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एक गुमशुदा निराकार की तलाश

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इस दुनिया में इंसान आता भी खाली हाथ है और जाता भी, लेकिन आने से जाने तक वो एक तलाश में ही जुटा रहता है। तलाश भी ऐसी जो खत्म नहीं होती और इंसान खुद खत्म हो जाता है। वो उस तलाश के साथ पैदा नहीं होता, लेकिन जैसे ही वो थोड़ा सा बड़ा होता है तो उसको उस तलाश अभियान का हिस्सा बना दिया जाता है, जिसको उसके पूर्वज, उसके अभिभावक भी नहीं मुकम्मल कर पाए, यह तलाश अभियान निरंतर चलता रहता है। जिसकी तलाश है, उसका कोई रूप ही नहीं, कुछ कहते हैं कि वो निराकार है। कितनी हैरानी की बात है इंसान उसकी तलाश में है, जिसका कोई आकार ही नहीं। इस निराकार की तलाश में इंसान खत्म हो जाता है, लेकिन उसका अभियान खत्म नहीं होता, क्योंकि उसने अपने खत्म होने से पहले इस तलाश अभियान को अपने बच्चों के हवाले कर दिया, जिस भटकन में वो चला गया, उसकी भटकन में उसके बच्चे भी चले जाएंगे। ऐसा सदियों से होता आ रहा है, और अविराम चल भी रहा है तलाश अभियान। खोजना क्या है कुछ पता नहीं, वो है कैसा कुछ पता नहीं, हाँ अगर हमें पता है तो बस इतना कि कोई है जिसको हमें खोजना है। वो हमारी मदद करेगा, मतलब उसकी तलाश करो और खुद की मदद खुद करने का यत्न मत

मुझे माफ कर देना

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मुझे माफ कर देना उतर सकी न पूरी तेरी मुहब्बत के क्षितिज पर हाँ, मुझे ले बैठा लज्जा, शर्म और बदनामी का डर जो किए थे वादे निकले रेत के टीले या पानी पे खींची लकीर जो तुम समझो क्षमा चाहती हूँ, जो, तेरे लिए जमाने से मैं लड़ न सकी कदम से कदम और कंधे से मिला कंधा साथ तेरे खड़ न सकी बेवफा, खुदगर्ज धोखेबाज जो चाहे देना नाम मुझे लेकिन याद रखना रिश्ता तोड़ने से पहले कई दफा खुद भी टूटी हूँ मैं मजबूरियों, बेबसियों के आगे टेक घुटने माँ बाप के लिए बन गोलक फूटी हूँ मैं तेरा सामना कर सकूँ हिम्मत न इतनी जुटा पाई मैं हर बार की तरह अब भी समझ लेना मेरी बेबसी लाचारी को जो बोलकर न सुना पाई मैं। आ भार कुलवंत हैप्पी

हैप्पी अभिनंदन में कार्टूनिस्ट कीर्तिश भट्ट

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हैप्पी अभिनंदन में आज ब्लॉगवुड की जिस हस्ती से आप रूबरू होने जा रहे हैं, वो कम शब्दों में बहुत बड़ी बात कहने में यकीन रखते हैं। कहूँ तो गागर में सागर भरने की कोशिश करते हैं और सफल भी होते हैं, सच में कोई अतिशोक्ति नहीं। हररोज आप उनके इस हुनर और कला से रूबरू होते हैं। जी हाँ, मैं आज आपकी मुलाकात बामुलाहिजा के संचालक और शानदार कार्टूनिस्ट कीर्तिश भट्ट से करवाने जा रहा हूँ। वो क्या सोचते हैं ब्लॉगवुड के बारे में और कैसे पहुंचे जहाँ तक उनकी कहानी उनकी जुबानी खुद ही पढ़िएगा। कुलवंत हैप्पी : आपने अपने ब्लॉग पर भारतीय कार्टून और भारतीय कार्टूनिस्ट से सम्बद्ध लेख का लिंक तो दिया है, लेकिन खुद के बारे में कुछ नहीं लिखा, विशेष कारण? कीर्तिश भट्ट : ज हाँ तक 'भारतीय कार्टून और भारतीय कार्टूनिस्ट से सम्बद्ध लेख का ' सवाल है तो वो लिंक मैंने इसलिए लगाया है क्योंकि हिंदी विकिपीडिया पर इस विषय से सम्बद्ध लेख मैं लिख रहा हूँ, लिंक पर दिए गए लेख मेरे लिखे हुए हैं. कई पूर्ण है कई आधे अधूरे हैं जिन्हें जानकारी के आभाव मैं पूरा नहीं कर पाया हूँ. लिंक देने कई कारण है जैसे कि अन्य कार्टूनिस्ट भी अ

भारत की सबसे बड़ी दुश्मन

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कुछ दिन पहले गुजरात प्रवास के दौरान हिम्मतनगर से 29 किलोमीटर दूर स्थित ईडर गया दोस्त से मिलने। ईडर शहर को पत्थर के बीचोबीच बसा देखकर घूमने का मन हुआ। वहाँ एक बहुत ऊंची पत्थरों से बनी हुई पहाड़ी है..जिस पर एक राजा का महल है, जो आजकल खण्डहर हो चुका है। उसके बीच लगा सारा कीमत सामान निकाल लिया गया है। बस वहाँ अगर कुछ बचा है तो केवल और केवल प्रेमी युगलों के नाम, जिनके बारे में कुछ पता नहीं कि वो इन नामों की तरह आज भी साथ साथ हैं या फिर नहीं। सारी दीवारें काली मिली..जैसे दीवारें न हो कोई रफ कापी के पन्ने हों। कुछ कुछ तो ऐसे जिद्दी आशिक भी यहाँ आए, जिन्होंने दीवारों को कुरेद कुरेद नाम लिखे।। तल से काफी किलोमीटर ऊंची इस पहाड़ी पर खण्डहर राजमहल के अलावा दो जैन मंदिर, हिन्दु देवी देवताओं के मंदिर और मुस्लिम पीर बाबा का पीरखाना भी। राजमहल जहाँ आज अंतिम साँसें ले रहा है, वहीं श्वेताम्बर जैन मंदिर का करोड़ों रुपए खर्च कर पुन:निर्माण किया जा रहा है। वहाँ मुझे महावीर की याद आती, जो निर्वस्त्र रूप में मुझे कहीं जगह मिल चुके हैं प्रतिमा के रूप में। महावीर की निर्वस्त्र मूर्ति देखकर मैं आज तक हँसा नहीं, हा

शादी मुहब्बत की नहीं, ख्वाहिश की पूर्ति है

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अहा! जिन्दगी के फरवरी 2010 अंक में प्रकाशित एवं सुरजीत द्वारा अनुवादित मुमताज मुफ्ती की "वह बच्चा" कहानी के अंत में नायिका नायक से मिलने आती है। नायक नायिका से बहुत नाराज है, लेकिन नायिका नायक को बताती है कि वो घर नहीं गई, सिर्फ उसको मनाने के लिए लाहौर से उसके पास आई है। इस तरह प्रेम भाव से उसने नायक से पहले कभी बात नहीं की थी, नायक को नायिका का प्रेम देखकर गुस्सा आ जाता है, लेकिन नायिका नजाकत को समझते हुए कहती है मुझे पता है तुम मुझसे बेहद मुहब्बत करते हो। नायिका अपनी बात जारी रखते हुए कहती है “मैं जानती हूं कि तुम में एक बच्चा है। मासूम बच्चा, जो बेलाग, बेगर्ज, बेमकसद मुझे चाहता है। अरशी, तुम्हारी मुहब्बत मेरी जिन्दगी का एकमात्र सरमाया है, जिसके सहारे मैं सारी जिन्दगी गुजार सकती हूं। नायक चिल्लाते हुए कहता है “ फिर तुमने उसको ठुकरा क्यों दिया, तुमने उसको रद्द क्यों कर दिया। नायिका कहती है कि मैं उसको नहीं ठुकराया, उस पर तो मुझे गर्व है, मैंने तो केवल तुम्हारी शादी का प्रस्ताव ठुकराया है। गुस्से के कारण आपा खो चुका नायक चिल्लाते हुए पूछता है आखिर क्यों? नायिका बोलती है “अरशी