बहुत कुछ कहते हैं दिल तो बच्चा है के महिला किरदार

पिछले दिनों हालिया रिलीज अजीम बाज्मी की नो प्रोब्‍लम, क्रित खुराना की टुनपुर का सुपरस्टार, फरहा खान की तीस मार खां व मधुर भंडारकर की दिल तो बच्चा है देखी। नो प्रोब्‍लम को छोडक़र बाकी सब फिल्में फिल्मी दुनिया से जुड़ी हुई थी, इनमें से मधुर भंडारकर की फिल्म हिन्दी फिल्मी फार्मुले से कुछ हटकर नजर आई, जो हर हिन्दी फिल्म की तरह सुखद अंत के साथ समाप्त नहीं होती। इस फिल्म के जरिए मधुर भंडारकर बहुत कुछ कह गए, लेकिन फिल्म समीक्षक फिर भी कहते रहे कि फिल्म में कुछ कसर बाकी है। मधुर भंडारकर ने तीन किरदारों को आपस में जोडक़र एक आधुनिक समय की तस्वीर पेश की। इस फिल्म में निक्की नारंग का किरदार अदा करने वाली श्रुति हसन, जब अभय (इमरान हश्मी) का दिल तोड़ते हुए कहती है कि यह तेरे लिए या मेरे के लिए कोई नई बात नहीं, एक लडक़ी का इस तरह उत्‍तर देना, अपने आप में चौंकने वाला था, यह वैसा ही था, जैसे फिल्म मर्डर में मल्लिका शेरावत का मेडिकल दुकान पर जाकर निरोध मांगना। इसमें कोई दो राय नहीं कि समय बदल रहा है, और बदलते समय की तस्वीर को पेश किया है मधुर भंडारकर ने। वहीं नरैन अहुजा (अजय देवगन) व उनकी पत्नि का रिश्ता टूटना भी समाज की एक नई तस्वीर पेश करता है। आज पत्नि पति इतने व्यस्त हो गए, उनको रिश्तों से ज्यादा अपने कैरियर की चिंता है, अगर र‍िश्‍ता कैरियर में रोड़ बनता है तो वह उसको भी बीच से हटाने में झिझकते नहीं। गुनगुन का मिलिंद केलकर की मासूमियत का फायदा उठाना, उन लड़कियों की तस्वीर पेश कर रहा है, जो अपना कैरियर बनाने के लिए किसी का भी जीवन बिगाड़ सकती हैं। अनुषका नारंग का किरदार, उस वर्ग का नेतृत्व करता है, जो एशोआराम की जिन्दगी जीने के लिए कोई भी समझौता कर पैसे के बल पर शरीर की भूख मिटाता है। पुरुष का चित्र तो हम सब रुपहले पर्दे पर देखते ही आ रहे हैं सदियों से, लेकिन मधुर भंडारकर ने महिला किरदारों को इस फिल्म में दयनीय स्थिति में नहीं दिखाया बल्कि उनको एक नए रूञ्प में दिखाया। मधुर भंडारकर की इस फिल्म में महिला नहीं, पुरुष लूटते हुए नजर आए। अनुषका का अभय को मुंह तोड़ जवाब देना, उसके भीतर की ऊर्जा को उजागर करता है, जबकि आज तक फिल्मकार यह ही दिखाते आए हैं कि औरत ने किसी पुरुष के साथ संभोग कर लिया तो उसके सामने आत्महत्या करने के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं, उसने औरत का हमेशा ही हीन दिखाया है। औरत की इस हीनता का पुरुषों ने खूब फायदा उठाया। लेकिन औरत चाहे तो वह पुरुषों को हीन भावना का शिकार बना सकती है। मधुर भंडारकर की इस फिल्म के महिला किरदार बहुत कुछ कहते थे, जिनको समझने की जरूरत है। हमारे समाज ने बॉस व अधीनस्थ महिला की निकटता को हमेशा ही गलत नजर से देखा है, लेकिन जरूरी नहीं कि उनके बीच हमेशा शारीरिक संबंध हों, इस बात को बयान करती है जून पिंटो की नरायन के साथ की निकटता। फ‍िल्‍म में बार बार बजने वाला गीत कोई होता व अभय का किरदार एक बात तो तय करता है कि जिन्‍दगी जितनी भी क्‍यों न व्‍यस्‍त व ऐशोराम भरी हो, लेकिन दिल को हमेशा प्‍यार व साथ की जरूरत रहती है।

टिप्पणियाँ

  1. अच्छा लिखा है आपने दोस्त. आपका नजरिया बहुत सही है. फ़िल्म की समीक्षा इसी तरह से होनी चाहिए.

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