरी अधार्मिकता।

भार
कुलवंत हैप्पी

टिप्पणियाँ

  1. सार्थक लेखन। आभार। 'निर्वास्त्र' को 'निर्वस्त्र' कर दीजिए।
    .. चकती लगे कपड़े पहनते थे साईं बाबा, मन्दिर में सोने का मुकुट पहनते हैं। बुद्ध का काषाय स्वर्ण की परतों में दब जाता है और तो और कबीर तक अवतारी बन सिंहासन सँवारते हैं - आदमी ऐसा ही होता है शायद। आँखों में चुँधियाहट उसे भाती है :(

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  2. गिरिजेश राव जी बहुत बहुत धन्यवाद।

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  3. बहुत ही अच्छे सीधी चोट !!! सभी के मन को.. पर कोई सुधरे तब न

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  4. बहुत सार्थक और विचारणीय पोस्ट!!

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  5. क्या बात है कुलवंत भईया आजकल बहुत ही उम्दा लिख रहे है बहुत खूब , आज आपकी पोस्ट बहुत ही सार्थक व लाजवाब लगी । बधाई

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  6. Bahut sunder aur jagruk karane walee post rahee ye....jain dharm to tyag ka dharm hai brat upvas yani ki kuch nahee khana......falo ka aahar bhee nahee aur inka uddeshy apanee indriyo par sanyam rakhana hee hai........
    south me to tripatibalajee ko business partner bhee bana rakha hai logo ne....labh ka hissa hundee me dala jata hai.........
    swarg me jagah banana hai to bhagvan jee ko khush karana hai........ye soch hai aur dharm par bahas nahee kar sakte kyonki aastha se juda hai ..........

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  7. बहुत सही कहा आपने ......जिस दिन इतने पैसे समाज कल्याण में लगा दिया जाये .....भारत की रूप रेखा ही बदल जायेगी ......

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  8. सही बात है हम अध्यातम से दूर केवल धर्म मे उलझ कर रह गये हैं साधन को मानने लगे हैं मगर साध्य से दूर इसी लिये सही अर्थों मे हम धर्म का मर्म नही समझ रहे। बहुत सार्गर्भित पोस्ट है। बधाई और आशीर्वाद।

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  9. बहुत दिनों से इसी विषय पर लिखने को मन कुलकुला रहा था पर लगा कि किसी की धार्मिक भावनाओं को ठेस ना पहुंच जाए इसलिए नहीं लिखा। आज एक-एक शब्‍द अपना सा लगा। बधाई कुलवंत भाई।

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  10. is sach se hum sab vakif hai,bas accept nahi karna chahte..

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  11. बहुत सार्थक सामयिक और विचारणीय पोस्ट लिखी है.....बधाई।

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  12. भय्या क्यो न एक बार राम के नाम पर भी बेकसूरो का खून बहाने वालो को भी सबक दी जाये जो आज के समय साम्प्रदायिकता के रुप मेँ भारत के विकास की सबसे बड़ी बाधा है और अगर इसे भी देखकर ही महसूस करना है तो आप का स्वागत है वहाँ जिसे मैँ बचपन से ही राम की जन्म भूमि सुनता आया हूँ.

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  13. "No Religion is Free from UTTER FOOLISHNESS of its Followers" अर्थात "कोई भी मत, पंथ, सम्प्रदाय - अपने अनुयायियों की चरम(पराकाष्ठा)मूर्खता से मुक्त नहीं है"

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