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विद्या बालन की 'द डर्टी पिक्‍चर'

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रविवार के समाचार पत्र में एक बड़ा सा विज्ञापन था, जिसमें द डर्टी पिक्‍चर का पोस्‍टर और टीवी पर फिल्‍म प्रसारित होने का समय छपा हुआ था, यकीनन लोगों ने समय पर टीवी शुरू किया होगा, मगर हुआ बिल्‍कुल उनकी उम्‍मीद से परे का, क्‍यूंकि टीवी पर उस समय कुछ और चल रहा था, ऐसा ही कुछ हुआ था, पेज थ्री के वक्‍त हमारे साथ। हम पांच लोग टिकट विंडो से टिकट लेकर तेज रफ्तार भागते हुए सिनेमाहाल में पहुंचे, जितनी तेजी से अंदर घुसे थे, उतनी तेजी से बाहर भी निकले, क्‍यूंकि सिनेमा हॉल के बाहर पोस्‍टर पेज थ्री का था, और अंदर फिल्‍म बी ग्रेड की चल रही थी। शायद द डर्टी पिक्‍चर देखने की उम्‍मीद लगाकर रविवार को 12 बजे टीवी ऑन करने वालों के साथ कुछ ऐसा ही हुआ होगा। यकीनन लोग घर से बाहर तो नहीं भागे होंगे, मगर निराशा होकर चैनल तो जरूर बदल दिया होगा। द डर्टी पिक्‍चर, इस लिए अपने निर्धारित समय पर प्रसारित नहीं हुई, क्‍यूंकि कोर्ट ने इसके प्रसारण रोक लगाते हुए इसको रात्रि ग्‍यारह बजे के बाद प्रसारित करने का आदेश दिया है। मगर मसला तो यह उठता है कि अगर 'द डर्टी पिक्‍चर' इतनी ही गंदी है, जितनी कि कोर्ट मान

रुपहले पर्दे का असली द एंग्री यंग मैन

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'ढ़ाई किलो का हाथ, जब उठता है तो आदमी उठता नहीं, उठ जाता है' इस संवाद को सुनते ही एक चेहरा एकदम से उभरकर आंखों के सामने आ जाता है। वो चेहरा असल जिन्‍दगी में बेहद शर्मिला व मासूम है, लेकिन रुपहले पर्दे पर वो हमेशा ही जिद्दी व गुस्‍सैल नजर आया, कभी क्रप्‍ट सिस्‍टम को लेकर तो कभी प्‍यार की दुश्‍मन दुनिया को लेकर। जी हां, मेरी निगाह में रुपहले पर्दे का असली द एंग्री यंग मैन कोई और नहीं बल्‍कि ही मैन धर्मेंद्र का बेटा सन्‍नी दिओल है, जो बहुत जल्‍द एक बार फिर रुपहले पर्दे पर मोहल्‍ला अस्‍सी से अपने दीवाने के रूबरू होने वाला है। प्रचार व मीडिया से दूर रहकर अपने काम को अंजाम देने वाले दिओल खानदान के इस चिराग ने दिओल परिवार का नाम ऊंचा ही किया है, कभी गिराया नहीं, अच्‍छे बुरे वक्‍त से गुजरते हुए सन्‍नी ने फिल्‍म जगत में करीबन तीन दशक पूरे कर लिए हैं। इतने लम्‍बे कैरियर में सन्‍नी को अब तक दो राष्ट्रीय पुरस्कार और फिल्‍मफेयर पुरस्कार मिल चुके हैं। मगर आज भी बॉलीवुड में उनका हमउम्र हीरो उतना कदवार नहीं है, जितना के सन्‍नी दिओल। गत साल 19 अक्‍टूबर को 55 साल पूरे कर चुके सन्‍नी ने

पांच सितारा फिल्‍म, विधा की रहस्‍यमयी कहानी

फिल्‍में तीन चीजों से चलती है, वो तीन चीजें हैं इंटरटेन्‍मेंट इंटरटेन्‍मेंट इंटरटेन्‍मेंट, भले विधा बालन ने इस संवाद को एकता कपूर की छत्र छाया में बनी फिल्‍म द डर्टी पिक्‍चर में कहा हो, लेकिन असल में विधा भी जानती है कि फिल्‍म में तीन चीजों से चलती हैं, बोले तो शॉलिड कहानी, मजबूत निर्देशन एवं जर्बदस्‍त अभिनय, और विधा की कहानी में तीनों चीजें एक से बढ़कर एक हैं। नीरज पांडे की ए वेडनेसडे फिल्‍म की तरह, कहानी का अंतिम पड़ाव दर्शकों को यह बात भुला देता है कि वह कुछ पलों बाद सिनेमा हाल छोड़ने वाले हैं। निर्देशक संजोय घोष फिल्‍म बनाते समय किसी कदर अपने काम में डूबे होंगे, फिल्‍म की कसावट देखने के बाद कोई भी व्‍यक्‍ित बड़ी आसानी से समझ सकता है। उन्‍होंने निर्देशन में, और विधा एवं अन्‍य अभिनेताओं ने अभिनय ने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। श्री घोष कहीं भी जल्‍दबाजी करते हुए नजर नहीं आते, बल्‍कि वह धीरे धीरे कदम दर कदम फिल्‍म को आगे बढ़ाते हुए अंत को इतना यादगार बनाते हैं कि दर्शक सिनेमा हाल से बाहर निकालते हुए तारीफ करने से चूक नहीं सकते, उन्‍होंने फिल्‍म को एक रहस्‍यमयी नॉबेल की तरफ ही बना

अब उंगली का ट्रेंड

कोई गाली बोलता था तो सेंसर बोर्ड बीप मारकर उसको दबा देता था, लेकिन अब जो पश्‍िचम से नया ट्रेंड आया है, उसका तोड़ कहां से लाएगा सेंसर। मूक रहकर हाव भाव व इशारों से गाली देने का ट्रेंड, जहां रॉक स्‍टार में रणवीर कपूर पश्‍िचम की भांति उंगली उठाकर गाली देते हुए नजर आए, वहीं प्‍लेयर्स में रणबीर कपूर के साथ अभिनय पारी शुरू करने वाली सोहम कपूर उसी इशारे का इस्‍तेमाल करते हुए नजर आई। जो उंगलियां कल तक किसी ओर इशारा करने के, माथे पर तिलक करने के, किसी को दोषी ठहरने के, शू शू करने की अनुमति मांगने के काम आती थी, अब उन्‍हीं में से एक  उंगली  गाली देने के काम भी आने लगी है। इसमें कोई दो राय नहीं कि सिनेमा समय के साथ साथ अपना प्रभाव छोड़ता है, और उंगली दिखाकर गाली देने का प्रचार बहुत जल्‍द हिन्‍दुस्‍तानी युवाओं के सिर चढ़कर बोलने लग सकता है। इतना ही नहीं, बहुत चीजें भाषा में शामिल होने लगी है, जैसे कि डरे हुए को देखकर लड़की हो या लड़का बेबाक ही कह देते हैं, तेरी तो बहुत फटती है, क्‍या यह शब्‍द हमारी भाषा का हिस्‍सा थे, आखिर यह शब्‍द कहां से आ टपके, हमारी बोल चाल में। यह शब्‍द सिनेमा से, सिनेमा

क्या देखते हैं वो फिल्में...

मंगलवार को एक काम से चंडीगढ़ जाना हुआ, बठिंडा से चंडीगढ़ तक का सफर बेहद सुखद रहा, क्योंकि बठिंडा से चंडीगढ़ तक एसी कोच बसों की शुरूआत जो हो चुकी है, बसें भी ऐसी जो रेलवे विभाग के चेयर कार अपार्टमेंट को मात देती हैं। इन बसों में सुखद सीटों के अलावा फिल्म देखने की भी अद्भुत व्यवस्था है। इसी व्यवस्था के चलते सफर के दौरान कुछ समय पहले रिलीज हुई पंजाबी फिल्म मिट्टी देखने का मौका मिल गया, जिसके कारण तीन चार घंटे का लम्बा सफर बिल्कुल पकाऊ नहीं लगा। पिछले कुछ सालों से पुन:जीवित हुए पंजाबी फिल्म जगत प्रतिभाओं की कमी नहीं, इस फिल्म को देखकर लगा। फिल्म सरकार द्वारा किसानों की जमीनों को अपने हितों के लिए सस्ते दामों पर बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हवाले करने जैसी करतूतों से रूबरू करवाते हुए किसानों की टूटती चुप्पी के बाद होने वाले साईड अफेक्टों से अवगत करवाती है। फिल्म की कहानी चार बिगड़े हुए दोस्तों से शुरू होती है, जो नेताओं के लिए गुंदागर्दी करते हैं, और एक दिन उनको अहसास होता है कि वो सही अर्थों में गुंडे नहीं, बल्कि सरदार के कुत्ते हैं, जो उसके इशारे पर दुम हिलाते हैं। वो इस जिन्दगी से निजा

नो एंट्री, वेलकम और थैंक यू

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कुलवंत हैप्पी आप ने अक्सर देखा होगा कि आप "थैंक्स" कहते हैं तो सामने से जवाब में "वेलकम" सुनाई पड़ता है, मेंशन नॉट तो गायब ही हो गया। ये ऐसे ही हुआ, जैसे अमिताभ के स्टार बनते ही शत्रूघन सिन्हा एवं राजेश खन्ना की स्टार वेल्यू। कभी कभी थैंक्स एवं वेलकम का क्रम बदल भी जाता है, वेलकम पहले और थैंक्स बाद में आता है। शायद फिल्म निर्देशक अनीस बज्मी दूसरे क्रम पर चल रहे हैं, तभी तो उन्होंने पहले कहा, "नो एंट्री", फिर कहा, "वेलकम" और अब कह रहे हैं "थैंक यू"। अनीस के नो एंट्री कहने पर भी हाऊसफुल हो गए थे, और वेलकम कहने पर भी, लेकिन सवाल उठता है कि क्या दर्शक उनके थैंक यू कहने पर वेलकम कहेंगे? सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि इस बार अक्षय कुमार के साथ उनकी लक्की गर्ल कैटरीना नहीं, और उनका वक्त वैसे भी ख़राब चल रहा है, फिल्म आती है और बिन हाऊसफुल किए चली जाती है, वो बात जुदा है कि अक्षय कुमार ने इससे भी ज्यादा बुरा वक्त देखा है, और वो इस स्थिति को संभाल लेंगे, मगर लगातार दो फिल्म फ्लॉप देने वाली अनिल कपूर की बेटी का कैरियर धर्मेंद्र की बेटी ईशा देओल

लव सेक्स और धोखा बनाम नग्न एमएमएस क्लिप

फिल्म के निर्देशक और निर्माता ने फिल्म का शीर्षक समयोचित निकाला है, क्योंकि ज्यादातर दुनिया ऐसी होती जा रही है, प्रेम अभिनय की सीढ़ी जिस्म के बंगले तक पहुंचने के लिए लोग लगाते हैं, स्वार्थ पूरा होते ही उड़ जाते हैं जैसे फूलों का रस पीकर तितलियाँ। मुझे फिल्म के शीर्षक से कोई एतराज नहीं, लेकिन फिल्म समीक्षाएं पढ़ने के बाद फिल्म से जरूर एतराज हो गया है, ऐसा भी नहीं कि मैं कह रहा हूँ कि खोसला का घोंसला और ओए लक्की लक्की ओए जैसी फिल्म देने वाला निर्देशक एक घटिया फिल्म बनाएगा।    मैं जो बात करने जा रहा हूँ, वो फिल्म में न्यूड सीन के बारे में है, कहते हैं कि निर्देशक ने बहुत साधारण वीडियो कैमरों से बहुत ही उम्दा ढंग से इन सीनों को फिल्माया है। अगर कोई साधारण कैमरे से अच्छी चीज का फिल्मांकन करता है तो इस बात के लिए उसकी प्रशंसा कर सकता हूँ, अगर कोई कहता है कि उसने नग्न एमएमएस क्लिप को भी बढ़िया ढंग से शूट किया तो मुझे समझ नहीं आता कि उसकी प्रशंसा कैसे और क्यों करूँ। हाँ, बात कर रहे थे, फिल्म में नग्न दृश्य डालने की, शायद पहली बार ऐसा हिन्दी फिल्म में हुआ, हमबिस्तर होते तो हर फिल्म में दिखाई

आमिर खान की सफलता के पीछे क्या?

' ता रे जमीं पर' एवं 'थ्री इड्यिटस' में देश के शिक्षा सिस्टम के विरुद्ध आवाज बुलंद करते हुए आमिर खान को रुपहले पर्दे पर तो सबने देखा होगा। इन दोनों फिल्मों की अपार सफलता ने जहां आमिर खान के एक कलाकार रूपी कद को और ऊंचा किया है, वहीं आमिर खान के गम्भीर और संजीदा होने के संकेत भी दिए हैं। इन दिनों फिल्मों में आमिर खान का किरदार अलग अलग था। अगर 'तारे जमीं पर' में आमिर खान एक अदार्श टीचर था तो 'थ्री इड्यिटस' में एक अलहदा विद्यार्थी था, जो कुछ अलहदा ही करना चाहता था। इन किरदारों में अगर कुछ समानता नज़र आई तो एक जागरूक व्यक्ति का स्वाभाव और कुछ लीक से हटकर करने की जिद्द। इन दोनों किरदारों में शिक्षा सिस्टम पर सवालिया निशान लगाने वाले आमिर खान असल जिन्दगी में केवल 12वीं पास हैं। यह बात जानकर शायद किसी को हैरानी हो, लेकिन यह हकीकत है। आमिर खान ने अपना कद इतना ऊंचा कर लिया है कि कोई पूछने की हिम्मत भी नहीं कर सकता कि आप कितने पढ़े हैं। शायद यह सवाल उनकी काबलियत को देखते हुए कहीं गुम हो जाता है। कभी कभी लगता है कि आमिर खान ने देश के शिक्षा सिस्टम से तंग आकर स्कू

मशहूर व मरहूम शायर साहिर लुधियानवीं

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"मैं पल दो पल का शायर हूँ, पल दो पल मेरी कहानी है। पल दो पल मेरी हस्ती है, पल दो पल मेरी जवानी है। हिन्दी फिल्म संगीत जगत का बेहद लोकप्रिया गीत आज भी लोगों की जुबाँ पर बिराजमान है, लेकिन इस गीत को लिखने वाली कलम के बादशाह साहिर लुधियाणवीं 25 अक्टूबर 1980 को इस दुनिया से सदा के लिए रुखस्त हो गए थे। इस महान शायर और गीतकार का जन्म लुधियाना में 8 मार्च 1921 को हुआ। साहिर लुधियानवीं कितने मजाकिया थे, इस बात का अंदाजा उनकी नरेश कुमार शाद के साथ हुई एक मुलाकात से चलता है। नरेश कुमार शाद ने आम मुलाकातियों की तरह एक रसमी सवाल किया, आप कब और कहाँ पैदा हुए? तो साहिर ने उक्त सवाल को दोहराते हुए और थोड़ा सा मुस्कराते हुए कहा, ये सवाल तो बहुत रसमी है, कुछ इसमें और जोड़ दो यार। क्यों पैदा हुए?। शाद के अगले सवाल पर साहिर कुछ फ़खरमंद और गर्वमयी नज़र आए, उन्होंने कहा कि वो बी.ए. नहीं कर सके, गौरमिंट कॉलेज लुधिआना और दयाल सिंह कॉलेज ने उनको निकाल दिया था, जो आज उस पर बड़ा गर्व करते हैं। साहिर की इस बात से शाद को साहिर का नज़र ए कॉलेज शेअर याद आ गया। लेकिन हम इन फजाओं के पाले हुए तो हैं। गर या नहीं, यहा

ऑस्कर में नामांकित 'कवि' का एक ट्रेलर और कुछ बातें

कुछ दिन पहले दोस्त जनकसिंह झाला के कहने पर माजिद माजिदी द्वारा निर्देशित एक इरानी फिल्म चिल्ड्रन इन हेवन का कुछ हिस्सा देखा था और आज ऑस्कर में नामांकित हुई एक दस्तावेजी फिल्म 'कवि' का ट्रेलर देखा। इन दोनों को देखने के बाद महसूस किया कि भारतीय फिल्म निर्देशक अभी बच्चे हैं, कच्चे हैं। चाहे वो राजकुमार हिरानी हो, चाहे विशाल भारद्वाज। इन दोनों महान भारतीय निर्देशकों ने अपनी बात रखने के लिए दूसरी बातों का इस्तेमाल ज्यादा किया, जिसके कारण जो कहना था, वो किसी कोने में दबा ही रह गया। जहाँ थ्री इडियट्स एक मनोरंजन फिल्म बनकर रह गई, वहीं इश्किया एक सेक्सिया फिल्म बनकर रह गई। संगीतकार विशाल भारद्वाज की छत्रछाया के तले बनी अभिषेक चौबे निर्देशित फिल्म इश्किया अंतिम में एक सेक्सिया होकर रह जाती है। किसी फिल्म के सेक्सिया और मजाकिया बनते ही कहानी का मूल मकसद खत्म हो जाता है। और लोगों के जेहन में रह जाते हैं कुछ सेक्सिया सीन या फिर हँसाने गुदगुदाने वाले संवाद। ऐसे में एक सवाल दिमाग में खड़ा हो जाता है कि क्या करोड़ खर्च कर हम ऐसी ही फिल्म बना सकते है, जो समाज को सही मार्ग न दे सके। क्या कम

राजू बन गया 'दी एंग्री यंग मैन'

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"शाहरुख खान और अमिताभ बच्चन" हिन्दी फिल्म जगत के वो नाम बन गए, जो सदियों तक याद किए जाएंगे। आपसी कशमकश के लिए या फिर बेहतरीन अभिनय के लिए। दोनों में उम्र का बहुत फासला है, लेकिन किस्मत देखो कि चाहे वो रुपहला पर्दा हो या असल जिन्दगी का रंगमंच। दोनों की दिशाएं हमेशा ही अलग रही हैं, विज्ञापनों को छोड़कर। रुपहले पर्दे पर अमिताभ बच्चन के साथ जितनी बार शाहरुख खान ने काम किया, हर बार दोनों में ठनी है। चाहे गुरूकुल के भीतर एक प्रधानाचार्य एवं आजाद खयालात के शिक्षक के बीच युद्ध, चाहे फिर घर में बाप बेटे के बीच की कलह। अक्सर दोनों किरदारों में ठनी है। असल जिन्दगी में भी दोनों के बीच रिश्ते साधारण नहीं हैं, ये बात तो जगजाहिर है। रुपहले पर्दे पर तो शाहरुख खान का किरदार हमेशा ही अमिताभ के किरदार पर भारी पड़ता रहा है, लेकिन मराठी समाज को बहकाने वाले ठाकरे परिवार को करार जवाब देकर शाहरुख खान ने असल जिन्दगी में भी बाजी मार ली है। इन्हें भी पढ़ें : जुनून...अंधेरे मकां का खौफ़ नहीं मुझको कहने को तो अमिताभ बच्चन के नाम के साथ "दी एंग्री यंग मैन" का टैग लगा हुआ है, लेकिन असल जिन्दगी में

कैमरॉन की हसीं दुनिया 'अवतार'

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टायटैनिक जैसी एक यादगार एवं उम्दा फिल्म बनाने वाले निर्देशक जेम्स कैमरॉन उम्र के लिहाज से बुजुर्ग होते जा रहे हैं, लेकिन उनकी सोच कितनी गहरी होती जा रही है। इस बात का पुख्ता सबूत है 'अवतार'। करोड़ रुपयों की लागत से बनी 'अवतार' एक अद्भुत फिल्म ही नहीं, बल्कि एक अद्भुत दुनिया, शायद जिसमें हम सब जाकर रहना भी पसंद करेंगे। फिल्म की कहानी का आधारित पृथ्वी के लालची लोगों और पेंडोरा गृह पर बसते सृष्टि से प्यार करने वाले लोगों के बीच की जंग है। पृथ्वी के लोग पृथ्वी के कई हजार मीलों दूर स्थित पेंडोरा गृह के उस पत्थर को हासिल करना चाहते हैं, जिसके छोटे से टुकड़े की कीमत करोड़ रुपए है, लेकिन उनकी निगाह में वहां बसने वाले लोगों की कीमत शून्य के बराबर है। इस अभियान को सफल बनाने के लिए अवतार प्रोग्रोम बनाया जाता है। इस प्रोग्रोम के तहत पृथ्वी के कुछ लोगों की आत्माओं को पेंडोरा गृहवासियों नमुना शरीरों में प्रवेश करवाया जाता है। वो पेंडोरा गृहवासी बनकर ही पेंडोरा गृहवासियों के बीच जाते हैं, ताकि उन लोगों को समझा बुझाकर कहीं और भेजा जाए एवं पृथ्वी के लोग अपने मकसद में पूरे हो सकें। उसकी म

आखिर पूरी हुई करिश्मा की तमन्ना

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करिश्मा कपूर की तमन्ना पूरी होने जा रही है ओनीर की अगली फिल्म 'यू एंड आई' से। खुद कमाने वाली हर औरत की तमन्ना होती है कि वो परिवार को संभालने के बाद एक बार फिर से अपने काम पर लौटे, जिससे उसकी पहचान थी। जिससे उसको गर्व महसूस होता है, जिससे वो आत्मनिर्भर बनती है। अभिनेत्री करिश्मा कपूर ने संजय कपूर के साथ शादी करने के बाद फिल्मों में काम करना बंद कर दिया था, और अपना पूरा ध्यान परिवार की देखरेख में लगा लिया था, जैसा कि जया बच्चन, श्रीदेवी, माधुरी दीक्षित, काजोल, जूही चावला, सोनाली बेंद्रे,जैसी कई और अभिनेत्रियों ने किया। करिश्मा कपूर की समकालीन अभिनेत्रियों में से माधुरी दीक्षित, काजोल और जूही चावला ने तो वापसी कर ली, लेकिन करिश्मा कपूर पिछले एक दो साल से बस एक अच्छी कहानी की तलाश में थी, जैसे कि आरके बैनर कहता है कि अच्छी कहानी मिली तो फिल्में खुद बनाएंगे। आखिर आरके बैनर को तो कोई अच्छी कहानी मिली नहीं, मगर कपूर खानदान की बेटी को ओनीर की अगली फिल्म मिल गई, इसकी कहानी अच्छी है या बुरी ये तो जानते नहीं, लेकिन कहा जा रहा है कि ये फिल्म ऑस्कर विजेता फिल्म 'लाईफ इज ब्यूटीफुल'

रणभूमि की चलत-तस्वीर 'सेविंग प्राइवेट रेयान'

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जज्बा किस चिड़िया का नाम है? युद्ध किसे कहते हैं? देश के लिए लड़ने वालों की स्थिति मैदान जंग में कैसी होती है? युद्ध के समय वहां पर क्या क्या घटित होता है? युद्ध सेनाओं से नहीं, हौंसलों से भी जीता जा सकता है। कुछ तरह की स्थिति को बयां करती है 1998 में प्रदर्शित हुई 'सेविंग प्राइवेट रेयान'। फिल्म की कहानी शुरू होती है ओमाहा बीच जर्मनी से, जहां जर्मन फौजें और अमेरिकन फौजें आपस में युद्ध कर रही होती हैं। ओमाहा बीच पर उतरी अमेरिकन फौज की टुकड़ी की स्थिति बहुत नाजुक हो जाती है, पूरी टुकड़ी हमलावरों के निशाने में आने से लगभग खत्म सी हो जाती है। कुछ ही जवान बचते हैं, जो हौंसले के साथ आगे बढ़ते हुए दुश्मनों पर फतेह हासिल कर अपने मशीन को आगे बढ़ाते हैं। ओमाहा बीच पर उतरी टुकड़ी की अगवाई कर रहे कैप्टन जॉहन एच मिलर (टॉम हंक्स) को हाईकमान से आदेश मिलता है कि एक जवान को ढूंढकर उसके घर पहुंचाना है। उसके लिए कैप्टन मिलर को एक टीम मिलती है। युद्ध चल रहा है, लेकिन कैप्टन अपनी ड्यूटी निभाते हुए उस नौजवान जेम्स फ्रांसिस रेयान (मैट डॉमन) को ढूंढने निकल पड़ता है। इस दौरान उसको कई चुनौतियों का सामना करना

एंजेल्स एडं डिमोंस - एक रोचक फिल्म

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अगर आप एक रहस्यमयी, एक्शन एवं गंभीर विषय की फिल्में देखना पसंद करते हैं या हॉलीवुड अभिनेता टॉम हंक्स की अदाकारी के कायल हैं तो आपके लिए 'दी दा विंची कोड' से विश्व प्रसिद्धी हासिल कर चुके डान ब्राउन के उपन्यास आधारित फिल्म 'एंजेल्स एंड डिमोंस' एक बेहतरीन हो सकती है, इस फिल्म का निर्देशन 'दी दा विंची कोड' बना चुके हॉलीवुड फिल्म निर्देशक रॉन होवर्ड ने किया है। कहानी : फिल्म की कहानी ईसाई धर्म के आसपास घूमती है। रोम कैथोलिक चर्च के पोप की मृत्यु के बाद नए पोप के चुनाव के लिए रीति अनुसार समारोह आयोजित होता है। नया पोप बनने के लिए मैदान में चार उम्मीदवार होते हैं, जिनका अचानक समारोह से पहले ही अपहरण हो जाता है। उनका अपहरण ईसाई धर्म से धधकारे गए इल्यूमिनाटी समुदाय के लोग करते हैं, जो विज्ञान में विश्वास रखते हैं। इल्यूमिनाटी चेतावनी देते हैं कि चार धर्म गुरूओं की बलि चढ़ा दी जाएगी और वैटीकन सिटी को रोशनी निगल जाएगी, मतलब विशाल धमाका होगा, जिसे वैटीकन सिटी तबाह हो जाएगी। उन दुश्मनों तक पहुंचने के लिए चिन्ह विशेषज्ञ प्रो. रोबर्ट लैंगडन (टॉम हंक्स) को बुलाया जाता है। उ

बे-लिबास बेबो, बुरे वक्त की निशानी

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"पैसा मारो मुंह पर, कुछ भी करूंगा" यह संवाद अरुण बख्सी छोटे पर्दे पर प्रसारित होने वाले धारावाहिक 'जुगनी चली जलंधर' में बोलते हैं, ये वो ही अरुण बख्सी हैं जो कभी 'अजनबी' नाम के एक हिन्दी धारावाहिक में "बोल मिट्टी दे बावेया" गुनगुनाते हुए नजर आते थे। उस संवाद में भी एक खरा सत्य था और इस नए संवाद में भी बहुत सत्य है। किसी दूसरे पर यह संवाद फिट बैठे न बैठे, लेकिन कपूर खानदान की बेटी करीना कपूर पर तो बिल्कुल सही बैठता है। यकीनन न आता हो तो पिछले कुछ सालों पर निगाह मारो। शाहरुख के साथ डॉन में फिल्माया गया गीत हो, या अजनबी में अक्षय कुमार के साथ फिल्माए कुछ दृश्य। यशराज बैनर्स की सुपर फ्लॉप फिल्म टश्न में बिकनी पहनकर सबको हैरत में डाल देने वाली करीना ने इस पर आलोचना होते देख कहा था कि अब को बिकनी नहीं पहनेगी। देखो वादे की कितनी पक्की हैं, बिल्कुल सही, उन्होंने बिकनी पहनना भी छोड़ दिया। अब तो वो टॉपलेस हो गई हैं। कमबख्त इश्क में अक्षय के साथ कई किस सीनों से जब मन नहीं भरा तो कुर्बान में सैफ अली खान के साथ सब से लम्बा किस और फिल्म की चर्चा के लिए टॉपलेस

बाजारवाद में ढलता सदी का महानायक

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इसमें कोई शक नहीं कि रुपहले पर्दे पर अपने रौबदार एवं दमदार किरदारों के लिए हमेशा ही वाहवाही बटोरने वाला सदी का महानायक अमिताभ बच्चन अब बाजारवाद में ढलता जा रहा है, या कहूं वो पूरी तरह इसमें रमा चुका है। ऐसा लगता है कि या तो बाजार को अमिताभ की लत लग गई या फिर अमिताभ को बाजार की। एक समय था जब अमिताभ की जुबां से निकले हुए शब्द लोगों के दिल-ओ-दिमाग में सीधे उतर जाते थे, उस वक्त के उतरे हुए शब्द आज भी उनकी जुबां पर बिल्कुल पहले की तरह तारोताजा हैं। उस समय कि दी यंग एंग्री मैन की छवि को आज का बिग बी टक्कर नहीं दे सकता। सत्य तो ये है कि आज का बिग बी तो उसके सामने बिल्कुल बौना नजर आता है। सदी के इस महानायक का हाल एक शराबी जैसा हो गया है, जिसको देखकर कभी समझ नहीं आती कि शराब को वो पी रहा है या फिर शराब उसको पी रही है। आज बाजार अमिताभ को खा रहा है या अमिताभ बाजार को समझ नहीं आ रहा है, बस सिलसिला दिन प्रति दिन चल रहा है। असल बात तो यह है कि बीस तीस साल पुराना लम्बू और आज के बिग बी या अमिताभ बच्चन में बहुत बड़ा अंतर आ चुका है। जहां बीस तीस साल पहले लम्बू बड़े पर्दे पर गरीबों दबे कुचले लोगों की

'अजब प्रेम..' पर टिका संतोषी का भविष्य

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अगर हिन्दी फिल्म जगत के फिल्म निर्देशकों की बात की जाए तो राजकुमार संतोषी का नाम न लिया जाए तो शायद बात अधूरी सी लगेगी। उनकी फ्लॉप फिल्मों ने उनके कैरियर में एक काला अध्याय लिख दिया है, लेकिन फिर भी एक समय था जब राजकुमार संतोषी की फिल्में बॉक्स ऑफिस पर खूब तालियां एवं पैसा बटोरती थी। अब बहुत जल्द राजकुमार संतोषी अपनी अगली फिल्म 'अजब प्रेम की गजब कहानी' लेकर आए रहे हैं, लेकिन मन में सवाल उठता है कि श्री संतोषी जी युवा दर्शकों को संतुष्ट कर पाएंगे ? मेरे दिमाग में ये सवाल इस लिए आया, क्योंकि पिछले साल रिलीज हुई उनकी फिल्म 'हल्ला बोल', उनकी 1993 में रिलीज हुई दामिनी से काफी मिलती जुलती थी। जिसके कारण उनकी ये फिल्म बॉक्स ऑफिस पर ज्यादा समय टिक नहीं पाई, बेशक इस फिल्म में पंकज कपूर के काम को ज्यादा प्रशंसा मिली। संतोषी और देओल परिवार की जोड़ी बॉक्स ऑफिस पर खूब गजब ढाहती थी, लेकिन आजकल दोनों ही परिवार बुरे दौर से गुजर रहे हैं। संतोषी और देओल नाम की युगलबंदी ने हिन्दी फिल्म जगत को घायल, दामिनी, घातक, बरसात जैसी हिट फिल्में दी। इसके बाद संतोषी ने अजय देवगन से हाथ मिला लिया, वो भ

दर्द-ए-आवाज मुकेश को मेरा नमन, और आपका

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जी हां, पिछले कुछ दिनों से मेरे साथ कुछ ऐसा ही हो रहा है, उंगलियां कुछ और लिख रही हैं और दिमाग में कुछ और चल रहा है। मुझे नहीं पता मेरे ऐसा पिछले दिनों से ऐसा क्यों हो रहा है, वो बात मैं आपके साथ बांटना चाहता हूं, इस पोस्ट के मार्फत। पिछले दिनों अचानक मेरे दिमाग में एक नाम आया, वो था मुकेश का। ये मुकेश कोई और नहीं, हमारे होंठों पर आने वाले गीतों को अमर कर देने वाली आवाज के मालिक मुकेश का ही था। मेरा हिंदी संगीत से कोई ज्यादा रिश्ता नहीं रहा, लेकिन दूरदर्शन की रंगोली और चित्रहार ने मुझे कहीं न कहीं हिन्दी संगीत के साथ जोड़े रखा। पहले पहल तो ऐसा ही लगा करता था कि अमिताभ खुद गाते हैं, और अक्षय कुमार खुद गाते हैं, जैसे जैसे समझ आई, पता चला कि गीतों में जान फूंकने वाला तो कोई और ही होता है, ये तो केवल आवाज पर उन पर गाने का अभिनय करते हैं। पता नहीं, मुझे पिछले कुछ दिनों से क्यों ऐसा लग रहा था कि ‘दर्द-ए-संगीत’ की रूह मुकेश को शायद मीडिया की ओर से उतना प्यार नहीं मिलता जितना मिलना चाहिए, विशेषकर खंडवा के लाल किशोर दा के मुकाबले तो कम ही मिलता है, ये तो सच है। किशोर दा का जन्मदिवस या पुण्यति

क्यों नहीं भाते कुंवारे इनको ?

कल अरुण शौरी की खबर पर अचानक एक खबर भारी पड़ गई थी, जी हां वो खबर थी शिल्पा शेट्टी के विवाह की खबर। कल मीडिया में शिल्पा के पिता के हवाले से कुछ खबरें आई, जिनमें कहा गया कि शिल्पा राज कुंदरा की होने वाली हैं, जो एक तलाकशुदा व्यक्ति है। शिल्पा शेट्टी राजकुंदरा से शादी कर ओकलाहामा स्टेट यूनिवर्सिटी की शोध को सच कर रही है या नहीं, “जिसमें कहा गया था कि कुंवरी लड़कियों की पहली पसंद शादीशुदा पुरुष होते हैं”, ये तो पता नहीं। हां, मगर वो बॉलीवुड की उस प्रथा को आगे बढ़ा रही हैं, जिस प्रथा को योगिता बाली, रिया पिल्ले, करिश्मा कपूर, मान्यता ने कड़ी दर आगे चलाया। संगीत की दुनिया में अमिट छाप छोड़ जाने वाले किशोर दा के साथ योगिता बाली ने शादी रचाई, लेकिन ये विवाह संबंध जल्द ही टूट गए और योगिता बाली मिथुन चक्रवर्ती की हो गई। किशोर कुमार की योगिता बाली के साथ तीसरी शादी थी। एक भारतीय टेनिस खिलाड़ी की पत्नी बन चुकी रिया पिल्ले ने संजय दत्त के साथ रचाई, जो अपनी पहली पत्नी को खोने के बाद तन्हा जीवन जी रहे थे, लेकिन यहां पर भी विवाह संबंध सफल न हुए और रिया ने संजय से अलग होकर एक टेनिस सितारे लिएंडर पेस से