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निर्मल बाबा, मीडिया और पब्‍लिक, आखिर दोषी कौन?

फेसबुक पर कुमार आलोक   लिखते हैं, मेदनीनगर झारखंड में ईंट भट्ठा का रोजगार किया ...नही चला ..गढ़वा में कपडे़ की दूकान खोली ..वो भी फ्लाप ..बहरागोडा इलाके में माइंस का ठेका लिया औंधे मुंह गिरे ...पब्लिक को मूर्ख बनाने का आइडिया ढूंढा .. तो सुपरहिट ..ये है निर्मल बाबा का संघर्ष गाथा। मगर सवाल यह उठता है कि पूरे मामले में आखिर दोषी कौन है वो निर्मल बाबा, जो लोगों को ठगने का प्‍लान बनाकर बाजार में उतरा, या मीडिया, जिसने पैसे फेंको तमाशा देखो की तर्ज पर उसको अपने चैनलों में जगह दी या फिर वो पब्‍िलक जो टीवी पर प्रसारित प्रोग्राम को देखने के बाद बाबा के झांसे में आई। निर्मल बाबा पर उस समय उंगलियां उठ रही हैं, जब वह चैनलों व अपनी बातों की बदौलत करोड़पति बनता जा रहा है। अब निर्मल बाबा से उस मीडिया को प्रोब्‍लम होने लगी है, जो विज्ञापन के रूप में बाबा से लाखों रुपए बटोर रहा है। आज बाबा पर उंगलियां उठाने वाला मीडिया स्‍वयं के मालिकों से क्‍यूं नहीं पूछता, जिन्‍होंने बाबा को घर घर तक पहुंचाया, जिन्‍होंने निर्मल बाबा का अवतार पैदा किया, जो काम निर्मल बाबा को करने में सालों लग जाते या कहू

भारत सईद व पचास करोड़ पर ठोके दावा

सब जानते हैं कि अमेरिका शातर है, वो अपनी हर चाल सोच समझकर चलता है, अब साइद हाफिज को लेकर चली उनकी चाल को गौर से देखें, यह चाल अमेरिका ने कब चली, जब पाकिस्‍तानी राष्‍ट्रपति आसिफ अली जरदारी हिन्‍दुस्‍तान आने वाले थे। अमेरिका ने जैसे ही कहा,  सईद हाफिज मोहम्‍मद को पकड़वाने वाले को 50 करोड़ रुपए का नाम मिलेगा, तो सईद की दहाड़ते सुनते ही अमेरिका ने पल्‍टी मारते हुए कहा कि यह इनाम उसके खिलाफ साबूत पेश करने वाले को मिलेगा। जैसे ही आसिफ ने भारत आने की बात स्‍वीकार की, वैसे ही हिन्‍दुस्‍तानी मीडिया को पंचायत बिठाने का मौका मिल गया। टीवी स्‍क्रीन पर मुददे खड़े किए जाने लगे, अमेरिका की नीयत पर शक किया जाने लगा, यहीं नहीं भारत के प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह हाफिज को लेकर मुंह खोलेंगे कि नहीं को लेकर भी अटकलें शुरू हो गई, और यह चर्चाएं तब भी खत्‍म नहीं हुई, जब आसिफ अपने घर पाकिस्‍तान लौट चुके थे। अटकलों का बाजार गर्म था, पंचायत छोटी स्‍क्रीन पर निरंतर बिठाई जा रही थी, और बहस शुरू थी कि क्‍या पाकिस्‍तान भारत के साथ अपने रिश्‍ते मजबूत करना चाहता है, अगर हां तो क्‍या वह हाफिज को भारत के हवाले क

मंदिर हों तो अक्षरधाम जैसे

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रविवार का दिन, सबसे मुश्‍िकल दिन मेरे लिए, पूरा दिन आखिर करूं तो क्‍या करूं, कोई दोस्‍त आस पास रहता नहीं, अगर रहता भी होगा तो उसके घर भी एक पत्‍नी होगी, जो उससे समय मांगेगी, ऐसे में मेरा उसके पास जाना भी कोई उचित नहीं था, मेरी पत्‍िन तो मायके गई हुई थी, बच्‍ची से मिलने, मैं रोज रोज सुसराल नहीं जा सकता। ऐसे में सुबह जल्‍दी जल्‍दी तैयार हुआ, और दुकान के लिए चल दिया, सोचा ब्‍लॉग जगत के लिए कुछ लिखूंगा, मगर दुकान पहुंचा तो पता चला इंटरनेट समयावधि पूरी होने के चक्‍कर में बंद पड़ा, दुकान का शटर नीचे किया, और खाने निकल गया, खाने के बाद सोचा घर जाऊं, सारा दिन टीवी देखूं, एंकर के चेहरों के बदलते हावभाव देखूं, या ऐसी टीवी चर्चा का हिस्‍सा बनूं, जिसमें मैं अपने विचार नहीं प्रकट कर सकता, ऐसे में सोचा क्‍यूं न अक्षरधाम घूम आउं, एक साल हो गया गांधीनगर में रहते हुए, लेकिन अक्षरधाम के मुख्‍य द्वार के सिवाय मैंने अक्षरधाम का कुछ नहीं देखा। आज मन हुआ, निकल दिया, तो सोचा आज सही वक्‍त है, वरना फिर कभी जाना नहीं होगा, जैसे अक्षरधाम के मुख्‍य द्वार पर पहुंचा तो पता चला कि अंदरमोबाइल लेकर जाना सख्‍त

हैप्‍पी अभिनंदन में रविश कुमार

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हैप्‍पी अभिनंदन   में इस बार आपको एनडीटीवी के रिपोर्टर से एंकर तक हर किरदार में ढल जाने वाले गम्‍भीर व मजाकिया मिजाज के  रवीश कुमार  से मिलवाने की कोशिश कर रहा हूं, इस बार हैप्‍पी अभिनंदन में सवाल जवाब नहीं होंगे, केवल विशलेषण आधारित है, क्‍योंकि एक साल से ऊपर का समय हो चला है, अभी तक रवीश कुमार, जो नई सड़क पर कस्‍बा बनाकर बैठें हैं, की ओर से मेरे सवालों का जवाब नहीं आया, शायद वहां व्‍यस्‍तता होगी। हो सकता है कि उनके कस्‍बे तक मेरे सवाल न पहुंच पाए हों, या फिर उनके द्वारा भेजा जवाबी पत्र मुझ तक न आ पाया हो। फिर मन ने कहा, क्‍या हुआ अगर जवाबी पत्र नहीं मिला, क्‍यूं न रवीश कुमार से पाठकों व ब्‍लॉगर साथियों की मुलाकात एक विशलेषण द्वारा करवाई जाए। रविश कुमार, ब्‍लॉग सेलीब्रिटी नहीं बल्‍कि एक सेलीब्रिटी ब्‍लॉगर हैं, जिनके ब्‍लॉग पर लोग आते हैं, क्‍यूंकि सेलीब्रिटियों से संबंध बनाने का अपना ही मजा है। मगर रवीश कुमार ने साबित किया है कि वह केवल सेलीब्रिटी ब्‍लॉगर नहीं हैं, बल्‍कि एक सार्थक ब्‍लॉगिंग भी करते हैं। मैं पहली बार उनके ब्‍लॉग पर एक साथी के कहने पर पहुंचा था, जो उम्र में

टिप बॉक्‍स का कमाल

खाना खाने के बाद टिप देना स्‍टेटस बन चुका है, अगर आप ने खाना खाने के बाद टिप न दी तो शायद आपको महसूस होगा कि आज मैंने बड़े होटल में खाना नहीं खाया, वैसे टिप देना बुरी बात नहीं, इससे सर्विस देने वाले का मनोबल बढ़ता है। मगर आज तक आपने टिप केवल उस व्‍यक्‍ित को दी, जो आपके पास अंत में बिल लेकर आता है, शायद बिल देने वाला वह व्‍यक्‍ित नहीं होता, जो आपको खाने के दौरान सर्विस दे रहा होता है। पिछले दिनों मैं जेबीएम कंपनी के मुख्‍यालय अपने काम से गया हुआ था, वहां पर शाम को एमडी अशोक मंगुकिया जी बोले, आज आपको एक बेहतरीन जगह पर खाना खिलाने के लिए लेकर जाता हूं, वहां की सर्विस व खाना दोनों की बेहतरीन हैं। उनकी बात से मुझे इंदौर सरवटे बस स्‍टेंड स्‍िथत गुरुकृपा होटल की याद आ गई, जिसकी सर्विस और खाना असल में तारीफ लायक है। सूरत के आरटीओ कार्यालय के निकट स्‍िथत सासुमा गुजराती रेस्‍टोरेंट में पहुंचते ही एमडी ने वेटर को खाना लाने के लिए इशारा किया, वह खाना लेने चला गया, लेकिन मैं खाने का स्‍वाद नहीं ले सकता था, क्‍योंकि मेरा उस दिन उपवास था, ऐसे में मैं इधर उधर, नजर दौड़ा रहा था, इतने में मेरी निग