माहौल बदलो, जीवन बदलेगा
मेरा बेटा, गोल्ड मेडलिस्ट है, देखना उसको कहीं न कहीं बहुत अच्छी नौकरी मिल जाएगी। शाम ढले बेटा घर लौटता है और कहता है कि पापा आपका ओवर कोंफीडेंस मत खा गया, मतलब जॉब नहीं मिली। इंटरव्यूर, उसका शानदार रिज्यूम देखकर कहता है, कुनाल चोपड़ा, तुम्हारा रिज्यूम इतना शानदार है कि इससे पहले मैंने कभी ऐसा रिज्यूम नहीं देखा, लेकिन अफसोस की बात है कि तुमने पिछले कई सालों से कोई केस नहीं लड़ा। यह अंश क्लर्स टीवी पर आने वाले एक सीरियल परिचय के हैं, जो मुझे बेहद पसंद है, खासकर सीरियल के नायक कुनाल चोपड़ा के बिंदास रेवैया के कारण। कितनी हैरानी की बात है कि एक पिता अपने इतने काबिल बेटे को दूसरों के लिए कुछ पैसों खातिर कार्य करते हुए देखना चाहता है। इसमें दोष उसके पिता का नहीं बल्कि उस समाज, माहौल का है, जिस माहौल समाज में वह रहते हैं, कुणाल चोपड़ा गोल्ड मैडलिस्ट ही नहीं बल्कि एक बेहतरीन वकील है, मगर उसका परिवार तब बेहद खुद होता है, जब उसकी प्रतिभा को वही फार्म कुछ पैसों में खरीद लेती है, जिसके इंटरव्यूर ने कुणाल चोपड़ा को रिजेक्ट कर दिया था। ऐसी कई कंपनियां हैं, जहां पर एक से एक प्रतिभावान व्यक्ित बैठे हुए हैं, मगर वह मेरे दोस्त के मकान मालिकों के यहां रखे तोते की तरह अपने पर भरोसा खो चुके हैं। इसमें दोष उनका नहीं, बल्कि उस माहौल का है, जो उनको बचपन से युवावस्था तक मिला। जिन्दगी में वहीं लोग कामयाब हुए हैं, जिन्होंने उस माहौल को त्याग दिया, जहां मैं नहीं कर सकता, तुम नहीं कर सकते, जैसे वाक्यों का इस्तेमाल बचपन से युवावस्था तक लाखों बार होता है। समाज जानबुझकर ऐसा नहीं करता, मगर जाने अनजाने में ही ऐसा होता है, जैसे कि आपने किसी से पूछा कि मुझे बिजनस शुरू करना है, वह आपसे पूछेगा नहीं किस चीज का, वो पहले ही कह देगा तेरे बस का रोग नहीं, क्योंकि आपकी तरह जब उसने भी कुछ अलग करने का साहस किया होगा तो सामने से उसको यही उत्तर मिला होगा।
प्रभावशाली प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपको और आपके प्रियजनों को दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें….!
संजय भास्कर
आदत....मुस्कुराने की
नई पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
कुलवन्त भाई जन्मदिन की ढेरों शुभकामनायें....!
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