संदेश

कौन हूँ मैं

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हिन्दु हूँ या मुस्लिम हूँ मत पूछो, कहाँ से आया, कौन हूँ मैं इसे भी पढ़ें : बस! एक गलती बस! इतना जानूँ मानवता धर्म मेरा है यही कर्म मेरा बहता दरिया, चलती पौन हूँ मत पूछो, कहाँ से आया, कौन हूँ मैं इसे भी पढ़ें : एक संवाद, जो बदल देगा जिन्दगी दुनिया एक रंगमंच तो कलाकार हूँ मैं धर्म रहित जात रहित एक किरदार हूँ मैं जात के नाम पर अक्सर होता मौन हूँ मैं मत पूछो, कहाँ से आया, कौन हूँ मैं इसे भी पढ़ें : फेसबुक  एवं ऑर्कुट के शेयर बटन जिन्दगी है एक सफर तो मुसाफिर हूँ मैं जो छुपता नहीं धर्म की आढ़ में वो काफिर हूँ मैं काट दूँ एकलव्य का अंगूठा न कोई द्रोण हूँ मैं मत पूछो, कहाँ से आया, कौन हूँ मैं इसे भी पढ़ें : नेताजी जयंती "तुम मुझे खून दो मै तुम्हे आजादी दूंगा" नेताजी और जबलपुर शहर पौन-पवन,

बस! एक गलती

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जाओ, मत रूको और जाओ मत, रूको। इस में सिर्फ और सिर्फ एक अल्पविराम का फर्क है, एक थोड़ा से पहले लग गया और एक थोड़ा सा बाद में, लेकिन इसने पूरे पूरे वाक्य का अर्थ ही बदल दिया। वैसे ही, जैसे आज एक इंग्लिग न्यूज पेपर में प्रकाशित हुए एक विज्ञापन ने। वो था विज्ञापन, लेकिन एक गलती से ख़बर बन गया। यहां इस विज्ञापन में हुई गलती दृश्य एवं प्रचार निदेशालय के अधिकारियों की लापरवाही को उजागर करती है, वहीं मुझे थोड़ा सा सुकून भी देती है, क्योंकि विज्ञापन का अर्थ होता है किसी भी चीज का प्रचार करना। चूक कहीं से भी हुई हो, चाहे सरकारी दफतरों के अधिकारियों से या फिर दैनिक समाचार पत्र के कर्मचारियों से। इस छोटी भूल ने इस भ्रूण हत्या विरोधी विज्ञापन को आज जन जन तक पहुंचा दिया। थोड़ी सी भूल हुई, विज्ञापन खुद ब खुद ख़बर बन गया, और ख़बर बन आम जन तक पहुंच गया। जो विज्ञापन का मकसद था। आम तौर पर दैनिक समाचार पत्रों में प्रकाशित होने वाले केवल वो ही विज्ञापन पढ़े जाते हैं, जिनमें कोई फायदे की बात हो...जैसे एक पर एक फ्री, इतने की खरीदी पर इतने का सामान मुफ्त पाएं। सच में ऐसे विज्ञापन ही पढ़े जाते हैं। नवभारत टाइम्स

अब जिन्दगी से प्यार होने लगा

गाने का शौक तो बचपन से है, लेकिन कभी सार्वजनिक प्लेटफार्म पर नहीं गा पाया, तीन बार को छोड़ कर। कल रात गिरीश बिल्लोरे 'मुकुल' जी ने मेरे भीतर के तारों को फिर छेड़ दिया, उनकी पास से  एक यंत्र मिल गया, जिसमें मैं अपनी आवाज रिकॉर्ड करके आप तक पहुंचाने में सक्षम हुआ। ............यहाँ सुने मेरी आवाज में................. नफरत थी जिन ख्यालों से नफरत थी जिन ख्यालों से दिल उन्हीं ख्यालों में खोने लगा तुमसे क्या मिले, अब जिन्दगी से प्यार होने लगा तुमसे क्या मिले, अब जिन्दगी से प्यार होने लगा काट दिया था, जिन उम्मीद के पौधों को काट दिया था, जिन उम्मीद के पौधों को मन वो ही बीज बोने लगा तुमसे क्या मिले, अब जिन्दगी से प्यार होने लगा तुमसे क्या मिले, अब जिन्दगी से प्यार होने लगा तुम सपनों में क्या आने लगे तुम सपनों में क्या आने लगे दिल सुकून की नींदर सोने लगा तुमसे क्या मिले, अब जिन्दगी से प्यार होने लगा तुमसे क्या मिले, अब जिन्दगी से प्यार होने लगा

फेसबुक एवं ऑर्कुट के शेयर बटन

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अब आप कोई भी पोस्ट किसी भी ब्लॉग से अपने ऑर्कुट एवं फेसबुक पर बने दोस्तों के साथ बहुत ही आसानी से शेअर कर सकते हैं, बस उसके लिए आपको। अपने बुकमार्कलेट में जोड़ने होंगे दो बटन। जो मैंने नीचे दिए हैं। इन जोड़ने का तरीका आसान है। जैसे ही लिंक खोलेंगे। आपको फेसबुक और ऑर्कुट के बने हुए दो आइकॉन नजर आएंगे। उनको खींचकर अपने इंटनेट ब्राउजर (मॉजिला फायरफोक्स) के एड्रेस बॉक्स के नीचे लगाएं। जैसे फोटो में नजर आ रहा है। फेसबुक बॉटन ऑर्कुट बटन अगर हम बात करेंगे इंटरनेट एक्सप्लॉर्र की तो उस इन बॉटनों को आप उसके लिंक ऑप्शन में लग सकते है। अगर लिंक ऑप्शन दिखाई न दे तो आप इंटरनेट एक्सप्लॉर्र के एड्रेसबार के उपर राईट क्लिक करके उसको ला सकते हैं, और उसके बाद नीचे से माउस क्लिकिंग द्वारा बटन खींच कर उसमें जोड़ दें। अगर आपके पोस्ट काम आ गई तो मेरे कार्य सफल हो जाएगा। मैं अकेला नहीं चलता

मैं अकेला नहीं चलता

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मैं अकेला नहीं चलता, साथ सवालों के काफिले चलते हैं। होती हैं ढेरों बातें मन में खुली आंखों में भी ख्वाब पलते हैं।  मन के आंगन में अक्सर उमंगों के सूर्या उदय हो ढलते हैं। करता हूं बातें जब खुद से कहकर पागल लोग निकलते हैं। वो क्या जाने दिल समद्र में कितने लहरों से ख्याल मचलते हैं। एक संवाद, जो बदल देगा जिन्दगी