कोई मेरे भी कपड़े नीलाम करा दे!

श्रीराम चाचा के बहुत दिन बाद दर्शन हुए. वे मस्त मुद्रा में थे. मिलते ही बोले, ‘‘भतीजे कोई मेरी चड्ढी-बनियान नीलाम पर चढ़ा दे, तो मेरा काम बन जाये, बहुत कड़की चल रही है. नीलामी से नाम भी होगा और दाम भी मिल जायेंगे.’’ मुङो तुरंत समझ में आ गया कि चाचा नवलखा मोदी सूट से प्रभावित हो गये हैं.

मैं कुढ़ कर बोला, ‘‘चाचा तुम तो ऐसे कह रहे हो जैसे मैंने कोई नीलामघर खोल रखा हो! और अगर खोल भी रखा हो तो तुम्हारे चड्ढी-बनियान को पूछेगा कौन? तुम सलमान खान हो या फिर तुम्हारे चड्ढी-बनियान में मोदी सूट की तरह सोने के तार बुने हैं?’’ चाचा तपाक से बोले, ‘‘भतीजे, सोने के तार नहीं हैं, पर यह तार-तार तो है.’’ फिर उन्होंने चुटकी से पकड़ कर बनियान को लहराया और कहा, ‘‘देख लो इसमें ‘मेड इन इंडिया’ से लेकर ‘मेक इन इंडिया’ तक!’’ उनकी बनियान में इतने छेद थे जितने कि मच्छरदानी में होते हैं. मैंने समझाने की कोशिश की, ‘‘क्यों अपनी इज्जत नीलाम करने पर तुले हो?’’ मगर चाचा टस से मस न हुए, बोले- ‘‘यहां तो लोग खुद नीलाम हो रहे हैं. देखो अभी आइपीएल में युवराज की 16 करोड़ रुपये की बोली लगी. जब इनसान की नीलामी में कोई शर्म नहीं, तो फिर कपड़ों को नीलाम करने में कौन सी इज्जत चली जायेगी?

असल बात तो यह है कि दाम कितने मिलते हैं. दाम अच्छे लग जायें तो अपने आप इज्जत बढ़ जाती है. और अगर न भी बढ़े तो तुम जैसे पत्रकार किसलिए हैं? प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक से लेकर सोशल मीडिया तक में कलम चला कर मेरी इज्जत में चार चांद लगा देना.’’ मैं समझ गया कि चाचा जिद पर अड़े हैं. वैसे ही जैसे बिहार में मांझी अड़े थे. सो, मैंने चाचा के आगे हथियार डाल दिये और कहा, ‘‘मगर यह चड्ढी-बनियान नहीं चलेगी, कोई सूट-वूट हो तो निकालो.’’ मगर फौरन ख्याल आया कि हमारे चाचा तो उन हिंदुस्तानियों में हैं जिन्हें आज भी तन ढकने को ढंग के कपड़े नसीब नहीं हैं, सूट कहां से होगा. तभी रहीम चाचा नमूदार हुए और मुङो धौल जमाते हुए पूछा, ‘‘क्या खिचड़ी पक रही है?’’

मुझसे पूरा माजरा समझने के बाद बोले, ‘‘श्रीराम का दिमाग गड़बड़ा गया है. हम ‘हिंदुस्तान’ वाले ‘इंडिया’ वालों की नकल क्यों करें? वो तो अच्छा हुआ मोदीजी सूट के साथ पगड़ी पहन कर ओबामा से नहीं मिले थे. नहीं तो आज पगड़ी भी नीलाम हो जाती.’’ इस पर श्रीराम चाचा ठठा कर हंसे, ‘‘किस पगड़ी की बात कर रहे हो रहीम मियां? वह तो उसी दिन नीलाम हो गयी जब उदारीकरण के बाद हमारी आर्थिक और विदेश नीति वर्ल्ड बैंक, आइएमएफ और अमेरिका के इशारों पर तय होने लगी. तब से सब कुछ नीलाम ही हो रहा है. निजी कंपनियों के लिए कोयला और 2जी-3जी का स्पेक्ट्रम नीलाम हो रहा है, तो उच्च शिक्षण संस्थानों में डिग्री नीलाम हो रही है. पैसा फेंको और तमाशा देखो.. लगता है पूरा देश नीलाम पर चढ़ा है.

जावेद इस्लाम
प्रभात खबर, रांची
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