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लेकिन, मुझे तो इक घर की जरूरत है

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(1) जिस्म के जख्म मिट्टी से भी आराम आए रूह के जख्मों के लिए लेप भी काम न आए (2) वक्त वो बच्चा है, जो खिलौने तोड़कर फिर जोड़ने की कला सीखता है (3) माँ का आँचल तो हमेशा याद रहा, मगर, भूल गया बूढ़े बरगद को छाँव तले जिसकी खेला अक्सर। (4) जब कभी भी, टूटते सितारे को देखता हूँ यादों में किसी, अपने प्यारे को देखता हूँ। (5) जब तेरी यादें धुँधली सी होने लगे, तेरे दिए जख्म खरोंच लेता हूँ। (6) तेरे शहर में मकानों की कमी नहीं, लेकिन, मुझे तो इक घर की जरूरत है वेलकम लिखा शहर में हर दर पर खुले जो, मुझे उस दर की जरूरत है आभार

हैप्पी अभिनंदन में संजय भास्कर

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है प्पी अभिनंदन में आज आप जिस ब्लॉगर हस्ती से रूबरू होने जा रहे हैं, उस ब्लॉगर हस्ती ने बहुत कम समय में बहुत ज्यादा प्यार हासिल कर लिया है, अपने नेक इरादों और अच्छी रचनाओं के बल पर। वो अपनी बात कहने के लिए ज्यादा शब्दों का इस्तेमाल नहीं करते, बल्कि अपने दिल की बात रखने के लिए वो दो चार पंक्तियाँ ही लिखते हैं, लेकिन पढ़ने का शौक इतना कि वो हर ब्लॉग पर मिल जाएंगे, जैसे सूर्य हर घर में रोशनी कर देता है, वैसे ही हमारे हरमन प्यारे ब्लॉगर संजय भास्कर जी भी हर ब्लॉग अपने विचारों का प्रकाश जरूर डालकर आते हैं। मैंने जब उनके ब्लॉग की पहली पोस्ट देखी, जो 19 जुलाई 2009 को प्रकाशित हुई, वो रोमन लिपि में थी सिर्फ एक लाईन में, लेकिन उनकी 'आदत.. मुस्कुराने की' ने उनको हिन्दी लिपि सीखने के लिए मजबूर कर ही दिया। उनकी मुस्कराने, पढ़ने और कुछ नया सीखने की आदत ने उनको एक शानदार ब्लॉगर बना ही दिया। आगे के बारे में वो क्या सोचते हैं, इसके बारे जाने के लिए पढ़िए, मेरे सवाल, उनके जवाब। कुलवंत हैप्पी : आप ब्लॉगदुनिया में कैसे, कब और क्यों आए? यहाँ आने के बाद क्या कभी कुछ अलग सा महसूस हुआ? संजय भास्कर

नेता, अभिनेता और प्रचार विक्रेता

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जब हम तीनों बहन भाई छोटे थे, तब आम बच्चों की तरह हमको भी टीवी देखने का बहुत शौक था, मुझे सबसे ज्यादा शौक था। मेरे कारण ही घर में कोई टीवी न टिक सका, मैं उसके कान (चैनल ट्यूनर) मोड़ मोड़कर खराब कर देता था। पिता को अक्सर सात बजे वाली क्षेत्रिय ख़बरें सुनी होती थी, वो सात बजे से पहले ही टीवी शुरू कर लेते थे, लेकिन जब कभी हमें टीवी देखते देखते देर रात होने लगती तो बाहर सोने की कोशिश कर रहे पिता की आवाज आती,"कंजरों बंद कर दो, इन्होंने तो पैसे कमाने हैं, तुम्हें बर्बाद कर देंगे टीवी वाले"। तब पिता की बात मुझे बेहद बुरी लगती, लगे भी क्यों न टीवी मनोरंजन के लिए तो होता है, और अगर कोई वो भी न करने दे तो बुरा लगता ही है, लेकिन अब इंदौर में पिछले पाँच माह से अकेला रह रहा हूँ, घर में केबल तार भी है, मगर देखने को मन नहीं करता, क्योंकि पिता की कही हुई वो कड़वी बात आज अहसास दिलाती है कि देश के नेता, अभिनेता और अब प्रचार विक्रेता (न्यूज चैनल) भी देश की जनता को उलझाने में लगे हुए हैं। आज 24 घंटे 7 दिन निरंतर चलने वाले न्यूज चैनल वो सात बजे वाली खबरों सी गरिमा बरकरार नहीं रख पा रहे, पहले जनता को

कुछ क्षणिकाओं की पोटली से

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1. हम भी दिल लगाते, थोड़ा सा सम्हल पढ़ी होती अगर, जरा सी भी रमल -: रमल- भविष्य की घटनाएं बताने वाली विद्या (2) मुश्किलों में भले ही अकेला था मैं, खुशियों के दौर में, ओपीडी के बाहर खड़े मरीजों से लम्बी थी मेरे दोस्तों की फेहरिस्त। ओपीडी-out patient department (3) खुदा करे वो भी शर्म में रहें और हम भी शर्म में रहें ताउम्र वो भी भ्रम में रहें और हम भी भ्रम में रहें बेशक दूर रहें, लेकिन मुहब्बत के पाक धर्म में रहें पहले वो कहें, पहले वो कहें हम इस क्रम में रहें (4) मत पूछ हाल-ए-दिल क्या बताऊं, बस इतना कह देता हूँ खेतिहर मजदूर का नंगा पाँव देख लेना तूफान के बाद कोई गाँव देख लेना (5) मुहब्बत के नाम पर जमाने ने लूटा है कई दफा मुहब्बत में पहले सी रवानगी लाऊं कैसे (6) औरत को कब किसी ने नकारा है मैंने ही नहीं, सबने औरत को कभी माँ, कभी बहन, कभी बुआ, कभी दादी, कभी नानी, तो कभी देवी कह पुकारा है। सो किओं मंदा आखिए, जितु जन्महि राजान श्री गुरू नानक देव ने उच्चारा है। वो रोया उम्र भर हैप्पी, जिसने भी औरत को धिधकारा है। (7) मोहब्बत मेरी तिजारत नहीं, प्रपोज कोई

आओ करते हैं कुछ परे की बात

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विज्ञापन बहुत रो लिए किसी को याद कर नहीं करनी, अब मरे की बात खिलते हुए फूल, पेड़ पौधे बुला रहे छोड़ो सूखे की, करो हरे की बात आलम देखो, सोहणी की दीवानगी का कब तक करते रहेंगे घड़े की बात आओ खुद लिखें कुछ नई इबारत बहुत हुई देश के लिए लड़े की बात चर्चा, बहस में ही गुजरी जिन्दगी आओ करते हैं कुछ परे की बात सोहणी- जो अपने प्रेमी महीवाल को मिलने के लिए कच्चे घड़े के सहारे चेनाब नदी में कूद गई थी, और अधर में डूब गई थी। परे की बात : कुछ हटकर.. आभार