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कहीं विलेन न बन जाएं

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बरिया की नई नई नौकरी लगी थी। बरिया बेहद मेहनती युवा था। काम के प्रति इतना ईमानदार कि पूछो मत, लेकिन बरिया जहां नौकरी करता था, वहां कुछ कम चोर भी थे। बरिया साधारण युवा नहीं जानता था कि जमाना बदल चुका है। मक्‍खनबाजों का जमाना है। काम वालों की भी जरूरत है, क्‍यूंकि घोड़ों की भीड़ में गधे भी चलते हैं। बरिया सबसे अधिक काम करता। वो हर रोज अपने हमरुतबाओं से अधिक वर्क काम करता, जैसे गधा कुम्‍हार के लिए। मगर कुछ दिनों बाद बरिया निराश रहने लगा। उसको लगा, उसके साथी सारा दिन गपशप मारते हैं, वो कार्य करता है, लेकिन उसका बॉस उसको उतना ही मानता है, जितना के उसके हमरुतबाओं को। बरिया उदास परेशान कई दिनों तक तो रहा, लेकिन अब उसके भीतर बैठा इंसान सब्र खोने लगा। वो कुछ भी बर्दाशत करने को तैयार नहीं था। वो अगले दिन बॉस के टेबल पर पहुंचा। उसने अपने हमरुतबाओं के कार्यशैली की भरपूर निंदा की, जो उसका बॉस अच्‍छी तरह पहले से जानता था। बॉस भी मन ही मन में सोच रहा था, अगर वो काम करने लायक होते तो तेरी जरूरत किसे थी। बॉस ने ध्‍यान से शिकायत को सुना। इस दिन के बाद बरिया को शिकायतों की लत लग गई। छोटी छोटी बातों पर

बुजुर्ग की खुशी का रहस्य

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मैं कभी नहीं भूल सकता, एक बड़ा सा घर, और वो बुजुर्ग, जो सुबह सुबह मुझे गैलरी में खड़ा मिलता है। मैं उसको देखता हूँ, वो मुझे देखता है। हल्की सी मुस्कान का आदान प्रदान होता है दोनों में, और फिर मैं आगे बढ़ जाता हूँ, बिना कुछ बोले। इस तरह की वार्तालाप कई दिनों तक चलती है हम दोनों में, लेकिन एक दिन होठों की मुस्कान छोटे से बोलते संवाद में बदलती है, और मैं पूछ बैठता हूँ, आपकी खुशी का राज क्या है? मैं जानना चाहता हूँ, दुनिया में मुझे हर शख्स दुखी मिलता है, लेकिन आपका चेहरा देखते ही दुनिया भर के दुखी लोग मेरी आँख से ओझल हो जाते हैं, क्यों?। जवाब में वो बुजुर्ग उंगली का इशारा सामने की ओर करता है, यहाँ पर सरकारी जमीं पर एक झुग्गी बनी हुई है, जिसमें कम से कम पाँच लोग रहते हैं मुर्गे मुर्गियों (कॉक एंड हैनकॉक) के साथ।

इससे बड़ी दुर्घटना क्या होगी?

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लेखक कुलवंत हैप्पी जिन्दगी सफर थी, लेकिन लालसाओं ने इसको रेस बनाकर रख दिया। जब सफर रेस बनता है तो रास्ते में आने वाली सुंदर वस्तुओं का हम कभी लुत्फ नहीं उठा पाते, और जब हम दौड़ते दौड़ते थक जाते हैं अथवा एक मुकाम पर पहुंचकर पीछे मुड़कर देखते हैं तो बहुत कुछ छूटा हुआ नजर आता है। उसको देखकर हम फिर पछताने लगते हैं, और हमें हमारी जीत भी अधूरी सी लगती है। अगर जिन्दगी को सफर की तरह लेते और रफतार धीमे रखते तो शायद मंजिल तक पहुंचने में देर होती, लेकिन दुर्घटना न होती। उससे बड़ी दुर्घटना क्या होगी, रूह का दमन हो जाए, और हड्डियों का साँचा बचा रह जाए। जिन्दगी जैसे खूबसूरत सफर को हम दौड़ बनाकर रूह का दमन ही तो करते हैं, जिसका अहसास हमको बहुत देर बाद होता है। जो इस अहसास को देर होने से पहले महसूस कर लेते हैं, वो इस सफर के पूर्ण होने पर खुशी से भरे हुए होते हैं, उनके मन में अतीत के लिए कोई पछतावा नहीं होता। पिछले दिनों बीबीसी की हिन्दी वेबसाईट पर रेणु अगाल का भूटान डायरी सिरलेख से लिखा एक लेख पढ़कर इसलिए अच्छा लगा क्योंकि उन्होंने अपने लेख के मार्फत दुनिया के विकासशील देशों को आईना दिखाने की कोशिश क

चर्चा विराम का नुस्खा : अधजल गगरी छलकत जाय

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लेखक कुलवंत हैप्पी   यह कहावत तब बहुत काम लगती है, जब खुद को ज्ञानी और दूसरे को मूर्ख साबित करना चाहते हों। अगर आप चर्चा करते हुए थक जाएं तो इस कहावत को बोलकर चर्चा समाप्त भी कर सकते हैं मेरी मकान मालकिन की तरह। जी हाँ, मेरी जब जब भी मेरी मकान मालकिन के साथ किसी मुद्दे पर चर्चा होती है तो वे अक्सर इस कहावत को बोलकर चर्चा को विराम दे देती है। इसलिए अक्सर मैं भी चर्चा से बचता हूँ, खासकर उसके साथ तो चर्चा करने से, क्योंकि वो चर्चा को बहस बना देती है, और आखिर में उक्त कहावत का इस्तेमाल कर चर्चा को समाप्त करने पर मजबूर कर देती है। मुझे लगता है कि चर्चा और बहस में उतना ही फर्क है, जितना जल और पानी में या फिर आईस और स्नो में। कभी किसी ने सोचा है कि सामने वाला अधजल गगरी है, हम कैसे फैसला कर सकते हैं? क्या पता हम ही अधजल गगरी हों? मुझे तो अधजल गगरी में भी कोई बुराई नजर नहीं आती। कुछ लोगों की फिदरत होती है, हमेशा सिक्के के एक पहलू को देखने की। कभी किसी ने विचार किया है कि अधजल गगरी छलकती है तो सारा दोष उसका नहीं होता, कुछ दोष तो हमारे चलने में भी होगा। मुझे याद है, जब खेतों में पानी वाला

नित्यानंद सेक्स स्केंडल के बहाने कुछ और बातें

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लेखक कुलवंत हैप्पी नई दिल्ली से इंदौर तक आने वाली मालवा सुपरफास्ट रेलगाड़ी की यात्रा को मैं कभी नहीं भूल सकता, अगर भूल गया तो दूसरी बार उसमें यात्रा करने की भूल कर बैठूँगा। इस यात्रा को न भूलने का एक और दूसरा भी कारण है। वो है, हमारे वाले कोच में एक देसी साधू और उसकी विदेशी चेली का होना। साधू चिलम सूटे का खाया हुआ 32 साल का लग रहा था, जबकि उसके साथ साधुओं का चोला पहने बैठी वो लड़की करीबन 25-26 की होगी। उन दोनों की जोड़ी पूरे कोच मुसाफिरों का ध्यान खींच रही थी, हर कोई देखकर मेरी तरह शायद हैरत में पड़ा सोच रहा था कि आखिर ऐसी कौन सी नौबत आई होगी कि भरी जवानी में साधुओं का साथ पसंद आ गया, और वो भी चिलमबाज साधु का। मैं एक और बात भी सोच रहा था कि अगर एक महिला साथी ही चाहिए तो गृहस्थ जीवन में क्या बुराई है? जिसको त्यागकर लोग साधु सन्यासी बन जाते हैं। शायद जिम्मेदारियों से भाग खड़े होने का सबसे अच्छा तरीका है साधु बन जाना। स्वर्ग सा गृहस्थ जीवन छोड़कर पहले साधु बनते हैं, फिर समाधि छोड़कर संभोग की तरफ आते हैं, और जन्म देते हैं सेक्स स्केंडल को। स्वामी नित्यानंद जी आजकल सेक्स स्केंडल के कारण ही त

जीत है डर के आगे

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लेखक कुलवंत हैप्पी ड्यू के टीवी विज्ञापन की टैग-लाईन 'डर के आगे जीत है' मुझे बेहद प्रभावित करती है, नि:संदेह औरों को भी करती होगी। सच कहूँ तो डर के आगे ही जीत है, जीत को हासिल करने के लिए डर को मारना ही पड़ेगा, वरना डर तुम को खा जाएगा। पिछले दिनों रिलीज हुई फिल्म "माई नेम इज खान" में एक संवाद है 'डर को इतना मत बढ़ने दो कि डर तुम्हें खा जाए'। असलियत तो यही है कि डर ने मनुष्य को खा ही लिया है, वरना मनुष्य जैसी अद्भुत वस्तु दुनिया में और कोई नहीं। मौत का डर, पड़ोसी की सफलता का डर, असफल होने का डर, भगवान द्वारा शापित कर देने का डर, जॉब चली जाने का डर, गरीब होने का डर, बीमार होने का डर। सारा ध्यान डर पर केंद्रित कर दिया, जो नहीं करना चाहिए था। एक बार मौत के डर को छोड़कर जिन्दगी को गले लगाने की सोचो। एक बार मंदिर ना जाकर किसी भूखे को खाना खिलाकर देखो। एक बार असफलता का डर निकालकर प्रयास करके देखो। असफलता नामक की कोई चीज ही नहीं दुनिया में, लोग जिसे असफलता कहते हैं वो तो केवल अनुभव। अगर थॉमस अलवा एडीसन असफलता को देखता, तो वो हजारों बार कोशिश ना करता और कभी बल्ब

ओशो सेक्स का पक्षधर नहीं

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लेखक कुलवंत हैप्पी खेतों को पानी दे रहा था, और खेतों के बीचोबीच एक डेरा है, वैसे पंजाब के हर गाँव में एकाध डेरा तो आम ही मिल जाएगा। मेरे गाँव में तो फिर भी चार चार डेरे हैं, रोडू पीर, बाबा टिल्ले वाला, डेरा बाबा गंगाराम, जिनको मैंने पौष के महीने में बर्फ जैसे पानी से जलधारा करवाया था, रोज कई घड़े डाले जाते थे उनके सिर पर, और जो डेरा मेरे खेतों के बीचोबीच था, उसका नाम था डेरा बाबा भगवान दास। गाँव वाले बताते हैं कि काफी समय पहले की बात है, गाँव में बारिश नहीं हो रही थी, लोग इंद्र देव को खुश करने के लिए हर तरह से प्रयास कर रहे थे, लेकिन इंद्रदेव बरसने को तैयार ही नहीं था। दुखी हुए लोग गाँव में आए एक रमते साधु भगवान दास के पास चले गए। उन्होंने उनसे बेनती बगैरह किया।

ह्यूमन एंटी वायरस

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हर बात को लेकर विरोधाभास तो रहता ही है, जैसे आपने किसी को कहते हुए सुना होगा "मुफ्त में कोई दे, तो ज़हर भी खा लें", वहीं किसी को कहते हुए सुना होगा "मुफ्त में कोई दवा भी न लें, सलाह तो दूर की बात"। हम मुफ्त में मिला ज़हर खा सकते हैं, लेकिन मुफ्त में मिली एक सही सलाह कभी निगलना नहीं चाहेंगे। फिर भी मुझ जैसे पागलों की देश में कमी नहीं, जो मुफ्त की सलाह देने में यकीन रखते हैं, जबकि वो जानते हैं कि मुफ्त की सलाह मानने वाले बहुत कम लोग हैं। इसकी स्थिति वैसी ही है जैसे किसी के प्रति सकारात्मक नजरिया, कोई आपसे कहे वो व्यक्ति बुरा है, आप नि:संदेह मान लेंगे, लेकिन अगर कोई कहे बहुत अच्छा है तो संदेह प्रकट हो जाएगा, स्वर्ग को लेकर संदेह हमेशा ही रहा है, लेकिन नरक को लेकर कोई संदेह नहीं। मानो लो आप अपनी मस्त कार में जा रहे हैं, कार में बैठे हुए आप केवल कार के भीतर ही निगाहें रखें लाजमी तो नहीं, आप बाहर की ओर की देख रहें होते हैं, कार की जगह बस भी मान सकते हैं कोई फर्क नहीं पड़ता। आपको बाहर रोड़ पर एक महिला के पास खड़ा एक रोता हुआ बच्चा दिखाई पड़ता है, और वो रो रहा है, वो बहुत गंदा द

मन की बातें...जो विचार बन गई

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हँ सता हुआ चेहरा, खिलता हुआ फूल, उगता हुआ सूर्य व बहता हुआ पानी रोज देखने की आदत डालो। मुस्कराना आ जाएगा। -: कुलवंत हैप्पी ई श्वर को आज तक किसी ने परिभाषित नहीं, लेकिन जो मैंने जाना, वो ईश्वर हमारे भीतर है, और कला ही उसका असली रूप है। तुम्हारी कला ही तुम को सुख शांति यश और समृद्धि दे सकती है। जो तुम ईश्वर से पाने की इच्छा रखते हो। -: कुलवंत हैप्पी बॉ स की झूठी जी-हजूरी से अच्छा है, किसी गरीब को सच्चे दिल से थैंक्स कहना। क्योंकि यहाँ प्रकट किया धन्यवाद तुम्हें आत्मिक शांति देगा। -: कुलवंत हैप्पी अ गर इंवेस्टमेंट करना ही है, तो क्यों न प्रेम किया जाए, ताकि जब रिटर्न हो, तो हमें कागज के चंद टुकड़ों से कुछ बेहतर मिले। :-कुलवंत हैप्पी हे ईश्वर, जो भी तुमने मुझे दिया, वो मेरे लिए अत्यंत दुर्लभ है। मैं उसके लिए तेरा सदैव शुक्रिया अदा करता हूँ। :-कुलवंत हैप्पी आभार

आओ चलें आनंद की ओर

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हिन्दुस्तान में एक परंपरा सदियों से चली आ रही है, बचपन खेल कूद में निकल जाता, और जवानी मस्त मौला माहौल के साथ। कुछ साल परिवार के लिए पैसा कमाने में, अंतिम में दिनों में पूजा पाठ करना शुरू हो जाता है, आत्मशांति के लिए। हम सारी उम्र निकाल देते हैं, आत्म को रौंदने में और अंत सालों में हम उस आत्म में शांति का वास करवाना चाहते हैं, कभी टूटे हुए, कूचले हुए फूल खुशबू देते हैं, कभी नहीं। टूटे हुए फूल को फेवीक्विक लगाकर एक पौधे के साथ जोड़ने की कोशिश मुझे तो व्यर्थ लगती है, शायद किसी को लगता हो कि वो फूल जीवित हो जाएगा। और दूसरी बात। हमने बुढ़ापे को अंतिम समय को मान लिया, जबकि मौत आने का तो कोई समय ही नहीं, मौत कभी उम्र नहीं देखती। जब हम बुढ़ापे तक पहुंच जाते हैं, तब हमें क्यों लगने लगता है हम मरने वाले हैं, इस भय से हम क्यों ग्रस्त हो जाते हैं। क्या हमने किसी को जवानी में मरते हुए नहीं देखा? क्या कभी हमने नवजात को दम तोड़ते हुए नहीं देखा? क्या कभी हमने किशोरावस्था में किसी को शमशान जाते हुए नहीं देखा? फिर ऐसा क्यों सोचते हैं  कि बुढ़ापा अंतिम समय है, मैंने तो लोगों को 150 वर्ष से भी ज्यादा जीते हुए

धन्यवाद के बाद थप्पड़ रसीद

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मोटर साईकल पर सवार होकर मैं और मेरा मित्र जनकसिंह झाला रेलवे स्टेशन की तरफ जा रहे थे। सड़क पर मोटर कारों के अलावा काफी साईकिल भी चल रहे थे। उन साइकिलों को देखते ही एक किस्सा याद आ गया मेरे मित्र को, जैसे किसी बच्चे को खेलते देखकर हमारी आँखों के सामने हमारा बचपन जीवंत हो जाता है। उसने चलते चलते मुझे बताया कि जब वो नया नया साईकिल चलाना सीखा था, तो एक दिन अचानक उसका साईकिल एक बूढ़ी महिला से टकरा गया, वो महिला धड़म्म से जमीं पर गिरी। वो भागने की बजाय उस महिला को खड़ी कर उसके घर तक छोड़ने गया, जिसका घर में पास ही था। घर पहुंचे तो माँ के साथ हुए हादसे की बात सुनकर उस बूढ़ी महिला के बेटे ने सबसे पहले मेरे मित्र को धन्यवाद किया, क्योंकि वो उसकी माता को उसके घर तक छोड़ने आया था। और तुरंत ही पूछा,"माँ जिसने तुम्हारे बीच साईकिल मारा, वो कौन था?"। माँ ने कहा, "इसका ही साइकिल था, जो मुझे घर तक छोड़ने आया है"। उस नौजवान लड़के ने जितने प्यार के साथ धन्यवाद कहा था, उतनी ही बेरहमी से घर छोड़ने गए मेरे मित्र की गाल पर थप्पड़ रसीद कर दिया। वास्तव में हमारी अहिंसा, हमारी धार्मिकता और हमारी कृतज्ञ

"स्वप्न दिवस" और "सपनों की बात"

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दुनिया में इंसान दो तरह के होते हैं। इस वाक्य को माय नेम इज खान में सुना होगा या उससे पहले भी कई दफा सुना होगा। वैसे देखा जाए तो सिक्के के भी दो पहलू होते हैं, लेकिन मैं बात करने जा रहा हूँ सपनों की, क्योंकि 11 मार्च को ड्रीम डे है मतलब स्वप्न दिवस। इंसान की तरह सपनों की भी दो किस्में होती हैं, एक जो रात को आते हैं, और दूसरे जो हम सब दिन में संजोते हैं। रात को मतलब नींद में आने वाले सपने बिन बुलाए अतिथि जैसे होते हैं। सुखद भी, दुखद भी। लेकिन जो खुली आँख से सपने हम सब देखते हैं, वो किसी मंजिल की तरफ चलने के लिए, कुछ बनने के लिए, कुछ कर गुजरने के लिए प्रेरित करते हैं। कुछ लोगों कहते हैं कि स्वप्न सच नहीं होते, लेकिन अगर गौर से देखा जाए तो हर सफल इंसान कहता है कि मैंने बचपन में ऐसा ही सपना संजोया था। मुझे दोनों ही सही लगते हैं, क्योंकि जो सफल हुए वो खुली आँख से देखे हुए सपनों की बात कर रहे हैं, जो कुछ लोग कह रहे हैं कि स्वप्न सत्य नहीं होते वो नींद में अचानक आने वाले सपनों की बात कर रहे हैं। रात को आने वाले स्वप्न फिल्म जैसे होते हैं, उनमें कुछ भी घटित हो सकता है। आप अकेले किसी फिल्म

एक गुमशुदा निराकार की तलाश

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इस दुनिया में इंसान आता भी खाली हाथ है और जाता भी, लेकिन आने से जाने तक वो एक तलाश में ही जुटा रहता है। तलाश भी ऐसी जो खत्म नहीं होती और इंसान खुद खत्म हो जाता है। वो उस तलाश के साथ पैदा नहीं होता, लेकिन जैसे ही वो थोड़ा सा बड़ा होता है तो उसको उस तलाश अभियान का हिस्सा बना दिया जाता है, जिसको उसके पूर्वज, उसके अभिभावक भी नहीं मुकम्मल कर पाए, यह तलाश अभियान निरंतर चलता रहता है। जिसकी तलाश है, उसका कोई रूप ही नहीं, कुछ कहते हैं कि वो निराकार है। कितनी हैरानी की बात है इंसान उसकी तलाश में है, जिसका कोई आकार ही नहीं। इस निराकार की तलाश में इंसान खत्म हो जाता है, लेकिन उसका अभियान खत्म नहीं होता, क्योंकि उसने अपने खत्म होने से पहले इस तलाश अभियान को अपने बच्चों के हवाले कर दिया, जिस भटकन में वो चला गया, उसकी भटकन में उसके बच्चे भी चले जाएंगे। ऐसा सदियों से होता आ रहा है, और अविराम चल भी रहा है तलाश अभियान। खोजना क्या है कुछ पता नहीं, वो है कैसा कुछ पता नहीं, हाँ अगर हमें पता है तो बस इतना कि कोई है जिसको हमें खोजना है। वो हमारी मदद करेगा, मतलब उसकी तलाश करो और खुद की मदद खुद करने का यत्न मत

"युवा" बनाम "तुम हवा"

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स मय के साथ साथ "युवा" शब्द का अर्थ भी बदलता जा रहा है, कल तक युवा का मतलब केवल नौजवान से था या कहें युवावस्था से, लेकिन आज युवा का अर्थ उम्मीदों का नया सवेरा और कुछ कर गुजरने वाला व्यक्ति है। "युवा" शब्द में वैसा ही परिवर्तन देखने को मिल रहा है, जैसा "प्रेम" शब्द में देखने को मिल रहा है। पहले "प्रेम" का मतलब एक लड़की और लड़के के बीच का रिश्ता, लेकिन अब प्रेम का अर्थ विशाल हो रहा है। लोग समझने लगें हैं प्रेम के असली अर्थ को, मतलब प्रेम किसी भी वस्तु से हो सकता है चाहे वो संजीव हो और चाहे वो निर्जीव। प्रेम की तरह युवा का अर्थ भी बहुत विशाल हो गया, अब युवा का अर्थ है वो व्यक्ति जो कुछ कर गुजरने का जोश या फिर लोगों की उम्मीदों को पूरा करने का इरादा रखता हो। याद करो वो समय जब अमेरिका के राष्ट्रपति पद पर बराक ओबामा बैठा था, तो क्या वो युवावस्था में था, नहीं लेकिन फिर भी लोगों ने उसको युवा की संज्ञा दी। इतना ही नहीं  35 साल का राहुल गांधी भी जनता को युवा ही नजर आता है। इसके अलावा 38 साल का जीवन बसर करने वाले श्री स्वामी विवेकानंद जी कभी युवावस्था से बा

एक संवाद, जो बदल देगा जिन्दगी

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धूप की चिड़िया मेरे आँगन में खेल रही थी, और मेरी माँ की उंगलियाँ मेरे बालों में, जो सरसों के तेल से पूरी तरह भीगी हुई थी। इतने में एक व्यक्ति घर के भीतर घुस आया, वो देखने में माँगने वाला लगता था। उसने आते ही कहा "माता जी, कुछ खाने को मिलेगा"। घर कोई आए और भूख चला जाए हो नहीं सकता था। मेरी माँ ने मेरी बहन को कहा "जाओ रसोई से रोटी और सब्जी लाकर दो"। वो रोटी और एक कटोरी में सब्जी डालकर ले आई। उसने खाना खाने के बाद और जाने से पहले कहा "मैं हाथ भी देख लेता हूं"। मेरी माँ ने मेरा हाथ आगे करते हुए कहा "इस लड़के का हाथ देकर कुछ बताओ"। उसने कहा "वो हाथ दो, ये हाथ तो लड़कियाँ दिखाती हैं"। उसने हाथ की लकीरों को गौर से देखा, फिर मेरे माथे की तरफ देखा। दोनों काम पूरे करने के बाद बोला "तुम्हारा बच्चा बहुत बड़ा आदमी बनेगा" । वो ही शब्द कहे, जो हर माँ सुनना चाहती है । पढ़ें : बंद खिड़की के उस पार उस बात को आज 14 साल हो चले हैं, उस माँ का बेटा बड़ा आदमी तो नहीं बना, लेकिन चतुर चोर बन गया , जो अच्छी चीजों को बिना स्पर्श किए चुरा लेता है। जनाब!

कल+आज= सुनहरा भविष्य

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कुछ लोगों को आपने अतीत से नफरत होती है, क्योंकि वह सोचते हैं कि अतीत को देखने से उनको उनका बीता हुआ बुरा कल याद आ जाएगा, किंतु मेरी मानो तो अतीत को इंसान नहीं संवार सकता परंतु अतीत इंसान को सीख देकर उसके आने वाले कल को जरूर सुधार सकता है। आपने अकसर सुना या पढ़ा होगा कि उसने इस सफलता के बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा, ये बहुत गलत बात होती है, लिखने वाले और सुनाने वाले को क्या पता उसने अपने हर लम्हे में अतीत को याद किया या नहीं, उसके मन में लिखते या सुनाते समय जो आया उसने लिख और सुनाया दिया, लेकिन खरा सच तो ये है कि सफल इंसान हमेशा आपने अतीत से कुछ न कुछ सीखते हुए सफलता की ओर कदम बढ़ता है। इस कहावत को मैंने तो जन्म न दिया कि 'दूध का जला, छाछ फूंक कर पीता है'। दूध का जला अतीत है, उसको पता चल गया कि दूध गर्म होगा तो मुँह फिर जलेगा। ये वाला अतीत उसका अनुभव हो गया, उसके लिए भविष्य में काम आ रहा है। अतीत में जो हुआ वो अनुभव ही होता, बस उससे कुछ सीखने की जरूरत है। जैसे कि हम जब एक बार पत्थर से ठोकर खाकर गिरते हैं तो दूसरी बार ध्यान से चलते हुए आगे बढ़ते है, हमें पता है कि जब हम गिरे थे तो वह

टीम वर्क मीन्स मोर वी एंड लैस मी

आज बात करते हैं एक और चोरी की, जो मैंने एक इंदौर के टीआई स्थित गिफ्ट शॉप में से की। बात है उस दिन की, जब मैं और मेरी छमक छल्लो घूमने के लिए घर से निकले और चलते चलते स्थानीय टीआई पहुंच गए, टीआई मतलब इंदौर का सबसे बड़ा मॉल। मेरी छमक छल्लो की नजर वहां एक गिफ्ट शॉप पर पड़ी, मेरी चोरी करने की कोई मंशा नहीं थी और नाहीं कोई गिफ्ट शिफ्ट खरीदने की, बस उसके साथ ऐसे ही चल दिया। जैसे हम दुकान के अंदर गए तो वहां पर बहुत सारे सुन्दर सुन्दर गिफ्ट पड़े हुए थे, जिनको देखकर हर इंसान की आंखें भ्रमित हो जाती और दिल ललचा जाता है। मैं भी अन्य लोगों की तरह हर गिफ्ट को बड़ी गंभीरता से देख रहा था परंतु इसी दौरान मेरी नज़र एक बड़े कॉफी पीने वाले कप पर गई, मैंने उस कप को नहीं चुराया बल्कि उसके ऊपर लिखी एक पंक्ति को चुरा लिया। वो पंक्ति 'टीम वर्क मीन्स मोर वी एंड लैस मी' ये थी। दुकान में गिफ्ट देख रही मेरी छमक छल्लो को मैंने पास बुलाया और कहा कि इस पंक्ति को पढ़कर सुनना, उसने पढ़ा और मुस्करा दिया क्योंकि वह जानती है कि मैं जानबुझकर उसको इस तरह के अच्छे संदेशवाहक वाक्य को पढ़ने को कहता हूं। दरअसल, मैंने भी जानब

विचलित होना छोड़ दो

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तुम विचलित होना छोड़ दो। सफलता तुम्हारे कदम चुम्मेगी। कुछ ऐसा ही मेरा मानना है। तुम्हारा विचलित होना, किसी और के लिए नहीं केवल स्वयं तुम्हारे के लिए नुक्सानदेह है, जैसे कि क्रोध। विचलित होना तो क्रोध से भी बुरा है। विचलित मन तुम्हारे मनोबल को खत्म करता है। जब मनोबल न बचेगा, तो तुम भी न बचोगे। खुद के अस्तित्व को बचाने के लिए तुम को विचलित होना छोड़ना होगा, तभी तुम सफलता को अर्जित पर पाओगे। आए दिन नए नए ब्लॉगर्स को बड़े जोश खरोश के साथ आते देखता हूं, लेकिन फिर वो ऐसे गायब हो जाते हैं, जैसे कि मौसमी मेंढ़क। इसके पीछे ठोस कारण उनके मन का अस्थिर अवस्था में चले जाना है। वो ब्लॉग ही इस धारणा से शुरू करते हैं कि हमसे अच्छा कोई नहीं। वो जैसे ही कोई पोस्ट डालेंगे तो टिप्पणियां ऐसे आएंगी, जैसे कि सावन मास में पानी की बूंदें। लेकिन ऐसा नहीं होता तो विचलित हो जाते हैं, और वहीं ब्लॉग अध्याय को बंद कर देते हैं। अगर उनका मन स्थिर हो जाए, और वो निरंतर ब्लॉगिंग करें तो शायद उनको सफलता मिल जाए, लेकिन पथ छोड़ने से कभी किसी को मंजिल मिली है, जो उनको मिलेगी। कई मित्र मेरे पास आते हैं, और कहते हैं कि ब्लॉग शुर

अहिंसा का सही अर्थ

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'प्रेम'। जी हां, अहिंसा का सही अर्थ प्रेम है, लेकिन समाज ने इस शब्द का दूसरा अर्थ निकाल लिया कि किसी को मारना हिंसा होता है और न मारने की अवस्था अहिंसा, लेकिन गलत है। अहिंसा का अर्थ प्रेम। महावीर ने अहिंसा शब्द का इस्तेमाल किया, उन्होंने प्रेम का इस्तेमाल नहीं किया, क्योंकि प्रेम शब्द लोगों के जेहन में उस समय काम वासना के रूप में बसा हुआ था। लेकिन बाद में ओशो ने अहिंसा को प्रेम शब्द के रूप में पेश किया, क्योंकि अब स्थिति फिर बदल चुकी थी। लोगों ने अहिंसा का गलत अर्थ निकाल लिया था। मतलब किसी को नहीं मारना अहिंसा है। लेकिन ओशो कहते हैं कि अहिंसा का असली अर्थ प्रेम ही है, जो महावीर सबको समझाना चाहते थे। तुम जीव को नहीं मारते, तो मतलब तुम हिंसा नहीं कर रहे, ये तो गलत धारणा है। तुम को लगता है कि अगर तुमने जीव को मार दिया तो तुमसे जीव हत्या हो जाएगी और तुम नर्क के भोगी हो जाओगे। जहां पर तुमको दुख मिलेंगे, ये तो स्वार्थ एवं डर हुआ, अहिंसा तो न हुई। अगर तुम जीव से प्रेम करने लगो तो तुम उसके साथ इतना जुड़ जाओगे कि उसको मारे का ख्याल तक न आएगा, अब भी तो तुम अहिंसा के रास्ते पर हो। प्रेम कर

इंसान की पहचान, उसकी बातें

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जैसे हीरे की पहचान जौहरी को होती है, वैसे ही इंसान की परख इंसान को. बस आप को सामने वाली बातों को ध्यान से सुनना है, जब वो किसी और से बात कर रहा हो. इस दौरान इंसान की मानसिकता किसी ना किसी रूप में सामने आई जाती है. आप ने देखा होगा कि कुछ लोगों को आदत होती है कि वो अपने एक सहयोगी या बोस के जाते उसकी बुराई करनी शुरू कर देते हैं तो उस पर आप विश्वास करके खुद को धोखा दे रहे हैं क्योंकि वो उस इंसान की फितरत है. जब आप न होंगे तो आपकी बुराई किसी और इंसान के सामने करेगा. एक छोटी सी कहानी मेरी जिन्दगी से कहीं न कहीं जुड़ी हुई है, जो मैं इस बार आपसे सांझी करना चाहूंगा, कहते हैं जब तक आदमी किसी वस्तु को चखता नहीं तब तक उसको स्वाद का पता नहीं चलता. एक बार की बात है कि दो लड़कियां और दो लड़के आपस में बातें कर रहे थे, उसके बीच प्यार और दोस्ती का टोपिक था, लड़के कहते हैं कि प्यार और दोस्ती दिखावे की होती है जबकि लड़कियां इस बात पर अड़िंग थी कि प्यार और दोस्ती दोनों ही जिन्दगी में अहम स्थान रखतें हैं. इसमें दोनों की बात सही थी क्योंकि लड़के अपनी फितरत बता रहे थे और लड़कियां अपनी. लड़कियों को प्यार और दोस्ती