पंजाब में राजनीति और बाबावाद

वैसे तो पूरे भारतवर्ष में ही बाबावाद फैला हुआ है, किंतु पंजाब की राजनीति तो चलती ही बाबावाद से, इसमें कोई शक नहीं कि पंजाब की राजनीति में बाबावाद का हस्तक्षेप है, पंजाब में जिनते भी साधू संत प्रसिद्ध हुए वे सब राजनीति में आए और राजनीति में जगह पाने के बदले कई साधू संतों को जान देकर कीमत चुकानी पड़ी है, बेशक वे संत हरचंद सिन्ह लौंगवाल हों, चाहे फिर विश्वप्रसिद्ध जरनैल सिन्ह भिंडरांवाला हों. इसके अलावा पंजाब में जब भी किसी बाबा के खिलाफ दुष्प्रचार होता है तो पंजाब की राजनीतिक पार्टियों को बहुत नुकसान होता है क्योंकि जिन बाबाओं के खिलाफ दुष्प्रचार होता है, उनके बल तो राजनीति चलती है. उदाहरण के तौर पर कुछ महीने पहले पंजाब में हुए डेरा सच्चा सौदा सिरसा और शिरोमणि गुरूद्बारा प्रबंधक कमेटी के बीच हुए संघर्ष को ही लें, इसके पीछे भी तो राजनीति थी. शिरोमणि अकाली दल और कांग्रेस पंजाब में दो बड़े दल हैं, अकाली दल की समर्थक भाजपा है. दोनों पार्टियों के नेताओं का डेरा सच्चा सौदा सिरसा में आना जाना है क्योंकि डेरा सच्चा सौदा के पंजाब में काफी श्रद्धालु हैं, लेकिन अकाली दल का इस बार डेरा के प्रति रोष इसलिए था क्योंकि डेरा प्रमुख ने कथित तौर पर इस बार कांग्रेस की मालवा क्षेत्र में मदद की थी जोकि शिअद के सुप्रीमो का मुख्य क्षेत्र है. जिसके चलते शिअद सुप्रीमो डेरे से बेहद नाराज़ थे और दूसरी तरफ श्री गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी शिअद की बहुत करीबी कमेटी है, कहा जाए तो शिअद बादल चलता है एसजीपीसी के बलबूते पर, डेरे और एसजीपीसी के विवाद के चलते जैसे पंजाब और अन्य राज्यों के हालात बिगड़ने लगे तो शिअद सुप्रीमो व पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिन्ह बादल ने एसजीपीसी को अंदरखाते कथित तौर पर मामला निपटाने को कहा, जैसे ही ये मामला ठन्डा हुआ तो अब एसजीपीसी ने अब फिर से 1984 के दौरान हुए ब्लू सटार के शहीद भिंडरांवाले का प्रचार शुरू कर दिया, इतना ही नहीं पिछले दिनों भिंडरांवाला की तस्वीर को श्री हरमंदर साहिब के म्यूज़ियम में स्थापित किया है. इसके अलावा पंजाब के कुछ शहरों में भी भिंडरावाला के पोस्टर लगाए गए, जिसको देखकर लगता है कि मानो पंजाब को एक बार फिर से खालिस्तान के रंग में रंगने की तैयारी है. याद रहे कि जरनैल सिंह को पंजाब में वोट बैंक बनाने के लिए कांग्रेस पार्टी ने तैयार किया था लेकिन एक दिन ऐसा समय आया कि कांग्रेस का ये सिपाही जरनैल सिन्ह कांग्रेस के लिए एक बड़ी सम्स्या बन गया और खालिस्तान की मांग को लेकर चर्चा का केंद्र बनते बनते जरनैल सिन्ह भिंडरांवाला बन गया. जिसको खत्म करने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सिक्खों के पवित्र स्थान श्री हरमंदर साहिब पर हमला करवाना पड़ा. यह दिन पंजाब के लिए बहुत बुरा था क्योंकि गुरुद्वारा साहिब पर हुए हमले ने धार्मिक भावनाओं को कुचल दिया था. इस बात से दुखी कुछ लोगों ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या भी कर दी थी. अब फिर पंजाब में अपना रौब बनाने के लिए शिअद हर हथकंडा अपनाएगी. इसके अलावा कुछ लोगों का मानना है कि डेरा सिरसा के चलते पंजाब के कुछ लोगों का ध्यान श्री गुरूद्वारा साहब से हटकर डेरे की तरफ चला गया था, जिसके चलते एसजीपीसी को गुरुद्वारा साहबों से होने वाली आमदनी कम हुई और कुछ लोगों का कहना है डेरे के चलते बहुत से लोगों ने शराब पीनी छोड़ दी, जिसके चलते शराब के ठेकेदारों को भारी झटका महसूस हुआ, वहीं कुछ लोगों का कहना है कि शिअद बादल को विस चुनावों के दौरान डेरा सिरसा की ओर से कोई समर्थन नहीं मिला, मिलता भी कैसे, कांग्रेसी नेता जस्सी डेरा प्रमुख के रिश्तेदार जो ठहरे. पंजाब की राजनीति में बाबावाद तो कूटकूट कर भरा हुआ है, इसमें तो जरा सा भी शक नहीं, इससे पहले अकाली दल को संत फतह सिन्ह व चन्नण सिन्ह शिख़र पर ले गए थे, तब से ही राजनीति में साधू संतों की हिस्सेदारी रही है कभी सीधे तौर पर तो कभी अप्रत्यक्ष रूप में. अब अकाली दल को पता चल गया कि अगर पंजाब में राज करना है तो एसजीपीसी को साथ लेकर चलना होगा. बेशक डेरा सच्चा सौदा सिरसा से पहले शिअद ने बाबा प्यारा सिन्ह भनियारे वाले से नजदीकियां बढ़ाईयां थी, जैसे अकाली दल को पता चला कि बाबा के पास कुछ नहीं तो एसजीपीसी ने उस बाबा पर हल्ला बोल दिया. एक बात की समझ किसी को नहीं आई कि आख़र जैसे ही किसको बादल साहब छोड़ते हैं तो उसके बाद उसका टकराव एसजीपीसी से क्यों होता है?

आभार
कुलवंत हैप्पी

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