ऑस्कर विजेता स्लमडॉग एवं चुस्कियां

बच्चे अपनी तमाम मासूमियत के बावजूद इस घिसेपिटे सवाल का टेलीविजन से ही सीखा हुआ जवाब जानते थे। जी हाँ जरूर। हमारे दोस्तों ने देश का नाम रोशन किया है। स्लमडॉग मिलियनेयर का जमाल महात्मा गाँधी के बारे में पूछे जाने पर कहता है कि सुना हुआ सा लगता है नाम। झुग्गी के इन बच्चों से भी देश का इतिहास और भविष्य इतना ही दूर या करीब है तो स्लमडॉग मिलियनेयर की सफलता इनके लिए क्या है...। स्माइल पिंकी नाम की डॉक्यूमेंट्री ने भी ऑस्कर जीता। ये डाक्यूमेंट्री उत्तरप्रदेश के मिरजापुर के एक छोटे से गाँव के गरीब परिवार की पिंकी नाम की जिस बच्ची के जीवन पर आधारित है, उसकी माँ मानती है कि उसकी बेटी ने ‘अफसर’ जीता है और देश का नाम रोशन किया है और अब सरकार को उन्हें कम से कम एक छोटी दुकान खोलने के लिए पैसे देना चाहिए। ऑस्कर की खुशी में महाराष्ट्र सरकार ने भी स्लमडॉग के अजहरुद्दीन और रूबीना को मकान देने का फैसला कर लिया है, मगर हफ्ताभर लॉस एंजेलिस में बिताने वाले अजहरुद्दीन को उसके पिता ने इसलिए तमाचा जड़ दिया, क्योंकि वह पत्रकार को इंटरव्यू देने से मना कर रहा था। खबर अखबारों के पहले पन्ने पर है। कुछ दिनों के लिए इन बच्चों की गरीबी पर हमारी नजर है। आप कैसे देखते हैं इस खबर को, कैसे देखते हैं पिंकी, अजहरुद्दीन और रूबीना जैसे लाखों बच्चों की जिंदगी और उनके सपनों के बीच के फासलों को, ऑस्कर के जादू को। मंच पर दुनिया के बेहद धनी और खूबसूरत कलाकारों के साथ खड़े इन बच्चों को देख कर किसी ने कहा अगर इस फिल्म से करोड़ों बनाने वाले लोग बांद्रा और धारावी की झुग्गियों के इन बच्चों में से एक-एक की शिक्षा का भी भार उठा लें तो कितना कुछ बदल सकता है। ऐसा बदलाव आएगा या नहीं, हम नहीं जानते, लेकिन हाँ एक बदलाव जरूर आया है। वह है 'पावर्टी टूरिज्म'। अब पर्यटक इन बदबूदार बस्तियों को दूर से देख कर महसूस करना चाहते हैं कि यहाँ कैसे जादू शुरू हुआ होगा। अब ये बस्तियाँ टूरिस्ट नक्शे पर हैं, निशान की तरह। यहाँ अंधेरे का सफर सिनेमा के तीन घंटों से कहीं ज्यादा लंबा है। बकौल विस्सवा शिंबोर्सका परदों का गिरना ही नाटक और फिल्म की सबसे कड़वी सच्चाई होता है।
लेखक : अनीश अहलूवालिया, बीबीसी संवाददाता

टिप्पणियाँ

  1. दरअसल, सिनेमा की हकीकत जमीनी हकीकत से कोसों दूर होती है। स्लमडॉग इसका सबसे बेहतरीन उदाहरण है। स्लमडॉग के बच्चे अब कहां हैं और क्या कर रहे हैं? इसे देखने का वक्त न अब हमारे मीडिया के पास है। न रहमान के। न बॉयल के। न सुखबिंदर के। न गुलजार साहब के। ये सब अब अपनी-अपनी मस्ती में रम चुके हैं। ये अब अगली किसी स्लमडॉग पर हाथों में कामयाबी का पुरस्कार थामकर गरीब और गरीबी का मजाक उड़ाएंगे।

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