ओबामा को प्राईज नहीं, जिम्मा मिला
अमेरिका राष्ट्रपति बराक ओबामा उस समय हैरत में पड़ गए, जब नोबेल शांति पुरस्कार के लिए उनका नाम घोषित कर दिया गया। ज्यादातर लोग खुश होते हैं, जब उनको सम्मानित किया जाता है, लेकिन ओबामा परेशान थे। शायद उन्होंने सोचा नहीं था कि उनकी राह और मुश्किल हो जाएगी, उनके कंधों पर अमेरिका के अलावा विश्व में शांति कायम करने का जिम्मा भी आ जाएगा। अगर ओबामा को पहले पता चल जाता कि नोबेल शांति पुरस्कार देने के लिए उनके नाम पर विचार किया जा रहा है तो शायद विचार को वो उसी वक्त ही खत्म कर देते, और ये पुरस्कार हर बार की तरह किसी ऐसे व्यक्ति के हाथों में चला जाता, जो काम कर थक चुका था, जो आगे करने की इच्छा नहीं रखता। बस वो थका हुआ, इस पुरस्कार को लेकर खुशी खुशी इस दुनिया से चल बसता। मगर अबकी बार ऐसा कुछ नहीं होने वाला, क्योंकि कमेटी ने पासा ही कुछ ऐसा फेंका है कि अब पुरस्कार की कीमत चुकानी होगी। अब वो करना होगा जो पुरस्कार की कसौटी पर खरा उतरता है।
जब ओबामा को पुरस्कार देने की घोषणा हुई तो हर जगह खलबली सी मच गई, इसको पुरस्कार क्यों दिया जा रहा है। आखिर इसने क्या किया है? ये कैसी पागलभांति है? लेकिन लोग क्यों भूल गए उस दिन को जब बाराक ओबामा अमेरिका के राष्ट्रपति बने थे, उनको कैच करने के लिए विश्व भर का मीडिया हड्डी को देख भूखे कुत्तों की तरह झपट पड़ा था। तब तो वे राष्ट्रपति बनने जा रहे थे, बने नहीं थे। लेकिन आज तो वो अमेरिका के राष्ट्रपति हैं, फिर आज लोगों को हैरानी क्यों हो रही है।
कितनी हैरत की बात है कि जैसे ही ओबामा का नाम सामने आया तो सबने अपनी अपनी प्रतिक्रिया प्रकट करनी शुरू कर दी, किसी ने कहा कि ओबामा ही क्यों, लेकिन किसी ने ये नहीं कहा कि फलां व्यक्ति इसके लिए उपयुक्त है, बड़े बड़े बहस करने वालों को विद्वानों को कोई और नाम नहीं सुझा तो इस कमेटी के कुछ लोगों को कोई ओर कैसे दिखाई पड़ता। उनकी भूल कहो या फिर नई रीति, लेकिन ओबामा के लिए ये पुरस्कार नहीं, कांटों का ताज है। कल तक ओबामा अश्वेत लोगों के लिए उम्मीद की किरण थे, लेकिन इस पुरस्कार की घोषणा के बाद उनके सिर शांति स्थापित करने का जिम्मा आ गया है।
जब आप कोई काम कर चुके होते हैं और उसके लिए आपको सम्मानित किया जाए तो आप बेफिक्र हो जाते हैं, और लोग भी आप पर उंगली नहीं उठाते, दिक्कत तब खड़ी होती है जब आप शुरूआत कर रहे होते हैं, तब आपके सिर एक ऐसी जिम्मेदारी थोप दी जाए जो आप को हर हाल में पूरी करनी होगी। तो सिर पर रखा ताज भी पहाड़ से भारी हो जाता है। अब ओबामा को वो करना होगा, जो शांति पुरस्कार की कसौटी पर खरा उतरता हो, वो नहीं जो ओबामा प्रशासन चाहता है।
जब ओबामा को पुरस्कार देने की घोषणा हुई तो हर जगह खलबली सी मच गई, इसको पुरस्कार क्यों दिया जा रहा है। आखिर इसने क्या किया है? ये कैसी पागलभांति है? लेकिन लोग क्यों भूल गए उस दिन को जब बाराक ओबामा अमेरिका के राष्ट्रपति बने थे, उनको कैच करने के लिए विश्व भर का मीडिया हड्डी को देख भूखे कुत्तों की तरह झपट पड़ा था। तब तो वे राष्ट्रपति बनने जा रहे थे, बने नहीं थे। लेकिन आज तो वो अमेरिका के राष्ट्रपति हैं, फिर आज लोगों को हैरानी क्यों हो रही है।
कितनी हैरत की बात है कि जैसे ही ओबामा का नाम सामने आया तो सबने अपनी अपनी प्रतिक्रिया प्रकट करनी शुरू कर दी, किसी ने कहा कि ओबामा ही क्यों, लेकिन किसी ने ये नहीं कहा कि फलां व्यक्ति इसके लिए उपयुक्त है, बड़े बड़े बहस करने वालों को विद्वानों को कोई और नाम नहीं सुझा तो इस कमेटी के कुछ लोगों को कोई ओर कैसे दिखाई पड़ता। उनकी भूल कहो या फिर नई रीति, लेकिन ओबामा के लिए ये पुरस्कार नहीं, कांटों का ताज है। कल तक ओबामा अश्वेत लोगों के लिए उम्मीद की किरण थे, लेकिन इस पुरस्कार की घोषणा के बाद उनके सिर शांति स्थापित करने का जिम्मा आ गया है।
जब आप कोई काम कर चुके होते हैं और उसके लिए आपको सम्मानित किया जाए तो आप बेफिक्र हो जाते हैं, और लोग भी आप पर उंगली नहीं उठाते, दिक्कत तब खड़ी होती है जब आप शुरूआत कर रहे होते हैं, तब आपके सिर एक ऐसी जिम्मेदारी थोप दी जाए जो आप को हर हाल में पूरी करनी होगी। तो सिर पर रखा ताज भी पहाड़ से भारी हो जाता है। अब ओबामा को वो करना होगा, जो शांति पुरस्कार की कसौटी पर खरा उतरता हो, वो नहीं जो ओबामा प्रशासन चाहता है।
निश्चित रूप से, इसके बाद नैतिक जिम्मेदारी तो बढ ही जाती है।
जवाब देंहटाएं----------
डिस्कस लगाएं, सुरक्षित कमेंट पाएँ
आपके विचारो से सहमत हूँ पर देखना है ओबामा जी कितनी ईमानदारी जिम्मेदारी से निर्वहन करते है .
जवाब देंहटाएंएक अच्छी प्रस्तुति .....बधाई!
जवाब देंहटाएं