'कल के नेता' आज के नेताओं के कारण मुश्‍िकल में

नीतीश कुमार बाबू के राज्‍य में बसते छपरा के एक सरकारी स्कूल में विषाक्त दोपहर के भोजन से हुई 22 बच्चों की मौत अत्यंत पीड़ादायक है, इसने इस महत्वपूर्ण योजना के प्रति बरती जा रही आपराधिक लापरवाही को ही जगजाहिर किया है। कल के नेता कहे जाने वाले बच्‍चे स्कूल में पढ़ने गए थे, लेकिन हमारे सड़ी-गली व्यवस्था वाले सिस्‍टम मासूम बच्‍चों के सपनों को साकार होने से पहले ही ताश के पत्तों की तरह बिखेर दिया।

बेहद बुरा लगता है जब, भोजन में मरी छिपकली होने या उसके किसी और तरह से विषाक्त होने की शिकायतें मिलती हैं और पहले भी कुछ जगहों पर कुछ बच्चों की विषाक्त भोजन से मौत तक हुई है, इसके बावजूद शिक्षा के बुनियादी अधिकार को आधार देने वाली इस योजना को लेकर चौतरफा कोताही बरती जा रही है। 

यह तो जांच से पता चलेगा कि उन बच्चों को दिए गए भोजन में कीटनाशक मिला हुआ था या कोई और जहरीला पदार्थ, मगर जिस तरह से स्कूलों में दोपहर का  भोजन, ''जिसको हम मिड डे मील कहते हैं'' तैयार किया जाता है और बच्चों को परोसा जाता है, उस पूरी व्यवस्था में ही बहुत सारी खामियां हैं। इसमें सबसे बड़ी गड़बड़ी यही है कि इस महंगाई के दौर में आज भी भोजन देने के लिए प्रति बच्चे साढ़े तीन से पांच रुपये ही तय किए गए हैं! इसी पैसे में उनके लिए चावल-दाल और सब्जी के साथ ही ईंधन का भी इंतजाम करना होता है। इसके अलावा यह पूरी योजना भ्रष्टाचार का एक बड़ा जरिया भी बनी हुई है, जिसमें खरीद की आड़ में भारी गड़बड़झाला होता है। वैसे समग्र रूप में देखें, तो यह योजना सरकारी और सरकारी मद से चलने वाले स्कूलों में पढ़ने वाले तकरीबन 12 करोड़ बच्चों को पौष्टिक भोजन देने के उद्देश्य से चलाई जा रही है। 

दरअसल 1960 के दशक में जब के कामराज ने तमिलनाडु में यह योजना शुरू की थी, तो उनका मकसद यही था कि कोई भी बच्चा भूख की वजह से पढ़ाई से वंचित न रह जाए। कुछ साल पहले अदालती आदेशों के बाद बच्‍चों को बना बनाया खाना परोसा जाने लगा। निश्चित रूप से इस योजना से वंचित तबके के बच्चों को स्कूलों से जोड़ने में मदद मिली है, लेकिन सरकारी स्कूलों का आज जो हाल हो गया है, उससे निराशा ही होती है। अच्छा तो यह होता कि इसे सबक की तरह लिया जाता और इस योजना की खामियों को दूर करने पर अविलंब विचार किया जाता, मगर विडंबना देखिए कि इस हृदयविदारक घटना के बाद बिहार में राजनीति शुरू हो गई है।

राजनीति दिन प्रति दिन गंदी होती जा रही है। संवेदनशील मुद्दों पर गहन विचार करने, अपनी जिम्‍मेदारी लेने की बजाय नेता ऐसे बयानों की बौछार करते हैं, या विपक्ष पर साजिश का आरोप लगाते हैं, कि मुद्दा कहीं छुप जाता है, बस बचता है तो बयानों का ख़बरों में उड़ता हुआ धूंआं।

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