18 वर्ष बाद भी नहीं मिला इंसाफ
राजीव गांधी की पुण्यतिधि पर
18 की उम्र में कदम रखते ही एक भारतीय को मताधिकार हासिल हो जाता है, इंसान किशोरावस्था पार कर यौवन में कदम रखता है, 18 साल का सफर कोई कम नहीं होता, इस दौरान इंसान जिन्दगी में कई उतार चढ़ाव देख लेता है, लेकिन अफसोस की बात है कि 18 साल बाद भी कांग्रेस स्व.राजीव गांधी को केवल एक श्रृद्धांजलि भेंट कर रही है, इन 18 सालों में हिंदुस्तान की सरकारें उस साजिश का पर्दाफाश नहीं कर पाई, जिसके तहत आज से डेढ़ दशक पहले 21 मई 1991 को तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में एक जनसभा के दौरान लिट्टे के एक आत्मघाती हमलावर ने राजीव गांधी की सांसें छीन ली थी. वो हमला एक नेता पर नहीं था, बल्कि पूरे देश के सुरक्षातंत्र को ठेंगा दिखाना था, मगर हिंदुस्तानी सरकारें आई और चली गई, मगर राजीव गांधी की हत्या के पीछे कौन लोग थे, आज भी एक रहस्य है. सच सामने भी आ जाता लेकिन राजीव गांधी की 18वीं पुण्यतिथि से पहले ही श्रीलंकाई सेनाओं ने कुख्यात हिंसक आंदोलन के नेतृत्वकर्ता लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) प्रमुख वेलुपिल्लई प्रभाकरण को सदा के लिए चुप करवा दिया.हत्या के पीछे जिसका सबसे ज्यादा हाथ मानना जा रहा था,अब तो लगता है कि सच भी प्रभाकरन के साथ दफन हो गया. राजीव की हत्या के पिछे केवल लिट्टे का हाथ है, इतना कह देना सत्य नहीं, क्योंकि देश में आज भी ऐसे सीबीआई सेवामुक्त अधिकारी जीवंत हैं, जिनको अहसास था कि राजीव गांधी के साथी ही उसके साथ विश्वासघात करेंगे, जिसके बारे में उन्होंने राजीव गांधी को सूचित किए जाने का दावा भी किया. मगर जांच वहीं पर खड़ी है, क्या दूसरा कार्यकाल शुरू करने वाली मनमोहन सिंह की सरकार 23वीं पुण्यतिथि से पहले सच तक पहुंच पाएगी ?. अगर देश के प्रधान मंत्री की हत्या का सच सामने लाने में इतने साल लग सकते है तो आम आदमी की स्थिति क्या होगी ? राजीव गांधी की हत्या के दिन जन्में हुए बच्चे अब युवा हो गए है, उनको मताधिकार मिल जाएगा, जो राजीव गांधी की ही देन है, लेकिन राजीव को इंसाफ कब मिलेगा.
18 की उम्र में कदम रखते ही एक भारतीय को मताधिकार हासिल हो जाता है, इंसान किशोरावस्था पार कर यौवन में कदम रखता है, 18 साल का सफर कोई कम नहीं होता, इस दौरान इंसान जिन्दगी में कई उतार चढ़ाव देख लेता है, लेकिन अफसोस की बात है कि 18 साल बाद भी कांग्रेस स्व.राजीव गांधी को केवल एक श्रृद्धांजलि भेंट कर रही है, इन 18 सालों में हिंदुस्तान की सरकारें उस साजिश का पर्दाफाश नहीं कर पाई, जिसके तहत आज से डेढ़ दशक पहले 21 मई 1991 को तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में एक जनसभा के दौरान लिट्टे के एक आत्मघाती हमलावर ने राजीव गांधी की सांसें छीन ली थी. वो हमला एक नेता पर नहीं था, बल्कि पूरे देश के सुरक्षातंत्र को ठेंगा दिखाना था, मगर हिंदुस्तानी सरकारें आई और चली गई, मगर राजीव गांधी की हत्या के पीछे कौन लोग थे, आज भी एक रहस्य है. सच सामने भी आ जाता लेकिन राजीव गांधी की 18वीं पुण्यतिथि से पहले ही श्रीलंकाई सेनाओं ने कुख्यात हिंसक आंदोलन के नेतृत्वकर्ता लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (लिट्टे) प्रमुख वेलुपिल्लई प्रभाकरण को सदा के लिए चुप करवा दिया.हत्या के पीछे जिसका सबसे ज्यादा हाथ मानना जा रहा था,अब तो लगता है कि सच भी प्रभाकरन के साथ दफन हो गया. राजीव की हत्या के पिछे केवल लिट्टे का हाथ है, इतना कह देना सत्य नहीं, क्योंकि देश में आज भी ऐसे सीबीआई सेवामुक्त अधिकारी जीवंत हैं, जिनको अहसास था कि राजीव गांधी के साथी ही उसके साथ विश्वासघात करेंगे, जिसके बारे में उन्होंने राजीव गांधी को सूचित किए जाने का दावा भी किया. मगर जांच वहीं पर खड़ी है, क्या दूसरा कार्यकाल शुरू करने वाली मनमोहन सिंह की सरकार 23वीं पुण्यतिथि से पहले सच तक पहुंच पाएगी ?. अगर देश के प्रधान मंत्री की हत्या का सच सामने लाने में इतने साल लग सकते है तो आम आदमी की स्थिति क्या होगी ? राजीव गांधी की हत्या के दिन जन्में हुए बच्चे अब युवा हो गए है, उनको मताधिकार मिल जाएगा, जो राजीव गांधी की ही देन है, लेकिन राजीव को इंसाफ कब मिलेगा.
bahut dukh hota hai kya pata ye sach kabhi koi jan bhi payega?rajiv gandhi ji ke liye vinamr shardhanjali
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