बाबरी मस्जिद विध्वंस को लेकर Cobra Post का खुलासा
आम चुनाव के शुरू होने से ठीक पहले 'कोबरा पोस्ट' द्वारा बाबरी मस्जिद से जुड़ा एक नया स्टिंग ऑपरेशन सामने लाया गया है। कोबरा पोस्ट के स्टिंग के सामने आने के बाद से राजनीतिक हलकों में हड़कंप मच गया है। इस स्टिंग में दिखाया गया है कि बाबरी मस्जिद विध्वंस योजना पहले से बनाई गई थी। इसकी जानकारी बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं थी। बीजेपी इस स्टिंग औऱ इसके जारी करने की टाइमिंग का खुलकर विरोध कर रही है। वहीं विरोधी पार्टियों का कहना है कि इस स्टिंग में कुछ नया नहीं है।
ऑपरेशन जन्मभूमि:- कोबरपोस्ट उस षड्यंत्र की तह मे जाता है और उन लोगों से मिलता है जो दिसंबर 1992 मे हुए बाबरी मस्जिद विध्वंस के पीछे थे और यह पाता है की यह एक पूर्वनियोजित साजिश थी ।
कोबरपोस्ट राम जन्मभूमि आंदोलन के उन नेताओं को बेनकाब करता है जिन्होंने षड्यंत्र रच कर 6 दिसंबर 1992 को सोलहवी शताब्दी के एक विवादित ढांचे को धूल मे मिलाने मे सफलता प्राप्त की ।एक ऐसी साजिश जिसे इतने साल बीत जाने के बाद भी सी बी आई जैसी खुफिया एजेंसी भी ना सुलझा पायी।
नयी दिल्ली: अपने एक बड़े इन्वैस्टिगेशन मे कोबरपोस्ट ने 6 दिसंबर 1992 के दिन बाबरी मस्जिद के विध्वंस के पीछे की साजिश और इस साजिश को अंजाम देने वाले लोगों को बेनकाब किया है। ऑपरेशन जन्मभूमि मे की गयी इस तहकीकात की दौरान इस षड्यंत्र मे शामिल लोगों ने कोबरपोस्ट के सामने परत दर परत विध्वंस की योजना का खुलासा किया है। कोबरपोस्ट के खुलासे से यह बात साबित हो जाती है की बाबरी विध्वंस किसी उन्मादी भीड़ का काम नहीं था बल्कि यह एक सोची समझी रड़नीति के तहत की गयी कार्रवाई थी। इसकी योजना इतनी गुप्त रखी गयी थी की आज तक किसी भी सरकारी एजन्सि को इसकी कोई भनकी नहीं लग पायी है। बतौर मिसाल वर्षों की छानबीन के बावजूद सी बी आई को उन सभी चालीस लोगों के खिलाफ अकाट्य प्रमाण नहीं मिल पाये हैं जिन्हे उसने अपनी चार्ज शीट मे अभियुक्त करार दिया है।
कोबरपोस्ट के एसोशिएट एडिटर के॰ आशीष ने राम जन्म भूमि आंदोलन मे अगली पांत के नेता रहे 23 लोगों से मुलाक़ात की। ये सभी लोग बाबरी मस्जिद के विध्वंस मे शामिल रहे हैं। इनकी भूमिका या तो साजिशकर्ता के रूप मे थी या उस साजिश को अमली जामा पहनाने मे इनकी भूमिका थी। आशीष ने इन लोगों से एक लेखक के रूप मे मुलाक़ात की जो इनसे अयोध्या आंदोलन पर अपनी प्रस्तावित पुस्तक के बारे मे जानकारी चाहता था। आशीष ने बजरंग दल, वीएचपी और बीजेपी के चंपत राय बंसल, रामजी गुप्ता, प्रकाश शर्मा, रमेश प्रताप सिंह, विनय कटियार, जयभान सिंह पवेया, धर्मेंद्र सिंह गुर्जर, बी एल शर्मा प्रेम, ब्रिज भूषण शरण सिंह, साध्वी उमा भारती, कल्याण सिंह और लल्लू सिंह से बातचीत की। उसके बाद शिवसेना के जय भगवान गोयल, पवन पांडे, संतोष दुबे, सतीश प्रधान और मोरेश्वर सावे से बातचीत की और फिर हिंदु संत समाज के स्वामी सचिदानंद साक्षी महाराज, महंत राम विलास वेदांती, साध्वी रितमबरा, महंत अवैद्यनाथ, आचार्य धर्मेंद्र और स्वामी नृत्य गोपाल दास से बात की।
इनमे से 15 लोगों को लिब्रहान आयोग ने दोषी ठहराया है तो वहीं सी बी आई ने इनमे से 19 लोगों को अपनी चार्जशीट मे आरोपी बनाया है। हैरानी की बात यह है की सीबीआई ने बी एल शर्मा, महंत अवैद्यानाथ, महंत नृत्य गोपाल दास और महंत राम विलास वेदांती जैसे महत्वपूर्ण किरदारों को अपनी जांच और चार्ज शीट का हिस्सा नहीं बनाया है। कुल मिला कर बाबरी विध्वंस के मामले मे 40 लोगों पर सीबीआई कोर्ट मे मुकदमा चल रहा है, जिनमे से 32 लोगों को एफ आई आर नंबर 92/197 मे साजिश को अंजाम देने वाले लोगों के रूप मे शुमार किया है। बचे 8 लोगों को एफ आई आर नंबर 92/198 साजिश कर्ता के रूप मे आरोपी बनाया गया है।
अपनी तहकीकात के दौरान आशीष ऑपरेशन जन्मभूमि के इन मुख्य किरदारों से मुलाक़ात करने के लिए उत्तर प्रदेश के अयोध्या, फैजाबाद, टांडा, लखनऊ, गोरखपुर, मथुरा और मुरादाबाद, राजस्थान के जयपुर, महाराष्ट्र के औरंगाबाद और मुंबई, और मध्य प्रदेश के ग्वालियर जैसे शहरों मे गए। इत्तेफाक से इस गुप्त योजना को ऑपरेशन जन्मभूमि का नाम इन्ही षड्यंत्रकारियों से मिला था कोबरपोस्ट ने अपने इस खुलासे के लिए इस नाम को अपना लिया।
कोबरपोस्ट की तहकीकात मे जो बातें उभर कर सामने आई हैं उनमे से कुछ इस प्रकार हैं:-
•बाबरी विध्वंस का षड्यंत्र दो उग्र हिंदुवादी संगठनो विश्व हिन्दू परिषद और शिव सेना ने अलग अलग रचा था।
•इन दोनों संगठनो ने 6 दिसंबर से काफी समय पहले अपनी कार्ययोजना के तहत अपने कार्यकर्ताओं को इस मकसद के लिए प्रशिक्षण दिया था।
•आरएसएस के प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं का एक आत्मघाती दस्ता भी बनाया गया था जिसको बलिदानी जत्था भी कहा गया।
•विहिप की युवा इकाई बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने गुजरात के सरखेज मे इस मकसद के लिए एक महीने का प्रशिक्षण भी प्राप्त किया था। दूसरी ओर शिवसेना ने भी अपने कार्यकर्ताओं के लिए ऐसा ही एक प्रशिक्षण कैंप भिंड मोरेना मे आयोजित किया था।
•इस प्रशिक्षण मे लोगों को पहाड़ियों पर चड्ने और खुदाई करने का प्रशिक्षण देने के साथ साथ शारीरिक व्यायाम भी कराया जाता था।
•6 दिसंबर को विवादित ढांचे को तोड़ने के मकसद से छैनी, घन, गैंती, फावडा, सब्बल और दूसरी तरह के औजारों को ख़ासी तादाद मे जुटा लिया गया था।
•6 दिसंबर को ही लाखो कारसेवकों को एक संकल्प भी कराया गया था। इस संकल्प मे विवादित ढांचे को गिरा कर उसकी जगह एक भव्य राम मंदिर बनाने की बात कही गयी थी। राम कथा मंच से संचालित इस संकल्प मे आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, अशोक सिंघल, गिरि राज किशोर और आचार्य धर्मेंद्र सहित कई जाने माने नेता और संत लोग थे। यह संकल्प महंत राम विलास वेदांती ने कराया था। कहा जाता है की संकल्प के होते ही बाबरी मस्जिद को तोड़ने का काम शुरू कर दिया गया था।
•विहिप के नेताओं ने बाबरी विध्वंस के मकसद से कुछ दिन पहले अलग अलग अंचलों के 1200 संघ कार्यकर्ताओं को मिला कर एक सेना का गठन किया था। इस गुप्त सेना का नाम लक्ष्मण सेना था। इस सेना को सभी सामान उपलब्ध कराने और दिशानिर्देश का जिम्मा राम जी गुप्ता को सौपा गया था। इस सेना का नारा जय शेशावतार था।
•दूसरी ओर शिवसेना ने भी इसी तर्ज पर अयोध्या मे अपने स्थानीय कार्यकर्ताओं की एक सेना बना रखी थी। इसका नाम प्रताप सेना था। इसी सेना ने शिवसेना के बाबरी मस्जिद विध्वंस के अभियान को जरूरी सामान और सहायता उपलब्ध कराई थी।
•आरएसएस, विहिप और बजरंग दल के नेताओं ने विध्वंस से एक दिन पहले अयोध्या के हिन्दू धाम मैं एक गुप्त मीटिंग की थी। इस मीटिंग मे अशोक सिंघल, विनय कटियार, विष्णु हरी डालमिया, मोरो पंत पिंगले और महंत अवैध्यनाथ ने शिरकत की थी। इसी बैठक मे दूसरे दिन होने वाली कारसेवा के दौरान बाबरी मस्जिद को गिराने का फैसला किया गया था।
•आरएसएस और बीजेपी ने भी एक गुप्त बैठक हनुमान बाग मे की थी। इस मीटिंग मे आरएसएस के एच वी शेषाद्री समेत उस समय अयोध्या मे मौजूद विनय कटियार, उमा भारती और एल के आडवाणी जैसे नेताओं ने भाग लिया था।
•इधर शिवसेना ने बाबरी विध्वंस से एक महीने पहले दिल्ली के नॉर्थ एवेन्यू मे एक गुप्त बैठक की थी। इस बैठक मे जय भगवान गोयल, मोरेश्वर सावे, आनन्द दिघे समेत कई वरिष्ठ नेताओं ने हिस्सेदारी की थी। इस बैठक मे अयोध्या कूच से पहले पूरी रणनीति तय की गयी थी। बाला साहब ठाकरे और राज ठाकरे दोनों इन सारी गतिविधियों के दौरान इन नेताओं से संपर्क मे थे।
•अगर पारंपरिक तरीके कामयाब नहीं हो पाते तो शिवसेना ने बाबरी मस्जिद को डायनमाईट से उड़ाने का फैसला भी किया था।
•पारंपरिक औजारों के अलावा बजरंग दल की बिहार की टोली ने बाबरी को गिराने के लिए पेट्रोल बमो का भी इस्तेमाल किया था।
•स्थानीय प्रशासन ने अपनी संवैधानिक ज़िम्मेदारी निभाने के बजाय उन्मादित कार सेवकों को बाबरी ढांचे को ध्वस्त करने के लिए उकसाया और इस काम मे उनकी मदद भी करी। जैसे पी ए सी के जवानो को ये कहते सुना गया की इस “सरदर्द” को हमेशा के लिए खत्म कर दो।
•बाबरी विध्वंस के बाद वहाँ से कई पुरातन महत्व की चीजों को चुपचाप निकाल लिया गया। जैसे शिवसेना के नेता पवन पांडे के पास 1528 के शिलालेख के दो टुकड़े मौजूद हैं, जिसमे मीर बाकी ने बाबरी मस्जिद के निर्माण की घोषणा की थी। पवन पांडे अब इन दो टुकड़ों को बेचना चाहते हैं।
लक्ष्मण सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष राम जी गुप्ता का कहना है कि उनकी सेना को एक स्पष्ट निर्देश दिया गया था की जैसे ही वो तीन बार जय शेशावतार का नारा लगाएंगे उस सेना के सभी लोग कारसेवकों की भीड़ का फायदा उठा कर बाबरी पर हमला बोल देंगे। इसके बाद अगर कोई भी नेता उनसे रुकने के लिए कहता है तो वो नहीं रुकेंगे जब तक की बाबरी का काम तमाम ना हो जाए।
कोबरपोस्ट की पड़ताल मे दो महत्वपूर्ण किरदारों का नाम भी उभर कर आया है जिन्होने बाबरी विध्वंस मे अपने तरीके से भूमिका निभाई। इनमे से एक कल्याण सिंह हैं जो बाबरी विध्वंस के समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। कोबरपोस्ट को कम से कम दो महत्वपूर्ण नेताओं ने ये खुलासा किया है कि कल्याण सिंह को अयोध्या मे चल रहे हर घटनाक्रम की जानकारी थी। वो अच्छी तरह से जानते थे की दिसंबर 6 को क्या होगा। महंत राम विलास वेदांती के अनुसार उन्हे दिसंबर 5 की रात को ही दो टूक शब्दों मे बता दिया गया था कि ढांचा तोड़ दिया जाएगा। वेदांती कहते हैं “पाँच दिसंबर की रात को ही कल्याण सिंह के पास समाचार भेज दिया गया था और उसमे ये कहा गया था की यदि आवश्यकता पड़ती है तो ढांचा भी तोड़ दिया जाएगा आपको क्या भूमिका निर्वाह करनी है विचार कर लीजिए।“ सिर्फ यही नहीं साक्षी महाराज का भी दावा है की वो कल्याण सिंह को अयोध्या मे चल रहे घटनाक्रम की मिनट दर मिनट जानकारी दे रहे थे। इसके बावजूद भी कल्याण सिंह ने कोई ठोस कार्रवाई नहीं की।
ऐसा कहा जाता है कि कल्याण सिंह दिसंबर 6 की सुबह अपना त्यागपत्र देने पर आमादा हो गए थे लेकिन उन्हे अयोध्या से मुरली मनोहर जोशी और शेषाद्री ने तब तक इस्तीफा ना देने के लिए माना लिया जब तक कि कारसेवक बाबरी ढांचे को ज़मींदोज़ ना कर दे। इन नेताओं को ये डर था कि अगर मुख्यमंत्री ने समय से पहले इस्तीफा दे दिया तो उत्तर प्रदेश मे तत्काल राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाएगा और तत्काल सेना बुला ली जाएगी तो ऐसे मे भारी संख्या मे कारसेवक मारे जाते।
बाबरी विध्वंस मे तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव का हाथ होने की बार बार आशंका जताई जाती रही है। कोबरपोस्ट की पड़ताल मे यह आशंका सही साबित हुई है। विनय कटियार, बी एल शर्मा, संतोष दुबे, साक्षी महाराज और महंत राम विलास वेदांती जैसे राम जन्म भूमि आंदोलन के शीर्ष नेता बड़ी बेबाकी से नरसिंह राव की भूमिका को स्वीकारते हैं। यहाँ यह बताना जरूरी है कि बाबरी मस्जिद को तोड़ने के लिए दो बार द्रढ़ प्रयास हुआ था। एक 1990 मे और दूसरा 1992 मे पहली कोशिश पुलिस की कार्रवाही के कारण कामयाब नहीं हो पायी। पुलिस की कार्रवाई मे कई कारसेवकों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। मगर साक्षी महाराज उन कारसेवकों की मौत के लिए आंदोलन के कुछ नेताओं को दोषी ठहराते हैं जो आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए कारसेवकों की बलि देना चाहते थे। साक्षी महाराज कारसेवकों की मौत के लिए अशोक सिंघल को जिम्मेदार ठहराते हुए कहते हैं “तो मेरे सामने अशोक सिंघल जी ने कहा महाराज कुछ लोग नहीं मरेंगे तो आंदोलन ऊपर नहीं उठेगा तो आप आज्ञा दो जाने की तो अशोक सिंघल जी ने कहा ... वामदेव जी ने कहा बच्चे मरेंगे तो बहुत काम खराब हो जाएगा ...बोले महाराज जब तक नहीं मरेंगे तब तक कुछ होगा नहीं आंदोलन तभी बढ़ेगा।”
साक्षी की तरह साध्वी उमा भारती विनय कटियार को कोठारी बंधुओं की मौत के लिए जिम्मेदार मानती है। 30 अक्टूबर 1990 के घटनाक्रम को याद करते हुए उमा भारती कहती हैं, “जो लोग मरे थे वो विनय की गलती से .... गलती भी नहीं वो भगदड़ मची वो गली छोटी थी ...गलती मतलब वो भाग गया छोड़कर भाग गया।”
इस तरह के आरोप अयोध्या षड्यंत्र को एक नया आयाम देते हैं और इस आंदोलन के शीर्ष नेताओं की नियत को लेकर सवाल खड़े करते हैं। क्या वाकई वे युवा कारसेवकों की अपने निहित राजनैतिक स्वार्थों की बेदी पर बलि चढ़ाना चाहते थे।
इसी तरह बजरंग दल के एक और अग्रणी नेता धर्मेंद्र सिंह गुर्जर आंदोलन के पूरे नेत्रत्व की नियत पर सवाल खड़े करते हैं, “ये सब बेवकूफ बनाने वाली बातें हैं इसीलिए तो हमारा देश बेवकूफ बनता आ रहा है ... पहले हम जवानी की जोश मे थे ... जुनून मे थे एक जुनून था गुजर गया ... लोगों ने उपयोग किया और छोड़ दिया यूज करके।”
हिन्दुत्व और उसके नेत्रत्व का यह निर्मम चेहरा कोबरपोस्ट रिपोर्टर की एक और मुलाक़ात मे उभर कर आता है। इस मुलाक़ात के दौरान रिपोर्टर ने महंत अवैध्यनाथ को विनोद वत्स जैसे उत्साही कारसेवक के बलिदान की याद दिलाई। विनोद वत्स के बूढ़े माता पिता बदहाली का जीवन जी रहें हैं। महंत अवैध्यनाथ का जो कहना था वो वाकई शर्मनाक है, “सब को मरना है तुमको भी है मुझे भी मरना है मृत्य को कौन रोक सकता है।“ उसके बूढ़े निराश्रय माँ बाप के लिए महंत अवैध्य नाथ का भी यही दर्शन है, “वो भी मरेंगे उनको भी मरना है।”
कोबरपोस्ट की पड़ताल एक और सच्चाई को फिर से स्थापित करती है कि इस झगड़े की बुनियाद मे 1949 की एक घटना है जब रामलला की मूर्ति को गुपचुप तरीके से बाबरी मस्जिद मे स्थापित कर दिया गया था। इस घटना के चश्मदीद गवाह कोई और नहीं बल्कि रामजन्म भूमि आंदोलन मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले बी एल शर्मा प्रेम हैं। शर्मा का कहना है कहना है कि वो तब अयोध्या मे मिलिट्री पुलिस मे एक वारंट आफिसर के रूप मे तैनात थे। यह सब उनकी आँखों के सामने हुआ। तब अयोध्या के पुजारी रामचंद्र दास उनकी यूनिट मे बराबर आया जाया करते थे एक दिन राम चन्द्र दास ने उन्हे बताया कि रामलला अमुक दिन ऐसे प्रकट होंगे। तो वहाँ अपने साथियों को लेकर आना। शर्मा के अनुसार रामलला का प्रकट होना कोई दैवीय चमत्कार नहीं था। उनका कहना है, “अरे जी काहे के प्रकट होने वाले... प्रकट किया है ... वो तो महाराज का काम था न रामचंद्र परमहंस।“ राम जन्म भूमि आंदोलन इसी झूठ की बुनियाद पर खड़ा किया गया था। (प्रैस विज्ञप्ति)
ऑपरेशन जन्मभूमि:- कोबरपोस्ट उस षड्यंत्र की तह मे जाता है और उन लोगों से मिलता है जो दिसंबर 1992 मे हुए बाबरी मस्जिद विध्वंस के पीछे थे और यह पाता है की यह एक पूर्वनियोजित साजिश थी ।
कोबरपोस्ट राम जन्मभूमि आंदोलन के उन नेताओं को बेनकाब करता है जिन्होंने षड्यंत्र रच कर 6 दिसंबर 1992 को सोलहवी शताब्दी के एक विवादित ढांचे को धूल मे मिलाने मे सफलता प्राप्त की ।एक ऐसी साजिश जिसे इतने साल बीत जाने के बाद भी सी बी आई जैसी खुफिया एजेंसी भी ना सुलझा पायी।
नयी दिल्ली: अपने एक बड़े इन्वैस्टिगेशन मे कोबरपोस्ट ने 6 दिसंबर 1992 के दिन बाबरी मस्जिद के विध्वंस के पीछे की साजिश और इस साजिश को अंजाम देने वाले लोगों को बेनकाब किया है। ऑपरेशन जन्मभूमि मे की गयी इस तहकीकात की दौरान इस षड्यंत्र मे शामिल लोगों ने कोबरपोस्ट के सामने परत दर परत विध्वंस की योजना का खुलासा किया है। कोबरपोस्ट के खुलासे से यह बात साबित हो जाती है की बाबरी विध्वंस किसी उन्मादी भीड़ का काम नहीं था बल्कि यह एक सोची समझी रड़नीति के तहत की गयी कार्रवाई थी। इसकी योजना इतनी गुप्त रखी गयी थी की आज तक किसी भी सरकारी एजन्सि को इसकी कोई भनकी नहीं लग पायी है। बतौर मिसाल वर्षों की छानबीन के बावजूद सी बी आई को उन सभी चालीस लोगों के खिलाफ अकाट्य प्रमाण नहीं मिल पाये हैं जिन्हे उसने अपनी चार्ज शीट मे अभियुक्त करार दिया है।
कोबरपोस्ट के एसोशिएट एडिटर के॰ आशीष ने राम जन्म भूमि आंदोलन मे अगली पांत के नेता रहे 23 लोगों से मुलाक़ात की। ये सभी लोग बाबरी मस्जिद के विध्वंस मे शामिल रहे हैं। इनकी भूमिका या तो साजिशकर्ता के रूप मे थी या उस साजिश को अमली जामा पहनाने मे इनकी भूमिका थी। आशीष ने इन लोगों से एक लेखक के रूप मे मुलाक़ात की जो इनसे अयोध्या आंदोलन पर अपनी प्रस्तावित पुस्तक के बारे मे जानकारी चाहता था। आशीष ने बजरंग दल, वीएचपी और बीजेपी के चंपत राय बंसल, रामजी गुप्ता, प्रकाश शर्मा, रमेश प्रताप सिंह, विनय कटियार, जयभान सिंह पवेया, धर्मेंद्र सिंह गुर्जर, बी एल शर्मा प्रेम, ब्रिज भूषण शरण सिंह, साध्वी उमा भारती, कल्याण सिंह और लल्लू सिंह से बातचीत की। उसके बाद शिवसेना के जय भगवान गोयल, पवन पांडे, संतोष दुबे, सतीश प्रधान और मोरेश्वर सावे से बातचीत की और फिर हिंदु संत समाज के स्वामी सचिदानंद साक्षी महाराज, महंत राम विलास वेदांती, साध्वी रितमबरा, महंत अवैद्यनाथ, आचार्य धर्मेंद्र और स्वामी नृत्य गोपाल दास से बात की।
इनमे से 15 लोगों को लिब्रहान आयोग ने दोषी ठहराया है तो वहीं सी बी आई ने इनमे से 19 लोगों को अपनी चार्जशीट मे आरोपी बनाया है। हैरानी की बात यह है की सीबीआई ने बी एल शर्मा, महंत अवैद्यानाथ, महंत नृत्य गोपाल दास और महंत राम विलास वेदांती जैसे महत्वपूर्ण किरदारों को अपनी जांच और चार्ज शीट का हिस्सा नहीं बनाया है। कुल मिला कर बाबरी विध्वंस के मामले मे 40 लोगों पर सीबीआई कोर्ट मे मुकदमा चल रहा है, जिनमे से 32 लोगों को एफ आई आर नंबर 92/197 मे साजिश को अंजाम देने वाले लोगों के रूप मे शुमार किया है। बचे 8 लोगों को एफ आई आर नंबर 92/198 साजिश कर्ता के रूप मे आरोपी बनाया गया है।
अपनी तहकीकात के दौरान आशीष ऑपरेशन जन्मभूमि के इन मुख्य किरदारों से मुलाक़ात करने के लिए उत्तर प्रदेश के अयोध्या, फैजाबाद, टांडा, लखनऊ, गोरखपुर, मथुरा और मुरादाबाद, राजस्थान के जयपुर, महाराष्ट्र के औरंगाबाद और मुंबई, और मध्य प्रदेश के ग्वालियर जैसे शहरों मे गए। इत्तेफाक से इस गुप्त योजना को ऑपरेशन जन्मभूमि का नाम इन्ही षड्यंत्रकारियों से मिला था कोबरपोस्ट ने अपने इस खुलासे के लिए इस नाम को अपना लिया।
कोबरपोस्ट की तहकीकात मे जो बातें उभर कर सामने आई हैं उनमे से कुछ इस प्रकार हैं:-
•बाबरी विध्वंस का षड्यंत्र दो उग्र हिंदुवादी संगठनो विश्व हिन्दू परिषद और शिव सेना ने अलग अलग रचा था।
•इन दोनों संगठनो ने 6 दिसंबर से काफी समय पहले अपनी कार्ययोजना के तहत अपने कार्यकर्ताओं को इस मकसद के लिए प्रशिक्षण दिया था।
•आरएसएस के प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं का एक आत्मघाती दस्ता भी बनाया गया था जिसको बलिदानी जत्था भी कहा गया।
•विहिप की युवा इकाई बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने गुजरात के सरखेज मे इस मकसद के लिए एक महीने का प्रशिक्षण भी प्राप्त किया था। दूसरी ओर शिवसेना ने भी अपने कार्यकर्ताओं के लिए ऐसा ही एक प्रशिक्षण कैंप भिंड मोरेना मे आयोजित किया था।
•इस प्रशिक्षण मे लोगों को पहाड़ियों पर चड्ने और खुदाई करने का प्रशिक्षण देने के साथ साथ शारीरिक व्यायाम भी कराया जाता था।
•6 दिसंबर को विवादित ढांचे को तोड़ने के मकसद से छैनी, घन, गैंती, फावडा, सब्बल और दूसरी तरह के औजारों को ख़ासी तादाद मे जुटा लिया गया था।
•6 दिसंबर को ही लाखो कारसेवकों को एक संकल्प भी कराया गया था। इस संकल्प मे विवादित ढांचे को गिरा कर उसकी जगह एक भव्य राम मंदिर बनाने की बात कही गयी थी। राम कथा मंच से संचालित इस संकल्प मे आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, अशोक सिंघल, गिरि राज किशोर और आचार्य धर्मेंद्र सहित कई जाने माने नेता और संत लोग थे। यह संकल्प महंत राम विलास वेदांती ने कराया था। कहा जाता है की संकल्प के होते ही बाबरी मस्जिद को तोड़ने का काम शुरू कर दिया गया था।
•विहिप के नेताओं ने बाबरी विध्वंस के मकसद से कुछ दिन पहले अलग अलग अंचलों के 1200 संघ कार्यकर्ताओं को मिला कर एक सेना का गठन किया था। इस गुप्त सेना का नाम लक्ष्मण सेना था। इस सेना को सभी सामान उपलब्ध कराने और दिशानिर्देश का जिम्मा राम जी गुप्ता को सौपा गया था। इस सेना का नारा जय शेशावतार था।
•दूसरी ओर शिवसेना ने भी इसी तर्ज पर अयोध्या मे अपने स्थानीय कार्यकर्ताओं की एक सेना बना रखी थी। इसका नाम प्रताप सेना था। इसी सेना ने शिवसेना के बाबरी मस्जिद विध्वंस के अभियान को जरूरी सामान और सहायता उपलब्ध कराई थी।
•आरएसएस, विहिप और बजरंग दल के नेताओं ने विध्वंस से एक दिन पहले अयोध्या के हिन्दू धाम मैं एक गुप्त मीटिंग की थी। इस मीटिंग मे अशोक सिंघल, विनय कटियार, विष्णु हरी डालमिया, मोरो पंत पिंगले और महंत अवैध्यनाथ ने शिरकत की थी। इसी बैठक मे दूसरे दिन होने वाली कारसेवा के दौरान बाबरी मस्जिद को गिराने का फैसला किया गया था।
•आरएसएस और बीजेपी ने भी एक गुप्त बैठक हनुमान बाग मे की थी। इस मीटिंग मे आरएसएस के एच वी शेषाद्री समेत उस समय अयोध्या मे मौजूद विनय कटियार, उमा भारती और एल के आडवाणी जैसे नेताओं ने भाग लिया था।
•इधर शिवसेना ने बाबरी विध्वंस से एक महीने पहले दिल्ली के नॉर्थ एवेन्यू मे एक गुप्त बैठक की थी। इस बैठक मे जय भगवान गोयल, मोरेश्वर सावे, आनन्द दिघे समेत कई वरिष्ठ नेताओं ने हिस्सेदारी की थी। इस बैठक मे अयोध्या कूच से पहले पूरी रणनीति तय की गयी थी। बाला साहब ठाकरे और राज ठाकरे दोनों इन सारी गतिविधियों के दौरान इन नेताओं से संपर्क मे थे।
•अगर पारंपरिक तरीके कामयाब नहीं हो पाते तो शिवसेना ने बाबरी मस्जिद को डायनमाईट से उड़ाने का फैसला भी किया था।
•पारंपरिक औजारों के अलावा बजरंग दल की बिहार की टोली ने बाबरी को गिराने के लिए पेट्रोल बमो का भी इस्तेमाल किया था।
•स्थानीय प्रशासन ने अपनी संवैधानिक ज़िम्मेदारी निभाने के बजाय उन्मादित कार सेवकों को बाबरी ढांचे को ध्वस्त करने के लिए उकसाया और इस काम मे उनकी मदद भी करी। जैसे पी ए सी के जवानो को ये कहते सुना गया की इस “सरदर्द” को हमेशा के लिए खत्म कर दो।
•बाबरी विध्वंस के बाद वहाँ से कई पुरातन महत्व की चीजों को चुपचाप निकाल लिया गया। जैसे शिवसेना के नेता पवन पांडे के पास 1528 के शिलालेख के दो टुकड़े मौजूद हैं, जिसमे मीर बाकी ने बाबरी मस्जिद के निर्माण की घोषणा की थी। पवन पांडे अब इन दो टुकड़ों को बेचना चाहते हैं।
लक्ष्मण सेना के राष्ट्रीय अध्यक्ष राम जी गुप्ता का कहना है कि उनकी सेना को एक स्पष्ट निर्देश दिया गया था की जैसे ही वो तीन बार जय शेशावतार का नारा लगाएंगे उस सेना के सभी लोग कारसेवकों की भीड़ का फायदा उठा कर बाबरी पर हमला बोल देंगे। इसके बाद अगर कोई भी नेता उनसे रुकने के लिए कहता है तो वो नहीं रुकेंगे जब तक की बाबरी का काम तमाम ना हो जाए।
कोबरपोस्ट की पड़ताल मे दो महत्वपूर्ण किरदारों का नाम भी उभर कर आया है जिन्होने बाबरी विध्वंस मे अपने तरीके से भूमिका निभाई। इनमे से एक कल्याण सिंह हैं जो बाबरी विध्वंस के समय उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। कोबरपोस्ट को कम से कम दो महत्वपूर्ण नेताओं ने ये खुलासा किया है कि कल्याण सिंह को अयोध्या मे चल रहे हर घटनाक्रम की जानकारी थी। वो अच्छी तरह से जानते थे की दिसंबर 6 को क्या होगा। महंत राम विलास वेदांती के अनुसार उन्हे दिसंबर 5 की रात को ही दो टूक शब्दों मे बता दिया गया था कि ढांचा तोड़ दिया जाएगा। वेदांती कहते हैं “पाँच दिसंबर की रात को ही कल्याण सिंह के पास समाचार भेज दिया गया था और उसमे ये कहा गया था की यदि आवश्यकता पड़ती है तो ढांचा भी तोड़ दिया जाएगा आपको क्या भूमिका निर्वाह करनी है विचार कर लीजिए।“ सिर्फ यही नहीं साक्षी महाराज का भी दावा है की वो कल्याण सिंह को अयोध्या मे चल रहे घटनाक्रम की मिनट दर मिनट जानकारी दे रहे थे। इसके बावजूद भी कल्याण सिंह ने कोई ठोस कार्रवाई नहीं की।
ऐसा कहा जाता है कि कल्याण सिंह दिसंबर 6 की सुबह अपना त्यागपत्र देने पर आमादा हो गए थे लेकिन उन्हे अयोध्या से मुरली मनोहर जोशी और शेषाद्री ने तब तक इस्तीफा ना देने के लिए माना लिया जब तक कि कारसेवक बाबरी ढांचे को ज़मींदोज़ ना कर दे। इन नेताओं को ये डर था कि अगर मुख्यमंत्री ने समय से पहले इस्तीफा दे दिया तो उत्तर प्रदेश मे तत्काल राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाएगा और तत्काल सेना बुला ली जाएगी तो ऐसे मे भारी संख्या मे कारसेवक मारे जाते।
बाबरी विध्वंस मे तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव का हाथ होने की बार बार आशंका जताई जाती रही है। कोबरपोस्ट की पड़ताल मे यह आशंका सही साबित हुई है। विनय कटियार, बी एल शर्मा, संतोष दुबे, साक्षी महाराज और महंत राम विलास वेदांती जैसे राम जन्म भूमि आंदोलन के शीर्ष नेता बड़ी बेबाकी से नरसिंह राव की भूमिका को स्वीकारते हैं। यहाँ यह बताना जरूरी है कि बाबरी मस्जिद को तोड़ने के लिए दो बार द्रढ़ प्रयास हुआ था। एक 1990 मे और दूसरा 1992 मे पहली कोशिश पुलिस की कार्रवाही के कारण कामयाब नहीं हो पायी। पुलिस की कार्रवाई मे कई कारसेवकों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। मगर साक्षी महाराज उन कारसेवकों की मौत के लिए आंदोलन के कुछ नेताओं को दोषी ठहराते हैं जो आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए कारसेवकों की बलि देना चाहते थे। साक्षी महाराज कारसेवकों की मौत के लिए अशोक सिंघल को जिम्मेदार ठहराते हुए कहते हैं “तो मेरे सामने अशोक सिंघल जी ने कहा महाराज कुछ लोग नहीं मरेंगे तो आंदोलन ऊपर नहीं उठेगा तो आप आज्ञा दो जाने की तो अशोक सिंघल जी ने कहा ... वामदेव जी ने कहा बच्चे मरेंगे तो बहुत काम खराब हो जाएगा ...बोले महाराज जब तक नहीं मरेंगे तब तक कुछ होगा नहीं आंदोलन तभी बढ़ेगा।”
साक्षी की तरह साध्वी उमा भारती विनय कटियार को कोठारी बंधुओं की मौत के लिए जिम्मेदार मानती है। 30 अक्टूबर 1990 के घटनाक्रम को याद करते हुए उमा भारती कहती हैं, “जो लोग मरे थे वो विनय की गलती से .... गलती भी नहीं वो भगदड़ मची वो गली छोटी थी ...गलती मतलब वो भाग गया छोड़कर भाग गया।”
इस तरह के आरोप अयोध्या षड्यंत्र को एक नया आयाम देते हैं और इस आंदोलन के शीर्ष नेताओं की नियत को लेकर सवाल खड़े करते हैं। क्या वाकई वे युवा कारसेवकों की अपने निहित राजनैतिक स्वार्थों की बेदी पर बलि चढ़ाना चाहते थे।
इसी तरह बजरंग दल के एक और अग्रणी नेता धर्मेंद्र सिंह गुर्जर आंदोलन के पूरे नेत्रत्व की नियत पर सवाल खड़े करते हैं, “ये सब बेवकूफ बनाने वाली बातें हैं इसीलिए तो हमारा देश बेवकूफ बनता आ रहा है ... पहले हम जवानी की जोश मे थे ... जुनून मे थे एक जुनून था गुजर गया ... लोगों ने उपयोग किया और छोड़ दिया यूज करके।”
हिन्दुत्व और उसके नेत्रत्व का यह निर्मम चेहरा कोबरपोस्ट रिपोर्टर की एक और मुलाक़ात मे उभर कर आता है। इस मुलाक़ात के दौरान रिपोर्टर ने महंत अवैध्यनाथ को विनोद वत्स जैसे उत्साही कारसेवक के बलिदान की याद दिलाई। विनोद वत्स के बूढ़े माता पिता बदहाली का जीवन जी रहें हैं। महंत अवैध्यनाथ का जो कहना था वो वाकई शर्मनाक है, “सब को मरना है तुमको भी है मुझे भी मरना है मृत्य को कौन रोक सकता है।“ उसके बूढ़े निराश्रय माँ बाप के लिए महंत अवैध्य नाथ का भी यही दर्शन है, “वो भी मरेंगे उनको भी मरना है।”
कोबरपोस्ट की पड़ताल एक और सच्चाई को फिर से स्थापित करती है कि इस झगड़े की बुनियाद मे 1949 की एक घटना है जब रामलला की मूर्ति को गुपचुप तरीके से बाबरी मस्जिद मे स्थापित कर दिया गया था। इस घटना के चश्मदीद गवाह कोई और नहीं बल्कि रामजन्म भूमि आंदोलन मे महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले बी एल शर्मा प्रेम हैं। शर्मा का कहना है कहना है कि वो तब अयोध्या मे मिलिट्री पुलिस मे एक वारंट आफिसर के रूप मे तैनात थे। यह सब उनकी आँखों के सामने हुआ। तब अयोध्या के पुजारी रामचंद्र दास उनकी यूनिट मे बराबर आया जाया करते थे एक दिन राम चन्द्र दास ने उन्हे बताया कि रामलला अमुक दिन ऐसे प्रकट होंगे। तो वहाँ अपने साथियों को लेकर आना। शर्मा के अनुसार रामलला का प्रकट होना कोई दैवीय चमत्कार नहीं था। उनका कहना है, “अरे जी काहे के प्रकट होने वाले... प्रकट किया है ... वो तो महाराज का काम था न रामचंद्र परमहंस।“ राम जन्म भूमि आंदोलन इसी झूठ की बुनियाद पर खड़ा किया गया था। (प्रैस विज्ञप्ति)
देश में सौहार्द बने रहे यही सबके हित में है ..
जवाब देंहटाएं