तब तक पैदा होंगे जिन्ना
कोई माने या ना माने, लेकिन मेरा तो यही माना है कि किसी को जिन्ना करार देने में और खुद को गांधी कहने में केवल दो मिनट लगते हैं। अगर यकीन न आता हो तो बाल ठाकरे का वो लेख देखा जा सकता है जो पिछले दिनों सामना में प्रकाशित हुआ, जिसमें उन्होंने अपने ही भतीजे को जिन्ना का नाम दे दिया। इस लेख के प्रकाशित होने के बाद राज ठाकरे एक बार फिर से चर्चा में आ गया, वो कहां कम था, उसने भी पोल खोल दी कि संपादकीय कौन लिखता है सब जानते हैं। लेकिन राज ठाकरे को जिन्ना कहकर खुद को गांधी साबित करना कहां तक ठीक है। शायद 6वीं कक्षा तक पढ़ाई करने के बाद रंगों की दुनिया में रहने वाले बाल ठाकरे भूल गए कि उन्होंने भी जवानी के जोश में वो ही किया था, जो आज राज ठाकरे कर रहा है, वो कार्टूनों का सहारा नहीं ले रहा, ये बात दूसरी है।
जिन कार्टूनों से बाल ठाकरे अपना घर चलाते थे, अब उन्होंने उन्हीं कार्टूनों से एक राजनेता बनने की तरफ कदम बढ़ा लिया, अपने हुनर को हथियार बना लिया। जिस मुम्बई के स्कूल ने उनको फीस न भरने के चलते निकाल दिया था, उन्होंने जवानी पार करते करते उस मुम्बई पर अपनी पकड़ बना ली। एक कार्टूनिस्ट शिव सेना के गठन से एक नेता बन गया। जब वो मराठीवाद के हक में लड़ाई लड़ रहे थे, शायद उनको तब जिन्ना का खयाल नहीं आया होगा क्योंकि अगर उनको जिन्ना का खयाल आ जाता तो शायद वो शिव सेना प्रमुख कभी न बन पाते।
बाल ठाकरे ने भाजपा के साथ हाथ मिलाकर राजनीति में कदम रखते हुए मराठीवाद को थोड़ा सा खुद से दूर कर शिवसेना को विशाल करने का मन बना लिया। मुश्किल तब आई, जब उनकी पार्टी के लिए दिन रात काम करने वाले राज ठाकरे उनके भतीजे ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया, कोई बोले भी
क्यों न। बाल ठाकरे ने शिव सेना के उस पद पर अपने छोटे बेटे को बिठा दिया, जिस पर बिराजमान होने के लिए राज ठाकरे उत्सुक थे।
इसमें कोई दो राय नहीं होनी चाहिए कि राज ठाकरे ने बाल ठाकरे की संगत में रहते हुए कई गुर हासिल किए, वरना राज ठाकरे खुद की पार्टी बनाने की सोच भी नहीं सकता था। उसने वो ही हथियार उठाया, जिसको लेकर एक कार्टूनिस्ट शिव सेना प्रमुख बन गया।
अब जब राज ठाकरे मराठियों के हितों की बात करता है, तो वो जिन्ना लगने लगा है शिव सेना को, क्योंकि अब शिव सेना की शाख हिलने लगी है। लोगों को राज ठाकरे के रूप में खोया हुआ बाल ठाकरे मिल गया, जो कभी मराठीवाद की आवाज बना था।
कभी कभी मुझे लगता है कि जिन्ना का जन्म भी इन्हीं हालातों में हुआ होगा, वरना मुस्लिम हिंदु भाईचारे का प्रतीक माना जाने वाला व्यक्ति देश के बंटवारे का जिम्मेदार कैसे बन सकता है। जिन्ना को अच्छे लोगों में गिने वाले गोखले से महात्मा गांधी भी प्रभावित थे, फिर गोखले की निगाहें धोखा कैसे खा सकती हैं। देश की आजादी में भगत सिंह से लेकर हजारों नौजवानों ने जान की बाजियाँ लगा दी, लेकिन देश का राष्ट्रपिता कौन बना माहत्मा गांधी? जब देश को आजाद करवाने के लिए बच्चा बच्चा जान देने को तैयार हो, आप किसी एक को श्रेय कैसे दे सकते हैं। शहीद-ए-आजम भगत सिंह को पुत्र का रुतबा भी ये देश नहीं दे सका, क्योंकि वो कांग्रेस के करीबी नहीं थे, लाला लाजपत राय को भूल गया ये समाज क्यों कि वो राजनीतिक दाँवपेज नहीं जानते थे, कभी किसी ने सवाल क्यों नहीं उठाया कि राहुल गांधी, वरुण गांधी, सोनिया गांधी, क्या वो गांधी की संतान हैं। इंदिरा गांधी के पति देव फिरोज शाह को महात्मा गांधी ने अपना नाम दे दिया। अगर नेहरू की बेटी को गांधी अपना नाम दे सकता है तो क्या वो गांधी को बदले में कुछ नहीं देगा क्यों उसके बाद तो गांधी उनके रिश्तेदार जो बन गए थे। अगर आज भी भारत में कोई फारंगी घूमने के लिए आए और जब वो पूरा देश घूम ले। उसके बाद कोई जाकर उससे पूछे आपको भारतीय कैसे लगे, वो शायद हैरान हो जाएगा। मुझे कोई भारतीय नहीं मिला, मुझको मराठी, पंजाबी, गुजराती, असमी, बंगाली लोग मिले, लेकिन भारतीय तो कोई न था। ये भी डायोजनीज की तरह रह जाएगा, जो दिन में भी लैंप लेकर घूमता था, और तलाश करता था मानव की, उसको मरते दम तक मानव नहीं मिला।
महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता की उपाधि देने वाले आज तक राष्ट्र को एक लड़ी में नहीं पिरोय सके, जब पूरा देश एक लड़ी में नहीं आ सकता, तब तो वो राष्ट्र कैसे हो सकता है। अगर राष्ट्र नहीं तो राष्ट्रपिता कैसा।
मेरा मानना है कि जब जब किसी को छोटा कर आंका जाएगा, या नजरंदाज किया जाएगा, तब तब जिन्ना पैदा होंगे। हर राज्य में जिन्ना बैठे हैं, हर घर में जिन्ना बैठा है। राज ठाकरे भी उसकी नजरंदाजगी का मारा हुआ है, पंजाब में भी जिन्नाओं की कमी नहीं, सिमरनजीत सिंह मान भी अलग देश की मांग कर रहा है क्या वो भी जिन्ना है। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी भी अब टुकड़ियों में बंटती जा रही है, क्या उसको तोड़ने वाले जिन्ना हैं। हर जिन्ना के पैदा होने के पिछे कोई न कोई तो कारण है। जिसकी पड़ताल करनी जरूरी है।
जिन कार्टूनों से बाल ठाकरे अपना घर चलाते थे, अब उन्होंने उन्हीं कार्टूनों से एक राजनेता बनने की तरफ कदम बढ़ा लिया, अपने हुनर को हथियार बना लिया। जिस मुम्बई के स्कूल ने उनको फीस न भरने के चलते निकाल दिया था, उन्होंने जवानी पार करते करते उस मुम्बई पर अपनी पकड़ बना ली। एक कार्टूनिस्ट शिव सेना के गठन से एक नेता बन गया। जब वो मराठीवाद के हक में लड़ाई लड़ रहे थे, शायद उनको तब जिन्ना का खयाल नहीं आया होगा क्योंकि अगर उनको जिन्ना का खयाल आ जाता तो शायद वो शिव सेना प्रमुख कभी न बन पाते।
बाल ठाकरे ने भाजपा के साथ हाथ मिलाकर राजनीति में कदम रखते हुए मराठीवाद को थोड़ा सा खुद से दूर कर शिवसेना को विशाल करने का मन बना लिया। मुश्किल तब आई, जब उनकी पार्टी के लिए दिन रात काम करने वाले राज ठाकरे उनके भतीजे ने उनके खिलाफ मोर्चा खोल दिया, कोई बोले भी
क्यों न। बाल ठाकरे ने शिव सेना के उस पद पर अपने छोटे बेटे को बिठा दिया, जिस पर बिराजमान होने के लिए राज ठाकरे उत्सुक थे।
इसमें कोई दो राय नहीं होनी चाहिए कि राज ठाकरे ने बाल ठाकरे की संगत में रहते हुए कई गुर हासिल किए, वरना राज ठाकरे खुद की पार्टी बनाने की सोच भी नहीं सकता था। उसने वो ही हथियार उठाया, जिसको लेकर एक कार्टूनिस्ट शिव सेना प्रमुख बन गया।
अब जब राज ठाकरे मराठियों के हितों की बात करता है, तो वो जिन्ना लगने लगा है शिव सेना को, क्योंकि अब शिव सेना की शाख हिलने लगी है। लोगों को राज ठाकरे के रूप में खोया हुआ बाल ठाकरे मिल गया, जो कभी मराठीवाद की आवाज बना था।
कभी कभी मुझे लगता है कि जिन्ना का जन्म भी इन्हीं हालातों में हुआ होगा, वरना मुस्लिम हिंदु भाईचारे का प्रतीक माना जाने वाला व्यक्ति देश के बंटवारे का जिम्मेदार कैसे बन सकता है। जिन्ना को अच्छे लोगों में गिने वाले गोखले से महात्मा गांधी भी प्रभावित थे, फिर गोखले की निगाहें धोखा कैसे खा सकती हैं। देश की आजादी में भगत सिंह से लेकर हजारों नौजवानों ने जान की बाजियाँ लगा दी, लेकिन देश का राष्ट्रपिता कौन बना माहत्मा गांधी? जब देश को आजाद करवाने के लिए बच्चा बच्चा जान देने को तैयार हो, आप किसी एक को श्रेय कैसे दे सकते हैं। शहीद-ए-आजम भगत सिंह को पुत्र का रुतबा भी ये देश नहीं दे सका, क्योंकि वो कांग्रेस के करीबी नहीं थे, लाला लाजपत राय को भूल गया ये समाज क्यों कि वो राजनीतिक दाँवपेज नहीं जानते थे, कभी किसी ने सवाल क्यों नहीं उठाया कि राहुल गांधी, वरुण गांधी, सोनिया गांधी, क्या वो गांधी की संतान हैं। इंदिरा गांधी के पति देव फिरोज शाह को महात्मा गांधी ने अपना नाम दे दिया। अगर नेहरू की बेटी को गांधी अपना नाम दे सकता है तो क्या वो गांधी को बदले में कुछ नहीं देगा क्यों उसके बाद तो गांधी उनके रिश्तेदार जो बन गए थे। अगर आज भी भारत में कोई फारंगी घूमने के लिए आए और जब वो पूरा देश घूम ले। उसके बाद कोई जाकर उससे पूछे आपको भारतीय कैसे लगे, वो शायद हैरान हो जाएगा। मुझे कोई भारतीय नहीं मिला, मुझको मराठी, पंजाबी, गुजराती, असमी, बंगाली लोग मिले, लेकिन भारतीय तो कोई न था। ये भी डायोजनीज की तरह रह जाएगा, जो दिन में भी लैंप लेकर घूमता था, और तलाश करता था मानव की, उसको मरते दम तक मानव नहीं मिला।
महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता की उपाधि देने वाले आज तक राष्ट्र को एक लड़ी में नहीं पिरोय सके, जब पूरा देश एक लड़ी में नहीं आ सकता, तब तो वो राष्ट्र कैसे हो सकता है। अगर राष्ट्र नहीं तो राष्ट्रपिता कैसा।
मेरा मानना है कि जब जब किसी को छोटा कर आंका जाएगा, या नजरंदाज किया जाएगा, तब तब जिन्ना पैदा होंगे। हर राज्य में जिन्ना बैठे हैं, हर घर में जिन्ना बैठा है। राज ठाकरे भी उसकी नजरंदाजगी का मारा हुआ है, पंजाब में भी जिन्नाओं की कमी नहीं, सिमरनजीत सिंह मान भी अलग देश की मांग कर रहा है क्या वो भी जिन्ना है। शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी भी अब टुकड़ियों में बंटती जा रही है, क्या उसको तोड़ने वाले जिन्ना हैं। हर जिन्ना के पैदा होने के पिछे कोई न कोई तो कारण है। जिसकी पड़ताल करनी जरूरी है।
सशक्त लेखन से आपने मोह लिया। बधाई
जवाब देंहटाएंKosish achi hai par abhi bahut gunjaish hai, meri subhkamnaye
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