लेकिन मेरी भैंस तो गई पानी में

पत्रकार क्‍लीन दास सुबह सुबह अपना साइकिल लेकर ऑफिस की तरफ कूच करते हैं। जैसे ही वो ऑफिस के पास पहुंचते हैं, तो उनकी आंखें खुली की खुली रह जाती हैं। दफ्तर के सामने लगी चाय की लारी वाला गन्‍ने का जूस बनाने की तैयारी कर रहा है। पत्रकार क्‍लीन दास टेंशन में। आखिर चाय वाले को ऐसी क्‍या सूझी कि उसने चाय की जगह, गन्‍ने का जूस बनाने की ठान ली। क्‍लीन दास घोर चिंता में, अब मेरा क्‍या होगा, मेरा तो चाय के बिना चलता ही नहीं। इतने में क्‍लीन दास के अंदर का जिज्ञासु पत्रकार जागा, और चाय वाले से जाकर पूछने लगा, जो अब जूस वाला बनने की तैयारी कर रहा है, तुम को क्‍या हो गया, एक दम से गन्‍ने का जूस बनाने लग गए। चाय वाला बोला, सर आज का न्‍यूज पेपर नहीं पढ़ा आपने। पत्रकार चौंका, आखिर ऐसा क्‍या छपा है अख़बार में, जो चाय वाला जूस वाला बनने की ठान बैठा। अंदर का डर भी जागा। कहीं कोई बड़ी ख़बर तो नहीं छूट गई। लगता है आज संपादक से डांट पड़ेगी। पत्रकार क्‍लीन दास डर को थोड़ा सा पीछे धकेलते हुए बोलता है, आखिर अख़बार में ऐसा क्‍या छपा है, जो तुम चाय का कारोबार छोड़कर गन्‍ने का जूस बनाने लग गए। क्‍या बात करते हैं क्‍लीन दास सर। आज के फ्रंट पेज पर एक समाचार लगा है कि पत्रकारिता को पीलिया हो गया। बस फिर क्‍या था, मुझे याद आया, जब मुझे पीलिया हुआ था और डॉक्‍टर ने गन्‍ने का जूस पीने की सलाह दी थी। मैंने सोचा, अब अपने ऑफिस वाले चाय तो पीएंगे नहीं, तो क्‍यूं न गन्‍ने की लारी लगा लूं, आपको भी सुविधा रहेगी, और मेरा भी घर चलता रहेगा। चुप चुप चुप क्षुब्‍ध होकर पत्रकार क्‍लीन दास बोला। दुकान वाला चौंक गया, आखिर क्‍लीन दास को गुस्‍सा क्‍यूं आ गया। उसने ऐसा क्‍या कह दिया, जो पत्रकार को गुस्‍सा आ गया। क्‍लीन दास को विनम्र भाव में चाय वाला पूछता है, सर जी क्‍या वो ख़बर किसी ने झूठी प्रकाशित कर दी। पत्रकार क्‍लीन दास शांत होते हुए बोला, वो पीलिया और बीमारी वाला पीलिया अलग अलग है भाई। पत्रकारिता की भाषा तुम्‍हारी समझ से परे है। अच्‍छा अच्‍छा सर। मुझ गरीब को क्‍या पता, मैं तो समझा अपने ऑफिस वालों को पीलिया हो गया। इस लिए तो गन्‍ने के जूस की लारी लगा रहा था। साहिब पत्रकारिता को पीलिया हुआ है या नमूनिया मुझे नहीं पता, लेकिन मेरी भैंस तो गई पानी में।                                       आत्‍म प्रेरक कथा

टिप्पणियाँ

  1. गुरु देवदास फिल्म करने के बाद दिलीप कुमार को मनोचिकित्सकों ने सलाह दी थी कि अब आप थोड़ी कॉमेडी फिल्में करें अन्यथा आपको मानसिक विकार हो जाएंगे। लगता है आप भी उसी कॉमेडी के दौर से गुजर रहे हैं। बढि़या लगा पत्रकारिता को पीलिया।

    विशाल मिश्रा, इंदौर से

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