एक गुमशुदा निराकार की तलाश
इस दुनिया में इंसान आता भी खाली हाथ है और जाता भी, लेकिन आने से जाने तक वो एक तलाश में ही जुटा रहता है। तलाश भी ऐसी जो खत्म नहीं होती और इंसान खुद खत्म हो जाता है। वो उस तलाश के साथ पैदा नहीं होता, लेकिन जैसे ही वो थोड़ा सा बड़ा होता है तो उसको उस तलाश अभियान का हिस्सा बना दिया जाता है, जिसको उसके पूर्वज, उसके अभिभावक भी नहीं मुकम्मल कर पाए, यह तलाश अभियान निरंतर चलता रहता है। जिसकी तलाश है, उसका कोई रूप ही नहीं, कुछ कहते हैं कि वो निराकार है। कितनी हैरानी की बात है इंसान उसकी तलाश में है, जिसका कोई आकार ही नहीं। इस निराकार की तलाश में इंसान खत्म हो जाता है, लेकिन उसका अभियान खत्म नहीं होता, क्योंकि उसने अपने खत्म होने से पहले इस तलाश अभियान को अपने बच्चों के हवाले कर दिया, जिस भटकन में वो चला गया, उसकी भटकन में उसके बच्चे भी चले जाएंगे। ऐसा सदियों से होता आ रहा है, और अविराम चल भी रहा है तलाश अभियान। खोजना क्या है कुछ पता नहीं, वो है कैसा कुछ पता नहीं, हाँ अगर हमें पता है तो बस इतना कि कोई है जिसको हमें खोजना है। वो हमारी मदद करेगा, मतलब उसकी तलाश करो और खुद की मदद खुद करने का यत्न मत