वो क्या जाने
सोचते हैं दोस्त जिन्दगी में, बड़ा कुछ पा लिया मैंने।
वो क्या जाने इस दौड़ में कितना कुछ गंवा लिया मैंने॥
मशीनों में रहकर, आखिर मशीन सा हो गया हूं।
मां बाप के होते भी एक यतीम सा हो गया हूं।।
बचपन की तरह ये यौवन भी यूं ही बिता लिया मैंने।
वो क्या जाने इस दौड़ में कितना कुछ गंवा लिया मैंने॥
खेतों की फसलों से खेलकर अब वो हवा नहीं आती।
सूर्य किरण घुसकर कमरे में अब मुझे नहीं जगाती॥
मुर्गे की न-मौजूदगी में सिरहाने अलार्म लगा लिया मैंने
वो क्या जाने इस दौड़ में कितना कुछ गंवा लिया मैंने॥
छूट गई यारों की महफिलें, और वो बुजुर्गों की बातें
कच्ची राहों पे सायों के साथ चलना, वो चांदनी रातें
बंद कमरों में कैद अंधेरों की अब हमराही बना लिया मैंने
वो क्या जाने इस दौड़ में कितना कुछ गंवा लिया मैंने॥
वो क्या जाने इस दौड़ में कितना कुछ गंवा लिया मैंने॥
मशीनों में रहकर, आखिर मशीन सा हो गया हूं।
मां बाप के होते भी एक यतीम सा हो गया हूं।।
बचपन की तरह ये यौवन भी यूं ही बिता लिया मैंने।
वो क्या जाने इस दौड़ में कितना कुछ गंवा लिया मैंने॥
खेतों की फसलों से खेलकर अब वो हवा नहीं आती।
सूर्य किरण घुसकर कमरे में अब मुझे नहीं जगाती॥
मुर्गे की न-मौजूदगी में सिरहाने अलार्म लगा लिया मैंने
वो क्या जाने इस दौड़ में कितना कुछ गंवा लिया मैंने॥
छूट गई यारों की महफिलें, और वो बुजुर्गों की बातें
कच्ची राहों पे सायों के साथ चलना, वो चांदनी रातें
बंद कमरों में कैद अंधेरों की अब हमराही बना लिया मैंने
वो क्या जाने इस दौड़ में कितना कुछ गंवा लिया मैंने॥
sabhi ka jiwan bilkul aadhunikata me dub gaya hai..
जवाब देंहटाएंbadhiya rachan..dhanywad
jeevan ki sachhai ka vastwik chitran bakhoobi kiya hai aapne. ek achhi rachna.
जवाब देंहटाएंभाई हैप्पीजी,
जवाब देंहटाएंकविता में जिस वेदना का वर्णन अपने किया है
मैं भी उस से गुजरा हूँ
आपने घाव हरा कर दिया.............लेकिन अच्छा भी लगा.............
अच्छी कविता............अभिनन्दन !
एक बेहद सम्वेदनशील रचना ......जो आज का सच बयान करती हुई एक उत्कृष्ट रचना!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव हैं। बधाई।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
छूट गई यारों की महफिलें, और वो बुजुर्गों की बातें
जवाब देंहटाएंकच्ची राहों पे सायों के साथ चलना, वो चांदनी रातें
वाह भाई वाह क्या बखान किया है आपने हमें तो ऐसा लग रहा है जैसे अभी अभी गाव से घूम कर आ गया
वो क्या जाने इस दौड़ में कितना कुछ गंवा लिया मैंने॥
जवाब देंहटाएंसही है सालते है खोये और पाये के भाव.
बढिया लिख रहे हैं आप .. शुभकामनाएं !!
जवाब देंहटाएंसोचते हैं दोस्त जिन्दगी में, बड़ा कुछ पा लिया मैंने।
जवाब देंहटाएंवो क्या जाने इस दौड़ में कितना कुछ गंवा लिया मैंने॥
-गजब किया भाई ...क्या रच गये आप भी!! जय हो!!
मशीनों में रहकर, आखिर मशीन सा हो गया हूं।
जवाब देंहटाएंमां बाप के होते भी एक यतीम सा हो गया हूं।।
बचपन की तरह ये यौवन भी यूं ही बिता लिया मैंने।
वो क्या जाने इस दौड़ में कितना कुछ गंवा लिया मैंने॥
महानगरों में रहने वाले हम रोबोटों का आज यही सबसे बड़ा सच है..
जय हिंद...
पढकर ऐसा लगा जैसे मेरे भावों को आपने शब्द दे दिए हों
जवाब देंहटाएंआज के मशीनी युग की व्यथा खूब उकेरी आपने
जवाब देंहटाएंबी एस पाबला
bahut badhiya rachna hai. isi ko aaj vikas kaha jata hai. jo isme jitna rama hua hai. weh utna hi adhunik aur bada samjha jata hai. jindgi ki hakikat ko shabd dene ki badhai.
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