गधा और मैं
अखबार पढ़ने का बेहद शौक है मुझे, किसी पुराने अखबार की कीटिंग मिल गई, जिस पर गधे की विशेषताएं लिखी थी, मैं उनको पढ़कर गधे पर हंसने लगा, हंसी अभी खत्म नहीं हुई थी कि मेरे मन ने मुझे जोरदार तमाचा रसीद कर दिया और कहा, फिर से पढ़ो और अपने से तुलना करो, मैंने कहा, रे मन चुप रहे, कहां गधा और कहां मैं। मन ने जोर से मुझपर चिल्लाते हुए कहा, गौर से पढ़कर देख क्या लिखा है, गधे की नहीं तेरी विशेषताएं हैं। मैंने पढ़ना शुरू किया, गधे को सुबह सुबह कुम्हार लात मारकर जगाता है, मन ने कहा, तुम को तुम्हारी पत्नी। गधा उठने के बाद काम के लिए तैयार होता है, मन ने कहा, तुम भी, गधे के साथ दोपहर का खाना कुम्हार बांध देता है, तुम्हारे साथ भी लांच बॉक्स होता है, गधा दिन भरकर काम करता है, और गधा पैसे कमाकर कुम्हार को देता है, तुम भी दिन भर काम करते हो और पैसा कमाकर बीवी को देते हो, है कोई फर्क तुम मैं और गधे में, मुझ पर जोरदार प्रहार करते हुए मन बोला। अब मैं क्या कहता, चुप हो गया, मौन हो गया।
काम का गधा है, गधा काम का है :)
जवाब देंहटाएंहाँ जिंदगी कभी-कभी तो गधे जैसी होती है.. लेकिन जिंदगी की खूबसूरती उसे गधे से दूर करती है...
जवाब देंहटाएंवैसे रोजाना की जिन्दगी के हिसाब से गधा ही है आदमी...हकीकत को अगर वाकई समझ लिया जाये हो सकता है हम गधेपन से कुछ जुदा हो जायें...
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