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अगस्त, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

'थप्‍पड़ कांड' के बाद शिरिष कुंदर का 'जोकर'

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दस करोड़ में बनी 'जानेमन' ने बॉक्‍स ऑफिस पर लगभग 50 करोड़ का क्‍लेक्‍शन किया। फिल्‍म का गीत 'हम को मालूम है' बेहद लोकप्रिय हुआ, मगर अफसोस की बात कि फिल्‍म निर्देशक को सिने प्रेमियों ने याद ही नहीं रखा। इतना ही नहीं, उन को अपनी दूसरी फिल्‍म निर्देशित करने के लिए भी करीबन छह साल लग गए, जो बेहद हैरत वाली बात है। जानेमन के बाद जब शिरिष कुंदर ने अपनी जोकर के लिए शाहरुख खान से बातचीत की तो उन्‍होंने मना कर दिया, जो फरहा खान, जो शिरिष की पत्‍नी हैं, के अच्‍छे दोस्‍त हैं, कई फिल्‍में एक साथ भी की। फिल्‍म शिरिष कुंदर अक्षय कुमार के पास पहुंचे, तो उन्‍होंने भी मना कर दिया, क्‍यूंकि जानेमन में अंतरिक्ष विज्ञानी बनकर भी वो कुछ नहीं कमा पाए। फिर शिरिष कुंदर पहुंचे सैफ अली खान के दरवाजे पर, जिन्‍होंने रोल के लिए हां बोल दी, क्‍यूंकि करीना के प्‍यार ने उनको पहले से ही जोकर बना रखा था। फिर पता नहीं, कहानी में कब और कैसे टि्वस्‍ट आया कि सैफ ने मना कर दिया, और बाद में पता नहीं शिरिष कुंदर ने कौन सा पासा फेंक कर अक्षय कुमार को साइन कर लिया, जिन्‍होंने फरहा खान के साथ तीस मार खान की। जो

किरदार ही नहीं एके हंगल का जीवन भी था आदर्श

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जब पूरा परिवार अंग्रेजों के लिए नौकरी कर रहा था, तब एके हंगल साहेब ने अपने अंदर आजादी की ज्‍योति को प्रज्‍वलित किया। एके हंगल साहेब ने अंग्रेजों के रहमो कर्म पर पलने की बजाय, अपनी मेहनत की कमाई के चंद रुपयों पर जीवन बसर करना ज्‍यादा बेहतर समझा। उन्‍होंने कपड़ा सिलाई का काम सीखकर टेलरिंग का काम शुरू किया एवं साथ साथ रंगमंच से दिल लगा लिया। आजादी की लड़ाई में योगदान के लिए उनको पाकिस्‍तान की जेलों में करीबन दो साल तक रहना पड़ा। वो रोजी रोटी के लिए मुम्‍बई आए। कहते हैं कि जब एके हंगल साहेब मुम्‍बई आए तो उनके पास केवल जीवन गुजारने के लिए बीस रुपए थे। यहां पर वो टेलरिंग के साथ साथ रंगमंच से जुड़े रहे। एक दिन उनके अभिनय ने स्व. बासु भट्टाचार्य का दिल मोह लिया, जिन्‍होंने उनको अपनी फिल्म तीसरी कसम में काम करने के लिए ऑफर दिया। इस फिल्‍म से ए के हंगल सफर ने रुपहले पर्दे की तरफ रुख किया, मगर वो फिल्‍मों में नहीं आना चाहते थे, लेकिन एक के बाद एक ऑफरों ने उनको वापिस लौटने नहीं दिया। उन्‍होंने अपने फिल्‍मी कैरियर में करीबन 255 फिल्‍मों में अभिनय किया। इसमें से करीबन 16 फिल्‍में उन्‍होंने बॉलीवु

प्‍यार की कोई उम्र नहीं होती 'शिरीं फरहाद'

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बड़ी स्‍क्रीन पर अब तक हम युवा दिलों का मिलन देखते आए हैं, मगर पहली बार निर्देशिका बेला सहगल ने शिरीं फरहाद की तो निकली पड़ी के जरिए चालीस के प्‍यार की लव स्‍टोरी को बिग स्‍क्रीन पर उतारा है। इस फिल्‍म को लेकर फिल्‍म समीक्षकों में विरोधाभास नजर आता है, आप खुद नीचे देख सकते हैं, फिल्‍म एक मगर प्रतिक्रियाओं अनेक, और प्रतिक्रियाओं में जमीं आसमान का फर्क। इस फिल्‍म के बारे में समीक्षा करते हुए मेरी ख़बर डॉट कॉम पर अमित सेन भोपाल से लिखते हैं कि एक अरसे बाद बॉलीवुड में चल रही द्विअर्थी संवाद के दौर में बेहतर कॉमेडी वाली फिल्म आई है, अगर आप अच्छी हल्की-फुल्की हेल्दी कॉमेडी फिल्म देखना चाह रहे हों तो यह फिल्म आपके लिए है। वहीं दूसरी तरफ समय ताम्रकर इंदौर से हिन्‍दी वेबदुनिया डॉट कॉम फिल्‍म की समीक्षा करते हुए लिखते हैं कि निर्देशक के रूप में बेला सहगल का पहला प्रयास अच्छा है, लेकिन कमजोर स्क्रिप्ट के चलते वे चाहकर भी ज्यादा कुछ नहीं कर पाईं। कई जगह हंसाने की असफल कोशिश साफ नजर आती है। बोमन ईरानी ने फरहाद के किरदार को विश्वसनीय तरीके से पेश किया है। फराह खान कुछ दृश्यों में असहज लग

अभिव्‍यक्‍ित की तालाबंदी

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अब वक्‍त बदलने का है, बंदिशें व प्रतिबंध लगाने का नहीं। एक बात और अब कहां कहां प्रतिबंध लगाएंगे, क्‍यूंकि रूम डिसक्‍शन, अब ग्‍लोबल डिसक्‍शन में बदल चुकी है, इंटरनेट लगा डाला, तो लाइफ जिंगालाला। हर व्‍यक्‍ित सरकार के व्‍यवहार से तंग है, जैसे ईमानदार संवाददाता बेईमान संपादक से। मंगो मैन सरकार के खिलाफ कुछ न कुछ कह रहा है, जो उसका संवैधानिक अधिकार है।   ए सरकार, तुम को वोट देकर वो एक बार नहीं, पिछले कई सालों से अपने अधिकार के साथ खिलवाड़ कर रहा है, लेकिन अब वो अभिव्‍यक्‍ित के अधिकार से ही सही, लेकिन तेरे खिलाफ कुछ तो बोल रहा है, जो तुझको पसंद रही आ रहा है। इस मैंगोमैन को रुपहले पर्दे पर विजय दीननाथ चौहान से लेकर बाजीराव सिंघम तक सब किरदार अच्‍छे लगते हैं, मगर अफसोस इसको विजय दीनानाथ चौहान मिलता है तो मीडिया मार देता है, जो तेरी चौखट पर बंधी हुई कुत्तिया से ज्‍यादा नहीं भौंक सकता। काटने पर भी अब जहर नहीं फैलती, क्‍यूंकि इंजेक्‍शन जो पहले से दे रखा है। सरकार के खिलाफ अंदोलन हो तो इनका अंदोलन अंदोलन करने वाले के खिलाफ होता है। उसकी मंशा पर शक करते हैं, मुद्दे तो कैटरीना की मांग में भर

प्रकाश झा का 'चक्रव्‍यूह'

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प्रकाश झा की अगली फिल्‍म 'चक्रव्‍यूह- ए वार यू कैननोट इस्‍केप' 24 अक्‍टूबर को रुपहले पर्दे पर नजर आएगी, जिसका प्रमोशन 16 अगस्‍त से शुरू हो गया। प्रकाश झा की फिल्‍में समस्‍याओं पर आधारित होती हैं या कहें लकीर से हटकर। प्रकाश झा की फिल्‍म चक्रव्‍यूह की स्‍टार कास्‍ट देखकर लगता है कि प्रकाश झा, इस बार सिनेमा की खिड़की पर जोरदार हल्‍ला बोलने वाले हैं। गैंगस ऑफ वासेपुर व पान सिंह तोमर को मिले रिस्‍पांस के बाद चक्रव्‍यूह जैसी फिल्‍म को बॉक्‍स ऑफिस पर सफलता मिलने की पूरी पूरी उम्‍मीद है। 16 अगस्‍त को जारी किए गए चक्रव्‍यूह के पोस्‍टर बयान करते हैं कि फिल्‍म बनाते हुए काफी ध्‍यान रखा गया है। सबसे पहले ऐसे संवेदनशील मुद्दों के लिए गम्‍भीर कलाकारों की जरूरत होती है, जो प्रकाश झा ने अभय दिओल, मनोज वाजपेयी, रामपाल, ओमपुरी को चुनकर पूरी की, क्‍यूंकि ऐसे मुद्दों पर सुपर स्‍टारों को जबरदस्‍ती नहीं धकेला जा सकता। प्रकाश झा की पहली च्‍वॉइस मनोज वाजपेयी अपने आप में उम्‍दा कलाकार हैं, उनके अभिनय पर कभी शक नहीं किया जा सकता। अभय दिओल की बात की जाए तो उन्‍होंने हमेशा ऑफ बीट एवं कम बजट की

शादी पर पापा का बेटे को पत्र

तुमने 'दु:खी शादीशुदा लोगों' और आलोचकों द्वारा बनाए गए सारे चुटकले सुने होंगे। अब, अगर किसी और ने तुम्‍हें यह न सुझाया हो, तो यह दूसरा नजरिया है। तुम मानव जिन्‍दगी के सबसे सार्थक रिश्‍ते में बंध रहे हो। इस रिश्‍ते को तुम जैसा बनाना चाहो वैसा बना सकते हो। कुछ लोग सोचते हैं कि उनकी मर्दानगी तभी साबित होगी, जब वे लॉकर रूम में सुनी सारी कहानियों को जिन्‍दगी में उतारेंगे। वे निश्‍िचंत रहते हैं कि जो बात पत्‍नी को पता ही नहीं उससे वह दुखी नहीं होगी। सच्‍चाई ये है कि किसी तरह, कहीं अंदर से, उसके द्वारा कॉलर पर लिपस्‍टिक का निशान पाए जाने या तीन बजे तक कहां थे, के लचर बहानों के पकड़े जाने के बिना ही पत्‍नी को पता चल जाता है और इसी जानकारी के साथ, इस रिश्‍ते की गहराई में कुछ कमी आ जाती है। ऐसे पति जो अपनी शादी का रोना रोते हैं, जबकि उन्‍होंने खुद ही रिश्‍ता खराब किया है, कहीं ज्‍यादा हैं, उन पत्‍नियों से, जिन पर यह इल्‍जाम लगाया जाता है। भौतिक विज्ञान का एक पुराना नियम है कि तुम एक चीज से उतना ही निकाल सकते हो, जितना तुम उसके अंदर डालते हो। जो व्‍यक्‍ित अपने हिस्‍से का आधा ही शादी पर न

कैग की जीरो या मैडम का अंडा

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कपूर खानदान की लाडली करीना कपूर ने जब अपनी फिगर के आगे जीरो लगाया, तो कई अभिनेत्रियों की नींद उड़ गई, जैसे फायर की आवाज सुनते ही पेड़ से पंछी एवं कई अभिनेत्रियों को पेक अप बोलना पड़ा। जब 2012 में कैग ने अपनी रिपोर्ट में जीरो लगाई तो कांग्रेस के हाथ पैर पीले पड़ गए और कांग्रेस ने कैग की रिपोर्ट को जीरो बताते हुए कि कैग को जीरो लगाने की आदत है, कह डाला। इतना कहने से कांग्रेस का पीछा कहां छूटने वाला था। शून्‍य ऑवर होने से पहले ही संसद 'जीरो लगाने के मुद्दे' को लेकर बुधवार तक स्‍थगित हो गई। कांग्रेस भले ही कहती रहे 'कैग को जीरो लगाने की आदत है', मगर विपक्ष एक बात पर अड़िंग है कि देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अपने पद से अस्‍तीफा दें, जो अपनी उदासीनता के चलते हीरो से जीरो हो चुके हैं। यह जीरो कांग्रेस को जीरो करने में कितना रोल अदा करने वाली है, यह बात तो आगामी लोक सभा चुनावों में ही सामने आएगी। जिस तरह के माहौल कांग्रेस के खिलाफ बन रहा है, ऐसे में कांग्रेस को जीरो में जाने की जरूरत है, मतलब शून्‍य में जाने की जरूरत है, जिसको आध्‍यत्‍मिक गुरू ध्‍यान कहते हैं। कां

मैं हूं सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट

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सरकार अपनी नाकामियों का ठीकरा मेरे सिर फोड़ रही है। मैं हूं सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट। मैं किस से कहूं अपने दिल की बात। सब कहते हैं मेरे द्वारा दुनिया भर से अपने दिल की बात। मैं दुखी हूं, जब कोई मेरे खिलाफ बयान देता है। भारतीय सरकार एवं भारतीय मीडिया तो मेरे पीछे हाथ धोकर पड़े हुए हैं, जबकि देश की सरकार एवं कई मीडिया संस्‍थानों के बड़े धुरंधर मेरे पर आकर अपना उपदेश जनता को देते हैं। खुद को ब्रांड बनाने के लिए मेरा जमकर इस्‍तेमाल करते हैं। फिर भी आज वो ही मुझ पर उंगलियां उठा रहा है, मुझ पर आरोपों की झाड़ियां लगा रहा है, जो मीडिया कभी लिखता था मैंने कई साल पहले बिछड़े बेटे को मां से मिलवाया एवं मैंने असहाय लोगों को बोलने का आजाद मंच प्रदान किया, आज वो मीडिया भी मेरी बढ़ती लोकप्रियता से अत्‍यंत दुखी नजर आ रहा है। शायद उसकी ब्रेकिंग न्‍यूज मेरे तेज प्रसारण के कारण आज लोगों को बासी सी लगने लगी है और मेरा बढ़ता नेटवर्क उसकी आंख में खटकने लगा है। मेरे पर मीडिया कर्मियों, नेताओं और आम लोगों के खाते ही नहीं, फिल्‍म स्‍टारों के भी खाते उपलब्‍ध हैं, कुछ मीडिया वालों ने तो मेरे पर लिखी जाने वाली

'जिस्‍म की नुमाइश' से शोहरत के दरवाजे तक

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यह कहानी एक ऐसी युवती की, जो दौलत को मानती है सब से बड़ी ताकत और शोहरत पाने के लिए जिस्‍म को बनाया औजार। ट्विटर पर लगाकर नग्न तस्वीरें  युवाओं के दिलों में हलचल पैदा करने वाली युवती आखिर पहुंच गई लॉस एंजलिस में प्लेबॉय के आलीशान गलियारों तक। यह युवती कोई और नहीं, बल्‍िक शेर्लिन चोपड़ा है। जो कुछ साल पहले बड़े स्‍वप्‍न लेकर मायानगरी में घुसी थी। निशाना अपने बल पर दौलत कमाना। दौलत के साथ लोकप्रियता। वो यह बताते हुए हिचकचाती नहीं कि शुरूआत के दिनों में जब वो संघर्ष के दौर से गुजर रही थी तो उसके कुछ संबंध बने, तो कहीं शोषण का भी शिकार होना पड़ा। पैसा कमाने की दुस्साहसी महत्वाकांक्षा उसको ऐसे मोड़ पर ले आई। जहां उसने शर्म हया का वो पर्दा हटा दिया, जो शरीफ लोग अक्‍सर पर्दे के पीछे उतारते हैं। जब ट्विटर पर होने वाली भद्दी टिप्‍पणियों के बारे में हिंदुस्तान टाइम्स सवाल पूछता है तो शर्लिन कहती है ''अगर आपको वेश्या समझे जाने से ही पूरी तरह आजादी का अहसास होता है, तो यही सही''। एक अन्‍य सवाल के जवाब में जब शर्लिन कहती हैं, ''मैं पहले हैदराबाद में अपने परिवार से डरती थी,

कौन छीनता है हमारी आजादी ?

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हम आजाद हैं, हम आजाद थे और आजाद रहेंगे। 18 साल के बाद वोट करने का अधिकार आपके हाथ में है, जिससे आप सत्ता पलटने ताकत रखते हैं। भगवान आपकी तरफ तलवार फेंकता है, यह निर्भर आप पर करता है कि आप उसको धार से पकड़ना चाहेंगे या हत्‍थे से। वोट का अधिकार सरकार द्वारा फेंकी तलवार है, अब निर्भर आप पर करता है कि आप लहू लहान होते हैं या फिर उसका औजार की तरह इस्‍तेमाल करते हैं। देश की सत्ता पर बैठे हुए लोग हमारे द्वारा चुने गए हैं। उनको देश पर शासन करने का अधिकार हमने दिया है। वो वोट खरीदते हैं। वो हेरफेर कर चुनावों में जीतते हैं। ऐसा हम कहते हैं और सिस्‍टम को कोसते हैं। मगर एक बार नजर डालो अपने आस पास फैले समाज पर और पूछो खुद से। वोट बेचने वाले कौन हैं? सिस्‍टम में गड़बड़ी करने वाले कौन हैं? अगर आप अपनी तलवार दुश्‍मन के हाथों में देकर सोचते हो कि भगवान ने आपके साथ अन्‍याय किया है तो यह आपकी गलती है, भगवान की नहीं। जब भी 15 अगस्‍त की तारीख पास आने वाली होती है तो हर जगह लिखा मिलता है 'भ्रष्‍टाचार, रिश्वतखोरी, बेरोज़गारी, भुखमरी के ''गुलाम देश'' के नागरिकों को स्वतंत्रता दिवस

जनता भैंस, अन्‍ना के हाथ में सिंघ, तो बाबा के हाथ में पूंछ

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अन्‍ना हजारे का अनशन एवं बाबा रामदेव का प्रदर्शन खत्‍म हो गया। अन्‍ना हजारे ने देश की बिगड़ी हालत सुधारने के लिए राजनीति में उतरने के विकल्‍प को चुन लिया, मगर अभी तक बाबा रामदेव ने किसी दूसरे विकल्‍प की तरफ कोई कदम नहीं बढ़ाया, हालांकि सूत्रों के अनुसार उनका भी अगला विकल्‍प राजनीति है। अपना अनशन खत्‍म करते हुए अन्‍ना टीम ने राजनीति को अपना अगला विकल्‍प बताया था और अब अन्‍ना टीम ने घोषणा भी कर दी है कि वो गांधी जयंती पर अपनी राजनीतिक पार्टी का नाम भी घोषित कर देंगे। मुझे लगता है कि पार्टी का गठन करना बड़ी बात नहीं, बड़ी बात तो उस पार्टी का अस्‍ितत्‍व में रहना है। क्‍यूंकि देश सुधारने के नाम पर हिन्‍दुस्‍तान के हर राज्‍य में कई पार्टियां बनी और विलय के साथ खत्‍म हो गई। इसलिए पार्टियों का गठन करना एवं उनको खत्‍म करना, भारत में कोई नई बात नहीं। कुछ माह पहले पंजाब में विधान सभा चुनाव हुए, इन चुनावों के दौरान कई छोटी पार्टियां बड़ी पार्टियों में मिल गई, जैसे नालियां नदियों में। मगर कुछ नई पार्टियों का गठन भी हुआ। पंजाब के पूर्व वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल ने राज्‍य के हालतों को सुधारन

हवा हवाई की वापसी 'इंग्‍लिश विंग्‍लिश' से

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'कहते हैं मुझको हवा हवाई' कुछ याद आया। जी हां, श्री देवी। रुपहले पर्दे पर 14 साल बाद वापसी कर रही हैं। सबसे दिलचस्‍प बात तो यह है कि पूरी फिल्‍म श्रीदेवी को ध्‍यान में रख कर लिखी गई है। श्रीदेवी इस फिल्‍म में अपने परिवार को खुश करने के लिए इंग्‍लिश सीखने की हरसंभव कोशिश करती हुई नजर आएंगी। इस दौरान कई घटनाएं घटित होंगी, जो दर्शकों को हंसाने का भी काम करेंगी। फिल्‍म की कहानी आर बाल्‍की ने लिखी है, जो चीनी कम, पा जैसी फिल्‍में निर्देशित कर चुके हैं जबकि इंग्‍लिश विंग्‍िलश नामक इस फिल्‍म का निर्देशन आर बाल्‍की की पत्‍िन गौरी शिंदे कर रही हैं। इस फिल्‍म में अमिताभ बच्‍चन छोटी सी भूमिका में नजर आएंगे। इसके अलावा फिल्म में कुछ अंतर्राष्ट्रीय कलाकार भी हैं। यह फिल्‍म सिनेमाहालों में 5 अक्‍टूबर को आने की उम्‍मीद है, मगर उससे पहले इस फिल्‍म को टोरोंटो अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में भी 14 सितंबर को दिखा जाएगा।   गौरतलब है कि 1997 में आई फिल्‍म जुदाई उनकी पहली पारी की अंतिम फिल्‍म थी हालांकि 2005 में उनकी एक पुरानी फिल्‍म मेरी बीवी का जवाब नहीं को भी रिलीज किया गया था, जिसमें उ

क्‍यूं महान है टाइम पत्रिका एवं विदेशी मीडिया ?

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प्रतिष्ठित पत्रिका टाइम और सीएनएन के लिए काम करने वाले पत्रकार फरीद ज़कारिया को अपने एक कॉलम के लिए दूसरे अखबार की नकल करना महंगा पड़ गया है. टाइम और सीएनएन ने फरीद ज़कारिया को निलंबित कर दिया है. रुपर्ट मर्डॉक की कंपनी फॉक्स न्यूज़ द्वारा फोन हैकिंग में शामिल होने का मामला सामने आने के बाद अमरीकी पत्रकारिया जगत का ये दूसरा सबसे बड़ा विवाद है. भारतीय मूल के फरीद ज़कारिया विदेशी मामलों के विशेषज्ञ पत्रकार हैं और लंबे समय से टाइम और सीएनएन के लिए स्तंभ लिखते रहे हैं. ज़कारिया सीएनएनएन पर 'जीपीएस' नामक एक लोकप्रिय टेलिविज़न शो भी प्रस्तुत करते हैं. फरीद ज़कारिया भारत में इस्लामी मामलों के जाने-माने चिंतक रहे रफ़ीक ज़कारिया के बेटे हैं. कम उम्र में ही वो पढ़ाई के लिए हॉर्वर्ड विश्वविद्यालय चले गए थे. मात्र 26 साल की उम्र में वो विदेशी मामलों की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘फॉरेन अफेयर्स’ के संपादक हो गए. विदेश मामलों और राजनीति से जुड़े ज़कारिया के लेख और उनकी किताबें आम लोगों और नीति निर्माताओं के बीच ही नहीं बल्कि अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा जैसे नेताओं के बीच भी काफी लोकप्रिय रही

शिवानी भटनागर से गीतिका शर्मा तक

गीतिका शर्मा ने आत्‍महत्‍या कर ली और उसको इंसाफ दिलाने के लिए कुछ लोगों ने कमर कस ली, क्‍योंकि आरोपी हरियाणा कांग्रेस सरकार में मंत्री है। गीतिका शर्मा की तस्‍वीर देखने के बाद मुझे पहले तो फिजा की याद आई, फिर मुझे उस वक्‍त की याद आई, जब मैं मीडिया जगत में कदम रख रहा था, उन दिनों भी एक ऐसा की केस चर्चाओं में था, मगर उस केस में महिला की हत्‍या की गई थी, जो मीडिया जगत से संबंध रखती थी, उसका नाम था शिवानी भटनागर। शिवानी भटनागर के केस में कई किस्‍से सामने आए, जिनमें एक था पुलिस अधिकारी आरके शर्मा से अवैध संबंधों का। आज उस बात को कई साल बीत गए, मगर गीतिका की मौत ने एक बार फिर उस याद को ताजा कर दिया, जो कुछ दिन पहले जिन्‍दगी को अलविदा कह कर इस दुनिया से दूर चली गई, पीछे सुलगते कई सवाल छोड़कर, जिनका उत्तर मिलते मिलते सरकारी कोर्टों में पता नहीं कितना वक्‍त लग जाएगा। आज गीतिका शर्मा के लिए इंसाफ की गुहार लगाई जा रही है, आरोपों के दायरे में है एक मंत्री। शायद इस लिए यह केस हाइप्रोफाइल हो गया। इन दिनों एक और घटना घटित हुई, जिसमें फिजा ने पंखे से लटक कर अपनी जान दे दी। इसके तार भी एक नेता से जु

एक है गुज्‍जु नरेंद्र मोदी

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आंख देश के सिंहासन पर, मगर निगाह जनता की ओर, पूरे हिन्‍दुस्‍तान में ऐसा एक ही व्‍यक्‍ितत्‍व है नरेंद्र मोदी। भले ही भाजपा का अस्‍ितत्‍व खतरे में हो, भले ही भाजपा का कद्दवार नेता लालकृष्‍ण आडवानी किसी गैर सियासती को प्रधानमंत्री पद का दावेदार बोल रहे हों, मगर जनता केवल एक ही नाम बोल रही है वो नरेंद्र मोदी, जबकि देश के संविधान अनुसार बहुमत हासिल करने वाली पार्टी अपना नेता चुनती है प्रधानमंत्री पद के लिए। मगर फिर भी देश में आज एक ही नाम गूंज रहा है, वो है नरेंद्र मोदी, जो गुजरात का मुख्‍यमंत्री है, जिसके दामन पर गोधरा दंगों के कथित धब्‍बे भी हैं, मगर वो आलोचनाओं की फिक्र नहीं करता, वो कहता है अगर दोषी हूं तो लटका दो फांसी पर, अगर दोषी नहीं तो जीने दो। आज मोदी को लेकर फेसबुक पर तरह तरह की प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं, जिनमें एक है, अगर देश का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी होता तो विदेशी संबंधों पर क्‍या असर पड़ता, तो आगे से उत्तर आता है, अगर देश का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी होता तो पाकिस्‍तान कश्‍मीर के लिए नहीं हम से लाहौर के लिए लड़ रहा होता। कोई उसको एक है गुज्‍जु लिख रहा है। ताज

अंजलि गोपालन पर 'नाज़' है

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इनसे मिलिए ये किसी बड़ी पार्टी की मुखिया नहीं है, कोई सेना की अध्यक्षा नहीं है, किसी बड़े आन्दोलन का हिस्सा नहीं है, ये महिला अधिकारों के लिए भी नहीं लड़ रही, ये कोई बड़ी क्रान्ति नहीं कर रही है पर फिर भी टाइम्स की 100 प्रभावशाली महिला में शामिल है कैसे ? सेवा से, वर्षो से अपनी लगन, अपने सेवा भाव से एड्स पीडितो की मदद कर रही अंजलि गोपालन ने त्यज्य एड्स रोगियों पर काम करना शुरू किया जब ये रोग दुनिया में महामारी बनता जा रहा था वे सही मायनों में भारत की फ्लोरेंस नाईटिनगेल है, उनका नाज़ फाउंडेशन आज भी उसी कार्य में जुटा है. वे टीवी पर नहीं दिखती, किताबो के लेबेल पर नहीं छपती, मार्क्स की बात नहीं करती सुकरात की बात नहीं करती. उन्हें सेवा से मतलब है, जिसमे वे कोई कोर कसार नहीं रखती. पत्रकार एवं न्‍यूज एंकर पूजा शुक्‍ला के फेसबुक से