संदेश

कुलवंत हैप्पी लेबल वाली पोस्ट दिखाई जा रही हैं

ओशो सेक्स का पक्षधर नहीं

चित्र
लेखक कुलवंत हैप्पी खेतों को पानी दे रहा था, और खेतों के बीचोबीच एक डेरा है, वैसे पंजाब के हर गाँव में एकाध डेरा तो आम ही मिल जाएगा। मेरे गाँव में तो फिर भी चार चार डेरे हैं, रोडू पीर, बाबा टिल्ले वाला, डेरा बाबा गंगाराम, जिनको मैंने पौष के महीने में बर्फ जैसे पानी से जलधारा करवाया था, रोज कई घड़े डाले जाते थे उनके सिर पर, और जो डेरा मेरे खेतों के बीचोबीच था, उसका नाम था डेरा बाबा भगवान दास। गाँव वाले बताते हैं कि काफी समय पहले की बात है, गाँव में बारिश नहीं हो रही थी, लोग इंद्र देव को खुश करने के लिए हर तरह से प्रयास कर रहे थे, लेकिन इंद्रदेव बरसने को तैयार ही नहीं था। दुखी हुए लोग गाँव में आए एक रमते साधु भगवान दास के पास चले गए। उन्होंने उनसे बेनती बगैरह किया।

लफ्जों की धूल-4

चित्र
(1) जिन्दगी का जब, कर हिसाब किताब देखा लड़ाई झगड़े के बिन, ना कुछ जनाब देखा

लफ्जों की धूल-3

चित्र
(1) दिमाग बनिया, बाजार ढूँढता है दिल आशिक, प्यार ढूँढता है

शशि थरूर से सीखे, सुर्खियाँ बटोरने के ट्रिक

चित्र
अखबारों की सुर्खियों में कैसे रहा जाता है आमिर खान या किसी हॉलीवुड हस्ती से बेहतर विदेश राज्य मंत्री शशि थरूर जानते हैं। यकीन न आता हो, तो पिछले कई महीनों का हिसाब किताब खोलकर देखें, तो पता चलेगा कि शशि थरूर भी राखी सावंत की तरह बिना किसी बात के सुर्खियाँ बटोरने में माहिर हैं।

हैप्पी अभिनंदन में संगीता पुरी

चित्र
श्रीमति संगीता पुरी जी हैप्पी अभिनंदन में आज आप जिस ब्लॉगर शख्सियत से रूबरू होने जा रहे हैं, वो जहाँ एक तरफ हमें गत्यात्मक ज्योतिष ब्लॉग के जरिए भविष्य व वर्तमान की स्थिति से अवगत करवाती हैं, वहीं दूसरी ओर 'हमारा खत्री समाज' ब्लॉग के जरिए हमें इतिहास के साथ भी जोड़े रखती हैं।

अलविदा ब्लॉगिंग...हैप्पी ब्लॉगिंग

चित्र
कई महीने पहले बुरा भला के शिवम मिश्रा जी  चुपके से कहीं छुपकर बैठ गए, फिर हरकीरत हीर ने अचानक जाने की बात कही, किंतु वो लौट आई। किसी कारणवश मिथिलेश दुबे भी ब्लॉग जगत से भाग खड़े हुए थे, लौटे तो ऐसे लौटे कि न लौटे के बराबर हुए पड़े हैं।

क्या गोलियों व बमों से खत्म जो जाएगा नक्सलवाद?

चित्र
पिछले दिनों हुए नक्सली हमले के बाद भाजपा की सीनियर महिला नेता सुषमा स्वराज का बयान आया कि सेना की मदद से नक्सलवाद को खत्म कर दिया जाए। उनके कहने का भाव था कि नक्सलवादियों की लाशों के ढेर बिछा दिए जाएं। उस बयान को पढ़ने के बाद दिमाग में एकाएक एक सवाल आ टपका।

हैप्पी अभिनंदन में विनोद कुमार पाण्डेय

चित्र
विनोद कुमार पाण्डेय जी इस बार हैप्पी अभिनंदन में बनारस की गलियाँ छोड़, नोयडा के 62 सेक्टर में जिन्दगी के हसीं पलों का आनंद लेने वाले सॉफ्टवेयर इंजीनियर विनोद कुमार पाण्डेय जी पधारे हैं, जो अक्सर मिलते हैं 'मुस्कराते पल-कुछ सच कुछ सपने' ब्लॉग विला पर। वो किसी पहचान के मोहताज तो नहीं, लेकिन कलम के इस धुरंधर के बारे में कुछ शब्द लिखे बिन कलम मेरी रुकने को तैयार नहीं। जैसे भूमि कितनी उपजाऊ है, इस बात का अंदाजा तो उसकी फसल से ही लगाया जा सकता है। वैसे ही इतनी की सोच कितनी युवा है, वे तो उनकी लेखनी से हम सबको पता ही चल चुकी है। अब कुछ और बातें, जो ब्लॉग जगत से जुड़ी हैं, जो उनके जीवन से जुड़ी हैं, उन पर वो क्या सोचते हैं? चलो जानते हैं उनकी जुबानी। कुलवंत हैप्पी : आपकी रचनाएं समाज की बुराईयों पर कटाक्ष करती हैं, जो आपके भीतर छुपे हुए एक क्रांतिकारी से रूबरू करवाती हैं, लेकिन सवाल यह है कि क्रांतिकारी आखिर किससे प्रेरित है? विनोद पांडेय: कुलवंत जी, मैं ना तो कोई बहुत पॉपुलर ब्लॉगर ठहरा और ना ही बहुत बड़ा समाज सुधारक। फिर भी आपने हैप्पी अभिनंदन के लिए मेरा चयन किया, आपका बहुत बह

मुस्कराते क्यों नहीं

चित्र
Photo by Google Search & Editing by me श्रीगणेश से करते हैं शुरू जब हर काम तो माँ-बाप को दुनिया बनाते क्यों नहीं। बुरी बातों को लेकर बहस करने वालों फिर अच्छी बातें को फैलाते क्यों नहीं। मन में बातों का अंबार, हाथ में मोबाइल तो मित्र का नम्बर मिलाते क्यों नहीं। कॉलेज के दिनों में देखी कई फिल्में फिर अब दम्पति घूमने जाते क्यों नहीं। माँ बाप, बहन भाई, दोस्त मित्र सब हैं, तो खुदा का शुक्र मनाते क्यों नहीं। अच्छी है, काबिलेतारीफ है कहने वालों फिर खुलकर ताली बजाते क्यों नहीं। फेसबुक, ऑर्कुट को देखता हूँ तो सोचता हूँ लोग मकान बनाने के बाद आते क्यों नहीं कोई रोज आता है आपके इनबॉक्स में तो आप उसके यहाँ जाते क्यों नहीं। हैप्पी लिखता है शेयर, बनता है लतीफा, इस बात पर मुस्कराते क्यों नहीं। 1. दम्पति-मियाँ बीवी 2.उसके यहाँ-इनबॉक्स आभार

सेक्स एजुकेशन से आगे की बात

चित्र
देश में सेक्स एजुकेशन को लेकर अनूठी बहस चल रही है, कुछ रूढ़िवादी का विरोध कर रहे हैं और कुछ इसके पक्ष में बोल रहे हैं। लेकिन कितनी हैरानी की बात है कि किसी शिक्षा की बात कर रहे हैं हम सब, जो इस देश में आम है। सचमुच सेक्स शिक्षा इस देश में आम है, वो बात अलहदा है कि वो चोरी छिपे ग्रहण की जा रही है। इस देश में सेक्स शिक्षा आम है, इसका सबूत तो नवविवाहित जोड़ों से लगाया जा सकता है। खुद से सवाल करें, जब उनकी शादी होती है कौन सिखाता है उनको सेक्स करना। हाँ, अगर जरूरत है तो सेक्स से ऊपर उठाने वाली शिक्षा की। इस देश का दुर्भाग्य है कि सेक्स को पाप, पति को परमेश्वर और नारी को नरक का द्वार कहा जाता है। अब सोचो, जब तीनों बातें एक साथ एकत्र होंगी, तो क्या होगा? युद्ध ही होगा और कुछ नहीं। कितनी हैरानी की बात है कि हम उसको युद्ध नहीं बल्कि सात जन्मों का पवित्र बंधन भी कहते हैं। अगर सेक्स पाप है, तो जन्म लेने वाली हर संतान पाप की देन है, अगर वो पाप की देन है तो वो पापमुक्त कैसे हो सकती है? हमने सेक्स को पहले पाप कहा, फिर शादी का बंधन बनाकर उसका परमिट भी बना दिया। हमारी सोच में कितना विरोधाभास है। हमने

ह्यूमन एंटी वायरस

चित्र
हर बात को लेकर विरोधाभास तो रहता ही है, जैसे आपने किसी को कहते हुए सुना होगा "मुफ्त में कोई दे, तो ज़हर भी खा लें", वहीं किसी को कहते हुए सुना होगा "मुफ्त में कोई दवा भी न लें, सलाह तो दूर की बात"। हम मुफ्त में मिला ज़हर खा सकते हैं, लेकिन मुफ्त में मिली एक सही सलाह कभी निगलना नहीं चाहेंगे। फिर भी मुझ जैसे पागलों की देश में कमी नहीं, जो मुफ्त की सलाह देने में यकीन रखते हैं, जबकि वो जानते हैं कि मुफ्त की सलाह मानने वाले बहुत कम लोग हैं। इसकी स्थिति वैसी ही है जैसे किसी के प्रति सकारात्मक नजरिया, कोई आपसे कहे वो व्यक्ति बुरा है, आप नि:संदेह मान लेंगे, लेकिन अगर कोई कहे बहुत अच्छा है तो संदेह प्रकट हो जाएगा, स्वर्ग को लेकर संदेह हमेशा ही रहा है, लेकिन नरक को लेकर कोई संदेह नहीं। मानो लो आप अपनी मस्त कार में जा रहे हैं, कार में बैठे हुए आप केवल कार के भीतर ही निगाहें रखें लाजमी तो नहीं, आप बाहर की ओर की देख रहें होते हैं, कार की जगह बस भी मान सकते हैं कोई फर्क नहीं पड़ता। आपको बाहर रोड़ पर एक महिला के पास खड़ा एक रोता हुआ बच्चा दिखाई पड़ता है, और वो रो रहा है, वो बहुत गंदा द

तेरे इंतजार में

चित्र
नागदा के रेलवे स्टेशन का  एक दृश्य /फोटो: कुलवंत हैप्पी आँखें बूढ़ी हो गई, तेरे इंतजार में और पैर भी जवाब दे चुके हैं फिर भी दौड़ पड़ती हूँ डाकिए की आवाज सुनकर शायद कोई चिट्ठी हो मेरे नाम की जिसे लिखा तुमने हो हर दफा निराश होकर लौटती हूँ दरवाजे से रेल गाड़ी की कूक सुनते दौड़ पड़ती हूँ रेलवे स्टेशन की ओर शायद अतिथि बनकर तुम पधारो, और मैं तेरा स्वागत करूँ तुम उजड़ी का भाग सँवारो वहाँ भी मिलती है तन्हाई बस स्टेंड पर तो हर रोज आती हैं बसें ही बसें पर वो बस नहीं आती जिस पर से तुम उतरो सुना है मैंने एअरपोर्ट पर उतरते हैं हररोज कई हवाई जहाज पर तुम्हारा जहाज उड़ता क्यों नहीं उतरने के लिए वक्त की कैंची को, क्यों मैं ही मिली हूँ कुतरने के लिए तुम्हें याद है जवानी की शिख़र दोहपर थी हाथों पर मंहेदी का रंग और बाँहों में लाल चूड़ा था कुछ महीने ही हुए थे दुल्हन बने तेरे घर का श्रृंगार बने जब तुम, कागजों के ढेर जुटाने निकल गए थे दूर सफर पर तब से अब तक इंतजार ही किया है और करती रहूँगी, अंतिम साँस तक बच्चू दे पापा, तेरी लाजो... आभार

नेता, अभिनेता और प्रचार विक्रेता

चित्र
जब हम तीनों बहन भाई छोटे थे, तब आम बच्चों की तरह हमको भी टीवी देखने का बहुत शौक था, मुझे सबसे ज्यादा शौक था। मेरे कारण ही घर में कोई टीवी न टिक सका, मैं उसके कान (चैनल ट्यूनर) मोड़ मोड़कर खराब कर देता था। पिता को अक्सर सात बजे वाली क्षेत्रिय ख़बरें सुनी होती थी, वो सात बजे से पहले ही टीवी शुरू कर लेते थे, लेकिन जब कभी हमें टीवी देखते देखते देर रात होने लगती तो बाहर सोने की कोशिश कर रहे पिता की आवाज आती,"कंजरों बंद कर दो, इन्होंने तो पैसे कमाने हैं, तुम्हें बर्बाद कर देंगे टीवी वाले"। तब पिता की बात मुझे बेहद बुरी लगती, लगे भी क्यों न टीवी मनोरंजन के लिए तो होता है, और अगर कोई वो भी न करने दे तो बुरा लगता ही है, लेकिन अब इंदौर में पिछले पाँच माह से अकेला रह रहा हूँ, घर में केबल तार भी है, मगर देखने को मन नहीं करता, क्योंकि पिता की कही हुई वो कड़वी बात आज अहसास दिलाती है कि देश के नेता, अभिनेता और अब प्रचार विक्रेता (न्यूज चैनल) भी देश की जनता को उलझाने में लगे हुए हैं। आज 24 घंटे 7 दिन निरंतर चलने वाले न्यूज चैनल वो सात बजे वाली खबरों सी गरिमा बरकरार नहीं रख पा रहे, पहले जनता को

कुछ क्षणिकाओं की पोटली से

चित्र
1. हम भी दिल लगाते, थोड़ा सा सम्हल पढ़ी होती अगर, जरा सी भी रमल -: रमल- भविष्य की घटनाएं बताने वाली विद्या (2) मुश्किलों में भले ही अकेला था मैं, खुशियों के दौर में, ओपीडी के बाहर खड़े मरीजों से लम्बी थी मेरे दोस्तों की फेहरिस्त। ओपीडी-out patient department (3) खुदा करे वो भी शर्म में रहें और हम भी शर्म में रहें ताउम्र वो भी भ्रम में रहें और हम भी भ्रम में रहें बेशक दूर रहें, लेकिन मुहब्बत के पाक धर्म में रहें पहले वो कहें, पहले वो कहें हम इस क्रम में रहें (4) मत पूछ हाल-ए-दिल क्या बताऊं, बस इतना कह देता हूँ खेतिहर मजदूर का नंगा पाँव देख लेना तूफान के बाद कोई गाँव देख लेना (5) मुहब्बत के नाम पर जमाने ने लूटा है कई दफा मुहब्बत में पहले सी रवानगी लाऊं कैसे (6) औरत को कब किसी ने नकारा है मैंने ही नहीं, सबने औरत को कभी माँ, कभी बहन, कभी बुआ, कभी दादी, कभी नानी, तो कभी देवी कह पुकारा है। सो किओं मंदा आखिए, जितु जन्महि राजान श्री गुरू नानक देव ने उच्चारा है। वो रोया उम्र भर हैप्पी, जिसने भी औरत को धिधकारा है। (7) मोहब्बत मेरी तिजारत नहीं, प्रपोज कोई

आओ करते हैं कुछ परे की बात

चित्र
विज्ञापन बहुत रो लिए किसी को याद कर नहीं करनी, अब मरे की बात खिलते हुए फूल, पेड़ पौधे बुला रहे छोड़ो सूखे की, करो हरे की बात आलम देखो, सोहणी की दीवानगी का कब तक करते रहेंगे घड़े की बात आओ खुद लिखें कुछ नई इबारत बहुत हुई देश के लिए लड़े की बात चर्चा, बहस में ही गुजरी जिन्दगी आओ करते हैं कुछ परे की बात सोहणी- जो अपने प्रेमी महीवाल को मिलने के लिए कच्चे घड़े के सहारे चेनाब नदी में कूद गई थी, और अधर में डूब गई थी। परे की बात : कुछ हटकर.. आभार

कंधे बदलते देखे

चित्र
चिता पर तो अक्सर लाशें जलती हैं दोस्तो, मैंने तो जिन्दा इंसान चिंता में जलते देखे। तब जाना, जरूरत न पैरों की चलने के लिए जब भारत में कानून बिन पैर चलते देखे। फरेबियों को जफा भी रास आई दुनिया में, सच्चे दिल आशिक अक्सर हाथ मलते देखे। सुना था मैंने, चार कंधों पर जाता है इंसाँ मगर, कदम दर कदम कंधे बदलते देखे। कुछ ही थे, जिन्होंने बदले वक्त के साँचे वरना हैप्पी, मैंने लोग साँचों में ढलते देखे।  चलते चलते : प्रिय मित्र जनक सिंह झाला की कलम से निकले कुछ अल्फाज। हमारे जनाजे को उठाने वाले कंधे बदले, रूह के रुकस्त होने पै कुछ रिश्ते बदले, एक तेरा सहारा काफी था मेरे दोस्त, वरना, जिंदगी में कुछ लोग अपने आपसे बदले। आभार

मिलन से उत्सव तक

चित्र
तु मने मुझे गले से लगा लिया पहले की भांति फिर अपना लिया न कोई गिला किया, ना ही शिकवा शिकायत ना ही दी मुझे कोई हिदायत बस पकड़कर चूम लिया मुझे मानो तुम, मेरे ही इंतजार में थे तुम सच जानो, मैं इस स्पर्श को भूल सा गया था किसी के किए हुए एहसान की तरह मैं भी उलझकर रह गया था मायावी जाल में आम इंसान की तरह मगर आज मेरे कदम मुझे खींच लाए छत्त की ओर मुझे ऐसा खींचा, जैसे पतंग खींचे डोर छत्त पर आते ही मुझे, तुमने प्रकाशमयी बाँहों में भर लिया तेरे इस स्पर्श ने जगा डाला मेरी सोई आत्मा को तेरे प्रकाश की किरणें बूँदें बन बरसने लगी मेरे रूह की बंज़र जमीं फिर से हरी भरी हो गई तुमने मुझे जैसे ही छूआ, हवाओं ने पत्तों से टकराकर वैसे ही संगीत बना डाला पंछियों ने सुर में गाकर तेरे मेरे मिलन को उत्सव बना डाला। तेरे प्रकाश ने भीतर का अंधकार मिटा दिया, जैसे लहरों ने नदी के किनारे लिखे नाम। इस रचना द्वारा मैंने सूर्य और मानवी प्रेम को दर्शाने की कोशिश की है। दोनों के बीच के रिश्ते को दर्शाने की कोशिश। सूर्य और मानव में भी एक प्रेमी प्रेमिका का रिश्ता है, लेकिन प्रेम शून्य की अवस्था म

मन की बातें...जो विचार बन गई

चित्र
हँ सता हुआ चेहरा, खिलता हुआ फूल, उगता हुआ सूर्य व बहता हुआ पानी रोज देखने की आदत डालो। मुस्कराना आ जाएगा। -: कुलवंत हैप्पी ई श्वर को आज तक किसी ने परिभाषित नहीं, लेकिन जो मैंने जाना, वो ईश्वर हमारे भीतर है, और कला ही उसका असली रूप है। तुम्हारी कला ही तुम को सुख शांति यश और समृद्धि दे सकती है। जो तुम ईश्वर से पाने की इच्छा रखते हो। -: कुलवंत हैप्पी बॉ स की झूठी जी-हजूरी से अच्छा है, किसी गरीब को सच्चे दिल से थैंक्स कहना। क्योंकि यहाँ प्रकट किया धन्यवाद तुम्हें आत्मिक शांति देगा। -: कुलवंत हैप्पी अ गर इंवेस्टमेंट करना ही है, तो क्यों न प्रेम किया जाए, ताकि जब रिटर्न हो, तो हमें कागज के चंद टुकड़ों से कुछ बेहतर मिले। :-कुलवंत हैप्पी हे ईश्वर, जो भी तुमने मुझे दिया, वो मेरे लिए अत्यंत दुर्लभ है। मैं उसके लिए तेरा सदैव शुक्रिया अदा करता हूँ। :-कुलवंत हैप्पी आभार

कुछ टुकड़े शब्दों के

चित्र
(1) तेरे नेक इरादों के आगे, सिर झुकाना नहीं पड़ता खुद ब खुद झुकता है ए मेरे खुदा। (2) मेरे शब्द तो अक्सर काले थे, बिल्कुल कौए जैसे, फिर भी उन्होंने कई रंग निकाल लिए। (3) कहीं जलते चिराग-ए-घी तो कहीं तेल को तरसते दीए देखे। (4) एक बार कहा था तेरे हाथों की लकीरों में नाम नहीं मेरा, याद है मुझे आज भी, लहू से लथपथ वो हाथ तेरा (5) पहले पहल लगा, मैंने अपना हारा दिल, फिर देखा, बदले में मिला प्यारा दिल। (6) दामन बचाकर रखना जवानी में इश्क की आग से घर को आग लगी है अक्सर घर के चिराग से कह गया एक अजनबी राहगीर चलते चलते लक्ष्य पर रख निगाह एकलव्य की तरह जो भी कर अच्छा कर एक कर्तव्य की तरह कह गया एक अजनबी राहगीर चलते चलते जितनी चादर पैर उतने पसारो, मुँह दूसरी की थाली में न मारो  कह गया एक अजनबी राहगीर चलते चलते कबर खोद किसी ओर के लिए वक्त अपना जाया न कर कहना है काम जमाने का, बात हर मन को लगाया न कर कह गया एक अजनबी राहगीर चलते चलते आ भार

आओ चलें आनंद की ओर

चित्र
हिन्दुस्तान में एक परंपरा सदियों से चली आ रही है, बचपन खेल कूद में निकल जाता, और जवानी मस्त मौला माहौल के साथ। कुछ साल परिवार के लिए पैसा कमाने में, अंतिम में दिनों में पूजा पाठ करना शुरू हो जाता है, आत्मशांति के लिए। हम सारी उम्र निकाल देते हैं, आत्म को रौंदने में और अंत सालों में हम उस आत्म में शांति का वास करवाना चाहते हैं, कभी टूटे हुए, कूचले हुए फूल खुशबू देते हैं, कभी नहीं। टूटे हुए फूल को फेवीक्विक लगाकर एक पौधे के साथ जोड़ने की कोशिश मुझे तो व्यर्थ लगती है, शायद किसी को लगता हो कि वो फूल जीवित हो जाएगा। और दूसरी बात। हमने बुढ़ापे को अंतिम समय को मान लिया, जबकि मौत आने का तो कोई समय ही नहीं, मौत कभी उम्र नहीं देखती। जब हम बुढ़ापे तक पहुंच जाते हैं, तब हमें क्यों लगने लगता है हम मरने वाले हैं, इस भय से हम क्यों ग्रस्त हो जाते हैं। क्या हमने किसी को जवानी में मरते हुए नहीं देखा? क्या कभी हमने नवजात को दम तोड़ते हुए नहीं देखा? क्या कभी हमने किशोरावस्था में किसी को शमशान जाते हुए नहीं देखा? फिर ऐसा क्यों सोचते हैं  कि बुढ़ापा अंतिम समय है, मैंने तो लोगों को 150 वर्ष से भी ज्यादा जीते हुए