संदेश

एक संवाद, जो बदल देगा जिन्दगी

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धूप की चिड़िया मेरे आँगन में खेल रही थी, और मेरी माँ की उंगलियाँ मेरे बालों में, जो सरसों के तेल से पूरी तरह भीगी हुई थी। इतने में एक व्यक्ति घर के भीतर घुस आया, वो देखने में माँगने वाला लगता था। उसने आते ही कहा "माता जी, कुछ खाने को मिलेगा"। घर कोई आए और भूख चला जाए हो नहीं सकता था। मेरी माँ ने मेरी बहन को कहा "जाओ रसोई से रोटी और सब्जी लाकर दो"। वो रोटी और एक कटोरी में सब्जी डालकर ले आई। उसने खाना खाने के बाद और जाने से पहले कहा "मैं हाथ भी देख लेता हूं"। मेरी माँ ने मेरा हाथ आगे करते हुए कहा "इस लड़के का हाथ देकर कुछ बताओ"। उसने कहा "वो हाथ दो, ये हाथ तो लड़कियाँ दिखाती हैं"। उसने हाथ की लकीरों को गौर से देखा, फिर मेरे माथे की तरफ देखा। दोनों काम पूरे करने के बाद बोला "तुम्हारा बच्चा बहुत बड़ा आदमी बनेगा" । वो ही शब्द कहे, जो हर माँ सुनना चाहती है । पढ़ें : बंद खिड़की के उस पार उस बात को आज 14 साल हो चले हैं, उस माँ का बेटा बड़ा आदमी तो नहीं बना, लेकिन चतुर चोर बन गया , जो अच्छी चीजों को बिना स्पर्श किए चुरा लेता है। जनाब!

बंद खिड़की के उस पार

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करने को कल जब कुछ न था मन भी अपना खुश न था जिस ओर कदम चले उसी तरफ हम चले रब जाने क्यों जा खोली खिड़की जो बरसों से बंद थी खुलते खिड़की इक हवा का झोंका आया संग अपने समेट वो सारी यादें लाया दफन थी जो बंद खिड़की के उस पार देखते छत्त उसकी भर आई आँखें आहों में बदल गई मेरी सब साँसें आँखों में रखा था जो अब तक बचाकर नीर अपने एक पल में बह गया जैसे नींद के टूटते सब सपने

बसंत पंचमी के बहाने कुछ बातें

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चारों ओर कोहरा ही कोहरा...एक कदम दूर खड़े व्यक्ति का चेहरा न पहचाना जाए इतना कोहरा। ठंड बाप रे बाप, रजाई और बंद कमरों में भी शरीर काँपता जाए। फिर भी सुबह के चार बजे हर दिशा से आवाजें आनी शुरू हो जाती..मानो सूर्य निकल आया हो और ठंड व कोहरा डरे हुए कुत्ते की तरह पूंछ टाँगों में लिए हुए भाग गया हो। कुछ ऐसा ही जोश होता है..बसंत पंचमी के दिन पंजाब में। बसंत पंचमी के मौके लोग बिस्तरों से निकल घने कोहरे और धुंध की परवाह किए बगैर सुबह चार बजे छत्तों पर आ जाते हैं, और अपनी गर्म साँसों से वातावरण को गर्म करते हैं। इस दृश्य को पिछले कई सालों से मिस कर रहा हूं, इस बार बसंत पर पंजाब जाने की तैयारी थी, लेकिन किस्मत में गुजरात की उतरायन लिखी थी, जो गत चौदह जनवरी को गुजरात में मनाकर आया। गुजरात में पहली बार कोई त्यौहार मनाया, जबकि गुजरात से रिश्ता जुड़े तो तीन साल हो गए दोस्तों और पत्नि के कारण। गुजरात में उतरायन पर खूब पतंगबाजी की, पतंगबाजी करते करते शाम तो ऐसा हाल हो गया था कि जैसे ही छत्त से उतर नीचे हाल में पड़े सोफे पर बैठा तो आँख लग गई, पता ही नहीं चला कब नींद आ गई। ऐसा आज से कुछ साल पहले होता थ

हैप्पी अभिनंदन में बीएस पाबला

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हैप्पी अभिनंदन में आप और मैं हर बार किसी न किसी नए ब्लॉगर से मिलते हैं और जानते हैं उनके दिल की बातें। इस बार हमारे बीच जो ब्लॉगर हस्ती है, वो किसी पहचान की मोहताज तो नहीं, लेकिन सम्मान की हकदार जरूर है। आज किसका जन्मदिन ( हिंदी ब्लॉगरों के जनमदिन   ) है और आज कौन सा ब्लॉगर साथी किस अखबार में छाया हुआ है आदि की जानकारी मुहैया करवाने वाली इस ब्लॉगर हस्ती को हम जिन्दगी के मेले , कल की दुनिया , बुखार ब्लॉग , इंटरनेट से आमदनी , पंजाब दी खुशबू आदि ब्लॉगों पर भी अलग अलग रूप में हुए देखते हैं। युवा सोच युवा खयालात की ओर से मेहनती ब्लॉगर 2009 पुरस्कार हासिल करने वाले ब्लॉग प्रिंट मीडिया पर ब्लॉग चर्चा के संचालक बीएस पाबला से हुई ई-मेल के मार्फत एक विशेष बातचीत के मुख्य अंश :- कुलवंत हैप्पी : आपके बहुत सारे ब्लॉग हैं, आप इनको नियमित अपडेट कैसे कर पाते हैं? क्या आपके पास जादू की छड़ी है? बीएस पाबला : जादू की छड़ी तो नहीं है, लेकिन जुनून और सनक अवश्य है। जिस तारीख में सोता हूँ, उसी तारीख में उठ भी जाता हूँ और दिन में सोने के लिए तो नहीं जाता बिस्तर पर! कुलवंत हैप्पी : आप कम्प्यूटर तकनीक में

कोकिला का कुछ करो

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'हम दोनों कितने कमीने हैं' उसने मेरी थाली से एक बर्फी का टुकड़ा उठाते हुए कहा।'वो तो ठीक है कि बेटा तुमको गुजराती आती है, वरना अब लोग चुस्त हो चुके हैं, खासकर आमिर खान की नई फिल्म 'थ्री इडियट्स' देखने के बाद" मैंने उसकी तरफ देखते हुए कहा। 'उसमें ऐसा क्या है' उसने उस बर्फी के पीस को अपने मुँह के पास ले जाते हुए पूछा। 'उसमें दिखाया गया है कि कैसे शादी में कोई ऐरा गैरा घुसकर खाने का लुत्फ लेता है, तुमको पता है जब तुम थाली उठा रहे थे तो एक व्यक्ति अपनु को संदिग्ध निगाह से देख रहा था' मैंने चमच से चावल उठाते हुए कहा। 'मुझे पता चल गया था, इसलिए तो मैं गुजराती में बोला था तुमको' उसने पुरी से एक निवाला तोड़ते हुए कहा। 'हम दोनों के पीछे बैग टंगे हुए हैं, ऐसा लगता है कि हम किसी कॉलेज या ट्यूशन से आए हैं, इस हालत में देखकर शक तो होगा ही' मैंने उसको कहा। दोनों दरवाजे के बाहर बनी फर्श की पट्टी पर बैठे मुफ्त के खाने का लुत्फ ले रहे थे, जो जमीं से नौ इंच ऊंची थी। मुफ्त के खाने का लुत्फ लेने के बाद अब बारी थी, नाट्य मंचन देखने की। शनिवार की रात क