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दिसंबर, 2009 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

अर्ज है, नए साल की मुबारकवाद

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गैरों को, अपनों को हकीकत व सपनों को, किसानों को, जवानों को गजलों और तरानों को, ग्रंथों को, किताबों को काँटों और गुलाबों को ब्लॉगरों को, पत्रकारों को ब्लॉगों और अख़बारों को जमीं को, आसमान को किश्ती और विमान को परिंदों को, जानवरों को बसते हुए एवं बेघरों को तुझको मुझको सब को आज, कल व अब को दीवाने को, दीवानी को दुनिया के किसी भी कोने में बसते हर हिन्दुस्तानी को मेरी ओर से नया साल मुबारक हो

"हैप्पी अभिनंदन" में मिथिलेष दुबे

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आज आप जिस ब्लॉगर हस्ती को मिलने जा रहे हैं, वो पेशे तो इंजीनियर हैं, लेकिन शौक शायराना रखते हैं। इस बात का पता तो उनकी ब्लॉगर प्रोफाइल देखने से ही लगाया जा सकता है, इस हस्ती ने अपना परिचय कुछ इस तरह दिया है "कभी यूं गुमसुम रहना अच्छा लगता है, कभी कोरे पन्नों को सजाना अच्छा लगता है, कभी जब दर्द से दहकता है ये दिल तो, शब्दों में तुझको उकेरना अच्छा लगता है" । इससे आप कई दफा मिले होंगे, पर ब्लॉग की जरिए, कविताएं लिखते हैं, लेकिन उससे ज्यादा वस्तुओं, शब्दों एवं अन्य चीजों के उत्थान पर कलम घसीटते हुए ही मिलते हैं, जो उनके गंभीर व्यक्तित्व एवं एक स्पष्ट व्यक्ति होने की पुष्टि करता है। निजी जीवन में क्रिकेट देखने व खेलने, लोगों से मिलने, घूमने एवं साहित्यिक पुस्तकों को पढ़ने में विशेष रुचि लेने वाले गायत्री एवं रामायण जैसी पवित्र किताबों से बेहद प्रभावित हिन्दी पुराने एवं दर्द भरे गीत सुनने के शौकीन मिथिलेश दुबे जी आज हमारे बीच हैं। कुलवंत हैप्पी : आप पेशे से क्या हैं बताने का कष्ट करेंगे? मिथिलेश दुबे : मैं पेशे से सर्वर इंजीनियर हूं, एचपी में। कुलवंत हैप्पी : एचपी मतलब? मिथ

आओ बनाएं "ऑल इंडिया एंटी-रेप फ्रंट"

टेनिस खिलाडी रुचिका गिरहोत्रा हत्या प्रकरण पर एक लेख पढ़ने के बाद मन में खयाल आया कि रुचिका जैसी हजारों बच्चियों को इंसाफ दिलाने के लिए क्यों न एक "ऑल इंडिया एंटी-रेप फ्रंट" बनाया जाए। इस कार्य को शिखर तक केवल ब्लॉगर जगत ही लेकर जा सकता है, क्योंकि आज भारत में से ही नहीं विदेशों में बैठे हुए भारतीय भी ब्लॉगिंग के कारण एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। ब्लॉगर एकता ही बलात्कार पीड़ित महिलाओं को इंसाफ दिला सकती है और उनको जिन्दगी जीने का फिर से एक मौका दे सकती हैं, ताकि रुचिका जैसे लड़कियां अपनी जिन्दगी से हाथ न धोएं। इनके हक में कलम घसीटने के अलावा इनके के लिए जमीनी स्तर पर भी काम किया जाना चाहिए। दिल्ली, मुम्बई, छतीसगढ़, गुजरात, मध्यप्रदेश, पंजाब, हरियाणा, असम, पश्चिमी बंगाल भारत के हर कोने में ब्लॉगर बैठे हुए हैं, जो ऐसी घटनाओं को देखते हुए ही कलम उठा लेते हैं। इतना ही नहीं, इन ब्लॉगरों में बहुत सारे डॉक्टर, बिजनसमैन, वकील, पत्रकार आदि पेशों से जुड़े हुए हैं, जो बलात्कार पीड़ित महिलाओं को इंसाफ दिला सकते हैं, मेरी आप सब से गुजारिश है कि कहीं से भी चुनो बस एक समाज सेवक चुनो, नेता नहीं और चल

शौचालय से सोचालय तक

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कल शाम श्रीमती वर्मा जी का अचानक फोन आया "आप जल्दी से हमारे घर आओ"। मैं उसकी वक्त सोचते हुए दौड़ा कि आखिर ऐसी कौन सी आफत आन खड़ी हुई कि उनको मुझे फोन लगाकर बुलाना पड़ा। मेरे घर से पाँच मिनट की दूरी पर श्रीमान वर्मा जी का घर है, मैंने अपने पैरों की चाल बढ़ाते हुए शीघ्रता के साथ उनके घर की तरफ बढ़ने की कोशिश की। दरवाजा खटखटाने की जरूरत न पड़ी, क्योंकि श्रीमती वर्मा ने दरवाजा खोलकर ही रखा था। मैंने देखा उनका रंग उड़ा हुआ था, जैसे कोई बड़ी वारदात हो गई हो। घर में फैले सन्नाटे को तोड़ते हुए मेरे स्वर श्रीमती वर्मा के कानों तक गए आखिर बात क्या हुई"। मेरी तरफ देखते हुए काँपते होठों से श्रीमति वर्मा बोली "मुझे बोले चाय बनाओ, मैं अभी आया"। "आखिर गए कहां, और कुछ बताकर गए कि नहीं" मैंने बात काटते हुए झट से कहा। श्रीमति वर्मा तुरंत बोली "कहीं नहीं गए"। "अगर कहीं गए ही नहीं तो टेंशन कैसी" मैंने कहा। "टेंशन इस बात की है कि वो पिछले दो घंटों से शौचालय में घुसे हुए हैं, मैंने कई दफा दरवाजा खटखटाया, लेकिन अंदर से कोई जवाब नहीं आ रहा" अपनी आवाज क

एनडी तिवारी के नाम खुला पत्र

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भारत का मीडिया रूसी मीडिया से बहुत अलग है। अब तक इस बात का अहसास तो श्रीमान नारायण दत्त तिवारी जी आपको हो ही गया होगा। भारतीय मीडिया ऐसी खबरों के लिए तो उतावला रहता है, वैसे तो आप भी कम नहीं हैं, सुर्खियां बटोरने के लिए क्या क्या हथकंडे नहीं अपनाते। आपका किस्सा आज पहली बार थोड़ी सार्वजनिक हुआ है, इससे पहले तो सुनना है कि मशहूर गायक नरेंद्र सिंह नेगी ने भी आप पर गीत फिल्माया था, जिसके कारण उसको गाने बजाने के लिए सरकारी प्रोग्राम मिलने बंद हो गए थे। भले ही आपकी वजह से राजनेताओं की छवि धूमिल हो रही हो, लेकिन गर्भनिरोधक गोलियां बनाने वाली और कंडोम बनाने वाली कंपनियों को अच्छी कमाई हो रही है, क्या इन कंपनियों से आपको पैसा बगैरह आता है या फिर इस तरह की घटनाओं से चर्चा में आकर किसी सेक्स शक्ति बढ़ाने वाले तेल की कंपनी एवं दवाई की कंपनी के लिए ब्रांड दूत बनाने का इरादा है। अगर उक्त दोनों बातें नहीं तो यकीनन आपकी शर्त रूसी प्रधानमंत्री ब्लादिमीर पुतिन से लगी होगी, सबसे ज्यादा अपने देश में कौन बदनाम होता है। मुझे जहां तक मालूम पड़ता है उसकी राजनीतिक पहुंच आप से कुछ ज्यादा है, क्योंकि उन्होंने

खुद के लिए कबर खोदने से कम न होगा

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ऑफिस शौचाल्य के भीतर मैं आईने के सामने खड़ा अपने हाथ पोंछ रहा था कि मेरे कानों में एक आवाज आई कि कैसी है पारूल "मेरी गर्भवती पत्नी", मैंने कहा सर जी बहुत बढ़िया है और अगले महीने मैं पिता बन जाऊंगा, जो भी हो बस एक ही काफी है लड़का या लड़की। इतना सुनते ही उन्होंने कहा कि हम "हिन्दु" एक एक पैदा करेंगे और वो "मुस्लिम" चार चार पैदा करेंगे तो अपने ही देश में हम अल्पसंख्यक होकर रह जाएंगे। अब तो चुप और शांत बैठे हैं, वो हम पर भारी पड़ जाएंगे। इस बात से मुझे एक सर्वे याद आ गया, जिसमें कहा गया था कि विश्व में हर चौथे आदमी मुस्लिम है। मैंने इस बात का जिक्र किया, और हम शौचालय से बाहर आ गए, जहां सब लोग मजदूरों की तरह काम कर रहे थे, उन मजदूरों में भी शामिल हूं। सर जी द्वारा कहे शब्द मेरे दिमाग के आसमान पर बादलों की तरह मंडराते रहे, शुक्रवार "25 दिसम्बर 2009" की रात मुझे जब नींद नहीं आ रही थी, तो मैंने रात के करीब पौने दो बजे अपने पीसी को ऑन किया और लिखने बैठ गया, शायद इस बोझ को दिमाग से हटाने के बाद नींद आ जाए। मैं उनकी बात से सहमत नहीं हूं, शायद अन्य हिन्दुवादी स

माँ

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ईश्वर नहीं देखा और देखने की इच्छा भी न रही, माँ देखने बाद। सच में अगर किसी ने गौर से माँ को देखा हो, वो ताउम्र किसी भगवान के इंतजार में बर्बाद नहीं करता। अफसोस है कि ईश्वर के चक्कर में मनुष्य माँ को याद नहीं करता। जहां भी माँ शब्द आ गया, कसम खुद की, खुदा की नहीं, जो देखा नहीं उसकी कसम खाना बेफजूला लगता है मुझे, वो हर पंक्ति अमर हो गई। माँ के बारे में मशहूर शायर मनुव्वर राणा कुछ इस तरह लिखते हैं। इस तरह मेरे गुनाहों को वो धो देती है माँ बहुत गुस्से में होती है तो रो देती है। घेर लेने को मुझे जब भी बलाएँ आ गयीं ढाल बनकर सामने माँ की दुआएँ आ गयीं जब भी कश्ती मेरी सैलाब में आ जाती है माँ दुआ करती हुई ख्वाब में आ जाती है मैंने कल शब "रात" चाहतों की सब किताबें फाड़ दी सिर्फ इक कागज पर लिक्खा लफ्ज-ए-मां रहने दिया। मुझे माँ शब्द से इतना प्यार है कि कुछ महीने पहले मैं एक किताबों की दुकान पर गया कुछ किताबों पर सरसरी निगाह मारने के लिए, लेकिन नजर दौड़ाते मेरी नजर पुरानी सी बारिश के कारण शायद नमी लगने से खराब हो चुकी एक किताब पर पड़ी, जो कई किताबों के तले दबी हुई थी, जिसका

औरत का दर्द-ए-बयां

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शायद आज की मेरी अभिव्यक्ति से कुछ लोग असहमत होंगे। मेरी उनसे गुजारिश है कि वो अपना असहमत पक्ष रखकर जाएं। मैं उन सबका शुक्रिया अदा करूंगा। मुझे आपकी नकारात्मक टिप्पणी भी अमृत सी लगती है। और उम्मीद करता हूं, आप जो लिखेंगे बिल्कुल ईमानदारी के साथ लिखेंगे। ऐसा नहीं कि आप अपक्ष में होते हुए भी मेरे पक्ष में कुछ कह जाएं ताकि मैं आपके ब्लॉग पर आऊं। बेनती है, जो लिखें ईमानदारी से लिखें। (1) दुख होता है सबको अब जब मर्द के नक्शे कदम*1 चली है औरत क्यों भूलते हो सदियों तक आग-ए-बंदिश में जली है औरत *1 मर्दों की तरह मेहनत मजदूरी, आजादपन, आत्मनिर्भर (2) आज अगर पेट के लिए बनी वेश्या, तुमसे देखी न जाए जबरी बनाते आए सदियों से उसका क्या। बनाने वाले ने की जब न-इंसाफी *1 तो तुमसे उम्मीद कैसी तुम तो सीता होने पर भी देते हो सजा। 1* शील, अनच्छित गर्भ ठहरना (3) निकाल दी ताउम्र हमने गुलाम बशिंदों की तरह चाहती हैं हम भी उड़ना शालीन परिंदों की तरह लेकिन तुम छोड़ दो हमें दबोचना दरिंदों की तरह (4) घर की मुर्गी दाल बराबर तुम्हें तो लगी अक्सर फिर भी तेरे इंतजार में रात भर हूं जगी अक्सर न ब

"हैप्पी अभिनंदन" में राजीव तनेजा

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'हंसते रहो' ब्लॉग के जरिए आप इस ब्लॉगर हस्ती से कई दफा मिले होंगे। इनकी लिखी कहानियां, किस्से और व्यंग पढ़कर आपको अच्छा लगा होगा। और आपके मन में कई दफा इनके बारे में जानने की इच्छा उठी हो गई, जैसे सागर में लहरें। मगर जब आप इस हस्ती की प्रोफाईल पर गए होंगे तो वहां पर आपको सिर्फ और सिर्फ ब्लॉग पते मिले होंगे या फिर उनके रहने का स्थल जहां वो रहते हैं दिल्ली। उनकी पसंदीदा फिल्में शोले एवं शक्ति, उनका पसंदीदा संगीतकार आरडी बर्मन। इसके अतिरिक्त एक बहुत शानदार पिक्चर मिली होगी, जिसमें एक शख्स चश्मा लगाए, नीचे निगाहें कर बैठा हुआ है। और उसके गोल चेहरे पर कुछ सोच रहे होने की स्थिति का वर्णन साफ नजर आ रहा होगा। आज मैं जिस ब्लॉगर हस्ती से आपको मिलवाने जा रहा हूं, वो कोई और नहीं बल्कि हम सब उनको राजीव तनेजा के नाम से जानते हैं, और उनके ब्लॉगों के जरिए उनको पहचानते हैं। पिछले दिनों उन्होंने अमिताभ बच्चन को खुल्ला पत्र लिखने का साहस किया था। बच्चन जी..आप पहले सही थे या अब गलत हैँ? कुलवंत हैप्पी : आपको ब्लॉगिंग के बारे में कब और कैसे पता चला? राजीव तनेजा : ब्लॉगिंग करते हुए लगभग तीन साल

रंगीला गांधी पढ़ें और फैसला करें।

आप खुद ही फैसला करें। गलत है या सही। आपके समक्ष है वो किताब। ऑनलाईन हिन्दी किताब रंगीला गांधी

विचलित होना छोड़ दो

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तुम विचलित होना छोड़ दो। सफलता तुम्हारे कदम चुम्मेगी। कुछ ऐसा ही मेरा मानना है। तुम्हारा विचलित होना, किसी और के लिए नहीं केवल स्वयं तुम्हारे के लिए नुक्सानदेह है, जैसे कि क्रोध। विचलित होना तो क्रोध से भी बुरा है। विचलित मन तुम्हारे मनोबल को खत्म करता है। जब मनोबल न बचेगा, तो तुम भी न बचोगे। खुद के अस्तित्व को बचाने के लिए तुम को विचलित होना छोड़ना होगा, तभी तुम सफलता को अर्जित पर पाओगे। आए दिन नए नए ब्लॉगर्स को बड़े जोश खरोश के साथ आते देखता हूं, लेकिन फिर वो ऐसे गायब हो जाते हैं, जैसे कि मौसमी मेंढ़क। इसके पीछे ठोस कारण उनके मन का अस्थिर अवस्था में चले जाना है। वो ब्लॉग ही इस धारणा से शुरू करते हैं कि हमसे अच्छा कोई नहीं। वो जैसे ही कोई पोस्ट डालेंगे तो टिप्पणियां ऐसे आएंगी, जैसे कि सावन मास में पानी की बूंदें। लेकिन ऐसा नहीं होता तो विचलित हो जाते हैं, और वहीं ब्लॉग अध्याय को बंद कर देते हैं। अगर उनका मन स्थिर हो जाए, और वो निरंतर ब्लॉगिंग करें तो शायद उनको सफलता मिल जाए, लेकिन पथ छोड़ने से कभी किसी को मंजिल मिली है, जो उनको मिलेगी। कई मित्र मेरे पास आते हैं, और कहते हैं कि ब्लॉग शुर

अहिंसा का सही अर्थ

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'प्रेम'। जी हां, अहिंसा का सही अर्थ प्रेम है, लेकिन समाज ने इस शब्द का दूसरा अर्थ निकाल लिया कि किसी को मारना हिंसा होता है और न मारने की अवस्था अहिंसा, लेकिन गलत है। अहिंसा का अर्थ प्रेम। महावीर ने अहिंसा शब्द का इस्तेमाल किया, उन्होंने प्रेम का इस्तेमाल नहीं किया, क्योंकि प्रेम शब्द लोगों के जेहन में उस समय काम वासना के रूप में बसा हुआ था। लेकिन बाद में ओशो ने अहिंसा को प्रेम शब्द के रूप में पेश किया, क्योंकि अब स्थिति फिर बदल चुकी थी। लोगों ने अहिंसा का गलत अर्थ निकाल लिया था। मतलब किसी को नहीं मारना अहिंसा है। लेकिन ओशो कहते हैं कि अहिंसा का असली अर्थ प्रेम ही है, जो महावीर सबको समझाना चाहते थे। तुम जीव को नहीं मारते, तो मतलब तुम हिंसा नहीं कर रहे, ये तो गलत धारणा है। तुम को लगता है कि अगर तुमने जीव को मार दिया तो तुमसे जीव हत्या हो जाएगी और तुम नर्क के भोगी हो जाओगे। जहां पर तुमको दुख मिलेंगे, ये तो स्वार्थ एवं डर हुआ, अहिंसा तो न हुई। अगर तुम जीव से प्रेम करने लगो तो तुम उसके साथ इतना जुड़ जाओगे कि उसको मारे का ख्याल तक न आएगा, अब भी तो तुम अहिंसा के रास्ते पर हो। प्रेम कर

कैमरॉन की हसीं दुनिया 'अवतार'

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टायटैनिक जैसी एक यादगार एवं उम्दा फिल्म बनाने वाले निर्देशक जेम्स कैमरॉन उम्र के लिहाज से बुजुर्ग होते जा रहे हैं, लेकिन उनकी सोच कितनी गहरी होती जा रही है। इस बात का पुख्ता सबूत है 'अवतार'। करोड़ रुपयों की लागत से बनी 'अवतार' एक अद्भुत फिल्म ही नहीं, बल्कि एक अद्भुत दुनिया, शायद जिसमें हम सब जाकर रहना भी पसंद करेंगे। फिल्म की कहानी का आधारित पृथ्वी के लालची लोगों और पेंडोरा गृह पर बसते सृष्टि से प्यार करने वाले लोगों के बीच की जंग है। पृथ्वी के लोग पृथ्वी के कई हजार मीलों दूर स्थित पेंडोरा गृह के उस पत्थर को हासिल करना चाहते हैं, जिसके छोटे से टुकड़े की कीमत करोड़ रुपए है, लेकिन उनकी निगाह में वहां बसने वाले लोगों की कीमत शून्य के बराबर है। इस अभियान को सफल बनाने के लिए अवतार प्रोग्रोम बनाया जाता है। इस प्रोग्रोम के तहत पृथ्वी के कुछ लोगों की आत्माओं को पेंडोरा गृहवासियों नमुना शरीरों में प्रवेश करवाया जाता है। वो पेंडोरा गृहवासी बनकर ही पेंडोरा गृहवासियों के बीच जाते हैं, ताकि उन लोगों को समझा बुझाकर कहीं और भेजा जाए एवं पृथ्वी के लोग अपने मकसद में पूरे हो सकें। उसकी म

देख रहा हूं : काव्य रूप में कुछ चिंतन

खून खराबा होगा लाजमी, आई पागल हाथ तलवार देख रहा हूं। बल्बों की जगमगाहट बहुत मगर मैं दूर तक अंधकार देख रहा हूं। गुनगानों और विज्ञापनों से भरा ख़बर रहित आज अखबार देख रहा हूं। सब कुछ बदला बदला एड मांगते दर दर पत्रकार देख रहा हूं। न्याय के मंदिर में दबती पैसों तले सच की पुकार देख रहा हूं। क्रेडिट कार्डों की आढ़ में चढ़ा सबके सिरों पर उधार देख रहा हूं। उदास बैठा हर दुकारदार, पर मैं भरा भरा सा बाजार देख रहा हूं। क्या होगा मरीजों का मैं डाक्टर को स्वयं बीमार देख रहा हूं। तुम छोड़ो मेरे जैसों की मैं जाते वेश्यालय इज्जतदार देख रहा हूं। यहां बिगड़ा अनुशासन आकाश में पंछियों की कतार देख रहा हूं। कुदरत को रौंदा जिसने कोपेनहेगन में उसकी आज हार देख रहा हूं। जो निकला था सिर उठा आईने के समक्ष खुद शर्मसार देख रहा हूं। कल तक न पूछा जिन्होंने हैप्पी बदला आज उनका व्यवहार देख रहा हूं।

महिलाओं की ही क्यों सुनी जाती है तब....

आज से कुछ साल पहले जब पत्रकार के तौर पर जब फील्ड में काम करता था तो बलात्कार के बहुत से केस देखने को मिलते। जब पुलिस वालों से विस्तारपूर्वक जानकारी हासिल करते तो 99.9 फीसदी केस तो ऐसे लगते थे कि जबरी बनवाए गए हैं। ज्यादातर होता भी ऐसा ही है, मेरा मानना है कि महिला के साथ सामूहिक बलात्कार होता है तो समझ आता है, या फिर एक व्यक्ति द्वारा उसको नशीले पदार्थ खिलाकर उसके साथ बलात्कार करना। मगर जब दोनों होश में हैं लड़का और लड़की तो बलात्कार की बात समझ में नहीं आती, तब तो खासकर जब दोनों को खरोंच तक न आए। ये तो आम बात है कि जब कोई जोर जबरदस्ती करता है तो सामने वाला बचाओ करता है, उसके लिए जो बन पड़े करता है। इस लिए मेरा मानना है कि उनमें हाथपाई हो सकती है, खींचतान हो सकती है, लेकिन बड़ी आसानी से रेप तो नहीं हो सकता। उन दिनों जब पुलिस वालों को लड़की के परिवार वालों द्वारा लिखाई रिपोर्ट पढ़ता तो पता चलता है कि असल में वो बलात्कार न थे, लड़के लड़की के अचानक पकड़े जाने पर जबरदस्ती बलात्कार केस बनवाए गए। ज्यादातर केस ऐसे ही होते थे, सामूहिक बलात्कार मामलों को छोड़कर क्योंकि वहां पर अकेली औरत का कोई बस नहीं

वो चाहती हैं होना टॉपलेस

पाकिस्तान एवं अफगानिस्तान में आतंकवाद खत्म और स्थापित करने की बातें करने वाले अमेरिका में एक ऐसी चिंगारी सुलग रही है, जो आग का रूप धारण करते ही कई देशों के लिए खतरा बन जाएगी। जी हां, मैं तो उसको आग ही कहूंगा, क्योंकि जब मैं दूर तक देखता हूं तो मुझे उसके कारण तबाही के सिवाए और कुछ नहीं दिखाई देता, बेशक में बहुत ही खुले दिमाग का व्यक्ति हूं, शायद ओशो से भी ज्यादा फ्री माईंड का। मगर वहीं, दूसरी तरफ में उस समाज को देखता हूं जो चुनरी और बुर्का उतराने पर भी लाशों के ढेर लगा देता है। ऐसी स्थिति में उसको 'आग' ही कहूंगा। वैसे आग के बहुत अर्थ हैं। हर जगह पर उसका अलग अलग अर्थ होता है। गरीब के चूल्हे में आग जले, मतलब उसको दो वक्त की रोटी मिले। तुमको बहुत आग लगी है मतलब बहुत जल्दी है। उसमें बहुत आग है, ज्यादातर बिगड़ैल लड़की के बारे में इस्तेमाल होता है,  कहने भाव जो सेक्स के लिए मरे जा रही हों। आग को जोश भी कहते हैं, और कभी कभी कुछ लोग जोश में होश खो बैठते हैं, जैसे ज्यादा आग तबाही का कारण भी बन जाती है, वैसे ही ज्यादा जोश भी किसी आग से कम नहीं होता। मैं इसकी आग की बात कर रहा हूं। अमेरिका की

आखिर पूरी हुई करिश्मा की तमन्ना

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करिश्मा कपूर की तमन्ना पूरी होने जा रही है ओनीर की अगली फिल्म 'यू एंड आई' से। खुद कमाने वाली हर औरत की तमन्ना होती है कि वो परिवार को संभालने के बाद एक बार फिर से अपने काम पर लौटे, जिससे उसकी पहचान थी। जिससे उसको गर्व महसूस होता है, जिससे वो आत्मनिर्भर बनती है। अभिनेत्री करिश्मा कपूर ने संजय कपूर के साथ शादी करने के बाद फिल्मों में काम करना बंद कर दिया था, और अपना पूरा ध्यान परिवार की देखरेख में लगा लिया था, जैसा कि जया बच्चन, श्रीदेवी, माधुरी दीक्षित, काजोल, जूही चावला, सोनाली बेंद्रे,जैसी कई और अभिनेत्रियों ने किया। करिश्मा कपूर की समकालीन अभिनेत्रियों में से माधुरी दीक्षित, काजोल और जूही चावला ने तो वापसी कर ली, लेकिन करिश्मा कपूर पिछले एक दो साल से बस एक अच्छी कहानी की तलाश में थी, जैसे कि आरके बैनर कहता है कि अच्छी कहानी मिली तो फिल्में खुद बनाएंगे। आखिर आरके बैनर को तो कोई अच्छी कहानी मिली नहीं, मगर कपूर खानदान की बेटी को ओनीर की अगली फिल्म मिल गई, इसकी कहानी अच्छी है या बुरी ये तो जानते नहीं, लेकिन कहा जा रहा है कि ये फिल्म ऑस्कर विजेता फिल्म 'लाईफ इज ब्यूटीफुल'

जन्मोत्सव पर ओशो का संदेश

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मेरा संदेश छोटा सा है: आनंद से जीओ! और जीवन के समस्त रंगों को जीओ। कुछ भी निषेध नहीं करना है। जो भी परमात्मा का है, शुभ है। जो भी उसने दिया है, अर्थपूर्ण है। उसमें से किसी भी चीज का इंकार करना, परमात्मा का ही इंकार करना है, नास्तिकता है। -ओशो ये भी आपके लिए : रूहानी प्यार कभी खत्म नहीं होता    

वेबदुनिया रोमांस में कुलवंत हैप्पी

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प्यार पर एक भाषण, वो भी लिखत रूप में, अच्छा लगा तो आपका समय वसूल, वरना फजूल। लिखना है अपना असूल, माफ करना हुई हो अगर भूल, क्योंकि गिर गिर कर ही सवार सिखता है सवारी। आओ विश्वास के साथ क्लिक करें, रामगोपाल वर्मा की आग नहीं होगा, इतना वायदा करता हूं। फोटो पर क्लिक न करें, बल्कि इस लिंक पर क्लिक करें रूहानी प्यार कभी खत्म नहीं होता

क्या आप भी तरसे हैं प्याली चाय को

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पिछले दिनों एक लम्बी यात्रा के बाद इंदौर फिर वापिस आया, लेकिन इस तीन हजार किलोमीटर लम्बी रेलयात्रा में एक स्वादृष्टि चाय की प्याली को मेरे होंठ तरस गए। अगर आप चाय पीने के शौकीन हैं तो रेल सफर आपके लिए खुशनुमा नहीं हो सकता, हर रेलवे स्टेशन के आने से पहले मन खुश होता था, शायद इस रेलवे स्टेशन पर देसी चाय मिल जाएगी, जो स्टॉव या गैस पर चायपत्ती, असली दूध और चीनी डालकर बनाई गई होगी। मगर इस सफर दौरान सैंकड़ों स्टेशन इस उम्मीद के साथ गुजर गए, लेकिन एक स्वादृष्टि चाय की प्याली नहीं मिली। ये वाक्य उन राज्यों में घटित हुआ, जो दूध के पक्ष से तो बहुत मजबूत है, पहला गुजरात, दूसरा राजस्थान, तीसरा हरियाणा और चौथा पंजाब। लेकिन इन राज्यों के रेलवे स्टेशनों पर केतलियों में भरी मसाला चाय ही मिली, जिसको पीना मैंने एक साल पहले ही छोड़ा है, जिस मसाला चाय को छोड़ा वो तो कंपनी की मशीन से कर्मचारियों के लिए मुफ्त में मिलती है, अगर वो मुफ्त की अच्छी नहीं लगती तो पांच रुपए खर्च वो घटिया चाय पीने को कैसे मन करेगा। भगवान की दुआ से, इस तीन हजार किलोमीटर की लम्बी यात्रा में दो जगह रुकना हुआ, एक तो ससुराल गुजरात में और

चलो, ओबामा की तो आंख खुली

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कल तक अन्य देशों की तरह बराक ओबामा को भी पाकिस्तान की ताकत पर विश्वास था, ओबामा की सुर में सुर मिलाते हुए अमेरिकी नेता एक बात पर अटल थे कि पाकिस्तान अपने प्रमाणु हथियारों की रक्षा कर सकता था। यहां तक कि पाकिस्तानी प्रधानमंत्री श्री गिलानी ने भी दो दिन पहले भारतीय सेना प्रमुख के बयान को गैर-जिम्मेदारना ठहरा दिया था, लेकिन आज भारतीय सेना प्रमुख से दो कदम आगे बढ़ते हुए ओबामा ने कह दिया कि पाकिस्तान साजिशों का गढ़ है, वहां के प्रमाणु हथियार सुरक्षित नहीं है। क्या आज फिर श्री गिलानी अपना पुराना बयान जारी करने वाले हैं, जो दो दिन पहले भारतीय सेना प्रमुख के आए बयान के बाद किया था? सत्य तो ये है कि अमेरिका ने इस बात को देर से स्वीकार किया है, अमेरिका ने इस बात को तब स्वीकार किया, जब कल इस्लामाबाद स्थित नौसेना के मुख्य दफ्तर को आतंकवादियों द्वारा निशाना बनाया गया। इससे पहले तो अमेरिका के नेताओं को पाकिस्तान पर विश्वास था, जहां तक कि भारत के भी कई नेता अमेरिकी सुर में सुर मिलाते हुए नजर आए। असल में, बराक ओबामा का जो बयान आज आया है, वो विगत 23 अक्टूबर को आना चाहिए था, जब आतंकवादियों ने न्यूकलियर

स्कूल नहीं जाती, क्योंकि उसको एड्स है

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आज नीनू नौ साल की हो गई। आज वो आम बच्चों की तरह खेलती कूदती है, लेकिन स्कूल नहीं जाती, क्योंकि कोई उसको दाखिल नहीं देता, क्योंकि उसको एड्स है। इस बीमारी ने उसको जन्म से ही पकड़ लिया था, क्योंकि उसकी माँ इस बीमारी से पीड़ित थी, जब उसने अस्पताल में दम तोड़ा तो नीना केवल दो साल की थी, उसको नहीं पता था कि जिस बीमारी से उसकी माँ चल बसी, उसी बीमारी से वो भी पीड़ित है। उस दो साल की बच्ची को बठिंडा की समाज सेवी संस्था सहारा जनसेवा के प्रमुख विजय गोयल ने गोद ले लिया, और अपनी बेटी का रुतबा दे दिया। आज वो नीनू आकांक्षा गोयल के रूप में नौ वर्ष की हो गई, वो गोयल परिवार में आम सदस्यों की तरह जिन्दगी बसर कर रही है, लेकिन आम बच्चों की तरह किसी स्कूल में नहीं जाती, क्योंकि कोई दाखिला नहीं देता उसको। एड्स से पीड़ित बहुत से बच्चे हैं, लेकिन सबको विजय गोयल जैसा शख्स नहीं मिलता। विजय गोयल आज हम सबके लिए प्रेरणेता है, विजय गोयल वो शख्स है जो सिखाया है कि मानवता से बढ़कर कुछ नहीं होता। नीनू को माता पिता का प्यार देने वाले गोयल दम्पति एड्स पीड़ित बच्चों से नफरत करने वालों के लिए एक सबक है। एड्स पीड़ित बच्चों को सच म