मां और पत्नी के बीच अंतर
मां बन बिगाड़ती है औरत।
पत्नी बन संवारती है औरत॥
सत्य है या कोरा झूठ। मुझे नहीं पता, लेकिन पिछले सालों में जो मैंने देखा और महसूस किया। उसको समझने के बाद मुझे कुछ ऐसा ही लगा। मां भी एक औरत है और पत्नी भी, इन दोनों में बहुत बड़ा अंतर है, फर्क है।
बतियाने से कुछ नहीं होने वाला, चलो फर्क ढूंढने निकलते हैं। एक बच्चे का बाप बोल रहा "ये क्या कर रहे हो, हैप्पी! बस्ता सही जगह रखो" अब मां और एक पत्नी बोली "बच्चा है, कोई बात नहीं जाने दो"। हैप्पी अब जवान हो गया, किसी का पति हो गया। अब फिर एक पत्नी बोली "तुमने ये ऑफिस बैग कहां रखा है, तुमको बिल्कुल समझ नहीं"। याद रहे कि अब वो अकेली पत्नी है। अब हैप्पी सोचता है कि मां तुमने पहले बिगाड़ क्यों था, क्या पत्नी की डाँट खाने के लिए।
समीर तुमको कितने बार कहा है कि जूते सही जगह रखा करो और जहां वहां मत फेंका करो। एक पत्नी बोल रही है। अब उसको भी मां की याद आ रही है, जो कहती थी, कोई बात नहीं जब समीर एक जूते को इस कोने में तो दूसरे जूते को किसी ओर कोने में फेंक देता था और सुबह होते ही दोनों जूते एक जगह मिलते थे।
क्या ऑफिस जाने के जल्दी पड़ी रहती है, दो मिनट अविनाश लेट नहीं जा सकते, हमेशा ही आग लगी रहती है तुमको जल्दी जाने की। पत्नी की इन बातों को सुनते हुए अविनाश अतीत के पन्ने पलटता हुआ, बचपन के उन दिनों में पहुंचता है जब वो बिस्तर में पड़ा होता था। मां उसको लोभ देकर उठाती थी, जल्दी स्कूल चलो, नहीं तो बेटा लेट हो जाओगे। तुम पीछे रह जाओगे औरों से। तब सब कहते थे कितना समय का पाबंद है, लेकिन अब कहते हैं कभी तो समय पर आओ यार। यहां पर कौन गलत था मां या फिर पत्नी, सोचते सोचते दिन निकल रहे हैं।
राजीव तुमको खाने का सलीका भी नहीं, खाना कैसे खाते हैं? मैं तो पिछले कई सालों से ऐसा खा रहा हूं, किसी ने नहीं टोका। लेकिन मैं तुम्हें आज टोक रही हूं। इस पर ध्यान दो, आज तक की छोड़ो। राजीव दुखी है और सोचता है क्या मां कितने साल तुम अपने हाथों से खिलाती रही और कई साल तक मैं तेरे पास बैठकर खाता रहा। तुमने कभी मुझे इस तरह टोका नहीं। अगर मैं गलत था तो तुमने सुधार क्यों नहीं। तुम टोक देती तो पत्नी की डांट न खानी पड़ती। पता नहीं फिर कहां से एक आवाज आती, तुम फिक्र मत करो..वो संपादक जैसी है, जिसको कांट छांट करने की आदत है, वरना उसके संपादक होने का क्या मतलब।
याद है तुमको शादी के बाद से आपको बदलने लगती है वो, और अब हर रोज खुद ही कहती है कि तुम पहले से नहीं रहे। उसको पसंद पहले वाला ही है, लेकिन बदलाव करना उसकी फिदरत है। स्वीकार करो...वो जैसी भी है प्यार करो।
भई कुछ दिनो तक तो यह पत्नी और माँ का डबलरोल चलता है बाद मै स्त्री पूरी तरह माँ बन जाती है और पति को भी उसी तरह सुधारती है जिस तरह बेटे को ..यह स्त्री की महानता है ..लेकिन पति सुधरे तब ना।
जवाब देंहटाएंभाई साहब, माँ ने बिगाडा था तो इसका मतलब ये नहीं कि तुम जिन्दगी भर बिगडे रहो, समझदार इन्सान वही कहलाता है जो बक्त और नजाकत के हिसाब से खुद को बदल डाले ! वैसे मुद्दा सही उठाया आपने !
जवाब देंहटाएंKulwant post bahut achchi lagi..... ab main kaise bataun..... maine to apni maa ko 10 saal ki umr mein hi kho diya tha....????????
जवाब देंहटाएंसही है भाई..
जवाब देंहटाएंहैपी ब्लॉगिंग
बढ़िया पोस्ट है।समय के साथ साथ बहुत कुछ बदलना पड़ता है..........
जवाब देंहटाएंमै शरद जी के बातो से पूरी तरह से सहमत हूँ .........बिल्कुल सही है बन्धु!
जवाब देंहटाएंjai ho............
जवाब देंहटाएंachhi lagi aaapki baat
prabhavit kiya !
बढ़िया पोस्ट है।समय के साथ साथ बहुत कुछ बदलना पड़ता है........
जवाब देंहटाएंEk bahut bada difference hai ek ma aur patni mai.Ek ma apne bête ko bhuka nahi sula sakty lekin Ek patni paty ko bhuka bhi sula sakty hai
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