टाइम में मोदी, मीडिया में खलबली क्यूं
टाइम पत्रिका के पहले पन्ने पर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र सिंह मोदी की फोटो एक लाइन बिजनस मीन मोदी, बट केन ही लीड इंडिया के साथ प्रकाशित हुई, जो यह इशारा करती है कि इस बार टाइम ने गुजरात के मुख्यमंत्री को लेकर स्टोरी प्रकाशित की है, जो किसी भी पत्रिका का कार्य होता है, लेकिन जैसे ही इस पत्रिका ने अपना एशियाई अंक प्रकाशित किया, वैसे ही भारतीय मीडिया इसको लेकर एक स्टोरी बनाने बैठ गया, जैसे किसी पत्रिका ने पहली बार किसी व्यक्ित पर स्टोरी की हो, इंडिया टूडे उठाकर देख लो, क्या उस के फ्रंट पेज पर किसी व्यक्ित विशेष की फोटो नहीं होती, या फिर हिन्दुस्तान में प्रकाशित होने वाली पत्रिकाएं पत्रिकाएं नहीं हैं, सच कहूं तो दूर के ढोल सुहाने लगते हैं।
इस पत्रिका के जो जो अंश समाचार बनाकर सामने आए हैं, उनमें कुछ भी नया नहीं था, क्योंकि जो लाइन टाइम ने फ्रंट पेज पर लिखी है, वह पूछ रही है कि क्या मोदी भारत की अगुवाई कर सकते हैं, यह बात को पिछले लोक सभा चुनाव के दौरान हर मीडिया बोल रहा था, शायद मसालेदार खबरों को दिखाने वाले मीडिया की याददाश्त कमजोर है। अगर नरेंद्र मोदी के खिलाफ कोई लिखे तो बहुत अच्छी बात है, लेकिन पक्ष में लिखे तो खबर बनती है, समझ से परे है, मीडिया के पास मोदी पर उंगली उठाने के लिए एक ही इश्यू है, वो गोधरा कांड, वो ही मीडिया अमृतसर में हुए हमले को कैसे भूल जाती है, वह मीडिया दिल्ली में सिखों के साथ हुए जुल्म को कैसे भुला देती है,
अगर मोदी गुजरात के अंदर विकास नहीं कर रहा तो हर बार चुनाव जीत कर सत्ता में कैसे पहुंच जाता है, क्या गुजरात की जनता गूंगी बहरी है, क्या उसको अच्छे बुरे की समझ नहीं, अगर मीडिया मोदी के खिलाफ कुछ लिखना चाहता है तो उसके पास इसकी आजादी है, लेकिन अगर कोई अच्छा लिखता है, उसको खबर बनाकर मोदी पर उंगली उठाना वह उचित नहीं|
वैसे भी किसी ने कहा है कि बुरे व्यक्ित के भीतर एक अच्छा गुण होता है, तो यह भी स्वभाविक है कि एक अच्छे आदमी के भीतर एक बुरा गुण भी होगा, ये बात तो आंकलन वाले को देखनी होती है कि कौन सी चीज को उभारकर लोगों के सामने रखना है, जैसे कि आधा पानी का भरा हुआ गिलास, किसी को आधा खाली नजर आता है।
इस पत्रिका के जो जो अंश समाचार बनाकर सामने आए हैं, उनमें कुछ भी नया नहीं था, क्योंकि जो लाइन टाइम ने फ्रंट पेज पर लिखी है, वह पूछ रही है कि क्या मोदी भारत की अगुवाई कर सकते हैं, यह बात को पिछले लोक सभा चुनाव के दौरान हर मीडिया बोल रहा था, शायद मसालेदार खबरों को दिखाने वाले मीडिया की याददाश्त कमजोर है। अगर नरेंद्र मोदी के खिलाफ कोई लिखे तो बहुत अच्छी बात है, लेकिन पक्ष में लिखे तो खबर बनती है, समझ से परे है, मीडिया के पास मोदी पर उंगली उठाने के लिए एक ही इश्यू है, वो गोधरा कांड, वो ही मीडिया अमृतसर में हुए हमले को कैसे भूल जाती है, वह मीडिया दिल्ली में सिखों के साथ हुए जुल्म को कैसे भुला देती है,
अगर मोदी गुजरात के अंदर विकास नहीं कर रहा तो हर बार चुनाव जीत कर सत्ता में कैसे पहुंच जाता है, क्या गुजरात की जनता गूंगी बहरी है, क्या उसको अच्छे बुरे की समझ नहीं, अगर मीडिया मोदी के खिलाफ कुछ लिखना चाहता है तो उसके पास इसकी आजादी है, लेकिन अगर कोई अच्छा लिखता है, उसको खबर बनाकर मोदी पर उंगली उठाना वह उचित नहीं|
वैसे भी किसी ने कहा है कि बुरे व्यक्ित के भीतर एक अच्छा गुण होता है, तो यह भी स्वभाविक है कि एक अच्छे आदमी के भीतर एक बुरा गुण भी होगा, ये बात तो आंकलन वाले को देखनी होती है कि कौन सी चीज को उभारकर लोगों के सामने रखना है, जैसे कि आधा पानी का भरा हुआ गिलास, किसी को आधा खाली नजर आता है।
भारतीय मीडिया , नेताओं और बहुतों को विदेशी ब्रांड "देव वाणी की तरह लगती है , ज़रूरी नहीं कि उसका कोई स्तर हो , बस उसे विदेशी होना चाहिए .देखते ही चरण चुम्बन शुरू हो जाता है .
जवाब देंहटाएंsahi likha hai...
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