अब उंगली का ट्रेंड
कोई गाली बोलता था तो सेंसर बोर्ड बीप मारकर उसको दबा देता था, लेकिन अब जो पश्िचम से नया ट्रेंड आया है, उसका तोड़ कहां से लाएगा सेंसर। मूक रहकर हाव भाव व इशारों से गाली देने का ट्रेंड, जहां रॉक स्टार में रणवीर कपूर पश्िचम की भांति उंगली उठाकर गाली देते हुए नजर आए, वहीं प्लेयर्स में रणबीर कपूर के साथ अभिनय पारी शुरू करने वाली सोहम कपूर उसी इशारे का इस्तेमाल करते हुए नजर आई।
जो उंगलियां कल तक किसी ओर इशारा करने के, माथे पर तिलक करने के, किसी को दोषी ठहरने के, शू शू करने की अनुमति मांगने के काम आती थी, अब उन्हीं में से एक उंगली गाली देने के काम भी आने लगी है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि सिनेमा समय के साथ साथ अपना प्रभाव छोड़ता है, और उंगली दिखाकर गाली देने का प्रचार बहुत जल्द हिन्दुस्तानी युवाओं के सिर चढ़कर बोलने लग सकता है। इतना ही नहीं, बहुत चीजें भाषा में शामिल होने लगी है, जैसे कि डरे हुए को देखकर लड़की हो या लड़का बेबाक ही कह देते हैं, तेरी तो बहुत फटती है, क्या यह शब्द हमारी भाषा का हिस्सा थे, आखिर यह शब्द कहां से आ टपके, हमारी बोल चाल में। यह शब्द सिनेमा से, सिनेमा कुछ लोग मिलकर रचते हैं, लेकिन वह सिनेमा लाखों लोगों को प्रभावित करता है।
पिछले दिनों रिलीज हुई दिल्ली बेली में बेशुमार गालियां थी, उसका एक गीत भी डबल मीनिंग था, इसको लेकर आपकी अदालत में जब आमिर खान से पूछा जा रहा था तो वह मुस्कराते हुए कह रहे थे, आज की पीढ़ी इसको पसंद करती है, और लड़कियां फिल्म का समर्थन कर रही थी, वह कह रही थी अगर लड़कों को गालियां आती है तो लड़कियों को भी गाली देनी आनी चाहिए।
अंत में सवाल यह खड़ा होता है कि क्या फिल्म इंडस्ट्री युवाओं को सही दिशा देने के लिए काम न कर सिर्फ अपने गोलक भरना चाहती है।
जो उंगलियां कल तक किसी ओर इशारा करने के, माथे पर तिलक करने के, किसी को दोषी ठहरने के, शू शू करने की अनुमति मांगने के काम आती थी, अब उन्हीं में से एक उंगली गाली देने के काम भी आने लगी है।
इसमें कोई दो राय नहीं कि सिनेमा समय के साथ साथ अपना प्रभाव छोड़ता है, और उंगली दिखाकर गाली देने का प्रचार बहुत जल्द हिन्दुस्तानी युवाओं के सिर चढ़कर बोलने लग सकता है। इतना ही नहीं, बहुत चीजें भाषा में शामिल होने लगी है, जैसे कि डरे हुए को देखकर लड़की हो या लड़का बेबाक ही कह देते हैं, तेरी तो बहुत फटती है, क्या यह शब्द हमारी भाषा का हिस्सा थे, आखिर यह शब्द कहां से आ टपके, हमारी बोल चाल में। यह शब्द सिनेमा से, सिनेमा कुछ लोग मिलकर रचते हैं, लेकिन वह सिनेमा लाखों लोगों को प्रभावित करता है।
पिछले दिनों रिलीज हुई दिल्ली बेली में बेशुमार गालियां थी, उसका एक गीत भी डबल मीनिंग था, इसको लेकर आपकी अदालत में जब आमिर खान से पूछा जा रहा था तो वह मुस्कराते हुए कह रहे थे, आज की पीढ़ी इसको पसंद करती है, और लड़कियां फिल्म का समर्थन कर रही थी, वह कह रही थी अगर लड़कों को गालियां आती है तो लड़कियों को भी गाली देनी आनी चाहिए।
अंत में सवाल यह खड़ा होता है कि क्या फिल्म इंडस्ट्री युवाओं को सही दिशा देने के लिए काम न कर सिर्फ अपने गोलक भरना चाहती है।
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जवाब देंहटाएंसमस्या बहुत गंभीर है- चौथी कक्षा मे पढ़ने वाला बच्चा अपने दोस्त से पूछता है- हनीमून के लिये कहाँ जाएगा? और जब ये पूछा कि कहाँ से सीखा ये कहाँ सुना तो जबाब मिला टी.वी. के एड में ...और बच्चों की भाषा तो बदल ही चुकी है बिना गाली के कोई बात पूरी होती नहीं लगती .....
जवाब देंहटाएंआपकी बात सही ही लगती है -फिल्म इंडस्ट्री युवाओं को सही दिशा देने के लिए काम न कर सिर्फ अपने गोलक भरना चाहती है।