नित्यानंद सेक्स स्केंडल के बहाने कुछ और बातें


लेखक कुलवंत हैप्पी
नई दिल्ली से इंदौर तक आने वाली मालवा सुपरफास्ट रेलगाड़ी की यात्रा को मैं कभी नहीं भूल सकता, अगर भूल गया तो दूसरी बार उसमें यात्रा करने की भूल कर बैठूँगा। इस यात्रा को न भूलने का एक और दूसरा भी कारण है। वो है, हमारे वाले कोच में एक देसी साधू और उसकी विदेशी चेली का होना। साधू चिलम सूटे का खाया हुआ 32 साल का लग रहा था, जबकि उसके साथ साधुओं का चोला पहने बैठी वो लड़की करीबन 25-26 की होगी। उन दोनों की जोड़ी पूरे कोच मुसाफिरों का ध्यान खींच रही थी, हर कोई देखकर मेरी तरह शायद हैरत में पड़ा सोच रहा था कि आखिर ऐसी कौन सी नौबत आई होगी कि भरी जवानी में साधुओं का साथ पसंद आ गया, और वो भी चिलमबाज साधु का। मैं एक और बात भी सोच रहा था कि अगर एक महिला साथी ही चाहिए तो गृहस्थ जीवन में क्या बुराई है? जिसको त्यागकर लोग साधु सन्यासी बन जाते हैं। शायद जिम्मेदारियों से भाग खड़े होने का सबसे अच्छा तरीका है साधु बन जाना। स्वर्ग सा गृहस्थ जीवन छोड़कर पहले साधु बनते हैं, फिर समाधि छोड़कर संभोग की तरफ आते हैं, और जन्म देते हैं सेक्स स्केंडल को।

स्वामी नित्यानंद जी आजकल सेक्स स्केंडल के कारण ही तो चर्चाओं में हैं। आज तक तो उनके बारे में कभी सुना नहीं था, लेकिन वो सेक्स स्केंडल के कारण चर्चा में आए, और हमारे ज्ञान में बढ़ोतरी कर दी कि कोई नित्यानंद नामक स्वामी दक्षिण में भी हुए हैं। शायद आपको याद होगा कि सिरसा स्थित डेरा सच्चा सौदा के संत गुरमति राम रहीम सिंह भी इस कारण चर्चा में आए थे। उन पर भी छेड़छाड़, बलात्कार जैसे आरोप लगे हैं। जब भी सेक्स स्केंडल में किसी संत महात्मा को लिप्त देखता हूँ तो सोचता हूँ कि हमारी सोच पर पड़ा हुआ पर्दा कब हटेगा? हम बाहरी पहनावे पर कब तक यकीन करते रहेंगे? गिद्दड़ शेर की खाल पहनने से शहर तो नहीं हो जाता, और कोई भगवा पहन लेने से साधु तो नहीं हो जाता? कोई दो तीन अच्छे प्रवचन देने से भगवान तो नहीं हो जाता? लेकिन क्या करें, हम सब आसानी से चाहते हैं। जब नित्यानंद जैसे मामले सामने आते हैं तो हम आहत होते हैं। मुझे लगता है हम कभी आहत नहीं होंगे, अगर हम गुरू को भी मिट्टी के बने घड़े की तरह ठोक बजाकर देखें, लेकिन हम व्यक्ति को भगवान मानते वक्त कभी भी उसका निरीक्षण करना पसंद नहीं करते? अगर निरीक्षण करने का समय होता तो आत्मनिरीक्षण न कर लेते।

मुझे याद आ रही है लुधियाना के पास स्थित एक श्री गुरूद्वारा साहिब की घटना। वहाँ हर रोज सुबह चार बजे गुरुबाणी का उच्चारण होता है, सभी श्री गुरूद्वारा साहिबों की तरह। एक सुबह एक गाँव वाले की निगाह श्री गुरू ग्रंथ साहिब के बीचोबीच पड़े मोबाइल पर पड़ गई, और उस मोबाइल में अश्लील वीडियो चल रहा था। यह सिलसिला कब से चल रहा था, इसका तो पता नहीं, लेकिन जब पकड़ा गया तो गाँवों ने ग्रंथी की खूब धुनाई की। ऐसी घटनाएं मजिस्दों, मंदिरों, गुरूद्वारों, चर्चाओं एवं डेरों में आम मिल जाएंगी। फिर भी कोई नहीं सोचता आखिर ऐसा क्यों होता? ऐसा इसलिए होता है कि हम बाहरी तौर से कुछ भी अपना लेते हैं, लेकिन भीतर तक जा ही नहीं पाते। कपड़ों की तरह हम भगवान बदलते रहते हैं। जिस संत की हवा हुई, हम उसकी के द्वार पर खड़े होने लगते हैं, नफा मिले तो ठीक, नहीं तो नेक्सट।

एक और घटना याद आ रही है, जो ओशो की किताब में पढ़ी थी, एक जगह ओशो ध्यान पर भाषण दे रहे थे, उनके पास एक व्यक्ति आया और बोला मैं सेक्स को त्यागना चाहता हूँ, तो ओशो ने कहा, जब आज से कुछ साल पहले मैं सेक्स पर बोल रहा था, तो तुम भाग खड़े हुए थे, और आज मैं ध्यान पर बोल रहा हूँ तो सेक्स से निजात पाने की विधि पूछने आए हो। इस वार्तालाप से मुझे तो एक बात ही समझ में आती है कि आप जितना जिस चीज से भागोगे, वो उतना ही तुम्हारे करीब आएगी। उतना ही ज्यादा तुम्हें बेचैन करेगी।

असल में सृष्टि सेक्स की देन है, लेकिन केवल मनुष्य ने सेक्स को भूख बना लिया। वो इस भूख से निजात पाने के लिए सन्यास जैसे रास्ते तैयार करता है और एक दिन उस व्यक्ति की तरह उस भूख को मिटाने के लिए कुछ भी खा जाता है, जो घर छोड़कर रेगिस्तान में इसलिए चला गया कि वो भूख से निजात पा सके। जब उसे घर से गए हुए काफी दिन हो गए तो पत्नि ने कहा, हाल चाल तो पूछ लूँ कहाँ हैं? कैसे हैं? उसने एक चिट्ठी और कुछ फूल भेजे। कुछ दिनों बाद पति का जवाब आया, "मैं बढ़िया हूँ, और तुम्हारे भेजे हुए फूल बेहद स्वादिष्ट थे"। ज्यादातर साधु सन्यासी ऐसे ही हैं, जो सेक्स की भूख से निजात पाने के लिए औरत से दूर भागते हैं, लेकिन वो भूल जाते हैं कि वो भूख को भयानक रूप दे रहे हैं।

जब भयानक भूख सेक्स स्केंडल के रूप में सामने आती है तो केस दर्ज होते हैं। उम्र भर की कमाई हुई इज्जत मिट्टी में मिल जाती हैं। दूध का दूध पानी का पानी हो जाता है। कितनी हैरानी की बात है कि जन्म मृत्यु के चक्कर मुक्त करने वाले खुद मौत से कितना डरते हैं। उनका कोर्ट में पेश न होना बताता है। अगर वो जन्म मृत्यु के चक्कर से मुक्त हैं तो कोर्ट में खड़े क्यों नहीं हो जाते, सच को हँसकर गले क्यों नहीं लगाते। इसलिए मैं कहता हूँ कि मखमली लिबास ओढ़कर भाषण देना बहुत आसान है। मंसूर की तरह अल्लाह का सच्चा आशिक होना बेहद मुश्किल है।

टिप्पणियाँ

  1. नित्यानंद के बहाने बहुत से गढ़े मुर्दे उखाड़ दिए।

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  2. कुलवंत बहुत अच्छा लिखा,आपने। हम भले ही कहीं भी रहें, किसी धर्म में रहें, अवस्था में रहें - ईमानदारी से अपने दायित्वों का पालन करते रहें, बहुत है। केवल संसार से भागकर या किसी विशेष रंग के कपड़े पहनने से कोई साधु, संत नहीं बन जाता है।
    आभार।

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  3. बहुत बढिया पोस्ट लिखी है।बधाई स्वीकारें।

    मन को भीतर से बदले बिना कोई बदलाव नही हो सकता...दिखावा भले ही कर लिया जाए।

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  4. नये ज़माने का सच है,इसे लिखने के लिये हिम्मत चाहिये।आपने बेबाकी से लिखा,बधाई आपको।

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  5. फूल खा जाने का संदर्भ इस परिपेक्ष में जबरदस्त रहा. बहुत उम्दा आलेख.

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  6. kulwant bhai jabardast likha hai...
    maine kal hi pada hai baba ke bare me

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  7. मखमली लिबास ओढ़कर भाषण देना बहुत आसान है। मंसूर की तरह अल्लाह का सच्चा आशिक होना बेहद मुश्किल है।
    सार्थक बात
    दुरंगे चरित्र का पर्दाफाश जरूरी है

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  8. apne pure mudde ko bahut acche aur tarkik dhang se pesh kiya hai ....

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  9. आपने सही मुद्दे को लेकर बहुत ही सुन्दरता से शब्दों में पिरोया है! आखिर नित्यानंद को अपने कर्मों का फल तो मिलना ही था चाहे वो लाख कोशिश क्यूँ न करते अपने आप को बचाने के लिए! उम्दा प्रस्तुती!

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  10. ठीक कहा है कुलवंत भाई। ले‍किन मैं सोचता हूँ कि साधु को कहीं न कहीं इस रूप में समाज देखे ‍कि वह आम इंसान और साधु या साधु और आम इंसान दोनों ही है। क्योंकि उनका उठना-बैठना आखिर इन लोगों के बीच ही होता है। किसी की सुंदरता पर वह मोहित हो, कोई फूल उसे सुंदर लगे, या कोई अभिनेता अभिनेत्री। जो एक आम आदमी की पसंद हो सकती है वही उसकी भी हो सकती है।

    आज हमारे समाज में कई साधु-संत प्रवचन करते फिर रहे हैं और शायद 2 या इससे भी अधिक शादी उन्होंने की। मैं इन साधुओं का पक्षधर हूँ या नहीं यह तो नहीं कह रहा लेकिन समाज से हाथ जोड़कर प्रार्थना करता हूँ कि थोड़ा सा अपने दिल और दिमाग को और बड़ा भी करें।

    हालाँकि सबसे बड़ा संन्यास तो गृहस्थ ही है।

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  11. prakruti chij h ai yaar.... sabako hoti hai.... sadhu ke piche kyon pade ho?

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  12. आपके आलेख मे बहुत सच्चाई है । खास कर फुल खाने का जो दृष्टांत आपने दिया है वह बिलकुल बढिया है और अंत में जो आपने लाईन लिखी है मखमली लिबास ओढ़कर भाषण देना बहुत आसान है। मंसूर की तरह अल्लाह का सच्चा आशिक होना बेहद मुश्किल है। सच में गहन विचारनीय है... एक उमदा आलेख यहाँ पर प्रस्तृत करने के लिए आपका धन्यवाद...!

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  13. वास्तविकता तो ये है कि -
    किसी को यदि कोई समूह साधू ,संत या महात्मा मान ले
    तो क्या वो साधू हो जायेगा ?
    नहीं ना ?
    फिर हम उसके चक्कर में क्यों पड़ें |
    उसका तो मूलमंत्र ही पैसा कमाना है .
    जो धन और मान - सम्मान को प्राप्त करने का इच्छुक हो जाय ,
    उसे हम सन्यासी कैसे मान लें |
    फिर उसे सन्यासी मान कर सन्यास का मजाक क्यों उड़ा रहे हो भाई |
    ये तो हिन्दू संस्कृति का उपहास है|
    जिसका ऐसा आचरण हो उसे हिन्दू शब्दावली में कामासक्त कहा जाता है ,
    सन्यासी नहीं |
    इसलिए हमें इस पर चर्चा कर उसे महिमा मंडित करने का क्या औचित्य ?
    क्योंकि किसी ने कहा है कि -
    "बदनाम भी होंगें तो क्या नाम ना होगा "

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  14. aapne mansoor ki baat kahi to ek baat yaad aayee ki aap mansso r ke baare me kewal itana hi jaanate ho jitana swami nitya nand ke vare me janate . AApne news suni aur ek lamba chauda bhashan likh daala jisme Ram Rahim , Chilam Vale sadhu sabko ghasit daala. krapaya pahle sadhu ki jnadagi men utaro tab sadhuon kaa mulyanka karana. Sadhuon par ham Tum jaise ligon ne hamesh se hi julm dhaye hai Itihash sakshi hai , Atah Likhane se pahale atmachintan karo usake baad sadhuon ka mulankan karana. Bura mat maanana Yah Ham Sub ki aadat ban gai hai ki news yaa channel apane thode se swarth yaa faide ke liye kuch bol de to ham jhat se biswas kar lete hai lekin asal baat kuch aur hi hoti hai. Khud hi kahate ho ki news balon ne aapke gyan mein bradhi kar dee nityanand ke vaare me news dekar isaka matlab jis sadhu ka aapne aaj tak naam nahi sunaa aur aapne kewal ek news se uske varre bahut kuchh likh daala . kitana galat karate ho aap log?

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  15. बाबा तो बाबा...उसके चैले भी गुरू घंटाल निकले...

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  16. खुश कीता..हैप्पी जी..शेर-दिल..

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  17. बेनामी4/26/2010 12:52 pm

    बडा दुःख होता है जब कोई भगवा पहन कर 'ये' सब करता है.
    मेरी एक परिचित ने भी सन्यास ले लिया,क्यों नही मालूम?
    मैंने इतना ही कहा ' इसे पहन लेना बहुत आसान है इसका सम्मान बनाये रखने के लिए तुम्हे खुद को जीतना होगा और सबसे कठिन खुद को जीतना और अपने आपके प्रति ईमानदार रहना होता है,जब कोई पास नही होता तब भी हम खुद के पास होते हैं और दो आँखें किसी की हमारे विश्वास को,हमें देखती रहती है.इन सबके लिए घर त्यागना कहाँ जरूरी था?तुम्हारे .......जब विदेश चले गए साल में एक बार एक महीने के लिए आते थे और चले जाते थे तब मैंने 'मन को,इच्छाओं को जीतना सीखा और पाया ग्रहस्थ रह कर भी हम सन्यासियों सा जीवन जी सकते हैं,उस समय ने मुझे इतना मजबूत बनाया कि .....हा हा हा '
    मगर उन्हें समझ नही आई मेरी बात. न घर,परिवार,रिश्तों,इच्छाओं को जीत पाई न उनसे मोह छूटा. भई लौट आओ इस दुनियां में गृहस्थ जीवन किसी सन्यासी के त्याग और तपस्या से कम नही.
    लाज नही रख सकते भगवा की,तो भगवा पहनना कहाँ जरूरी है?किसी ने जबरन तो नही धकेला आपको, वो आपका अपना फैसला था.
    मेरे ब्लॉग पर एक कहानी है 'काकीसा'
    पढ़ कर दिखाइये इन सन्यासियों को,पूछिए उनसे कि किसी सन्यासिनी से कम थी या है 'काकीसा?
    ये हमारी संस्कृति है जहाँ औरतों ने पति के बाद अपना जीवन होम कर दिया उसके नाम पर,वे किसी सन्यासिनी से कम थी या उनका जीवन किसी योगी से कम था?
    कब घर,परिवार,जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ा उन्होंने?बिना भगवा धरे इनके जीवन और इनको मैं हजारों बार प्रणाम करती हूँ.
    भगवा पहनने वाले इनसे सीखें.
    किसी की भावना आहत हुई हो तो क्षमा करे मुझे.
    पर....ऐसीच हूँ मैं,मेरा जीवन और 'ये' मेरे प्रेरणा स्त्रोत.

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  18. theek hai sawdhani zaroori hai chahe wo adhyatam ho athwa sansar ..... wo ek kahawat apne suni hogi guru kijiye jankar pani pijiye chankar..... shesh to kehne ki aawashayakta nahi hai ..... jai mata di

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  19. sir aapne jo bhi likh hai ek dam thik or sahi likha hai aaj to bhagavan ke naam par bhi log inki vajaha se ungali uthane lage hai jo bhagavan hi sab ki den hota hai

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