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एक सिक्के के दो पहलू

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आज सुबह सुबह मनोदशा कुछ अच्छी न हीं थी, मन एक बना रहा था तो एक ढहा रहा था। तबी मेरे दोस्त जनक सिंह झाला ने एक तस्वीर दिखाई, जो उसने पिछले दिनों लिए अपने नए कैमरे से खींची। इस तस्वीर को देखने के बाद मुझे एक ख्याल आया वो ये कि ये तस्वीर नहीं, जिन्दगी का एक खरा सच है। इसी लिए मैंने को इस नाम से पुकारा-'एक सिक्के के दो पहलू'। अगर इस महिला को जिन्दगी मान लिया जाए तो दुख-सुख इसके दो पहलू हैं, जैसा कि इस तस्वीर में मुझे दिखाई पड़ता है। शायद आगे दौड़ रहा बच्चा सुख है और पीछे चल रहा दुख । अगर इस तस्वीर को मेरी नजर से देखें तो पीछे दो अक्षर लिखे हुए नजर आ रहे हैं, पीछे वाले बच्चे के पास 'T' एवं अगले वाले बच्चे के पास 'E'। 'T' बोले तो Tension एवं 'E' बोले तो Enjoyment। और तस्वीर में मिलती जुलती स्थिति । हम सबको बनाने वाला तो एक है, लेकिन हमारी स्थिति इन दोनों बच्चों सी है, कोई ज्यादा खुश तो कोई ज्यादा दुखी। दीवार फिल्म के अमिताभ बच्चन एवं शशि कपूर, जन्म तो एक मां ने दिया, लेकिन किस्मत दोनों की जुदा जुदा, जैसे मेरी और मेरे भाई की। जिन्दगी भी ऐसे ही चलती है, कभ

कविता-सड़क

टहल रहा था, एक पुरानी सड़क पर सुबह का वक्त था सूर्य उग रहा था, पंछी घोंसलों को छोड़ निकल रहे थे दूर किसी की ओर इस दौरां एक आवाज सुनी मेरे कानों ने सड़क कुछ कह रही थी ये बोल थे उसके कोई पूछता नहीं मेरे हाल को कोई समझता नहीं मेरे हाल को आते हैं, जाते हैं हर रोज नए नए राहगीर ओवरलोड़ ट्रकों ने, बसों ने दिया जिस्म मेरा चीर सिस्कती हूं, चिल्लाती हूं, बहाती हूं, अत्यंत नीर फिर भी नहीं समझता कोई मेरी पीर

नहीं चखी चार दिन से सब्जी

मैं बठिंडा के लिए निकला और नागदा से मुझे फिरोजपुर जनता पकड़नी थी, लेकिन वो गाड़ी रात को दस बजे के करीब आती है, मैंने सात बजे नागदा पहुँच गया, सोचा क्यों न, नागदा की सैर कर ली जाये, मैं बाज़ार घूमते घूमते बाज़ार के बीचों बीच पहुँच गया, यहाँ कुछ महिलाऐं एवं पुरुष धरने पर बैठे हुए, वहां पर लगे बोर्ड पढने के बाद पता चला के वो सब्जी भाजी वाले हैं, जिनकी जगह छीन ली गयी है, कहो तो उनकी रोजीरोटी छीन ली, वो अपनी मांग को लेकर पिछले सोमवार से बैठे हुए हैं, दिलचस्प बात तो ये है के पिछले सोमवार से जयादातर नागदा वासिओं ने सब्जी का स्वाद चखकर नहीं देखा, क्योंकि वो सब्जी नहीं ला रहे, पता नहीं ये कब तक चलेगी, पर मैं तो इस पोस्ट के साथ बठिंडा के लिए रवाना हो जऊंगा, बस दुआ करता हूँ, नागदा वासिओं को सब्जी मिले और सब्जी वालों को उनकी जगह, तब तक के लिए इजाजत चाहूँगा, मैं गूगल की गूगल इंडिक ट्रांस्लितेरेशन लब्स का अति आभारी हूँ, जो हिंदी लिखने में हर जगह सही हो रही है.

ब्लॉगरों के लिए विशेष सूचना..

सुनो सुनो, ब्लॉगर भाईयों और बहनों..मैंने ब्लॉगरों को एक मंच पर लाने के लिए orkut पर इंडियन ब्लॉगर लीग बनाई है...अगर आपकी इच्छा हो तो इसमें शीघ्र शामिल हुए..और अपने संपर्क को बढ़ाईए.. शामिल होने के लिए आसान तरीका..ओरकुट पर एक खाता और शामिल हो जाइए. ओरकुट में जाकर सर्च करें. ---Indian blogger league--. और बन जाए दोस्त सबके...

पप्पूओं की शिकायत.....

शुक्रवार की सुबह मैं अपने सुसराल में था, मैंने आम दिनों की तरह दुनिया भर का हाल जानने के लिए टीवी शुरू किया, और खबरिया चैनल बदलते बदलते पहुंच गया एनडीटीवी पर, जहां पप्पूओं पर स्पेशल रिपोर्ट चल रही थी, लेकिन ये वो पप्पू नहीं थे, जिनको पप्पू श्रेणी में रखा जाता है, बल्कि ये स्टोरी उन पप्पू पर आधारित थी, जो वोट करने के बाद भी बदनाम हैं. जो डांस में नंबर एक हैं, लेकिन लोग कहते हैं कि 'पप्पू कांट डांस साला', इसको प्रस्तुत कर रहे थे मेरे पसंदीदा संवाददाता एवं न्यूज एंकर रवीश कुमार. गंभीर मुद्दों पर स्पेशल रिपोर्ट पेश करने वाले रवीश कुमार, इस खबर को पेश करते हुए खुद की हँसी को ब-मुश्किल रोके हुए थे. उनकी आंखों में हँसी सफल झलक रही थी, क्योंकि वो जानते थे कि पप्पू शब्द का इस्तेमाल उनके टीवी एवं उनके ब्लॉग पर कितने बार हुआ है, लेकिन कहते हैं ना कि जब जागो तब सुबह. फिर भी रवीश कुमार अपनी हँसी को रोके हुए अपने शब्दों के जरिए बदनाम हुए पप्पूओं को उनका खोया मान दिलाने के लिए बोलना शुरू रखा. वो बार बार कह रहे थे कि वोट बबलू नहीं देता, लेकिन बदनाम पप्पू होता है. दुनिया भर में पप्पू नामक व्यक्

sms खोल रहें पोल

अक्सर पंजाब से दोस्त एसएमएस भेजते रहते हैं, और मेरी भी फिदरत है कि एसएमएस को हर हाल में पढ़ा जाए, क्योंकि कुछ एसएमएस असल में भी बहुत अहम होते हैं. जिनका जवाब उसकी मौके पर देना लाजमी होता है. आज ऑफिस में बैठा कीबोर्ड पर अपनी रोजाना की तरह उंगलियां चला रहा था, और कानों में एनडीटीवी इंडिया की आवाज आ रही थी, जिस पर रवीश कुमार द्वारा स्पैशल स्टोरी प्रस्तुति की जा रही थी. इतने में पास पड़े मोबाइल पर एसएमएस आने का अलर्ट सुनाई दिया. मैंने तुरंत मोबाइल उठाया और देखा कि आख़र किसका एसएमएस आया है. मोबाइल पर एक फनी एसएमएस था, जिसको पढ़कर हंसी, लेकिन उसकी अंतिम लाईन ने लिखने पर मजबूर कर दिया.वो कुछ इस तरह था... A poor man catches a fish. wife can't cook due to.. no gas no electricity no oil man puts fish back in rivar fish comes up & shouts Badal Sarkar Zindabad इसके अलावा कुछ दिन पहले मैंने अपने मित्र पत्रकार फोटोग्राफर की ओरकुट पर बड़े बादल एवं छोटे बादल का गुफतगू करता पिकचर देखा, जब मेरी नजर उसके नीचे लिखे कमेंट पर पढ़ी तो मैं हैरान रह गया. उसमें पंजाबी में लिखा हुआ था, जिसका हिंदी अनुव

पूर्वजों को ऑनलाइन दें श्रद्धांजलि

इंदौर के हवाई अड्डे से करीबन तीन चार किलोमीटर दूर एक ऐसा स्थान है, जहां पूर्वजों की याद में पौधे लगाए जाते हैं. इस जगह का नाम है पितृ पर्वत, जहां पर हजारों पौधे लगे हुए हैं पूर्वजों की याद में, कुछ तो पेड़ बन गए और कुछ अभी अपने शुरूआती पड़ाव पर हैं, मुझे इस जगह जाकर बहुत अंदर मिलता है. इस का मुख्य कारण एक तो वहां का शुद्ध वातावरण और दूसरा शहर के शोर शराबे से दूर, तीसरा यहां पहुंचकर लोगों का अपने पूर्वजों के प्रति प्यार पेड़ पौधों के रूप में झलक था, जिन पर पंछी अपना बसेरा बनाते हैं और इस जगह आने वाले इन पेड़ों की छाया में बैठते हैं, जैसे परिवारजन घर के मुखिया की छांव तले जिन्दगी को बेचिंत बेफिक्र जीते हैं. इस स्थान की देखरेख नगरनिगम के कर्मचारी करते हैं, यहां पर शहर से आने वाले लोगों के लिए एक बढ़िया पार्क भी है और बैठे के लिए अच्छा प्रबंध है. हां, याद आया अब तो पूर्वजों की याद को हम सब इंटरनेट पर भी संभालकर रख सकते हैं, ऐसी ही एक वेबसाइट पिछले दिनों मेरे ध्यान में आई, जिसको भी इंदौर के रहवासी ने तैयार किया है। पुण्य-समरण के नाम से बनी इस वेबसाईट पर पूर्वजों की जीवनी का सारांश भी दे सकते हैं

2007 ने किसको क्या दिया, किसी से क्या छीना

किसी ने ठीक ही कहा है कि समय से बलवान कोई नहीं और समय से पहले किसी को कुछ नहीं मिलता, ये बात बिल्कुल सत्य है, अगर आप आपने आसपास रहने वाले लोगों या खुद के बीते हुए दिनों का अध्ययन करेंगे तो ये बात खुदबखुद समझ में आ जाएगी। चलो पहले रुख करते हैं बालीवुड की तरफ क्योंकि ये मेरा पसंदीदा क्षेत्र है. जैसे ही 2007 शुरू हुआ छोटे बच्चन यानी अभिषेक के दिन बदल गए, उनकी इस साल की पहली फिल्म 'गुरू' रिलीज हुई, इस फिल्म ने अभिषेक को सफलता ही नहीं बल्कि करोड़ों दिलों की धड़कन 'ऐश' लाकर इसकी झोली में डाल दी, इसके बाद आओ हम चलते खिलाड़ी कुमार की तरफ ये साल उनके लिए बहुत ही भाग्यशाली साबत हुआ क्योंकि उनकी इस साल रिलीज हुई हर फिल्म को दर्शकों ने खूब प्यार दिया, जिसकी बदौलत अक्षय कुमार सफलता की सीढ़ियों को चढ़ते हुए सफलता की शिख़र पर जाकर बैठ गए. इस साल भारी झटका बालीवुड के प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक संजय लीला भंसाली को लगा क्योंकि उनकी पिछले दिनों रिलीज हुई फिल्म को इस साल की सबसे फ्लाप फिल्मों में गिना जा रहा है, बेशक संजय मानते हैं कि उनकी फिल्म बहुत अच्छी थी लेकिन समीक्षाकारां ने फिल्म की आलोचना

क्रिकेट पर नस्लीय टिप्पणियों का काला साया

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क्रिकेट खेल मैदान अब धीरे धीरे नस्लीय टिप्पणियों का मैदान बनता जा रहा है. आज खेल मैदान में खिलाड़ी खेल भावना नहीं बल्कि प्रतिशोध की भावना से कदम रखता है. वो अपने मकसद में सफल होने पर सम्मान महसूस करने की बजाय अपने विरोधी के आगे सीना तानकर खड़ने में अधिक विश्वास रखता है. यही बात है कि अब क्रिकेट का मैदान नस्लवादी टिप्पणियों के बदलों तले घुट घुटकर मर रहा है. इसके पीछे केवल खिलाड़ी ही दोषी नहीं बल्कि टीम प्रबंधन और बाहर बैठे दर्शक भी जिम्मेदार हैं. अगर टीम प्रबंधन खिलाड़ियों के मैदान में उतरने से पहले बोले कि खेल को खेल भावना से खेलना और नियमों का उल्लंघन करने पर कड़ी सजा होगी तो शायद ही कोई खिलाड़ी ऐसा करें. लेकिन आज रणनीति कुछ और ही है मेरे दोस्तों. आज की रणनीति 'ईंट का जवाब पत्थर' से देने की है. जिसके चलते आए दिन कोई न कोई खिलाड़ी नस्लवादी टिप्पणी का शिकार होता है. यह समस्या केवल भारतीय और आस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों की नहीं बल्कि इससे पहले दक्षिण अफ्रीका के खिलाड़ी हर्शल गिब्स ने भी पाकिस्तानी खिलाड़ियों पर टीका टिप्पणी की थी. खेल की बिगड़ती तस्वीर को सुधारने के लिए खेल प्रबंधन को ध्यान

अंत तक नहीं छोड़ा दर्द ने दामन

कोई दर्द कहां तक सहन कर सकता है, इसकी सबसे बड़ी उदाहरण है पिछले दिनों मौत की नींद सोई बेनज़ीर भुट्टो..जो नौ वर्षों के बाद पाकिस्तान लौटी थी..सिर पर कफन बांधकर..उसको पता था कि उसकी मौत उसको बुला रही थी, मगर फिर भी क्यों उसने अपने कदमों को रोका नहीं. इसके पिछे क्या रहा होगा शोहरत का नशा या फिर झुकेंगे नहीं मर जाएंगे के कथन पर खरा उतरने की कोशिश.. कुछ भी हो, असल बात तो ये है कि दर्द ने बेनजीर भुट्टो का दामन ही नहीं छोड़ा. स्व. इंदिरा गांधी की शख्सियत से प्रभावित और अपने पिता जुल्फिकार अली भुट्टो से राजनीतिक हुनर सीखकर राजनीतिक क्षेत्र में उतरी बेनज़ीर भुट्टो बुर्के से चेहरे को बाहर निकालकर देश की सत्ता संभालने वाली पहली महिला थी. बेनज़ीर भुट्टो स्व. इंदिरा गांधी से पहली बार तब मिली थी, जब बांग्लादेश युद्ध के बाद 1972 में जुल्फिकार अली भुट्टो शिमला समझौते के लिए भारत आए थे, इस दौरन भुट्टो भी उनके साथ थी। बेनज़ीर की हँसती खेलती जिन्दगी में दर्द का सफर तब शुरू हुआ, जब 1975 में बेनजीर के पिता को प्रधानमंत्री पद से बर्खास्त कर दिया गया था और उनके विरुध एक राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी की हत्या मुकदमा