मुबारक हो! नई पार्टी बन गई
मुबारक हो! आज एक नई पार्टी का गठन हो गया। जी हां, नेशनल कांग्रेस पार्टी के सह संस्थापक रहे पीएम पीए संगमा ने आज नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) का गठन करते हुए भाजपा के नेतृत्व वाले राजग में शामिल होने की घोषणा कर दी।
पिछले कुछ सालों से निरंतर नई राजनीतिक पार्टियों का उदय हो रहा है चाहे राज्य स्तर पर हो चाहे फिर राष्ट्रीय स्तर पर। पंजाब के विधान सभा चुनावों से पूर्व शिरोमणि अकाली दल से अलग होते हुए प्रकाश सिंह बादल के भतीजे एवं पंजाब के पूर्व वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल ने 27 मार्च 2011 को पीपुल्स पार्टी आफ पंजाब की स्थापना की, मगर यह पार्टी चुनावों में कुछ भी न कर सकी।
इससे कुछ साल पूर्व 2006 में महाराष्ट्र के अंदर भी शिव सेना प्रमुख बाल ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे ने शिव सेना से किनारा करते हुए महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का गठन किया। राज ठाकरे की अगुवाई वाली मनसे ने महाराष्ट्र विधानसभा 2009 के चुनावों में 13 सीटों पर जीत दर्ज करते हुए अपनी उपस्िथति दर्ज करवाई थी, वहीं महाराष्ट्र के अंदर 2012 के दौरान हुए नगर पालिका के चुनावों में भी मनसे का दबदबा देखने को मिला।
2012 में तीन पार्टियों का गठन हुआ, जिसमें आम आदमी पार्टी, गुजरात परिवर्तन पार्टी एवं कर्नाटका जनता पार्टी शामिल है। आम आदमी पार्टी का गइन तो हो चुका है, लेकिन अभी तक इस पार्टी की ओर से कोई चुनाव नहीं लड़ा गया, जबकि गुजरात परिवर्तन पार्टी की नींव रखने वाले गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल गुजरात विधान सभा 2012 के चुनावों में कोई कमल नहीं कर सके। उनकी पार्टी केवल 2 सीटों पर विजय परचम लहराने में कामयाब हुई। गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री की तरह भाजपा के बर्ताव से दुखी बीजेपी के साथ चार दशक पुराना रिश्ता तोड़ने वाले कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने 9 दिसम्बर 2012 को गृह जिले हावेरी में विशाल रैली कर नई पार्टी कर्नाटक जनता पार्टी की घोषणा की।
वहीं, आज शनिवार 5 जनवरी 2013 को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से रिश्ता तोड़ते हुए पीके संगमा ने अपनी नई पार्टी नेशनल पीपुल्स पार्टी का गठन किया, मगर राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बने पिता का साथ देने वाली और अपना मंत्री पद गंवाने वाली अगाथा पिता के साथ नजर नहीं, बल्िक भरोसा जताया जा रहा है कि वो अगले चुनाव अपनी पिता की पार्टी के बैनर तले लड़ेंगी।
इस नई पार्टी का राष्ट्रीय चुनाव चिह्न किताब होगा, क्योंकि संगमा एवं उनके सहयोगी मानते हैं कि केवल शिक्षा और साक्षरता ही कमजोर वर्गों का सशक्तिकरण कर सकती है। इतना ही नहीं, जल्द ही होने जा रहे मेघालय विधानसभा के चुनाव में उनकी पार्टी अपने उम्मीदवार उतारेगी एवं 33 उम्मीदवारों के नाम पहले ही तय हो चुके हैं।
गौरतलब है कि संगमा ने शरद पवार और तारिक अनवर के साथ 1999 में कांग्रेस छोड़ दिया था, और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) का गठन किया था। सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर इस नई पार्टी का गठन किया गया था। नौ बार सांसद रहे एवं पूर्व लोकसभा अध्यक्ष संगमा के जुलाई में राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के फैसले पर उन्हें राकांपा से निकाल दिया गया था।
चलते चलते मन में सवाल उठता है कि निजी हितों के लिए बनाई गई, यह छोटी छोटी पार्टियां क्या देश को सही दिशा की तरफ अग्रसर करेंगी? राकांपा का जन्म इस लिए हुआ, क्यूंकि सोनिया गांधी विदेशी थी, मगर अफसोस कि आज राकांपा उसी सोनिया गांधी के दर पर पानी भरती है। इन छोटी छोटी पार्टियों के कारण किसी बड़ी पार्टी को बहुमत नहीं मिलता, और गठबंधन सरकार सत्ता संभालती है, जिसकी स्थिति कर्तब दिखाती उस बच्ची सी है, जिसको रस्सी पर चलते हुए बैलेंस बनाकर रखना पड़ता है। किसी भी तरफ झुकाव हुआ, वहीं सारा खेल खत्म। छोटी छोटी पार्टियों के मनमुटाव के कारण कई बार बिल लोक सभा या राज्य सभा में पारित होने से रह जाते हैं, या बेतुके तरीके से पास हो जाते हैं। कई राष्ट्रीय मुद्दों पर बात नहीं होती। छोटी छोटी पार्टियां राष्ट्रीय मुद्दों को भूलकर अपने क्षेत्रिय मुद्दों पर ज्यादा ध्यान देने लगती हैं, क्यूंकि राजनीति वोट बैंक आधारित होती जा रही है।
पिछले कुछ सालों से निरंतर नई राजनीतिक पार्टियों का उदय हो रहा है चाहे राज्य स्तर पर हो चाहे फिर राष्ट्रीय स्तर पर। पंजाब के विधान सभा चुनावों से पूर्व शिरोमणि अकाली दल से अलग होते हुए प्रकाश सिंह बादल के भतीजे एवं पंजाब के पूर्व वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल ने 27 मार्च 2011 को पीपुल्स पार्टी आफ पंजाब की स्थापना की, मगर यह पार्टी चुनावों में कुछ भी न कर सकी।
इससे कुछ साल पूर्व 2006 में महाराष्ट्र के अंदर भी शिव सेना प्रमुख बाल ठाकरे के भतीजे राज ठाकरे ने शिव सेना से किनारा करते हुए महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना का गठन किया। राज ठाकरे की अगुवाई वाली मनसे ने महाराष्ट्र विधानसभा 2009 के चुनावों में 13 सीटों पर जीत दर्ज करते हुए अपनी उपस्िथति दर्ज करवाई थी, वहीं महाराष्ट्र के अंदर 2012 के दौरान हुए नगर पालिका के चुनावों में भी मनसे का दबदबा देखने को मिला।
2012 में तीन पार्टियों का गठन हुआ, जिसमें आम आदमी पार्टी, गुजरात परिवर्तन पार्टी एवं कर्नाटका जनता पार्टी शामिल है। आम आदमी पार्टी का गइन तो हो चुका है, लेकिन अभी तक इस पार्टी की ओर से कोई चुनाव नहीं लड़ा गया, जबकि गुजरात परिवर्तन पार्टी की नींव रखने वाले गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल गुजरात विधान सभा 2012 के चुनावों में कोई कमल नहीं कर सके। उनकी पार्टी केवल 2 सीटों पर विजय परचम लहराने में कामयाब हुई। गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री की तरह भाजपा के बर्ताव से दुखी बीजेपी के साथ चार दशक पुराना रिश्ता तोड़ने वाले कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने 9 दिसम्बर 2012 को गृह जिले हावेरी में विशाल रैली कर नई पार्टी कर्नाटक जनता पार्टी की घोषणा की।
वहीं, आज शनिवार 5 जनवरी 2013 को राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से रिश्ता तोड़ते हुए पीके संगमा ने अपनी नई पार्टी नेशनल पीपुल्स पार्टी का गठन किया, मगर राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बने पिता का साथ देने वाली और अपना मंत्री पद गंवाने वाली अगाथा पिता के साथ नजर नहीं, बल्िक भरोसा जताया जा रहा है कि वो अगले चुनाव अपनी पिता की पार्टी के बैनर तले लड़ेंगी।
इस नई पार्टी का राष्ट्रीय चुनाव चिह्न किताब होगा, क्योंकि संगमा एवं उनके सहयोगी मानते हैं कि केवल शिक्षा और साक्षरता ही कमजोर वर्गों का सशक्तिकरण कर सकती है। इतना ही नहीं, जल्द ही होने जा रहे मेघालय विधानसभा के चुनाव में उनकी पार्टी अपने उम्मीदवार उतारेगी एवं 33 उम्मीदवारों के नाम पहले ही तय हो चुके हैं।
गौरतलब है कि संगमा ने शरद पवार और तारिक अनवर के साथ 1999 में कांग्रेस छोड़ दिया था, और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) का गठन किया था। सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर इस नई पार्टी का गठन किया गया था। नौ बार सांसद रहे एवं पूर्व लोकसभा अध्यक्ष संगमा के जुलाई में राष्ट्रपति चुनाव लड़ने के फैसले पर उन्हें राकांपा से निकाल दिया गया था।
चलते चलते मन में सवाल उठता है कि निजी हितों के लिए बनाई गई, यह छोटी छोटी पार्टियां क्या देश को सही दिशा की तरफ अग्रसर करेंगी? राकांपा का जन्म इस लिए हुआ, क्यूंकि सोनिया गांधी विदेशी थी, मगर अफसोस कि आज राकांपा उसी सोनिया गांधी के दर पर पानी भरती है। इन छोटी छोटी पार्टियों के कारण किसी बड़ी पार्टी को बहुमत नहीं मिलता, और गठबंधन सरकार सत्ता संभालती है, जिसकी स्थिति कर्तब दिखाती उस बच्ची सी है, जिसको रस्सी पर चलते हुए बैलेंस बनाकर रखना पड़ता है। किसी भी तरफ झुकाव हुआ, वहीं सारा खेल खत्म। छोटी छोटी पार्टियों के मनमुटाव के कारण कई बार बिल लोक सभा या राज्य सभा में पारित होने से रह जाते हैं, या बेतुके तरीके से पास हो जाते हैं। कई राष्ट्रीय मुद्दों पर बात नहीं होती। छोटी छोटी पार्टियां राष्ट्रीय मुद्दों को भूलकर अपने क्षेत्रिय मुद्दों पर ज्यादा ध्यान देने लगती हैं, क्यूंकि राजनीति वोट बैंक आधारित होती जा रही है।
देश का पतन बन रही छोटी२ पार्टीयों के कारण ही रहा है,इनके कारण किसी एक पार्टी को बहुमत नही मिल पाता,,,
जवाब देंहटाएंrecent post: वह सुनयना थी,
"पार्टी" बनती है फिर मनती है "पार्टी"
जवाब देंहटाएंदेख रही हो न "आजाद भारत" की दशा
हे माँ! माँ भारती ......