सेंसर बोर्ड की गरिमा का ख्याल तो करें
निर्देशक अभिषेक चौबे निर्देशित फिल्म 'उड़ता पंजाब' को सेंसर बोर्ड ने हरी झंडी दिखाने से मना कर दिया क्योंकि फिल्म में गाली गालौज बहुत था। केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड ने इस फिल्म को हरी झंडी देना बेहतर नहीं समझा। भारतीय सेंसर बोर्ड पिछले कुछ महीनों से चर्चा का केंद्र बना हुआ।
कभी सेंसर बोर्ड में पदाधिकारियों की अदला बदली को लेकर तो कभी सेंसर बोर्ड की गैर एतराजजनक आपत्तियों के कारण। ऐसा नहीं कि सेंसर बोर्ड ने उड़ता पंजाब को बैन कर पहली बार दोहरे मापदंड अपनाने की बात जग जाहिर की। सेंसर बोर्ड इससे पहले भी ऐसा कर चुका है।
जाने माने फिल्मकार राजकुमार हिरानी की फिल्म 'साला खाडूस' को बिना एतराज के पास कर दिया गया जबकि विकास राव द्वारा निर्मित फिल्म ‘बेचारे बीवी के मारे’ से साला शब्द हटाने का आदेश दिया गया। इस फिल्म के निर्माता विकास राव ने केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड पर भेदभाव भरा सलूक करने का आरोप तक लगाया था।
एक तरफ 'ग्रांड मस्ती' और 'मस्तीजादे' जैसी फिल्मों को रिलीज करने की अनुमति है और वहीं दूसरी तरफ 'उड़ता पंजाब' को इसलिए रोक लिया जाता है कि फिल्म में गाली गालौच है। दिलचस्प बात तो यह है कि बुद्धा इन ए जाम को इस सेंसर बोर्ड ने पास किया है, जिसमें भी गाली गालौज की कोई कमी नहीं है। मगर, इस फिल्म के अभिनेताओं में अनुपम खेर का नाम शामिल था, जो बीजेपी सरकार के सबसे करीब हैं।
इतना ही नहीं, सेंसर बोर्ड ने हाल में मुजफ्फरनगर के दंगों की सच्चाई को कथित तौर पर बयान करती फिल्म शोरगुल को यू/ए प्रमाण पत्र दिया, जबकि हिंसाग्रस्त फिल्मों के लिए ए प्रमाण पत्र दिया जाता है, या उनको काफी हद तक साधारण बनाने के आदेश दिए जाते हैं। मगर, इस फिल्म के साथ ऐसा नहीं हुआ, क्योंकि इस फिल्म में यूपी सरकार का चेहरा नंगा किया जाएगा। जैसे उड़ता पंजाब से पंजाब सरकार की खटिया खड़ी होने की संभावना है। पंजाब की मौजूदा सरकार में भाजपा की हिस्सेदारी है। दोनों संघी साथी हैं।
इतना ही नहीं, पंजाब में जल्द चुनाव होने वाले हैं। यदि उड़ता पंजाब बॉक्स ऑफिस पर हिट हो गई तो बीजेपी और शिअद को लेने के देने पड़ सकते हैं क्योंकि पंजाब मंत्रियों और पुलिस अधिकारियों पर नशा तस्करी में शामिल होने के आरोप लग चुके हैं।
पिछले कुछ सालों में पंजाब ने जो नशे का कहर झेला है, उसको नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है। यह तो एक फिल्म है, मगर, पंजाब के लोगों ने तो युवा संतानों की अर्थियों को कंधे दिए हैं। सेंसर बोर्ड का कथित राजनीति से लबरेज एकपक्षीय नजरिया सेंसर बोर्ड की गरिमा को गिराएगा।
कभी सेंसर बोर्ड में पदाधिकारियों की अदला बदली को लेकर तो कभी सेंसर बोर्ड की गैर एतराजजनक आपत्तियों के कारण। ऐसा नहीं कि सेंसर बोर्ड ने उड़ता पंजाब को बैन कर पहली बार दोहरे मापदंड अपनाने की बात जग जाहिर की। सेंसर बोर्ड इससे पहले भी ऐसा कर चुका है।
जाने माने फिल्मकार राजकुमार हिरानी की फिल्म 'साला खाडूस' को बिना एतराज के पास कर दिया गया जबकि विकास राव द्वारा निर्मित फिल्म ‘बेचारे बीवी के मारे’ से साला शब्द हटाने का आदेश दिया गया। इस फिल्म के निर्माता विकास राव ने केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड पर भेदभाव भरा सलूक करने का आरोप तक लगाया था।
एक तरफ 'ग्रांड मस्ती' और 'मस्तीजादे' जैसी फिल्मों को रिलीज करने की अनुमति है और वहीं दूसरी तरफ 'उड़ता पंजाब' को इसलिए रोक लिया जाता है कि फिल्म में गाली गालौच है। दिलचस्प बात तो यह है कि बुद्धा इन ए जाम को इस सेंसर बोर्ड ने पास किया है, जिसमें भी गाली गालौज की कोई कमी नहीं है। मगर, इस फिल्म के अभिनेताओं में अनुपम खेर का नाम शामिल था, जो बीजेपी सरकार के सबसे करीब हैं।
इतना ही नहीं, सेंसर बोर्ड ने हाल में मुजफ्फरनगर के दंगों की सच्चाई को कथित तौर पर बयान करती फिल्म शोरगुल को यू/ए प्रमाण पत्र दिया, जबकि हिंसाग्रस्त फिल्मों के लिए ए प्रमाण पत्र दिया जाता है, या उनको काफी हद तक साधारण बनाने के आदेश दिए जाते हैं। मगर, इस फिल्म के साथ ऐसा नहीं हुआ, क्योंकि इस फिल्म में यूपी सरकार का चेहरा नंगा किया जाएगा। जैसे उड़ता पंजाब से पंजाब सरकार की खटिया खड़ी होने की संभावना है। पंजाब की मौजूदा सरकार में भाजपा की हिस्सेदारी है। दोनों संघी साथी हैं।
इतना ही नहीं, पंजाब में जल्द चुनाव होने वाले हैं। यदि उड़ता पंजाब बॉक्स ऑफिस पर हिट हो गई तो बीजेपी और शिअद को लेने के देने पड़ सकते हैं क्योंकि पंजाब मंत्रियों और पुलिस अधिकारियों पर नशा तस्करी में शामिल होने के आरोप लग चुके हैं।
पिछले कुछ सालों में पंजाब ने जो नशे का कहर झेला है, उसको नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है। यह तो एक फिल्म है, मगर, पंजाब के लोगों ने तो युवा संतानों की अर्थियों को कंधे दिए हैं। सेंसर बोर्ड का कथित राजनीति से लबरेज एकपक्षीय नजरिया सेंसर बोर्ड की गरिमा को गिराएगा।
सेंसर बोर्ड का कथित राजनीति से लबरेज एकपक्षीय नजरिया सेंसर बोर्ड की गरिमा को गिराएगा।
जवाब देंहटाएंआज की बुलेटिन इज्जत और ब्लॉग बुलेटिन में आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।
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जवाब देंहटाएंसुन्दर और सटीक पोस्ट...
ऐसे ही सारगर्भित पॉलिटिकल आर्टिकल्स (Political Articles), सोशल (Social), इकोनॉमिकल (Economical) लेखों के लिए मिथिलेश२०२०.कॉम पर जाएँ!
जवाब देंहटाएंआपने काफी सुन्दर लिखा है...
इसी विषय Udta Punjab Hindi Article पर मिथिलेश२०२०.कॉम पर लिखा गया यह लेख अवश्य देखिये!
nice
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