आज भी हीर कहाँ खड़ी है?

कुलवंत हैप्पी
समय कितना आगे निकल आया, जहाँ साइंस मंगल ग्रह पर पानी मिलने का दावा कर रही, जहाँ फिल्म का बज़ट करोड़ों की सीमाओं का पार कर रहा है, जहाँ लोहा (विमान) आसमाँ को छूकर गुजर रहा है, लेकिन फिर भी हीर कहाँ खड़ी है? रांझे की हीर। समाज आज भी हीर की मुहब्बत को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं। भले ही हीर के पैदा होने पर मातम अब जश्नों में तब्दील होने लगा है, लेकिन उसके ख़ाब देखने पर आज भी समाज को एतराज है। जी हाँ, बात कर रहा हूँ निरुपमा पाठक। जिसको अपनी जान से केवल इसलिए हाथ धोना पड़ा, क्योंकि उसने आज के आधुनिक जमाने में भी हीर वाली गलती कर डाली थी, एक लड़के से प्यार करने की, खुद के लिए खुद जीवन साथी चुनने की, शायद उसको लगा था कि डीडीएल की सिमरन की तरह उसके माँ बाप भी अंत में कह ही डालेंगे जाओ जाओ खुश रहो..लेकिन ऐसा न हुआ निरुपमा के साथ।

वारिस शाह की हीर ने अपने घर में भैंसों गायों को संभालने वाले रांझे से मुहब्बत कर ली थी, जो तख्त हजारा छोड़कर उसके गाँव सयाल आ गया था। दोनों की मुहब्बत चौदह साल तक जमाने की निगाह से दूर रही, लेकिन जैसे ही मुहब्बत बेपर्दा हुई कि हीर के माँ बाप ने उसकी शादी रंगपुर खेड़े कर दी। कहते हैं कि एक दिन रांझा खैर माँगते माँगते उसके द्वार पहुंच गया था, रांझे ने हीर के विवाह के बाद जोग ले लिया था। फिर से हुए मिलन के बाद हीर रांझा भाग गए थे और आखिर में हीर रांझे ने जहर खाकर जिन्दगी को अलविदा कह मौत को गले लगा लिया था। समाज भले ही कितना भी खुद में बदलाव का दावा करे, लेकिन सच तो यह है कि हीर आज भी इश्क के लिए जिन्दगी खो रही है। सुर्खियाँ तैयार करने वाली निरुपमा तो सुर्खियों में आ गई, लेकिन कितनी ही हीरें हैं जो सुर्खियों से दूर अतीत की परतों में दफन होकर रह जाती हैं।

मुझे याद है, वो कृष्णा गली, जिससे मैं रोज़ गुजरता था, ऑफिस जाते हुए और घर आते हुए। वहाँ एक लड़की रहा करती थी, जिसकी उम्र उस समय बड़ी मुश्किल से सोलह साल के आसपास होगी। काफी सुंदर थी, उसके चाँद से चेहरे पर कोई दाग नहीं था, शायद तब तो उसके किरदार पर भी कोई धबा न होगा। फिर मैंने वो गली छोड़ दी, गली ही नहीं शहर भी छोड़ दिया। लेकिन जब कुछ समय बाद मैं अपने शहर लौटा और उस गली से गुजरा वो चेहरा वहाँ न था। उसकी गली से दो तीन दफा गुजरा, लेकिन वो चेहरा नजर नहीं आया, बाकी सब चेहरे नजर आए।

किसी ने कहा है कि जिसकी हमें तलाश होती है, हवाएं भी उसकी ख़बर हम तक ले आती हैं। ऐसे हुआ इस बार भी। मैं घर में बैठा था, और पास में महिलाएं बैठी बातें कर रही थी, महिलाएं चुप बैठ जाएं होना मुश्किल है। बातों से बात निकल आई कि उस गली में से एक लड़की ने कुछ पहले आत्महत्या कर ली, एक लड़के के साथ मिलकर। उनके मुँह से निकली इस बात ने मुझे जोर का झटका बहुत धीरे से दिया।

मैंने सोचा उसकी गली में बहुत सी लड़की हैं, वो तो अभी बहुत छोटी है, और उसका परिवार भी तो रूढ़िवादी सोच का नहीं हो सकता, लेकिन उनकी बातों से जो संकेत मिल रहे थे, बार बार उसकी तरफ इशारा किए जा रहे थे, जिसकी तस्वीर मेरे जेहन में थी। उसके साथ कोई रिश्ता भी नहीं, और बनाने की तमन्ना भी न थी, बस आसमान के चाँद की तरह उसको देखकर खुश हो लेना ही मेरे लिए काफी था। मैंने आस पास से जानकारी हासिल की तो पता चला कि उसने मेरे ही पड़ोस में रहने वाले लड़के के साथ नहर में कूदकर जान दे दी, उनकी मुहब्बत ट्यूशन में साथ पढ़ते-पढ़ते शुरू हुई, और नहर में डूबकर जान देने पर मुकम्मल।

एक और किस्सा याद आ रहा है, एक मित्र का, वो भी प्रियभांशु की तरह पत्रकार था, उसको भी किसी से प्यार था। कई सालों तक मुहब्बत पलती रही, एक दिन चोरी छिपे शादी भी हो गई, लेकिन लड़की के घरवालों को भनक लग गई, उन्होंने प्यार से लड़की को घर बुलाया और उसके बाद उसको ऐसा हिप्नोटाईज किया कि पत्रकार पर बलात्कार, बहकाकर शादी करने जैसे मुकद्दमे दायरे होने की नौबत आ गई, लेकिन पत्रकारिता के कारण बने रसूख ने उसको बचा लिया, और हीर दूसरे घर का श्रृंगार बनकर चली गई।

आखिर कब तक हीर ऐसे रांझे का दामन छोड़ दूसरे घर का श्रृंगार बनती रहेगी? आखिर कब तक हीर को मौत यूँ ही गले लगाती रहेगी? हीर को कब दुनिया खुद का जीवनसाथी चुनने के लिए आजादी देगी? कब सुनी जाएगी खुदा की दरगाह में इनकी अपील? कब मिलेगी इनको आजादी से हँसने और रोने की आजादी?

टिप्पणियाँ

  1. बहुत ही मार्मिक सच्चाई प्रस्तुत की आपने , तब तक ऐसा ही होता रहेगा जब तक ये दुनियाँ ही ना तबाह हो जाये ।

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  2. Yah shokantika byah ke pahle ho gayi..surkhiyon me aa gayi..chand waqyaat mujhe yaad aa rahe hain,jo surkhiyon me nahi aaye..jaankaari chand logon takhi seemit rahi..heer-ranjha ka byah to gaya..bachhe hue aur phir ranjhe ka heer se man bhar gaya..Heer tadapti rahi,bachhon ke khatir jeeti rahi...
    Ek waqaya aisa jahan, ranjhe ne apni heer ko bachhon sahit qatl kar diya..use kisee aurke saath ab jeevan bitana tha...
    Aapki lekhan shaili ka yah kamal hai,ki, mai itni badi tippanee de gayi...!

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  3. अपनी बात कहने का आपका यह अंदाज़ बेहद पसंद आया !!

    'हीर' के साथ जो कुछ हुआ या यह कहे कि जो भी उसने किया वह सदियों से चलता आ रहा है ............ कोई नयी बात नहीं .............. पर हाँ ह़र बार .........बार बार ........यही क्यों ??

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  4. ‌‌‌दोस्त, आपके प्रश्न से मैं सहमत हूं। ले​किन अभी तक भारतीय सोच इतनी ऊंची नहीं हुई है ​कि आसमां को चीरकर ​निकल जाए। हां, कुछ लोग इससे उपर उठ चुके हैं। समय बदल रहा है और यह प्र​क्रिया बहुत धीमी होती है। इस​लिए इंतज़ार करना होगा।

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