Short Story - बाबूजी की बात, और नत्थासिंह
नत्था सिंह बहुत भोला - भाला इंसान था। जब खेतों के किनारे लगे पेड़ों पर फूल आने वाले होते तो वो उनके पेड़ों के आस पास भंवरों की तरह मंडराने लगता, फूल आते ही उदास होकर घर लौट जाता। अब भी पेड़ों पर फूल आने वाले थे, और नत्था सिंह भी। नत्था सिंह आया - बाबू जी ने उससे पूछा, जब फूल आने वाले होते हैं तो तुम यहां खुशी खुशी आते हो, लेकिन फूल आने के बाद तुम उदास होकर यहां से निकल जाते हो।
नत्था सिंह ने कहा, मैं गुलाबी फूल लेने के लिए यहां आता हूं, लेकिन आपके पेड़ हर मौसम में पीले रंग के फूल देने लगते हैं। तो बाबूजी कहते हैं कि अरे पगले, हमने बबूल के पेड़ उगाएं हैं, तो बबूल के फूल ही आएंगे, गुलाब के कैसे आ सकते हैं। गुलाब के फूलों के लिए गुलाब का पौधा लगाना पड़ता है।
नत्थे को बात समझ आई या नहीं, लेकिन मुझे एक बात समझ जरूर आ रही थी। बाबूजी कह रहे थे कि अगर बबूल का पेड़ लगाएंगे तो बबूल के फूल आएंगे, और अगर गुलाब का पौधा है तो गुलाब के फूल। शायद इसका संबंध कहीं न कहीं हमारे विचारों की खेती से भी है। हम अपने भीतर जो पेड़ पौधे लगाते हैं, शायद शब्दों में - अपने व्यवहार में - उसी पौधे के फूलों को खिलते हुए देखते हैं।
नत्था सिंह ने कहा, मैं गुलाबी फूल लेने के लिए यहां आता हूं, लेकिन आपके पेड़ हर मौसम में पीले रंग के फूल देने लगते हैं। तो बाबूजी कहते हैं कि अरे पगले, हमने बबूल के पेड़ उगाएं हैं, तो बबूल के फूल ही आएंगे, गुलाब के कैसे आ सकते हैं। गुलाब के फूलों के लिए गुलाब का पौधा लगाना पड़ता है।
नत्थे को बात समझ आई या नहीं, लेकिन मुझे एक बात समझ जरूर आ रही थी। बाबूजी कह रहे थे कि अगर बबूल का पेड़ लगाएंगे तो बबूल के फूल आएंगे, और अगर गुलाब का पौधा है तो गुलाब के फूल। शायद इसका संबंध कहीं न कहीं हमारे विचारों की खेती से भी है। हम अपने भीतर जो पेड़ पौधे लगाते हैं, शायद शब्दों में - अपने व्यवहार में - उसी पौधे के फूलों को खिलते हुए देखते हैं।
बहुत हि अच्छी जानकारी।
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